politics in Panipat
सन 1984 के आम चुनावों से पहले मैंने निश्चय किया कि इस बार तो हमे भी मैदान में उतरना चाहिए । अपने अनेक मित्रो से सलाह की तथा अपने शिभचिंतको का मार्गदर्शन भी चाहा । अनेक चुनावी धुरन्द्रों ने अपनी राय दी कि मुझे सफीदों हल्का या कुरुक्षेत्र की किसी विधानसभा में कोशिश करनी चाहिए । मेरे लिये तो यह अजूबा था कि क्यो ऐसी वे राय दे रहे है जबकि उनका मानना था कि हमारी बिरादरी की संख्या इन इलाकों में काफी है । यह बात मेरे लिये कष्टदायक थी कि पैदाइश से लेकर शिक्षा ,सम्पर्क व राजनीतिक कार्यस्थल तो पानीपत रहा फिर हम बाहर क्यो जाएं ,क्या पानीपत के लोग हमारी बिरादरी नही है ? यह झटका नाकाबिले बर्दाश्त था कि इंसानी बिरादरी से अलग भी कोई बिरादरी होती है । जब आर्य हायर सेकेंडरी स्कूल ,पानीपत में मेरे आठवी के बोर्ड की परीक्षा के लिये फार्म भरे जाने लगे तो मैने अपने पारिवारिक शिक्षा से प्रेरित होकर अपने पिता के नाम के बाद का भी जातिसूचक शब्दो को हटवा दिया था और मैने तो कभी इन शब्दों का प्रयोग किया ही नही था । हम पानीपत में कायस्थान मोहल्ले में रहा करते थे और हमारा सारा पड़ोस ब्राह्मणों का था । मेरी