राम नाम मुद मंगलकारी

*Inner voice*
    (Nityanootan Broadcast Service)
          मेरे मित्र श्री विश्व दीपक त्रिखा जो कि हरियाणा के एक प्रख्यात सांस्कृतिक कर्मी है, ने मुझ से एक प्रश्न किया कि मेरा तब्लीगीयो के बारे में क्या विचार है ? मैं किसी की भी आस्थाओं को ठेस पहुचाए बिना नम्र निवेदन करना चाहूंगा सिर्फ इन के बारे में ही नही अपितु ऐसे सभी लोगो के बारे में जो हर सम्प्रदाय में हैं के बारे में एक ही विचार है कि ऐसे लोग धर्मांध है जो धर्म की आड़ में लोगों को उसकी अफीम चटाते रहते है ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे और लोग अपनी असली समस्याओं से भटक कर इनके चंगुल में फंसे रहे । ऐसे लोग हर धर्म में है चाहे जो भी हो । मैं अपने इन मित्र को हरियाणा के पंचकूला का उदाहरण देना चाहूंगा जब धर्मांध शिष्यों की भीड़ ने अपने एक गुरु को सजा सुनाए जाने पर उत्पात मचाया था और प्रतिक्रिया स्वरूप 50 मासूम लोगों की जान गई थी । झझर के पास एक आश्रम में क्या कुछ नही हुआ था ? धर्मांध लोग अपने धर्माधिकारी ,गुरु अथवा किसी भी संगठन के कहने पर वे सब कुछ कर सकते है जिसे आप-हम सोच भी नही सकते । आपने किन्ही तीर्थ यात्रियों को देखा होगो जो लम्बलेट हो कर 200से 400 किलोमीटर का सफर तय करते है ।
    संत कबीर ने ऐसे लोगों को देख कर ही कहा होगा  ।
*कंकर -पाथर जोड़ कर मस्जिद लिए बनाई, ता मुल्ला  चढ़ी बाग दे क्या बहरा हुआ खुदाय* ।
    *पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़, ताते यह चाकी भली पीस खाए संसार*।
    आज रामनवमी के इस पुनीत अवसर पर मैंने अपने सभी मित्रों को इसकी बधाई दी कि *पतित पावन ,मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चन्द्र महाराज के जन्मदिन *राम नवमी*  पर शतशः बधाई! इस पर एक मित्र का जवाब आया -
       *मुबारक हिन्दुओं का नहीं महोदय तब्लीगी जमात का है*
    अब हम यहां आकर खड़े हो गए हैं कि भाषा को भी धर्मों में बांटना चाहते हैं । क्या मुबारक वास्तव में तबलीगी जमात का शब्द है ? मैं भी समझता हूं कि मेरे यह मित्र किनको तबलीगी कह रहे हैं
यह शब्द अरबी से उर्दू भाषा में आया है । क्या उर्दू किसी धर्म विशेष की भाषा है? मेरा मानना है कि यह इस क्षेत्र की भाषा है, किसी धर्म की नहीं । चलो हम धर्म की भाषा ही मान लेते है , तो क्या बंगाल ,तमिलनाडु ,केरल आदि प्रांतों के मुसलमान उर्दू को ही बोलते हैं? यदि उर्दू धर्म की भाषा ही होती तो सन 1971 में भाषा के नाम पर इस्लामिक पाकिस्तान का बंटवारा न होता और न ही एक उदित राष्ट्र बांग्लादेश  बनता?
     आज के दिन मेरे एक मित्र ने प्रसिद्ध उर्दू शायर अल्लामा इक़बाल की एक नज़म जिसमे उन्होंने भगवान राम की स्तुति की थी उसे भेजा जिसके बोल हैं:
      लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द ।
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द ।।
ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द ।
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द ।
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द ।
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है ,
यहीरोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द ।
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था ।
     *मेरे एक अन्य मित्र श्री सिद्धार्थ कृष्ण जो कि प्रसिद्ध योगाचार्य व आध्यात्मिक विभूति है ने  रहबर जौनपुरी की एक और उर्दू की  नज़म भेजी* ; आईना-ए-ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत यहाँ थे राम
अम्न और शांति की ज़मानत यहाँ थे राम '
सच्चाइयों की एक अलामत यहाँ थे राम
या'नी दिल-ओ-निगाह की चाहत यहाँ थे राम
क़दमों से राम के ये ज़मीं सरफ़राज़ है
हिन्दोस्ताँ को उन की शुजाअ'त पे नाज़ है
उन के लिए गुनाह था ये ज़ुल्म-ओ-इंतिशार
ईसार उन का सारे जहाँ पर है आश्कार
दामन नहीं था उन का तअ'स्सुब से दाग़-दार
हिर्स-ओ-हवस से दूर थे वो साहब-ए-वक़ार
बे-शक उन्हीं के नाम से रौशन है नाम-ए-हिंद
इक़बाल ने भी उन को कहा है इमाम-ए-हिंद
लाल-ओ-गुहर की कोई नहीं थी तलब उन्हें
इज़्ज़त के साथ दिल में बसाते थे सब उन्हें
बचपन से ना-पसंद थे ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब उन्हें
लोगों का दिल दुखाना गवारा था कब उन्हें
वो ज़ालिमों पे क़हर ग़रीबों की ढाल थे
किरदार-ओ-ए'तिबार की रौशन मिसाल थे
उन को था अपनी रस्म-ए-उख़ुव्वत पे ए'तिमाद
ख़ुद खा के जूठे बेर दिया दर्स-ए-इत्तिहाद
फ़र्ज़-आश्ना थे फ़र्ज़ को रक्खा हमेशा याद
कहने पे अपनी माँ के कहा घर को ख़ैर-बाद
रुख़्सत हुए तो लब पे न थे शिकवा-ओ-फ़ुग़ाँ
ये हौसला नसीब हुआ है किसे यहाँ
बन-बास पर भी लब पे न था उन का एहतिजाज
भाई के हक़ में छोड़ दिया अपना तख़्त-ओ-ताज
करते रहे वो चौदह बरस तक दिलों पे राज
हिन्दोस्ताँ में है कोई उन की मिसाल आज
राह-ए-वफ़ा पे चल के दिखाया है राम ने
कहते हैं किस को त्याग बताया है राम ने
रहबर ये शर-पसंद कहाँ और कहाँ वो राम
वो बे-नियाज़-ए-ऐश-ओ-तरब ज़र के ये ग़ुलाम
वो पैकर-ए-वफ़ा ये रिया-कार-ओ-बद-कलाम
वो अम्न के नक़ीब ये शमशीर-ए-बे-नियाम
रस्म-ओ-रिवाज-ए-राम से आरी हैं शर-पसंद
रावन की नीतियों के पुजारी हैं शर-पसंद
      महर्षि दयानंद सरस्वती गुजराती थे ।उनके अंत समय में उन्होंने हिंदी सीखने शुरू की और अपने अनेक ग्रंथों की रचना हिंदी में की पर इससे पहले वे संस्कृत एवं गुजराती में ही अपना व्यवहार रखते थे । आर्य समाज के अनेक उपदेशको पंडित लेखराज, गुरुदत्त  विद्यार्थी, प0 चमूपति एम ए,महाशय कृष्ण , महात्मा आनंद स्वामी जैसे अनेक विद्वानों ने अपने सभी साहित्य रचना उर्दू में ही की   यदि हम किसी भी भाषा को किसी धर्म की बना देंगे तो हम उस साहित्य रूपी समुद्र से वंचित हो जाएंगे और हम बेहतर से बेहतर रत्न नहीं निकाल पाएंगे ।
    स्पष्ट है कि धर्मांध लोग हर जगह हैं, जो न केवल भाषा के नाम पर अपितु धर्म ,क्षेत्र एवं वेशभूषा के नाम पर भी वस्तुओं का विभेदीकरण करते हैं और अपनी-२ समझ से उसका भाष्य करते हैं । यदि यह व्याख्या नफरत और वैमनस्य से बने हुए हैं तो निश्चित मानिए कि यह किसी भी धर्म के अनुसार नहीं हैं
       आज मैने अपने अनेक बुजुर्गों को रामनवमी की बधाई देने के लिए फोन किया। उनमें एक प्रमुख नाम प्रसिद्ध महिला नेत्री एवं राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ0 मोहिनी गिरी भी हैं । मैंने उन्हें बधाई दी तो वे तपाक से बोली बेटा, हम लोगों ने प्रकृति सभी स्रोत सौरमंडल,  वनस्पति, जल और वायु  के साथ जो छेड़छाड़ की, और प्रकृति को अपने अनुसार उसका दुरुपयोग करने की कोशिश की, आज उसकी सजा हमारे सामने आ रही है । हम घरों में बंद होने को मजबूर हैं और प्रकृति हमें बार-बार बता रही है कि घर से मत बाहर निकलो, वरना ऐसा प्रलयंकारी वातावरण बन रहा है कि वह सब को लील जाएगा । क्या प्रकृति की यह चेतावनी हमें सजा के रूप में  तो ही नहीं है?
     मेरे अत्यंत प्रिय युवा मित्र डॉ0 सुदेश खुराना से मेरी आज एक लंबी चर्चा रही। हमारी बातचीत का विषय था आज के समय में इस महामारी से उत्पन्न स्थितियां । हम तीन बिंदुओं पर सहमत रहे कि कौन लोग हैं जो आज एकांत का पालन नहीं कर रहे । एक वे लोग है जिनकी मजबूरी है कि वे भूख से परेशान है ,काम न होने की वजह से अपने घर का पालन पोषण करने में असमर्थ है। उनके सामने दो ही प्रश्न है कि वे या तो इस महामारी कोरोना में अपनी जान दे दे अथवा भूख से मृत्यु को प्राप्त हो। उनकी यह ही समझ है यदि हमें मरना ही है तो फिर हम क्यों ना अपने घरों में ही जाकर मरे । इसलिए वह बिना किसी बात की परवाह किए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को तैयार हैं ।छोटे-छोटे बच्चे, महिलाए  किस तरह से वे परेशान होकर अपने दूरदराज के घरों के लिए सड़कों पर उतर गए हैं
       दूसरी तरह के भी लोग हैं जो लोग घर पर नहीं बैठ सकते। नई अमीरी ने और घर के ऐश्वर्या पूर्ण वातावरण ने उनको स्वच्छंदता दी है कि वह सड़कों पर जाएं, घूमे- फिरे और अपने पैसों  को लुटा कर हर प्रकार का आनंद लें, पर ऐसी संख्या थोड़ी है।
     तीसरी तरह के लोग हैं जो हर बात के लिए ईश्वर का नाम लेकर उन्हें ही अपना सहारा बनाते हैं । इन लोगों का मानना है कि जब तक परमात्मा की तरफ से उन्हें प्राणवायु मिली हुई है, तब तक कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । इसलिए चाहे वह कुछ भी कर ले उन्हें किसी भी डर की परवाह नहीं है ।ईश्वर- अल्लाह- गॉड उन सब लोगों को बार-बार सबक दे रहा है, यह उसी की तो प्रेरणा है जो बार-बार प्रेरित कर रही है कि आप घर के अंदर रहो पर वह ईश्वरीय प्रेरणा को ना मानकर अपने मनमाफिक अनर्गल प्रेरणाओं से पोषित हो रहे हैं ।
   हमारी एक अनन्य साथी शाइस्ता चौधरी ने एक बहुत ही प्रेरणादायी कहानी भेजी ;*आज की यें वबा और आफ़त से बचने के लिए यें क़िस्सा ज़रूर पढ़ें*

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*मोलाना रूम की एक हिकायत जो मोजूदा हालात पर सादिक आती है आप फरमाते हैं कि।।।*

*एक आदमी तुफान की वजह से एक पेड़ के नीचे खड़ा था*

*एक दुसरा आदमी वहां से गुज़रा तो बोला कि भाई साहब जब तुफान आता है तब बिजली अक्सर पेड़ों पर गिरती है इसलिए यहां से हट जाओ*

*तो वो बोला कि मेरा रब मालिक है*

*उसके बाद दुसरा आदमी आया उसने भी यहीं नसीहत की तो इसने फिर कहा मेरा रब मालिक है*

*फिर तीसरा आदमी आया उसने भी नसीहत की इसने फिर वही जवाब दिया*

*खैर फिर तुफान आया पेड़ पर बिजली गिरी ओर वो मर गया*

*ये सारा माजरा एक अल्लाह का बन्दा देख रहा था जब बिजली गिरी वो मर गया तो अल्लाह के बन्दे ने कहा कि इस बन्दे को रब पर इतना ईमान था फिर भी खुदा ने उसको बचाया क्युं नही*

*मोलाना रूम फरमाते हैं वो तीन आदमी भी अल्लाह ही ने भेजे थे कि बच जाओ मगर उसने ना मान कर खुद को तबाह किया*


*हमें इससे सबक क्या मिला।।बेशक जिंदगी मोत अल्ल्लाह के हाथ में है*
*मगर जब कोई मुसीबत आती हैं तो अल्लाह की तरफ से हमें बता दिया जाता है कि एहतियात इख्तयार करो*

*ना कि अपनी जहालत की वजह से मोत का लुकमा बनो*

*मेरी सबसे गुजारिश है कि एहतियात बरतें बड़ी बड़ी डींगें ना मारे*
    चाहे वह दिल्ली तब्लीगी का मामला हो अथवा किन्हीं धार्मिक स्थानों पर छिपे हुए लोगों का मामला हो। यह सब एक ही है हमें यह समझना होगा कि आज मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे और सभी धार्मिक स्थल बंद है । खुले हैं तो सिर्फ सिर्फ अस्पताल जो इस बात का आगाह करते हैं ईश्वर प्रकृति के दोहन की मनुष्यों को सजा दे रहा है और वह यह भी बताना चाहता है कि परमात्मा के नाम पर जो ढोंग हम लोग कर रहे हैं, उन से बचें और ज्ञान और विज्ञान के सुपथ पर चलें ।

राम मोहन राय
पानीपत/02.04.2020

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