मेरे दोस्त -लाल बहादुर

 


मेरे प्रिय दोस्त -लाल बहादुर

💐💐💐💐💐💐                           मै सिर्फ सात साल का था ,कुशाग्र बुद्धि व चेतन पारिवारिक वातावरण की वजह से तत्कालीन परिस्थितियो की वजह से वाकिफ था । वर्ष 1965 में दीवाली के आसपास भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव पूर्ण वातावरण था उसका असर बाजार व सामान्य जन पर भी था । तनाव को लेकर उत्तेजना थी ।  दीवाली के मौके पर बाजार से मै एक ऐसा 'टॉय टैंक'खरीद कर लाया ,  जिसको  जमीन पर रगड़ने से उसके अंदर लगे पत्थर में से चिंगारी निकलती थी

 मेरे पिता जी के प्रोत्साहन व  अंतर प्रेरणा से मैने 6 पैसे का एक पोस्टकार्ड लेकर अपने शब्दों में एक पत्र तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को लिखा कि मेरे पास एक टैंक है यदि देश की रक्षा के लिए मेरी व उसकी जरूरत हो तो मै सीमा पर जाने को तैयार हूँ । पर यह क्या लगभग दस दिन बाद ही मेरे नाम से एक पत्र प्रधानमन्त्री कार्यालय से आया । जो मेरे पत्र का जवाब था  ।

"प्रिय राम मोहन ,

हमे अपनी भारतीय सेना पर गर्व है परन्तु फिर भी आपकी व आपके टैंक की जरूरत पड़ी तो आपको बुला लेंगे । 

                       आपका ,

                   लाल बहादुर "

मेरी ख़ुशी की सीमा नही रही ,मै उस जवाबी ख़त को पुरे मोहल्ले में बताता घुमा कि प्रधानमन्त्री शास्त्री जी के दस्तखत किया हुआ मुझे पत्र आया है और अब वे मेरे दोस्त बन गए है । कुछ दिन बाद मैने शास्त्री जी को एक पत्र लिखने की हिम्मत जुटाई व उनसे मिलने का समय माँगा । लड़ाई शुरू।हो चुकी परन्तु जवाब फिर भी आया ,इस बार उनके कार्यालय से उनके निजि सचिव श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव का ,कि प्रधानमन्त्री जी वार्ता के लिए ताशकन्द गए है लौटने पर आपको समय दिया जाएगा । पर वह दिन नही आया  ।आज के ही दिन 11 जनवरी को मेरे दोस्त शास्री जी ,ताशकन्द से ही हम सब को अलविदा कह गए । मुझे उन्हें न मिलने का अफ़सोस रहा ।

    वर्ष 1981 में मुझे पढ़ाई के सिलसिले में लगभग आठ महीने ताशकन्द रहने का मौका मिला ।  वही ताशकन्द जहाँ से मेरे प्रिय दोस्त 'लाल बहादुर 'वापिस नही आये थे । मै उन्हें तलाश करता हुआ उस जगह पंहुचा जहाँ उन्होंने अपनी अंतिम साँस ली थी । अब मेरा रूटीन ही बन गया सप्ताहांत में घण्टो वहाँ बैठ कर मन ही मन बाते करता ।(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट)

(Nityanootan broadcast service)

11.01.2021

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