राष्ट्रहित सर्वोपरि


 https://nityanootan.blogspot.com/2021/01/blog-post_28.html

🤝🤝🤝🤝🤝🤝

*राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि* ।


60 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के 59वें दिन 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के अवसर पर लाल किले पर हुई बेअदबी की घटना ने न केवल पूरे किसान आंदोलन को कटघरे में खड़ा कर दिया है वहीं इस आंदोलन की धार को भी कमजोर करने का काम किया है  आंदोलन चलते हैं। कभी उतार चढ़ाव होते हैं। यह भी जरूरी नहीं कि हर आंदोलन को जीता ही जाए और उसमें कभी भी हार ना हो । 

        फूट डालो और राज करो, षड्यंत्र और घृणित कृत्य शुरू से ही शासकों के हथियार रहे हैं । क्या प्रजातंत्र में भी इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल होगा ? आज यह चिंता का विषय है परंतु किसान आंदोलन को विचारधारा की सॉन पर अपने हथियार  को तेज कर और अधिक ढंग से लामबंद होना होगा ताकि यह किसानों को विजयी कर सके। लाल किले की घटना ने जहां किसान जत्थेबंदियों की कमी को उजागर किया है, वही सरकारी तंत्र को भी बेनकाब किया है कि वह किस तरह के हथकंडे अपनाकर शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलनों को समाप्त करना चाहते हैं । यदि विरोध समाप्त कर दिया गया तो लोकतंत्र स्वतः ही खत्म हो जाएगा   विरोध की समाप्ति विद्रोह को जन्म देगी जो लोकतंत्र के लिए दुखदाई ही रहेगी

       विगत सदी में दुनियां में चल रहे क्रांतिकारी आंदोलनों में दो व्यक्तियों के नाम ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है   एक हैं महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति के नायक श्री वी आई लेनिन और दूसरे भारतीय आजादी के सर्वोपरि नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इन दोनों व्यक्तियों ने अपने अपने देश में एक नई पद्धति के लिए मूवमेंट चलाया और दोनों सफल भी हुए। सन उन्नीस सौ पांच में लेनिन की एक थीसिस ऐतिहासिक विश्व वांग्मय में दर्ज हुई उसका नाम था "एक कदम आगे और दो कदम पीछे" और हम जानते हैं कि यह लड़ाई लंबी रही परंतु इसके 12 साल बाद रूस में सन 1917 में क्रांति हुई। सन 1923 में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन जब चरमोत्कर्ष काल में था, तब चोरा चोरी में एक अप्रिय हिंसात्मक घटना हुई। गांधी जी ने इस घटना के तुरंत बाद ही एकतरफा फैसला लिया और आंदोलन को वापस ले गया । इतिहास का सबक है कि उसी बापू ने सन 1942 में "करेंगे या मरेंगे" का नारा देकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने का अल्टीमेटम दिया। अंततोगत्वा 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।          आंदोलनों में उतार चढ़ाव होते रहते हैं सत्ता अथवा ताकत अपने हर हरबे का इस्तेमाल करती है। यह तो उन सत्याग्रहियों को अपनी रणनीति बनानी पड़ती है। जिससे वे ऐसे सभी षड्यंत्रों  को विफल करें। लाल किले की बेअदबी की घटना ने किसान आंदोलन को शर्मसार किया है। बेशक हम जानते हैं कि किसान आंदोलन का इससे कोई लेना-देना नहीं था। परंतु वे ऐसी घटना को रोकने में तो विफल रहे।        हम अपनी इस बात को बार-बार रखेंगे की यदि किसान आंदोलन विजय हुआ दो समूचे किसान  विजयी होंगे । परंतु यदि यह विफल रहा था राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को ठेस लगेगी। 

       पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तथा सभी दल इस बात से बखूबी परिचित थे। वे सभी यह जानते थे कि पंजाब में मिलिटेंसी पुनः अपने पांव फैलाना चाहती है   याद रखें कि वहां हिंसा का सांप पूरी तरह मरा नहीं था उसे मरा समझकर सिसकता हुआ छोड़ दिया था। अतिवादी लोग चाहते हैं कि वह नाग फिर फन फैलाए इसलिए उसे खत्म करने की हरदम कोशिश करनी चाहिए। किसी भी नेता को ईश्वर या अवतार बनाने से समस्या का हल नहीं होगा ऐसा तो सामूहिक प्रयासों से होगा । प्रजातंत्र में हेकड़ी, अहंकार और राजनीतिक दुश्मनी किसी भी प्रकार से मान्य है और ना उचित है। राष्ट्र हित ही सर्वोपरि है राज सत्ताएं आएंगी चले जाएंगी परंतु किसी भी कीमत पर राष्ट्र की एकता और अखंडता अक्षुण रहनी चाहिए।

राम मोहन राय

28.01.2021

(नित्यनूतन वार्ता)

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat