Next issue of the Nityanootan ll be on peace in South Asia , specially on indo -Pak relations. Pl send a article English or urdu as per ur convenience .
Regards.
*जस्टिस विजेंद्र जैन* (पूर्व मुख्य न्यायाधीश ,पंजाब एवम हरियाणा हाईकोर्ट ,चंडीगढ़) से मेरा सम्पर्क_सम्बन्ध वर्ष 1983_84 से है, जब वे दिल्ली में वकालत करते हुए देशभर के प्रगतिशील वकीलों के एक संगठन के अग्रणी नेतृत्वकारी दस्ते में थे । वे एक निहायत ही नफीस और दरियादिल इंसान हैं। उनके द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अनेक कानूनी और न्यायिक कार्यक्रमों में एक युवा वकील होने के नाते मुझे भी भाग लेने का सुअवसर मिला था । ये वह दौर था जब देश में लोकतंत्र की एक नई बयार बह रही थी । सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर , न्यायमूर्ति डी ए देसाई , जस्टिस वेंकट रमैया आदि प्रमुख लोग इन कार्यक्रमों में भाग लेते थे । इसी दौरान वह भी दौर आया जब जनता के स्तर पर फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन तथा इंडिया _ जर्मन जनवादी गणराज्य मैत्री संघ की स्थापना हुई जिसके भी मुख्य संचालक श्री विजेंद्र जैन तथा उनके अन्य साथी श्री विनोद भाटिया , श्री आर के जैन ,एडवोकेट (भोपाल) और दीदी निर्मला देशपांडे जी थे । ये सभी लोग न मेरे कार्यों से बखुबी वाकिफ थे और इसी कारण मेरे व्यक्तिगत संबंधों
Aaghaz e Dosti yatra की एक सरसरी रिपोर्ट. आगाज ए दोस्ती यात्रा न केवल हिन्दुस्तान की आज़ादी का उत्सव मनाने का एक उपक्रम है वहीं उन लोगों को भी श्रद्धांजली अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है जिन्होंने इस उप महाद्वीप को अंग्रेजी दासता से मुक्त करवाने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित किया. उनका संघर्ष किन्ही टुकड़ों को बनाने का नहीं था और न ही एक राज से दूसरे राज को सत्ता हस्तांतरण का. महात्मा गांधी कह्ते थे कि अंग्रेज़ बेशक रह जाए पर अंग्रेजियत चली जाए. उन्होंने यह भी कहा कि उनके देश को आज़ादी इस लिए चाहिए ताकि वह दुनियां के शोषित लोगों की सेवा कर सके. वास्तव में हमारा संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष का हिस्सा था. जिसके बारे में पंडित नेहरू ने कहा था कि हमारी लड़ाई स्पेन के मैदान में भी लड़ी जा रहीं है. हिन्दुस्तान सोशलिस्ट republican एसोसिएशन ने अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट किया कि आजादी का मायना गोरे लोगों की जगह काले लोगों का राज नहीं है यह है व्यवस्था परिवर्तन. बापू ने कहा कि उनकी लाश पर बटवारा होगा और जब बटवारा तय ही हो गया तो उन्होंने कहा कि देश बेश
*मुजीब, गांधी और टैगोर किस के निशाने पर* बांग्लादेश के घटनाक्रम से अनेक कयास लगाए जा रहे हैं. पर यह तो निश्चित है कि यह कोई इंकलाब तो नहीं है जैसा कि कई लोग युवा आक्रोश के नाम पर इसे एक नए अध्याय की शुरुआत बता रहे है. राजनीतिक विज्ञान के एक विद्यार्थी के नाते मैं अपनी सन 2018 में सम्पन्न बांग्लादेश यात्रा के बारे में कहना चाहूँगा. जैसा कि हम जानते हैं कि भारत आज़ादी और विभाजन से पहले पूर्वी बंगाल, आज का बांग्लादेश, साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहा था. दोनों समुदायों के जान माल के नुकसान और नफरत चरम सीमा पर थी. तब महात्मा गांधी वहां गए थे और लगभग साढ़े चार महिने नोआखाली और उसके आसपास के गांवों में पैदल घूमे थे. एक चर्चित चित्र जिसमें बापू एक खेत की पगडंडी को अपनी लाठी लिए पार कर रहे है, उसी समय का है. हमने भी अपनी यात्रा में उन सभी स्थानों पर जाने का सुअवसर प्राप्त किया जहां जहां उनकी चरण धुली बिखरी हुई थी. वहीं हमें वे दो नौजवान मिले जो बापू के साथ कौतूहल वश घूमते थे. मोहम्मद जीतू मियां और अब्दुल कलाम भूरिया अब तो उनकी आयु 92 वर्ष हो ग
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