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politics in Panipat

सन 1984 के आम चुनावों से पहले मैंने निश्चय किया कि इस बार तो हमे  भी मैदान में उतरना चाहिए  । अपने अनेक मित्रो से सलाह की तथा अपने शिभचिंतको का मार्गदर्शन भी चाहा । अनेक चुनावी धुरन्द्रों ने अपनी राय दी कि मुझे सफीदों हल्का  या कुरुक्षेत्र की किसी विधानसभा  में कोशिश करनी चाहिए । मेरे लिये तो यह अजूबा था कि क्यो ऐसी वे राय दे रहे है जबकि उनका मानना था कि हमारी बिरादरी की संख्या इन इलाकों में काफी है । यह बात मेरे लिये कष्टदायक  थी कि पैदाइश से लेकर शिक्षा ,सम्पर्क व राजनीतिक कार्यस्थल तो पानीपत रहा फिर हम बाहर क्यो जाएं ,क्या पानीपत के लोग हमारी बिरादरी नही है ? यह झटका नाकाबिले बर्दाश्त था कि इंसानी बिरादरी से अलग भी कोई बिरादरी होती है ।      जब  आर्य हायर सेकेंडरी स्कूल ,पानीपत में मेरे आठवी के बोर्ड की परीक्षा के लिये फार्म भरे जाने लगे तो मैने अपने पारिवारिक शिक्षा से प्रेरित होकर अपने पिता के नाम के बाद का भी जातिसूचक शब्दो को हटवा दिया था और मैने तो कभी इन शब्दों का प्रयोग किया ही नही था । हम पानीपत में कायस्थान मोहल्ले में रहा करते थे और हमारा सारा पड़ोस ब्राह्मणों का था । मेरी

Sugar Field to Chikago

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शुगर केन फील्ड टू शिकागो ।     श्री कुंवर विजेंद्र शेखर  युवा है परंतु कार्यों में वे न केवल प्रौढ़ है अपितु बुजुर्ग भी है । शेख सादी ने कहा है कि बुजुर्गियत उम्र से नही  बल्कि काम से आती है। सादी की बात यहां हुबहू साबित होती है।   मौका दुखद था उनसे घर जाकर मुलाकात करने का । गत दिवस उनकी पूजनीय माता जी का स्वर्गवास हो गया था और मालूम होने पर मैं उनके दिल्ली स्थित आवास पर शोक प्रकट करने गया था ।     अवसर बेशक विषाद का रहा परंतु कुंवर शेखर की बातचीत ने उसे प्रेरक उत्सव बना दिया । माता जी का एक मनमोहक चित्र उस बड़े कमरे में रखा था जहां सब लोग एक साथ बैठे थे । चित्र सचमुच आकर्षित करता था ऐसे जैसे वे जीवंत है तथा हम सब को निहार रही है और पुछ रही है कि कोई दिक्कत तो नही। ऐसा अनुभव हो रहा था कि मां पुछ रही हो थके तो नही ,खाना खाओगे । एक अजीब सा वात्सल्यपूर्ण वातावरण था । घर में घुसते ही उनके बड़े भाई शोभित जी ने स्वागत किया । मेरी तो उनसे पहली ही मुलाकात थी पर ऐसे लगा कि बरसों पुराने परिचित परिवार मे आ मिला हूं।      यह था पूरे घर परिवार का वातावरण  जिसकी आध्यात्मिक चेतना को जानने व समझने की