सेवाधाम तीर्थ ,उज्जैन

*सेवाधाम तीर्थ उज्जैन*
यात्रा वृतांत
(Inner Voice-
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इसे एक महज संयोग नही मान कर ईश्वरीय कृपा माननी चाहिए कि जब -जब किसी तीर्थ पर जाने का अवसर मिलता है तो वहाँ सेवा तीर्थ पर जाने का अवसर लाभ भी मिलता है । गत दिवस बनारस में बेशक यू आर आई की नेशनल असेम्बली में गए थे परन्तु ऐसा कैसे हो सकता था कि वहां जाकर कांशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन न हो । वहां भी गए और फिर दर्शन लाभ मिला अपने मित्र श्री अमृत दासगुप्ता द्वारा संचालित मूक वधिर बच्चों के विद्यालय दर्शन का । अब उज्जैन में एक कार्यक्रम में आने का सुअवसर मिला तो महाकाल के मंदिर में तो गए ही परन्तु सुअवसर मिला श्री सुधीर भाई गोयल द्वारा विकलांग, मूक बधिर, असहाय वृद्ध ,महिलाओं तथा बच्चों के लिये चलाए जा रहे सेवा धाम आश्रम में आने का ।
      मेरी आर्य समाजी पृष्टभूमि है परन्तु पिता के उदार सनातनी भाव तथा गुरु निर्मला देशपांडे जी के सानिध्य ने मुझे कठोरता नही दी । इसीलिए न तो मंदिर में जाने में गुरेज है और न ही किसी दरगाह अथवा गुरुद्वारा में जाने में कोई हिचक भाव । मै  मूलतः आस्तिक हूं और मेरा मानना है कि परमात्मा द्वारा निर्मित यह चर-अचर सृष्टि ही उसका स्वरूप है । मैं किसी भी धार्मिक स्थल पर इसी भाव से जाता हूं कि ईश्वर यदि है तो सब जगह है और यदि नही है तो कहीं भी नही ।
    मेरे बचपन मे मेरी मां द्वारा दिये एक दृष्टांत ने मुझे खूब प्रभावित किया कि शंकर -कल्याणकारी है । उनके अनेक नाम शिव ,शम्भू ,शंकर , महाकाल आदि आदि है परन्तु उनका एक प्रिय नाम पंचानन है अर्थात पांच मुख है जिसके । वे बताती थी कि भगवान शिव का पहला मुख -ऊषाकाल, दूसरा -अग्निहोत्र ,तीसरा - पशु-पक्षी व पर्यावरण सुरक्षा , चौथा -असहाय ,मूक-बधिर ,विकलांग की सेवा तथा पांचवा- अपने माता-पिता,  वृद्ध सेवा है । प्रतिमा की सेवा का तो बेशक पुण्य फल मिलेगा या नही परन्तु यदि हम भगवान शिव की पूजा-अर्चना ,भोग तथा सेवा उनके इन पांच मुखों के माध्यम से करते है तो परमेश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे ।
     शायद इन्ही भावों से उज्जैन में श्री सुधीर भाई गोयल एक ऐसा उपक्रम चला रहे है ,जिसका कोई सानी नही है । सेवाधाम आश्रम एक संस्थान नही अपितु एक तीर्थ है जो उज्जैन तीर्थ की महिमा को विस्तृत करता है । श्री सुधीर गोयल का जन्म एक वैश्य धनाढ्य परिवार में हुआ था । अपने बचपन तथा युवावस्था में सुख-सम्पदा का खूब उपयोग किया । व्यापार किया और उसमें भी खूब कमाया । परन्तु मानसिक शांति नही मिली । श्रीमती कांता के साथ विवाह के बाद दो संतान एक बेटा-अंकित और एक बेटी मोनिका का जन्म हुआ । पुत्र अंकित की अकाल मृत्यु इस महाकाल की नगरी में ही हो गयी । इसके बाद तो गोयल दम्पत्ति ने अपने जीवन जीने के ढंग को ही बदल लिया और तमाम पारिवारिक दवाबों कर बावजूद अपने को पूरी तरह से सेवा कार्यो के लिये समर्पित कर दिया । उज्जैन 18 किलोमीटर दूर एक गांव अंबोदिया में जमीन
खरीदी तथा वहां एक झोपड़ी बना कर स्थापित हो गए । श्री गणेश एक 90 वर्षीय वृद्धा जो अगणित घावों से पीड़ित थी । मवाद की वजह से बदबू पूरे शरीर में भरी थी ।  सुधीर भाई उस वृद्धा को अपनी झोपड़ी में ले आये और  उन्हें नहला-धुला कर उसका उपचार शुरू कर दिया । आश्रम में न बिजली थी व न पानी का इंतजाम पर गोयल भाई के पुरुषार्थ ने सब व्यवस्था धीरे-धीरे की और आज लगभग 30 एकड़ जमीन में फैले इस आश्रम में लगभग 650 वृद्ध, असहाय महिलाओं, अनाथ बच्चों तथा मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग यहां सेवा लाभ ले रहे है । आश्रम में अब पांच अलग -2 खण्ड है जहाँ हर प्रकार की सुविधाएं इन पीड़ित लोगों के लिये उपलब्ध है । अनेक लोग ऐसे है जो 10 से 15 साल से इस स्थान पर है ।
       यह आश्रम सेवा व निष्ठा की प्रतिमूर्ति है । हर सुविधा  यहाँ रहने वाले व्यक्ति को प्रदान की जाती है फिर भी इसके संस्थापक सुधीर भाई इससे से संतुष्ट नही है । उनका कहना है कि अभी तो कुल दस प्रतिशत मन का काम हुआ है । उनका हर सम्भव प्रयास है कि ऐसी कोई भी सुविधा बकाया न हो जो यहां न मिले । उनकी पत्नी श्रीमती कांता गोयल व सुपुत्री मोनिका जिस तन्मयता से सेवा कार्य कर रही है ,उसको शब्दो में बखान नही किया जा सकता ।
     स्वधाम आश्रम के अध्यक्ष डा0 वेद प्रताप वैदिक व संस्थापक निदेशक सुधीर भाई गोयल के नेतृत्व तथा अन्य कार्यकर्ताओं के सहयोग से यह स्थान नए नए आयाम हासिल कर रहा है ।
   आश्रम के समूचे प्रबंधन को हार्दिक शुभकामनाएं व साधुवाद ।
राम मोहन राय,
पानीपत /09.02.2020

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