Maulana Azad

गांधी ग्लोबल फैमिली एवं  मौलाना आजाद फाउंडेशन फॉर एजुकेशन एंड सोशल एमिटी के संयुक्त तत्वावधान में मौलाना अबुल कलाम आजाद की 64 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित "मौलाना आजाद शिक्षा एवं सामाजिक सद्भाव" विषय पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मौलाना आजाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में वे पहले व्यक्ति थे जो अपनी 35 वर्ष की अवस्था में इसके अध्यक्ष बने । उनकी लोकप्रियता एवं ऊंचाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बाद ही महात्मा गांधी तथा पंडित नेहरू इस पद पर शोभायमान हुए। वे महात्मा गांधी के अनन्य सहयोगी थे तथा गांधीजी पर अटूट आस्था रखते थे। वे न केवल कुरान शरीफ के सर्वोत्तम व्याख्याकार थे, वहीं अन्य धर्मों के ग्रंथों को भी खूब गहराई से जानते थे। अपने विभिन्न उद्बोधनों में उन्होंने सदा सांप्रदायिक सद्भाव, समानता तथा शांति एवं प्रेम की बात की और उनका मानना था कि संकीर्णता किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। स्वतंत्र भारत के शासकीय इतिहास में  वे एक अप्रतिम व्यक्ति थे। मौलाना आजाद लगातार 12 वर्षों तक भारत के शिक्षा मंत्री रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने न केवल शिक्षा एवं तकनीक को जोड़ने का काम किया, वहां देश भर में अनेक ज्ञान- विज्ञान तकनीक की यूनिवर्सिटी एवं संस्थानों की स्थापना की। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना कर उन्होंने उच्च शिक्षा को क्रमबद्ध ढंग से ढालने एवं शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य एवं सस्ती करने की रूपरेखा बनाई। उनकी इतिहास गाथा युगो -युगो तक याद की जाएगी। पंडित नेहरू उन्हें एक मोबाइल पुस्तकालय कहकर संबोधित करते थे।
    वेबीनार को प्रसिद्ध विद्वान एवं शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो. जगमोहन सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय आजादी की लड़ाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़ी जाने वाली साम्राज्यवाद के विरुद्ध जंग का हिस्सा थी। भगत सिंह साम्राज्यवाद से मुक्ति को ही आजादी मानते थे और यही भाव मौलाना आजाद तथा पंडित नेहरू के विचारों में मिलता था।
      प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो.  इरफान हबीब ने कहा कि मौलाना आजाद बेशक पवित्र मक्का में पैदा हुए। उनके पिता मौलाना खैरूद्दीन भी इस्लामिक जगत के प्रसिद्ध विद्वान थे। उन्हें इस्लाम की शिक्षा विरासत में मिली थी। परंतु वे विज्ञान तथा तकनीक के प्रबल समर्थक थे । सत्य के अनुसंधान करने को सदैव  प्राथमिकता देते थे । भारत विभाजन तथा जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत के विरोधी थे और उन्होंने भारत विभाजन के समय मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा था कि यह उनका देश है तथा वे इसे कभी भी छोड़कर न जाएं।
       खान अब्दुल गफ्फार खान की पड़पोती यास्मीन निगर खान    ने कहा कि वे उनके परदादा सरहदी गांधी के बहुत निकट थे तथा उन दोनों का मानना था कि आजादी से भी ज्यादा बहुमूल्य वस्तु हिंदू- मुस्लिम एकता है। अफसोस की बात है कि उनकी तमाम कोशिशें देश को एक न रख सकी। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि देश बेशक बंट जाएं, दिल नहीं बंटने चाहिए और आज उसी भावना की जरूरत है।
         मौलाना आजाद की पोती हुसनारा सलीम ने कहा कि उनके नाना वर्तमान भारत के निर्माताओं में से एक रहे हैं। वे गांधी की बुनियादी तालीम तथा पंडित नेहरू की आधुनिक शिक्षा के समन्वयक थे और यही कारण है कि जब पूरी दुनिया विध्वंस के कगार पर खड़ी है, भारत आज भी अपनी प्राचीन मान्यताओं पर अडिगता से खड़ा है।    
      कार्यक्रम में गांधी ग्लोबल फैमिली के उपाध्यक्ष पद्म श्री एस. पी. वर्मा , हरिजन सेवक संघ के  अध्यक्ष  प्रो 0 शंकर कुमार सान्याल,  जी  जी  एफ के महासचिव राम मोहन राय, मुख्य प्रवक्ता अशोक कपूर, मौलाना आजाद फाउंडेशन फॉर एजुकेशन एवं सोशल एमिटी के सचिव अदनान सैफी, प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं युवा  सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अलका शर्मा एवं डॉ सुमि  इकबाल,प्रो0 मुनिवर आलम खालिद,सईद अख्तर हुसैन, मोहम्मद अली रजा  ने भी अपने विचार प्रकट किए। वेबीनार में निश्चय किया गया कि आजादी की 75 वीं वर्षगांठ महोत्सव के अवसर पर देश भर के स्वतंत्रता सेनानियों के दिवस उल्लासपूर्वक मनाये जाएंगे तथा उनका संदेश जन-जन तक पहुंचाने का निरंतर कार्यक्रम चलेगा।

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