जीवेम शरद: शतम- जयेश भाई

जयेश* 
यह ठीक है की जयेश भाई के पिता पद्मश्री श्री इश्वर भाई पटेल एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता तथा देशभर मे स्वच्छता अभियान के जनक थे  .य़ह भी बिल्कुल उचित है कि उनकी माता वसुधा बहन एक सफल शिक्षिका रहीं जिन्होंने जहाँ अपने पति के साथ कंधे से कन्धा मिला कर न केवल घर गृहस्थी की जिम्मेवारी का सफल पालन किया वहीँ अपनी संतान को उत्तम से उत्तम शिक्षा व संस्कार दिये.  य़ह भी बिलकुल सही है कि उनकी पत्नि अनार न केवल गुजरात प्रदेश में गाँव-2 में स्त्री शक्ति जागरण के साथ-साथ शिल्प, ग्रामोद्योग एवं  कुटीर उद्योग का काम करती है व इसकी धाक सुदूर विदेशों में भी है.  इस बात से भी कोई इन्कार नहीं किया जा  सकता कि उनकी सासु माँ आनंदी बहन पिछले चार दशकों से सक्रिय राजनीति में है तथा संसद सदस्य, गुजरात सरकार में  मंत्री, मुख्यमंत्री जेसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रह कर अब उत्तरप्रदेश जेसे विशाल प्रदेश की राज्यपाल है.  
       इसमें भी कतई सन्देह नहीं कि जयेश तथा उनकी पत्नी अनार ,दोनों ने विदेश में रह कर उच्च शिक्षा प्राप्त की और अब उनकी पुत्री भी बाहर रह कर पढ़ाई कर रही है.  यह बात भी सन्देह से परे है कि वे महात्मा गांधी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम ट्रस्ट के प्रबन्ध निदेशक है तथा देश-विदेश की अनेक लब्धप्रतिष्ठ संस्थाओं एवं संगठनों से जुड़े हैं. 
   पर क्या जयेश का सिर्फ यह ही परिचय है?
 हाँ यह भी परिचय है पर इसके साथ-साथ वह समस्त मानवीय गुणों से भरा इन्सान है.  उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है. 
    उनके साथ अनेक लोग विभिन्न स्थानों से आकर स्थायी व अस्थायी  तौर पर काम करते हैं जिनमे एसे भी ही जो उनके पिता के जीवनकाल में लगभग 40-50 साल पहले जुडे और एसे भी जो  अभी हाल में ही आये हैं पर उनका कार्य एवं विचार के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. अक्सर एसा पाया जाता है कि लम्बी अवधि तक जुडे रहने से कई बार कटुता, निराशा व अवसाद आ जाता है, एसा प्राकृतिक भी है परन्तु यदि किसी ने जयेश को ढूँढ़ना है तो उनके साथियों की कार्यशैली, व्यवहार एवं बातचीत में ढूँढे.  य़ह पूरी सेना ही रामभक्त हनुमंत की है. जिनमे दशमेश पिता गुरु गोविंदसिंह के शब्द *आपे गुरु-आपे चेला* सार्थक  है. 
     जयेश का जीवन खुली किताब है जिसे कोई कहिं से भी पढ़ना चाहे वह वही से प्रारम्भ होती है  .पूर्ण में से पूर्ण निकाल दो अथवा शामिल कर दो वह दोनों सूरत में पूर्ण ही है. 
वह बापू तो नही बन सकता पर उनका विनम्र सेवक तो बन सकता है ठीक वेसे ही जेसे सरफुद्दीन नॉमिनी अली (हज़रत बू अली शाह कलंदर) तो नही बन सके पर बू अली  बनने से तो कोई नहीं रोक सके. 
   जयेश  भाई शब्द द्रष्टा भी है.  शब्दों को तोड़ मरोड़ कर अथवा उन्हें काव्यात्मक भाव से प्रस्तुत करके नहीं और न ही  किसी चालाकी से  उन्हे जोड़ कर, अपितु दैवी रूप से उन्हे रचनात्मक रूप दे कर.  जो मंत्र की रचना कर उसे प्रस्तुत करे, वह ही तो  शास्त्र सम्मत ऋषि है. जयेश एसा ही करते है.  साधारण व्यक्ति से तो एसा मुमकिन नहीं.  एसा तभी हो सकता है जब पूर्ण ईश्वरीय  कृपा हो. संत तुकाराम कह्ते हैं 'कायम्या पामरे बोलवी उतरे- बोलविले बोल  पांडुरंगे'
कोई भी अति साधारण व्यक्ति क्या बोल पाता? भगवान पांडुरंग मुझसे बुलवाते हैं.
    वह एक शानदार मेहमान नवाज़ भी है.  मुझे उनके पिता  श्री इश्वर भाई का भी सानिध्य मिला है.  आतिथेय में वे भी बेजोड़ थे. कोई तो एसा दिन होता होगा जब कोई गेस्ट उनके घर न आता हो.  यह सब  जयेश-अनार को विरासत में मिला है. अपने ससुर पिता के शब्दों को उद्धृत करते हुए अनार कहती है कि किसी  भी घर का  सौभाग्य उसके बाहर रखी चप्पलों से  होता है.
   उनकी ये सभी खूबियां उन्हें बहुत ही विनम्रता प्रदान करती है. वे किसी भी मिथ्या प्रदर्शन, नाटकीयता व आडम्बर से परे है. जब किसी की भी गुणों का बखान किया जाता है तो वह इसलिए भी कि एसे गुणों को हम भी धारण करें. 

    वह एक बहुत ही नेकदिल सेवाभावी कार्यकर्ता है .जो झाड़ू लगाने, रसोई में सब्जी काटने, आश्रम में रहने वाले जानवरों का भी मित्र है. 
    वह मेरा  प्रिय मित्र है. एसा नहीं कि सिर्फ मेरा ही.  देश-विदेश में रहने वाले असंख्य लोग होंगे जो एसा  ही  समझते है और उनके प्रति प्रशंसा भाव रखते है. 
    जयेश से बहुत ही कुछ सीखा जा सकता है. नित्यप्रति-नित्यनूतन.
   सम्भवत: एसे ही लोगो के बारे मे हाली ने कहा होगा-
*फरिश्तों से बेहतर है इंसान बनना*, 
*मगर इसमें पडती है मेहनत ज्यादा*. 
राम मोहन राय 
[अहमदाबाद से दिल्ली फ्लाइट]
21.02.2022
आभार!
           ईश्वर सर्वव्यापक,
सर्वज्ञ एवं जगत नियन्ता है, उसी की उपासना करनी योग्य है. वह इस पूरे ब्रह्मांड के कण-कण में व्याप्त है। परंतु यहां इस नगर में वे द्वारिकाधीश है अर्थात राजाओं के राजा है। 
     यहां के दो महान दृष्टांत है। एक सुदामा का जो अति दरिद्र थे और अपनी दरिद्रता को समाप्त करने के लिए धन एवं संपन्नता को प्राप्त करने के लिए अपने मित्र भगवान कृष्ण के पास आए थे। यहाँ आने पर उनकी दरिद्रता समाप्त हुई। 
   दूसरा मेवाड़ की महारानी, जो सभी ऐश्वर्य एवं संपन्नता से परिपूर्ण थी। भक्त मीरा तमाम सुख संपत्ति को छोड़कर अपनी मुक्ति के लिए यहां आई और उसे यही मुक्ति मिली ।
        यह संपन्नता, ज्ञान एवं मुक्ति का स्थान है। 
    हम भी यहां विनम्र भाव से उनके सेवक बनकर आए हैं। कुछ मांगने के लिए नहीं क्योंकि वे तो अन्तर्यामी 
 है और जब कोई भी व्यक्ति यहां पूर्ण समर्पण से आता है तो वे अपने स्तर के अनुसार ही उसे आतिथ्य प्रदान करते हैं। ऐसा ही हमारे साथ हुआ। हम तो ठहरे एक सामान्य व्यक्ति, परंतु ठहरे उस सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, जगतनियंता द्वारिकाधीश के मेहमान । पर हम अभीभूत हो गए उनकी कृपा पाकर जिसने न केवल राजकीय सम्मान दिया, अपितु अपने सरंक्षण और सानिध्य में पूरी यात्रा को संपन्न करवाया और माध्यम बनाया हमारे परम मित्र जयेश भाई को। इस पूरे क्षेत्र के डीआईजी श्री महेन्द्र सिंह जी के संरक्षण व मार्गदर्शन में सोमनाथ के पुलिस अधीक्षक श्री ओमप्रकाश जाट तथा पोरबंदर के पुलिस अधीक्षक डॉ रवि सैनी और उन के पूरे स्टाफ के सहयोग के माध्यम से यह यात्रा ऐसी हो गई कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते,पूर्णतय: शब्दातीत।
    यह यह सब उसकी ही कृपा है । जिस के बुलावे पर हम उनका स्नेहपूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करने आए।
    जीवन मे अब कोई कामना शेष नहीं है . पारिवारिक, सांसारिक व व्यवसायिक जिम्मेदारी से भी मुक्त हैं . अब बकाया जीवन उन्हीं को अर्पित है. जैसा चाहे वैसी सेवा ले.
     "न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्" .
राम मोहन राय, 
21.02.2022,
द्वारका, गुजरात

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