Neta ji Subhash Chander Bose and Independence movement
Saturday Free School, Pheledelphia, USA द्वारा इंडिया की आजादी की 75 वीं जयन्ती वर्ष में Collective Reading group में नेता जी सुभाष चंद्र बोस एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी .जिसमें सर्वप्रथम पूर्वा चटर्जी ने नेता जी द्वारा भारत की आज़ादी के आंदोलन 1756-1936 के विभिन्न अध्यायों का पाठन किया गया. इसमें पलासी युद्ध से इतिहास को बताते हुए, नव जागरण, 1857 के पहली क्रांति, भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना, बंग-भंग , महात्मा गांधी का आगमन, सन 1917 की रूसी क्रांति का प्रभाव, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद की स्थिति, असहयोग आंदोलन, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का अभ्युदय व उसके बाद तक के हालात का विश्लेषण किया है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी इस पुस्तक में भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन पर दुनियां में घटनाक्रम के असर पर भी प्रकाश डाला है कि सन 1848 की विश्व क्रांति का 1857 की क्रांति , दुनियाभर में अनेक राजनीतिक हलचलों के प्रभाव से भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना, 1905 की बोएर वार ऑफ साउथ अफ्रीका तथा रूसी क्रांति का बंग-भंग आंदोलन , 1920-21 के आयरलैंड के सन फिंयेन विद्रोह का असहयोग आंदोलन पर असर को विस्तार पूर्वक बताया गया है. नेता जी का मानना था कि भारत में प्रारम्भ से ही विदेशी आक्रमणकारी आते रहे हैं परंतु उन सभी तथा अंग्रेज़ों के भारत आने में अन्तर यह रहा कि अन्य सभी यहीं आकर रच- बस गए जबकि अंग्रेजों ने हमारी संपदा को लूट कर इंग्लैंड ले जाने और इस देश की संस्कृति, शिक्षा एवं भाषा के स्थान पर अपनी व्यवस्था थोपना था. वे सभ्यता के नाम पर इसे ऐसा देश बनाना चाहते थे जिसकी प्रजा नाम की तो भारतीय हो परंतु वे सभी अंग्रेजियत में ढली हो. अपनी इस पुस्तक में उन्होंने तोड़ो और राज करो की नीति की व्याख्या करते हुए साम्प्रदायिक राजनीति को भी विस्तार से बताया है.
इस अवसर पर Afro-American चिंतक एवं विचारक डॉ Anthony Monterio ने कहा कि विश्व इतिहास मे महात्मा गांधी एक ऐसे विराट पुरुष थे जिन्होंने सत्य और अहिंसा को किसी कार्यनीति के रूप मे न अपना कर एक जीवन शैली के रूप मे अपनाया. उनका मानना था कि भारत की आज़ादी दुनियाभर में शांति एवं मैत्रीपूर्ण संबंधों का मार्ग प्रशस्त करेगी. यह आजादी केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर स्वतंत्रता के सामुहिक प्रयास का हिस्सा है. दुश्मन का दुश्मन-हमारा दोस्त का सिद्धांत कभी भी स्थायी हल नहीं प्रदान कर सकता.
गांधी ग्लोबल फैमिली के महासचिव राम मोहन राय ने कहा कि आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द भारतीय इतिहास मे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया. उन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा कि विदेशी राज चाहे माता की तरह भी प्यार देने वाला हो तब भी स्वदेशी राज सर्वोपरि उत्तम होता है. यह आर्य समाज का ही प्रभाव था कि पंजाब में स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय जैसे नेता हुए. विधवा पुनर्विवाह, महिलाओं की शिक्षा एवं दलितों के साथ समान व्यवहार का काम इस समाज के द्वारा किया गया. स्वामी दयानन्द ने वेदों की ओर मुड़ने की बात कही वहीं ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय ने अंग्रेज़ी शिक्षा के साथ-साथ भारतीय नव जागरण का काम किया. सती प्रथा के उन्मूलन के लिए वे इंग्लैंड तक गए. महाराष्ट्र के ज्योति बा फूले, केरल के नारायण गुरु, बंगाल के देवेन्द्र नाथ टैगोर, केशव चंद्र सेन, थियोसोफीकल सोसाइटी की Annie Besant आदि ऐसे समाज सुधारक थे जिन्होंने सामाजिक पुनरूत्थान के साथ-साथ आज़ादी के आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया.
युवा बुद्धिजीवी सम्वर्त चटर्जी ने कहा कि सन 1757 से प्रथम विश्व युद्ध तक बंगाल ने अंग्रेज़ों के परोक्ष एवं अपरोक्ष अत्याचारों को झेला है. धर्म के नाम पर बंगाल विभाजन, कृत्रिम अकाल एवं महामारी ऐसे कृत्य थे जो बंगाल के सम्पन्न सूती एवं मलमल उद्योग को समाप्त कर इंग्लैंड के कपड़ा कारखानों को मदद पहुचाने के लिए ही थे.
संगोष्ठी में Jeremiah Kim, Caleb Chen, समीर बट्ट,Alice Li, Nathan Barraza, Catherine Blunt आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये.
Ram Mohan Rai.
20.07.2022.
Seattle, Washington-USA
[Nityanootan broadcast service]
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