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Showing posts from September, 2020

Swami Agnivesh

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 *महर्षि दयानंद का पथगामी-स्वामी अग्निवेश*    विनम्र श्रद्धांजलि                  योगीराज महर्षि अरविंद ने महर्षि दयानंद सरस्वती के संबंध में अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था ,*उन विशेष महत्वशाली व्यक्तियों की पंगत में जिन्हें आने वाली संतति भारत के पुनरुद्धार करने वालों में अग्रणी करके गिनेगी, एक व्यक्ति है जो अपनी अनूठी और अपनी अनुपम विशेषता के कारण स्पष्ट औरों से जुदा खड़ा हुआ दृष्टिगोचर होता है, वह अपने ढंग का निराला है। यह ऐसा है जैसे कोई बहुत समय तक एक पर्वत श्रृंखला के बीच घूमता है जिसमें के पर्वत यद्यपि कम और अधिक ऊंचाई के हैं, पर वह सब दूर तक एक जैसे आकार- प्रकार वाले और हरियाली आच्छादित है, उनकी अधिक से अधिक बढ़ी- चढ़ी और ध्यान आकर्षित करने वाली ऊंचाई भी आंखों को खलती नहीं है। किंतु उन सबके बीच में एक पहाड़ है जो उसे स्पष्ट जुदा ही दिखाई देता है। मानो निरा बल ही मूर्तिमान होकर पहाड़ के रूप में खड़ा हो गया है। खुले और सुदृढ़ ठोस चट्टान का एक समुदाय विशाल रूप में ऊंचा उठा हुआ है, हरियाली से भरी हुई इसकी चोटी पर खड़ा एक सनोवर का वृक्ष आकाश से बातें कर रहा है, शुद्ध, प्रबल और उपज

Swami Agnivesh

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 *महर्षि दयानंद का पथगामी-स्वामी अग्निवेश*    विनम्र श्रद्धांजलि                  योगीराज महर्षि अरविंद ने महर्षि दयानंद सरस्वती के संबंध में अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था ,*उन विशेष महत्वशाली व्यक्तियों की पंगत में जिन्हें आने वाली संतति भारत के पुनरुद्धार करने वालों में अग्रणी करके गिनेगी, एक व्यक्ति है जो अपनी अनूठी और अपनी अनुपम विशेषता के कारण स्पष्ट औरों से जुदा खड़ा हुआ दृष्टिगोचर होता है, वह अपने ढंग का निराला है। यह ऐसा है जैसे कोई बहुत समय तक एक पर्वत श्रृंखला के बीच घूमता है जिसमें के पर्वत यद्यपि कम और अधिक ऊंचाई के हैं, पर वह सब दूर तक एक जैसे आकार- प्रकार वाले और हरियाली आच्छादित है, उनकी अधिक से अधिक बढ़ी- चढ़ी और ध्यान आकर्षित करने वाली ऊंचाई भी आंखों को खलती नहीं है। किंतु उन सबके बीच में एक पहाड़ है जो उसे स्पष्ट जुदा ही दिखाई देता है। मानो निरा बल ही मूर्तिमान होकर पहाड़ के रूप में खड़ा हो गया है। खुले और सुदृढ़ ठोस चट्टान का एक समुदाय विशाल रूप में ऊंचा उठा हुआ है, हरियाली से भरी हुई इसकी चोटी पर खड़ा एक सनोवर का वृक्ष आकाश से बातें कर रहा है, शुद्ध, प्रबल और उपज

डॉ शंकर लाल जी को श्रद्धांजलि

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 *स नो बंधुर्जनिता*           वे मेरे भ्राता के समान सहायक, मित्र के समान परोपकारी, पिता के समान सुखदायक एवं गुरु के समान प्रेरणादायक रहे हैं। डॉ शंकर लाल शर्मा मेरे वैचारिक मित्र थे । जिनसे मेरी प्रगाढ़ता लगभग 10 वर्ष पूर्व ही हुई। इससे पहले उनके द्वारा ज्ञान- विज्ञान आंदोलन एवं सर्वधर्म मिशन के कार्यों की जानकारी मुझे यदा-कदा मिलती रहती थी। एक जिले के होने के कारण हम एक दूसरे को जानते ही थे ।            वें , मेरे व्यवहारिक मित्र भी थे  अर्थात मेरी तरह उन्होंने भी उतना ही कमाया जितनी जरूरत रही । लोगों में यह भ्रामक प्रचार रहा कि हमारे पास करोड़ो रूपये का रोकड़ा है परन्तु यह तो हम ही जानते थे कि क्या है ? संतान को अच्छी से अच्छी शिक्षा व संस्कार दिए व मित्र बनाये, यह क्या कम सम्पत्ति  है ? दीदी निर्मला देशपांडे जी हमेशा कहती थी कि उन्हें विनोबा ने अभाव का वैभव दिया है पर हम तो सदा उनसे भी ज्यादा वैभवशाली रहे ।          सोशल मीडिया अनेक विसंगतियों एवं दुर्गुणों का जनक होगा, परंतु उसकी यह खूबी तमाम कमियों को दूर कर देती है कि सूचना देने की उसकी गति मन के समान ही तीव्र है। यही कारक हमारी म