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Showing posts from March, 2023

Ghalib At Quarantine -a play on life , letters & Poetries of Mirza Ghalib.

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एक अरसे के बाद शानदार नाटक  "ग़ालिब एट क्वारेंटाइन" देखने का मौका मिला । इसकी प्रस्तुति लाज़वाब और जीवंत थी, जिसे देख कर बरबस ज़ुबान से निकला कि हमने मिर्ज़ा ग़ालिब के तो दीदार नही किए पर आज इस नाटक के ज़रिए उसे जिया ।    घंटे भर के इस नाटक में ग़ालिब के एकांत वास में उनकी जिंदगी, तहरीरों, ग़ज़लों और नज़्मों को बखूबी दर्शाया गया था। इसके सजीव चित्रण ने ग़ालिब के हर पहलू को छुआ। न सिर्फ जज़्बाती बल्कि इंसानी पहलुओं को भी । नाटक बात ही बात में सरल भाव से एक बड़ा संदेश दे रहा था । मिर्ज़ा की तमाम तहरीर अंग्रेज़ी हुकूमत ने जला कर बर्बाद कर दी फिर भी उनका कहना था कि यदि शायर की नज़्में तवायफ के कोठे पर और गलियों में फ़कीर गाएं तो वे ख़तम नही होती ।    उस्ताद बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार से सम्मानित अभिषेक भारती ने इसे बेहद  खूबसूरती से निर्देशित किया है । कलाकार बलविंदर सिंह का मिर्ज़ा ग़ालिब, अनु ठाकुर का बेगम, शोभना शर्मा का तवायफ और विशाल पंडिता का फकीर का किरदार लाज़वाब रहा । नाटक के लेखक रोहित वर्मा ने पूरे नाटक को अपने शब्दों के जादू से पिरोया। हां एक

Buzurgaan-e Panipat. Khwaja Gulam-Us- Saiyedain by Syeda Hameed

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Khwaja Ahmed Abbas: A Man who saw Tomorrow Syeda Saiyidain Hameed  Two decades into the 21st century, Khwaja Ahmad Abbas has become even more relevant than he was in the 1950s, ’60s and ’70s. He touches every contemporary issue with prescient understanding as if he is watching the unraveling of our world. In his own life span, he was driven by an urge to express his ideas with a breathless ‘Mujhe kuchh kehna hai’ ‘Mujhe kuchh kehna hai’ ‘Mujhe kuchh kehna hai’, a chant which reverberates in all his work. He wrote furiously and prolifically for films, newspapers, journals. He wrote stories, novels and dramas; his pen swept easily across languages, Urdu and English. A Hindi typist sat to his right and simultaneously transcribed his Urdu writing into Hindi script. The vocabulary he used was simple; very few words needed to be changed, as page after page flowed out from his most fertile brain.  But somehow, in the interregnum i.e. the 27 years between his death in 1987 and unti

Buzurgaan-e Panipat Khwaja Ahmed Abbas by Syeda Saiyidain Hameed

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Khwaja Ahmed Abbas: A Man who saw Tomorrow Syeda Saiyidain Hameed Two decades into the 21st century, Khwaja Ahmad Abbas has become even more relevant than he was in the 1950s, ’60s and ’70s. He touches every contemporary issue with prescient understanding as if he is watching the unraveling of our world. In his own life span, he was driven by an urge to express his ideas with a breathless ‘Mujhe kuchh kehna hai’ ‘Mujhe kuchh kehna hai’ ‘Mujhe kuchh kehna hai’, a chant which reverberates in all his work. He wrote furiously and prolifically for films, newspapers, journals. He wrote stories, novels and dramas; his pen swept easily across languages, Urdu and English. A Hindi typist sat to his right and simultaneously transcribed his Urdu writing into Hindi script. The vocabulary he used was simple; very few words needed to be changed, as page after page flowed out from his most fertile brain. But somehow, in the interregnum i.e. the 27 years between his death in 1987 and unti

kanha ka Varindavan/19.03.2023

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*कान्हा का वृंदावन*        श्री राधा रानी और भगवान कृष्ण की लीला भूमि के नाम से प्रख्यात वृंदावन सदैव से भक्ति और ज्ञान का अद्भुत केंद्र है । यह न केवल पौराणिक अपितु वैदिक एवम बौद्ध धर्म का भी  अध्यात्मिक स्थल है । राधाकृष्ण रस से सराबोर रसिक यहां आने के सदा इच्छुक रहते है । पर अब सब कुछ बदल रहा है ।       एक देहाती कथा है कि गांव के सभी लोगों ने दिल्ली कैसा है को जानने के लिए एक आदमी को रेल गाड़ी से वहां भेजा । वह वहां गया और स्टेशन पर उतरा और फिर वहां से बाहर निकल कर वापिस लौटती रेल से वापिस अपने गांव आ गया । सभी निवासी उत्सुकता वश उसके इर्दगिर्द जमा हो गए और दिल्ली का हाल चाल पूछने लगे तो वह बोला कि जब वह स्टेशन से बाहर निकला तो उसने देखा कि वहां तो भगदड़ मची थी। किसी को भी तो चैन नही थी । कोई साइकिल से, कोई टांगे से, कोई मोटर से और कोई तो पैदल भाग रहा था । किसी को बात करने की भी फुर्सत नहीं थी । मैं तो इसे देखते ही वापिस आ गया लगा कि दिल्ली तो उजड़ रही है और अब तक तो वह खाली हो चुकी होगी ।     कमोबेश यही हाल वृंदावन का है । तीन दिन रह कर अभी वहां से लौटा हूं

Children of Panipat -an article by Nandita Chaturvedi on Hali Apna School

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Vishwabandhu THE CHILDREN OF PANIPAT  Comments   ​Panipat is a small city. It is a city of commerce and poetry, of religion and textile. Dark faces, red faces, long Afghan noses and short stubby noses, tall lean sinewy men, short and stocky men, women dressed in energetic salwar kurtas and swathed in fuzzy maroon and mustard shawls. Their faces and hands are lined and creased with sunlight and toil. People in Panipat look familiar, and it really has little to do with their faces. In a corner of Panipat is the Haali Apna School opened in memory of poet and reformer Khawaja Altaf Hussain Hali Panipati. The director of the school is Ram Mohan Rai. It is a humble brick structure, sandwiched between two others, the school spilling onto the road strewn with cement and mortar. Inside is a large courtyard with light that streams in through a brick mesh ceiling. It is here that I met 200 of the most beautiful children of Panipat. They sat on a rug

Bahan Sita Rani

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बहन सीता रानी (Buzurgyane Panipat से उद्धरित)      बहन सीता रानी का जन्म 5 जनवरी 1921 को हिसार के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता बाबू श्योकरण दास तत्कालीन अंग्रेजी शासन में  डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर के पद पर नियुक्त थे। पारिवारिक वातावरण सर्वधर्म समभाव का था। पिता सनातन धर्मी थे और माता सुरेंद्र कौर सिख धर्म के प्रति आस्था रखती थीं। उनका आर्य समाज के प्रति भी लगाव था। इसलिए वे सिख धर्म के गुरुद्वारे में सुबह सिर नवा कराकर आती और साथ-साथ वही रास्ते में पड़ने वाले आर्य समाज मंदिर में भी प्रातः होने वाले यज्ञ में भाग लेतीं।इन दोनों बातों का असर उनके पूरे परिवार पर था। अपने पांच भाईयों सर्व श्री हरि सिंह, राम सिंह, ओमकार स्वरूप ,ज्योति स्वरूप और पृथ्वी सिंह    की वे इकलौती बहन थी। उस समय शिक्षा का इतना प्रचार- प्रसार नहीं था फिर भी उनकी  माता जी ने आर्य समाज के प्रभाव से प्रभावित होकर अपनी बेटी सीता को स्थानीय प्राइमरी स्कूल में पांचवी तक पढ़ाया। बहन जी कुशाग्र बुद्धि थीं। उन्होंने शिक्षा के प्रकाश से अपना जीवन  आलौकित किया और वहीं उस समय मे अपने परिवार से जुड़ी अन्य महिलाओ