Sanghmitra

*दूसरी पारी*
 मेरी पत्नी पिछले अढ़ाई महीने से तथा मैं पिछले आठ दिन से अहमदाबाद में था । मौका था मेरी बेटी के बेटा होने की खुशी का । आज हम उससे विदा लेकर अपने घर पानीपत वापिस जा रहे है । चलते हुए मैंने अपने नवासे को गोदी में लिया फिर बेटी के सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद देते हुए कहा कि हमारे प्रवास के दौरान कोई गलती हुई हो तो माफ करना । मेरी बेटी ने भी जवाब में कहा कि *आपसे नही उनसे कोई गलती हुई तो माफ करना* । इस दौरान मैने पाया कि नवासे का डॉयपर उतरा हुआ है जिसकी वजह से मेरे हाथ पर कुछ गीला सा महसूस हुआ । मैने कहा कि मां -बाप तो बच्चे की हर चीज और बात क्षमा करते है ,कही बच्चे कुछ अलग न महसूस करें ,उन्हें इसकी चिंता रहती है ।
     उसके घर से एयरपोर्ट तक आने तक उसकी सारी जीवन यात्रा एक चलचित्र की तरह चलने लगी । यह मेरी दूसरी बेटी है । मुझे याद है कि उसके जन्म पर हमारे तमाम उदार सामाजिक ताने बाने के बावजूद कोई भी हमे बधाई देने में गुरेज करता था । मैंने अपनी इस पीड़ा को दिल्ली जाकर अपनी गुरु व मातृवत दीदी निर्मला देशपाण्डे जी को बताया था । वे भी इससे बहुत ही व्यथित हुई थी और फिर बधाई देने ,हमारे घर पानीपत आयी थी । दीदी ने उसे देख कर अपनी गोद मे उठाया और फिर खुशी से बोली *" इसका नाम होगा - संघमित्रा ।"* हां उसी संघमित्रा के नाम पर जो सम्राट अशोक की बेटी थी और अपने पिता के निर्देश पर बौद्ध धर्म का प्रचार करने अपने भाई महेंद्र के साथ श्री लंका गयी थी । 
     मेरी बेटी बचपन से ही बड़ी चंचल व समझदार रही ।मुझ से तो उसका इतना लगाव व मोह रहा कि पूछो न ।मुझे याद है कि वर्ष 1989 में जब वह कुल दो साल की थी तब वह मुझे लेने अपनी माँ व बड़ी बहन के साथ ,मेरे जर्मनी से लौटने पर एयरपोर्ट पर आई थी । अपनी मां की गोदी में ही रहते जब उसने मुझे देखा तो मेरे पास आने के लिये मचलने लगी और हाथों का इशारा करके बुलाने लगी ।अपने सोने से पहले मुझे कहानी सुनाने को कहती और मैं सुनाता और वह पूरी होने से पहले ही खुद सो जाती । तीन -चार साल की उम्र से ही अपनी उम्र से ज्यादा समझदारी की बाते करती । एक बार तो हद हो गयी । मैं व मेरी पत्नी ,दीदी निर्मला देशपाण्डे जी के साथ कुरुक्षेत्र गए थे । घर पर सात साल की तथा वह और उसके दादा जी ही थे । हमारे लौटने में देर शाम हो रही थी और पत्नी को चिंता ,पिता जी के डिनर की थी । हम जैसे तैसे घर मे दाखिल हुए और मेरी पत्नी हफड़ा दफडी में किचेन में घुसने लगी ताकि पिता जी की हमारी देरी से आने के कारण की नाराजगी से बचा जा सके । मेरे पिता इसे देख कर जोर -२ से हंसने लगे और बोले 'अरे तेरी बेटी बड़ी सयानी है , इसने अपना ही नही, मुझे भी खाना बना कर खिला दिया और तो और तुम्हारे लिये भी बना दिया । " हमे ताज्जुब था की एक 5-6 साल का बच्चा यह कैसे कर सकता है ? पर यह सही था । हमने रसोई में जाकर देखा कि उसने स्टील की एक बाल्टी को बेंच बना कर उस पर चढ़ कर आलू की सूखी सब्ज़ी , चावल व परांठे बनाए थे । ऐसी एक नही अनेक उस की स्मृतियां है । वह कुल सात साल की ही थी जब वह एक सम्मेलन में हमारे साथ तिरूपति गयी थी । वहां एक बड़बोला आदमी स्व0 दीदी की कुछ आलोचना करने लगा । मेरी बेटी कहाँ चुप रहने वाली थी उस छोटी सी ने उसे तुरंत रोका और बोला ' उनके बारे में ऐसा कहना ठीक नही ।'
  उसके बारे में मुझे यह भी याद है कि जब वह एम सी एम डी ए वी गर्ल्स कॉलेज ,चंडीगढ़ की छात्रा थी । कालेज में हॉस्टल की सहूलियतों को लेकर स्ट्राइक हुई । अगले दिन अखबार में जो चित्र छपा था उस मे मेरी बेटी पुलिस वालों से भिड़ती दर्शायी गयी थी ।
 विगत दो वर्ष पूर्व उसके नेतृत्व में एक यात्रा दल श्रीलंका गया । यात्रा का नाम रखा गया *" रिटर्न ऑफ संघमित्रा"।* *प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ ए टी आर्यरत्ने जी ने जब संघमित्रा से बात की तो उनका कहना था कि नाम के अनुरूप ही यह बेटी है ।*
  एक बहुत ही विनम्र परन्तु कड़े अनुशासन में ढली मेरी बेटी है । 
  हमारे परिवार में सदा लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान हुआ है । माता -पिता का फर्ज रहा कि उन्हें स्वाधीन बना कर विवेक दे । इसी आधार पर उसने अपने जीवन साथी का चयन किया । हमने भी उसके निर्णय का पुरजोर स्वागत किया । विवाह में कन्यादान व अन्य अनावश्यक परम्पराएँ नदारद रही । उसे आशीर्वाद देने के लिये भी देश -विदेश से मेहमान आये । शादी के बाद कामकाजी भी रही व परिवार के अन्य दायित्वों का भी बहुत सलीके से पालन किया । *और ,अब वह मां बन गयी है ।*
यही तो अवसर था जब उसकी मां भी उसकी मां बनी थी । यही तो सृष्टि का शास्वत नियम है जो सब पर लागू है । उसे खुश होकर स्वीकार करे या परेशानी से ,करना तो होगा ही ।
मूझे पूरा विश्वास है कि मेरी बेटी अपनी इस जिम्मेवारी को भी बखूबी पूरा करेगी ।
 उसकी नई पारी के लिये ढेरो आशीष व शुभकामनाएं ।

*राम मोहन राय*
(Nityanootan broadcast service)
08.10.2018

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर