Sugar Field to Chikago
शुगर केन फील्ड टू शिकागो ।
श्री कुंवर विजेंद्र शेखर युवा है परंतु कार्यों में वे न केवल प्रौढ़ है अपितु बुजुर्ग भी है । शेख सादी ने कहा है कि बुजुर्गियत उम्र से नही बल्कि काम से आती है। सादी की बात यहां हुबहू साबित होती है।
मौका दुखद था उनसे घर जाकर मुलाकात करने का । गत दिवस उनकी पूजनीय माता जी का स्वर्गवास हो गया था और मालूम होने पर मैं उनके दिल्ली स्थित आवास पर शोक प्रकट करने गया था ।
अवसर बेशक विषाद का रहा परंतु कुंवर शेखर की बातचीत ने उसे प्रेरक उत्सव बना दिया । माता जी का एक मनमोहक चित्र उस बड़े कमरे में रखा था जहां सब लोग एक साथ बैठे थे । चित्र सचमुच आकर्षित करता था ऐसे जैसे वे जीवंत है तथा हम सब को निहार रही है और पुछ रही है कि कोई दिक्कत तो नही। ऐसा अनुभव हो रहा था कि मां पुछ रही हो थके तो नही ,खाना खाओगे । एक अजीब सा वात्सल्यपूर्ण वातावरण था । घर में घुसते ही उनके बड़े भाई शोभित जी ने स्वागत किया । मेरी तो उनसे पहली ही मुलाकात थी पर ऐसे लगा कि बरसों पुराने परिचित परिवार मे आ मिला हूं।
यह था पूरे घर परिवार का वातावरण जिसकी आध्यात्मिक चेतना को जानने व समझने की नही अपितु अनुभव करने की जरूरत थी । मां का चित्र , बड़े भाई के सहजता से किसी भी अपरिचित को तपाक से मिलने तथा पारिवारिक वातावरण ,यह बात स्वत ही किसी दिव्यात्मा के प्रकाश की सहज अनुभूति करवा रही थी।
श्री शेखर मूलत: उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जनपद के एक छोटे से कस्बे गंगोह के है । उनके दादा , प्रसिद्ध वैदिक विद्वान तथा शिक्षा प्रचारक स्वामी कल्याण देव जी महाराज के अति विशिष्ट मित्रो में रहे है । स्वामी जी महाराज ने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थान पर स्कूल कालेज खोलने की प्रेरणा अपने साधन सम्पन्न शिष्यों तथा साधारण जनता को देकर महती सेवा की है । यहां यह
कहना तो कठिन है कि कौन किसका प्रेरक रहा परंतु यह कहना काफी सरल है कि "बिन हरि कृपा मिले न संता" ।
यह श्री शेखर के दादा (बाबा जी) तथा उसी परंपरा के उनके पिता तथा अब उनका ही पराक्रम रहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थान २ पर इंजीनियरिंग कॉलेज, लॉ इंस्टीट्यूट तथा शोभित यूनिवर्सिटी के नाम से अनेक प्रख्यात शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई है।
उनके घर पर जा कर मिलने से भी इन्ही बातों का जिक्र रहा । उनका मानना था कि माता जी स्थूल रूप में तो हमारी बीच नही है परंतु आत्मिक तथा वैचारिक रूप में हमारे बीच में है । और उनका विचार है वेद का शाश्वत संदेश "चरैवेति चरैवेति" ।
श्री शेखर अपनी बात कहे जा रहे थे और हम उस कथा को नैमिश्रणय में बैठे मूक श्रोताओं की तरह सुनते जा रहे थे । यह कथा थी उन सत्य प्रयोगों कि जिसमे कुरैशियां मोहल्ले की मुस्लिम लड़कियां किस तरह तमाम विरोधो के बावजूद पढ़ लिख कर सबला बनी थी और फिर उसकी पहल ने अनेकों को शिक्षा के आफताब से रोशन किया था । यह वृतांत थे उस व्यक्ति के जिसने महा नगरों के विलासिता पूर्ण गलियारों से निकल अपने पैतृक कस्बे गंगोह को अपनी कर्म भूमि बनाने का शुभ संकल्प था । वह गाथा थी उन प्रसंगों की जिसने सैंकड़ों युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान किया था ।
"तेरी मिट्टी में मिल जावा" गीत पर थिरकने वाले तो बहुत मनचले मिल जायेंगे परंतु अपनी सरजमीं को गुलज़ार करने वाले लोगों में शेखर जैसे लोग बहुत कम है । ऐसा नहीं कि देश विदेश जाने अथवा बसने के अवसर नहीं मिले पर एक शरूर यह रहा जिसने हाली के शब्दो में यूं बयां किया है
"हरगिज़ न लूं बहिश्त, तेरी एक मुश्ते खाक के बदले " ।
महर्षि दयानंद सरस्वती के शब्दो में " वे माता पिता धन्य है जो अपनी संतान को उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान करते हैं"। इस हिसाब से इस परिवार को देख कर इनके माता पिता का परिचय खुद ही मिल जाता है।
एक युवक का प्रसंग यहां बेहद जरूरी है जो गंगोह के पास के किसी गांव के गरीब किसान का बेटा था । पढ़ाई करने की इच्छा तो थी पर साधन न थे । थोड़ी खेती थी और वह भी गन्ने की । घर वाले कहते पढ़ लिख कर क्या करेगा ? क्यों समय व पैसे बर्बाद करता है ? खेत में काम कर और गन्ना छोल (छील)। पर उसे मौके प्रदान किए गए और फिर वही युवा शेखर जी के ही इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ कर अमेरिका के शिकागो नगर में काम करने चला गया और फिर उसी ने अपने बारे में लिखा " शुगर केन फील्ड टू शिकागो"।
यह एक सफल स्टोरी हो सकती है पर ऐसी अनेक वृतांत सुनने के लिए हमे शेखर जी के पास आना होगा ।
उपनिषद के ही शब्दों में
"ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते। "
ॐ शांति: शांति: शांतिः ।
राम मोहन राय
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