V V Giri

गिरि -गिरी से ऊँचा तेरा मस्तक !💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 आठवी क्लास में जैन हाई स्कूल से आर्य सीनियर सेकंडरी स्कूल पानीपत में तब्दील हो कर दाखिला ले लिया । पिता जी ने 1928 -48 तक जैन स्कूल में ही पढ़ाया था उन्ही की वजह से ही इस स्कूल में पांचवी में प्रवेश लिया था । हमारा परिवार आर्य समाजी था व आर्य स्कूल में प्रिंसिपल के तौर पर श्री नित्या नन्द जी सिरसा से पानीपत तब्दील होकर आये थे । मेरी माता जी हिसार की थी इसलिये वे मेरी माँ को बहन कहते और हम उन्हें मामा जी । प्रिंसिपल साहब की ही प्रेरणा से मुझे अब आर्य स्कूल में दाखिल करवाया गया था । जी हाँ  वही आर्य स्कूल जिसका सन् 1947 से पूर्व नाम हाली मुस्लिम हाई स्कूल था । इस स्कूल में आकर मुझे अपनी प्रतिभा निखारने का मौका मिला । एक तो थी आर्य समाजी  पृष्ठभूमि  दूसरी  अपनी सक्रियता । स्कूल में रोजाना संध्या-हवन होता था जो मुझे बचपन से ही कंठष्ठ था । हमारे धर्म शिक्षक श्री मथुरा प्रशाद शास्त्री थे जो ऐसे छात्रो को प्रोत्साहित करते थे जिन्हें वेद मन्त्र याद थे और हम ठहरे इसमें अग्रणी ।  इस स्कूल में आकर पढ़ाई में भी खूब मन लगा और मैने आठवी की बोर्ड परीक्षा में राज्य स्तर पर मेरिट में स्थान पाया । इस अवसर पर मै यह बात यकीन से कह सकता हूँ कि अन्य कार्यक्रमों में सक्रिय रहने वाले बच्चे पढ़ाई में भी अग्रणी रहते है । अस्तु, सन् 1971 में स्वामी दयानंद के गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानंद जी दंडी स्वामी की निर्वाण शताब्दी मनाई गयी व इस अवसर पर स्कूल में उनकी स्मृति में ' राज्यस्तरीय भाषण प्रतियोगिता ' का आयोजन किया गया । यद्यपि मुझे भाषण सुनना व देना दोनों प्रिय थे पर मैने कभी इस तरह की प्रतियोगिता में भाग न लिया था । श्री मथुरा प्रशाद शास्त्री जी के कहने पर मैने इसमें भाग लेने का मन बनाया ,भाषण भी उन्होंने ही लिखा ।मुझे तो रटना था व हिम्मत से बोलना था । मै नर्वस था पर शास्त्री जी ने कई टोटके बता कर मेरी हिम्मत जुटाई और मैने इस प्रतियोगिता में भाग लिया । मेरे भाषण की शुरुआत संस्कृत के शब्दों से थी जो आज भी हूबहू याद है "संस्तपते सभायश्च,  अदयं तत्र भवतां समक्षे महर्षि दयनंदस्ये गुरुउ दंडीन विरजानंद स्य स्वरूपम अख्यातुं उत्तसहे। आशा से च श्रीमन्ताम सावधान मनसा आक्रंस्यति "। इसके बाद भाषण शुरू हुआ । कुल 26 प्रतियोगी वक्ताओं ने अपने विचार रखे ।सब एक से एक धुरंदर और उनके सामने मै ठहरा पहली बार का प्रतियोगी पर यह क्या ,इस प्रतियोगिता का परिणाम आने पर मैने 'प्रथम 'पाया  और इसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नही देखा । किसी भी भाषण प्रतियोगिता में मेरे जाने का मतलब था शीर्ष स्थान प्राप्त करना । श्री मथुरा प्रशाद शास्त्री जी के जाने के बाद मेरी तैयारी श्री चंद्र प्रकाश सत्यार्थी व श्री दीप चंद निर्मोही।करवाते । इसी दौरान मै स्कूल में हर शनिवार को होने वाली बाल सभा (आर्य कुमार सभा) का भी मंत्री व प्रधान रहा । इस दौरान लिखने- पढ़ने का शौक सदा बढ़ता ही गया । मेरे माता -पिता सेक्युलर ख्यालात केआर्य समाजी होने के साथ -२  पक्के कांग्रेसी भी थे । इसी दौरान  तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारतीय राज्यो के पूर्व राजाओ के प्रिवी पर्सेज (भत्ते) बन्द करने व 14 प्रमुख बैंको के राष्ट्रीयकरण करने का ऐतिहासिक फैसला लिया  । कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गयी , एक श्री  निर्जिलिंगप्पा , मोरारजी भाई व आचार्य।कृपलानी के नेतृत्व में सिंडिकेट ग्रुप तथा दूसरा इंदिरा जी , श्री जगजीवन राम जी के नेतृत्व वाला इंडिकेट ग्रुप । इसी बीच राष्ट्रपति पद का चुनाव आया । सिंडिकेट ग्रुप ने अपना उमीदवार श्री एन संजीवरेड्डी को बनाया जबकि इंडिकेट ने  निर्दलीय प्रत्याशी व तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी वी गिरि को अपना समर्थन दिया । आम जनता तो इन चुनावो में वोटर नही थी चुनाव तो सांसदों और विधायको ने करना था परन्तु आम कांग्रेसजन की तरह मेरा परिवार भी श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा समर्थित उमीदवार श्री गिरि की विजय के प्रति उत्साही था और आख़िरकार आम कांग्रेस विजयी हुई और उनका उमीदवार जीता । ऐसा लगता था कि एक आम आदमी की जीत हुई और इस जीत का इजहार मैने नव निर्वाचित राष्ट्रपति जी को बधाई सन्देश भेज कर दिया और जिसका जवाब उनके हस्ताक्षरित पत्र से मिला । हर बार की तरह मै उत्साही हो गया तथा  भारतीय बाल सभा के एक प्रतिनिधि मण्डल के साथ उनसे मिलने का समय माँगा  और अरे यह  क्या ,राष्ट्रपति भवन से हमे मुलाकात का समय मिल गया और बुलावा आया । अब मुझ आठवी कक्षा में पढ़ने वाले 'भारतीय बाल सभा के अध्यक्ष'के कन्धों पर भारी जिम्मेवारी आ गयी थी  । डेलीगेशन में 5 बच्चे छाँटने व राष्ट्रपति जी को क्या भेंट दी जानी है आदि आदि । मैने अपने 5 साथी रविन्द्र बजाज ,सतीश पुनियानी , सुरेन्द्र आर्य व हरी ओम तैयार किये । हम बालको को दिल्ली कौन ले जाएगा यह भी एक प्रश्न था । सब ने ढाढ़स तो दिया पर चलने को कोई तैयार न था अंत में स्कूल के सेवक श्री राम लाल जी को तैयार किया गया कि वे हमारे साथ दिल्ली चले व राष्ट्रपति जी से मिलवा कर लाये । इस तरह ले जाने वाला तो मिला परन्तु राष्ट्रपति जी को क्या भेंट दी जाए इसकी चिंता थी । श्री दीप चन्द निर्मोही उनके लिए एक कविता लिखने को तैयार हुए । हमने एक चार्ट पेपर लेकर एक पेंटर से लिखवा कर फ्रेम करवा ली और हो गया गिफ्ट तैयार और  इसे लेकर राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि से मिलने । हमारी कविता के बोल आज भी मुझे हूबहू याद है -
" ऐ गिरि गिरी से ऊँचा तेरा मस्तक ,
सागर सी गहराई मन की ।
सत्य ,अहिंसा शील शांति ही ,
सुंदरता है तेरे तन की ।
लेकिन जब इस पावन भू की अन्यायी से ठन जाती है ,
तभी वीरवर शीला सरीखी तेरी छाती तन जाती है ।
भारत माँ का अमर पूत तू ,
जीवन सुरभित ज्यो चन्दन वन, 
हम बच्चे करते अभिनन्दन ,
अभिनन्दन शत् -शत् अभिनन्दन ।
राष्ट्रपति भवन जाकर हमने राष्ट्रपति जी से भेंट की तथा उन्हें अपनी भेंट दी । वे दिन आज भी एक स्वप्न से लगते है पर थे वे यथार्थ ।
राम मोहन राय ,
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस 18.02.2017)

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