पानीपत में हमारा देवी मंदिर

 


*पानीपत में हमारा देवी मंदिर*

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         हमारा परिवार पानीपत में लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा अरसे से मोहल्ला कायस्थान में रह रहा है। हमारी गली की अनेक सिफ्त है पर सबसे ज्यादा हम इसका गुण इस बात पर मानते हैं कि यह देवी मंदिर तथा हजरत हजरत बू  अली शाह कलंदर के आने-जाने के रास्ते के बिल्कुल बीच में स्थित है। यानी पूर्व दक्षिण कोण पर दरगाह है और उत्तर पश्चिम कोण पर  देवी मंदिर।

       


देवी मंदिर जिसे देवी तालाब भी कहा जाता है, के निर्माण का समय लगभग 1750  के आसपास का है। एकमत तो यह है कि 18वीं शताब्दी के दौरान जब मराठा इस क्षेत्र में शासन करते थे ,उसी समय मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए यहां आए थे।  14 जनवरी 1761 को मराठाओं तथा अहमद शाह अब्दाली के बीच यहां भयंकर संग्राम हुआ। परिणाम यह रहा कि मराठे हारे और अब्दाली जीता। युद्ध से पहले लगभग 2 माह तक मराठा सैनिक पानीपत में रहे। ऐसा मानना है कि उसी काल में मराठाओं ने इस मंदिर की स्थापना की थी। दूसरा मत यह है कि इसी नगर के एक सेठ लाला मुसद्दीलाल वैश्य अग्रवाल ने उसी दौरान मंदिर की स्थापना की थी। जहां 1758 में मराठा सरदार गणपतराव ने भगवान शिव की मूर्ति की स्थापना की थी ।ऐसा भी मानते हैं कि मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ को वीरगति प्राप्त होने के बाद उनकी पत्नी पार्वती बाई लगभग 2 वर्ष बाद, जब इस क्षेत्र में पुन: मराठा शासन की स्थापना होने के बाद पानीपत आई थीं  तथा उन्होंने यहाँ अपनी अधिष्ठात्री देवी( तुलजा भवानी) की मूर्ति स्थापित की थी।

     


 मुझे इस मंदिर की पुरानी इमारत के दर्शन करने का भी सौभाग्य मिला है। अब उस इमारत के स्थान पर एक भव्य मंदिर की स्थापना की गई है। मंदिर में पुरातन मूर्तियों की  बहुत सम्मानित ढंग से प्रतिष्ठित किया गया है, परंतु उनके स्थान जरूर बदल गए हैं। नए मंदिर भी बनाए गए हैं और नई- नई मूर्तियां भी स्थापित की गई है। मैंने अपनी किशोरावस्था में मुख्य मंदिर में प्रतिष्ठित मां दुर्गा (तुलजा भवानी) की मूर्ति के भी दर्शन किए हैं और उनके आसन पर 'ॐ वंदे मातरम देवी' खुदे शब्दों को भी पढ़ा  है।

     


मंदिर के बाहर ही तालाब को भी देखा है। जहां हर समय पानी रहता था, परंतु बरसात के दिनों में कुछ अधिक ही। ऐसा मानना था कि इस पानी को सीधे यमुना नदी से लाया जाता है। तालाब के किनारे ही गंगा- यमुना- सरस्वती के मंदिर थे। तालाब की जगह पर अब भव्य स्टेडियम बना है। जहां आसपास के लोग सुबह- शाम सैर तथा तफरी के लिए आते हैं। गंगा- यमुना- सरस्वती के मंदिर का मुख जो पहले तालाब के तरफ उत्तर दिशा में था, अब तालाब न होने पर दक्षिण दिशा की तरफ मोड़ दिया गया है । 

         


 देवी मंदिर से न केवल मेरी अपितु  मेरे परिवार की भी अनेक कथाएं जुड़ी है। वैसे तो मंदिर हमारे घर से कुल आधा किलोमीटर दूर है, पर अब पूरी तरह से  तामीरात से घिरा हुआ है। पर बचपन में देवी मंदिर जाने का मतलब अनेक खेतों को पार करके जाना होता था। रास्ता दुर्गम भी था और थकाऊ भी। मेरे पिता हमें बताते थे कि वे अपने बचपन में पढ़ने के लिए देवी मंदिर के एकांत में ही जाते थे। उस समय बिजली तो थी नहीं, मंदिर में अर्पित किए गए दीयों की रोशनी में ही पढ़ते थे।   

     


मेरी यादों में भी वैसे तो अनेक स्मृतियां हैं ,परन्तु शरद एवम चैत्र नवरात्रों में इसकी छटा अद्भुत ही रहती थी ।  गुगाल , होली तथा भैया दूज पर मेलों में खूब लोग जुटते । दशहरा के दिनों में नौ दिन तक राम लीलाएं होती और हम सब बच्चे उसके दर्शक बनते । उन दिनों में अग्रवाल धर्मशाला ,गुड़मंडी से सियावर राम चन्द्र की जय ,  वीर हनुमान की जय के नारे लगाते हुए जुलुस चल कर देवी मंदिर में पहुंचता ।पूरा शहर इसी आनंद में हिलौरे मारता । हम बच्चे भी न केवल इसके दर्शक होते वहीं हनुमानजी की वानरसेना अथवा रावण की सेना में शामिल होने के लिए आतुर रहते ।

     सन 1974 की घटनाएं तो कभी नहीं  भुलाई जा सकती। जब हम स्टूडेंट फेडरेशन की क्लास वही लगाते और भूख लगने पर मन्दिर में  चढ़े प्रशाद से पेट भरते।

       सन 1997 में दीदी निर्मला देशपांडे  भारत विभाजन के समय पानीपत से पाकिस्तान गए  लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर पानीपत आई थी। उसमें हर उम्र के लोग थे। श्री देवी मंदिर पंचायत समिति ने उन लोगों के सम्मान के लिए एक  समारोह का आयोजन किया था। मुझे याद है कि जब प्रतिनिधिमंडल में आई हुई  युवतियों ने मंदिर में लगी घंटियों को जोर-जोर से हिलाया था तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। प्रतिनिधिमंडल के  तमाम मुस्लिम सदस्यों को मंदिर समिति ने माता की चुनरी और प्रशाद देकर सम्मानित किया था ।

      भारतीय इतिहास में वह काला अध्याय भी रहा है, जब मंदिरों में दलितों का प्रवेश निषिद्ध था। देवी मंदिर भी इसका अपवाद नहीं था। कथित शुद्रो की देवियों की छतरियां तालाब के पश्चिम भाग में स्थित थी। परंतु अब वह काला अध्याय यहां समाप्त हो गया है। देवी मंदिर में किसी भी धर्म ,जाति व क्षेत्र के लोगों के लिए प्रवेश निषद्ध नहीं है।  

         


अनेक बार ऐसे प्रलोभन आए कि हम  पानीपत के घर को छोड़कर कहीं और खुले में जाकर रहने लगे, परंतु यह बहुत ही मुश्किल होगा कि कोई पानीपत में भी रहे और देवी मंदिर से दूर रहे।

राम मोहन राय,

पानीपत ।

03.04.2021

(नित्यनूतन वार्ता)

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