डॉ शंकर लाल जी को श्रद्धांजलि
*स नो बंधुर्जनिता*
वे मेरे भ्राता के समान सहायक, मित्र के समान परोपकारी, पिता के समान सुखदायक एवं गुरु के समान प्रेरणादायक रहे हैं। डॉ शंकर लाल शर्मा मेरे वैचारिक मित्र थे । जिनसे मेरी प्रगाढ़ता लगभग 10 वर्ष पूर्व ही हुई। इससे पहले उनके द्वारा ज्ञान- विज्ञान आंदोलन एवं सर्वधर्म मिशन के कार्यों की जानकारी मुझे यदा-कदा मिलती रहती थी। एक जिले के होने के कारण हम एक दूसरे को जानते ही थे ।
वें , मेरे व्यवहारिक मित्र भी थे अर्थात मेरी तरह उन्होंने भी उतना ही कमाया जितनी जरूरत रही । लोगों में यह भ्रामक प्रचार रहा कि हमारे पास करोड़ो रूपये का रोकड़ा है परन्तु यह तो हम ही जानते थे कि क्या है ? संतान को अच्छी से अच्छी शिक्षा व संस्कार दिए व मित्र बनाये, यह क्या कम सम्पत्ति है ? दीदी निर्मला देशपांडे जी हमेशा कहती थी कि उन्हें विनोबा ने अभाव का वैभव दिया है पर हम तो सदा उनसे भी ज्यादा वैभवशाली रहे ।
सोशल मीडिया अनेक विसंगतियों एवं दुर्गुणों का जनक होगा, परंतु उसकी यह खूबी तमाम कमियों को दूर कर देती है कि सूचना देने की उसकी गति मन के समान ही तीव्र है। यही कारक हमारी मैत्री का कारण बना। वे एक अच्छे लेखक, वक्ता एवं स्वाध्यायशील व्यक्ति थे। अपनी इसी अभिव्यक्ति को वे सोशल मीडिया पर लगातार देते और हम उसका पठन- पाठन कर उस पर टिप्पणी करते।
कुछ वर्ष पूर्व उनकी भतीजी घरेलू हिंसा का शिकार हुई। ये बहुत ही मार्मिक क्षण थे और इन क्षणों से डॉ साहब जैसे संवेदनशील भावुक व्यक्ति का आहत होना अनिवार्य था।वे अपनी वेदना को नहीं छिपा सके और उसकी स्मृति में बालकों की तरह फूट-फूट कर रोते थे। संघर्ष की उनकी परंपरा ने उन्हें उत्तेजित किया था कि वे अपराधियों को नहीं बख्शेगे। पर उनका उदार मन संत विनोबा भावे के सिद्धांत से प्रेरित रहा कि अपराध और न्याय के बीच करुणा एक बहुत बड़ा पड़ाव है । अपनी करुणा का प्रदर्शन उन्होंने किया। जिसकी सर्वत्र प्रशंसा भी हुई।
वे एवं उदारचरित एवं सरल मन के व्यक्ति थे । किसी भी व्यक्ति द्वारा उनके प्रति आक्रोश एवं प्रतिरोध को हमेशा सहजता से ही लेते हैं तथा कारण ढूंढने की कोशिश करते कि ऐसे विचार उस व्यक्ति में कैसे आए और फिर वैज्ञानिक विश्लेषण कर उसे क्षमा कर उसकी अपराध निवृति के लिए कार्य करते थे।
वैचारिक दृष्टि से भी वे एक उदार धरातल के व्यक्ति थे । कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी एवं भगत सिंह के विचारों से अभिप्रेरित। साम्यवाद के शोषण मुक्त समाज के निर्माण , महात्मा गांधी के सत्याग्रह एवं भगत सिंह के विचारों की परिपक्वता के वे हामी थे । पिछले एक माह से उनकी रुग्णता के कारण उनके विचारों से हम वंचित रहे । वरना दिन में दो या तीन बार तो 30 मिनट से 1 घंटे की उनसे वैचारिक चर्चा होती ही थी। मेरी सामाजिक गतिविधियों में वे सदा सहायक रहे और सिर्फ इसमें ही नहीं मेरे पारिवारिक कार्यों में भी सदा महत्वपूर्ण परामर्श एवं भूमिका निभाने वाले सदस्य भी ।
रचनात्मक प्रवृतियों के प्रति उनका सहज मोह रहा। दृढ़ इच्छाशक्ति उनके वैचारिक दृष्टि से ही अभिप्रेरित थी ।
पिछले लगभग डेढ़ माह से पहले कोरोना से, फिर कैंसर और उससे उत्पन्न अनेक बीमारियों से ग्रस्त थे । परंतु वे इनसे हार नहीं मानने की इच्छाशक्ति रखते थे और वे लड़े भी परन्तु दि0 27 अगस्त को अपनी ईहलीला समाप्त कर वे अपनी अनंत यात्रा को निकल पड़े ।
बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना,
तुम्ही सो गए दास्तां कहते कहते ।
राम मोहन राय
आपकी भावभीनी श्रद्धांजलि ने डॉ शंकर लाल के क्रांतिकारी, करुणामयी और बहुआयामी व्यक्तित्व को आंखों के सम्मुख सजीव कर दिया। नूतनवार्ता के माध्यम से उनके विचारों से परिचय हुआ जिसने बहुत गहरे प्रभावित किया। मन में संकल्प था कि जब भी पानीपत जाना होगा, उनके दर्शन करेंगे, पर विधि को स्वीकार नहीं था। उनका जाना एक ऐसा शून्य छोड़ गया है, जिसकी भरपाई असम्भव है।
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