लाल बहादुर शास्त्री- बचपन के झरोखे से
श्री लाल बहादुर शास्त्री जब भारत के प्रधान मंत्री बने तो मै कुल 6 वर्ष का था परन्तु उम्र के मुकाबले में काफी कुशाग्र व राजनीतक तक रूप से परिपक्व भी ,इसका कारण यह भी है कि मेरे माता -पिता दोनों सामाजिक -राजनितिक कार्यकर्ता थे तथा देश भक्ति व प्रेम से लबालब भरे थे ।माँ कार्यकर्ता तथा नेत्री थी तो पिता एक विचारक व चिंतक ।उनकी जो सबसे शानदार चीज थी वो यह की वे सामाजिक सरोकार की हर बात अपने बच्चों यानि हम सबसे शेयर करते थे शायद यही कारण था की हम उम्र से ज्यादा समझदार थे ।सन् 1965 में भारत व पाकिस्तान में युद्ध हुआ ।सन् 1962 के भारत चीन लड़ाई में अपनी हार से हर भारतीय आहत था वह यह युद्ध नही पराजित होना चाहता था इसलिये हर नागरिक अपने अपने स्थान पर युद्ध की तैयारी में था ।प्रधान मंत्री शास्त्री जी के "जय जवान-जय किसान "के नारे ने पुरे देश में जोश पैदा कर दिया था ।हम बच्चे भी इसी जोश से ओतप्रोत थे ।एक दिन मै अपनी माँ के साथ बाजार गया वहाँ एक दुकान पर एक टॉय टैंक बिकता देखा जो जमीन पर चलाने पर उसमे पत्थर होने की वजह से अपनी नली से चिंगारी छोड़ता था, उसकी कीमत तीन रुपये की थी जो मेरी हैसियत से बाहर थी परन्तु मैने जेब खर्च बचा कर व कुछ अपने घरवालो से जिद करके उस टैंक को खरीद लिया ।अब मै बहुत उत्साही था और इस टैंक का सही इस्तेमाल भी करना चाहता था ।जैसे मैने पहले कहा कि उम्र की बनिस्बत हम होशियार थे बाजार गए तथा 6 पैसे का एक पोस्टकार्ड ले आये और अपनी टूटी फूटी लेखनी से एक पत्र लिखा जिसकी भाषा ऐसी थी ,"प्रिय शास्त्री जी ,
नमस्ते!
मेरे पास एक टैंक है जिसे मेँ सीमा पर ले जा कर पाकिस्तान से लड़ना चाहता हु ।यदि आप चाहे तो यह टैंक मै आपको भी दे सकता हु ।
आपका,
राम मोहन राय"
मैने यह पत्र अपने पिता को दिखाया ,वे बहुत खुश है तथा उस पर प्रधान मंत्री जी का पता लिख कर पोस्ट बॉक्स में डाल दिया ।मेरा ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब कुछ रोज़ बाद प्रधान मंत्री कार्यालय से एक पत्र ,श्री राम मोहन राय के नाम आया ।पत्र में लिखा था "प्रिय श्री राम मोहन राय,
आपका पत्र मिला ,धन्यवाद ।
हमे भारतीय सेना पर गर्व है परन्तु फिर भी आपके टैंक की आवश्यकता पड़ी तो आपको अवसर देंगे ।
आपका,
लाल बहादुर "
पत्र मिलते ही हमारा पूरा परिवार पागल सा हो गया ।पर मुझे चैन कहाँ था मुझे लगा शास्त्री जी तक तो मेरी दोस्ती हो गयी है,मैने कुछ दिन बाद एक पत्र फिर लिख दिया की मै आपसे मिलना चाहता हु जवाब फिर आया परन्तु वह मुझे 13 जनवरी को मिला जिसमे प्रधान मंत्री जी के निजी सहायक श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने लिखा था कि प्रधान मंत्री जी भारत पाक वार्ता के लिये ताशकन्द गए है उनके लौटने पर समय दे कर आपको बुलाया जाएगा ।प्रधान मंत्री कार्यालय से वह पत्र 11 जनवरी को डाला गया था जो मुझे 13 को मिला ।पर इस दौरान ताशकन्द में 11 जनवरी को ही शास्त्री जी का देहांत हो गया था ।मुझे बेहद दुःख था मेरे दोस्त शास्त्री जी के गुजरने का जो मुझसे बात करते थे ,मेरे खतो का जवाब देते थे व् जिन्हें ताशकन्द से लौटने पर मुझे मिलना था ।
दैव योग से सन् 1981 में लगभग 8 माह मुझे ताशकन्द रह कर पढ़ने का मौका मिला ।यह मेरे दोस्त के आखरी मुकाम का शहर था जिसे मै दिल्ली में मिलना चाहता था पर न मिल सका ,अब मौका मिला था उसे इतनी दूर मिलने आने का ।मै हर रविवार अपने दोस्त को मिलने के लिये वहाँ जाता जहाँ उसने अपनी आखरी सांसे ली थी ।शारीरिक रूप से तो वह नही पाता पर घंटो वहाँ रुक कर रूहानी रूप से बातें करता । शायद ताशकन्द जाने व रहने का मेरा यही मकसद प्रकृति ने बदा होगा ।
राम मोहन राय
नमस्ते!
मेरे पास एक टैंक है जिसे मेँ सीमा पर ले जा कर पाकिस्तान से लड़ना चाहता हु ।यदि आप चाहे तो यह टैंक मै आपको भी दे सकता हु ।
आपका,
राम मोहन राय"
मैने यह पत्र अपने पिता को दिखाया ,वे बहुत खुश है तथा उस पर प्रधान मंत्री जी का पता लिख कर पोस्ट बॉक्स में डाल दिया ।मेरा ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब कुछ रोज़ बाद प्रधान मंत्री कार्यालय से एक पत्र ,श्री राम मोहन राय के नाम आया ।पत्र में लिखा था "प्रिय श्री राम मोहन राय,
आपका पत्र मिला ,धन्यवाद ।
हमे भारतीय सेना पर गर्व है परन्तु फिर भी आपके टैंक की आवश्यकता पड़ी तो आपको अवसर देंगे ।
आपका,
लाल बहादुर "
पत्र मिलते ही हमारा पूरा परिवार पागल सा हो गया ।पर मुझे चैन कहाँ था मुझे लगा शास्त्री जी तक तो मेरी दोस्ती हो गयी है,मैने कुछ दिन बाद एक पत्र फिर लिख दिया की मै आपसे मिलना चाहता हु जवाब फिर आया परन्तु वह मुझे 13 जनवरी को मिला जिसमे प्रधान मंत्री जी के निजी सहायक श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने लिखा था कि प्रधान मंत्री जी भारत पाक वार्ता के लिये ताशकन्द गए है उनके लौटने पर समय दे कर आपको बुलाया जाएगा ।प्रधान मंत्री कार्यालय से वह पत्र 11 जनवरी को डाला गया था जो मुझे 13 को मिला ।पर इस दौरान ताशकन्द में 11 जनवरी को ही शास्त्री जी का देहांत हो गया था ।मुझे बेहद दुःख था मेरे दोस्त शास्त्री जी के गुजरने का जो मुझसे बात करते थे ,मेरे खतो का जवाब देते थे व् जिन्हें ताशकन्द से लौटने पर मुझे मिलना था ।
दैव योग से सन् 1981 में लगभग 8 माह मुझे ताशकन्द रह कर पढ़ने का मौका मिला ।यह मेरे दोस्त के आखरी मुकाम का शहर था जिसे मै दिल्ली में मिलना चाहता था पर न मिल सका ,अब मौका मिला था उसे इतनी दूर मिलने आने का ।मै हर रविवार अपने दोस्त को मिलने के लिये वहाँ जाता जहाँ उसने अपनी आखरी सांसे ली थी ।शारीरिक रूप से तो वह नही पाता पर घंटो वहाँ रुक कर रूहानी रूप से बातें करता । शायद ताशकन्द जाने व रहने का मेरा यही मकसद प्रकृति ने बदा होगा ।
राम मोहन राय
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