Bahan Sita Rani

बहन सीता रानी
(Buzurgyane Panipat से उद्धरित)
     बहन सीता रानी का जन्म 5 जनवरी 1921 को हिसार के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता बाबू श्योकरण दास तत्कालीन अंग्रेजी शासन में  डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर के पद पर नियुक्त थे। पारिवारिक वातावरण सर्वधर्म समभाव का था। पिता सनातन धर्मी थे और माता सुरेंद्र कौर सिख धर्म के प्रति आस्था रखती थीं। उनका आर्य समाज के प्रति भी लगाव था। इसलिए वे सिख धर्म के गुरुद्वारे में सुबह सिर नवा कराकर आती और साथ-साथ वही रास्ते में पड़ने वाले आर्य समाज मंदिर में भी प्रातः होने वाले यज्ञ में भाग लेतीं।इन दोनों बातों का असर उनके पूरे परिवार पर था। अपने पांच भाईयों सर्व श्री हरि सिंह, राम सिंह, ओमकार स्वरूप ,ज्योति स्वरूप और पृथ्वी सिंह   
की वे इकलौती बहन थी। उस समय शिक्षा का इतना प्रचार- प्रसार नहीं था फिर भी उनकी  माता जी ने आर्य समाज के प्रभाव से प्रभावित होकर अपनी बेटी सीता को स्थानीय प्राइमरी स्कूल में पांचवी तक पढ़ाया। बहन जी कुशाग्र बुद्धि थीं। उन्होंने शिक्षा के प्रकाश से अपना जीवन 
आलौकित किया और वहीं उस समय मे अपने परिवार से जुड़ी अन्य महिलाओं को भी इससे जोड़ने की कोशिश की।
    बहन सीता रानी का भी इसी वातावरण में लालन-पालन हुआ। यह वह दौर था जब हिसार तत्कालीन संयुक्त पंजाब का राजनीतिक केंद्र था। स्वयं लाला लाजपत राय यहाँ वकालत करने के लिए आए थे पर इसके साथ- साथ लाला अचिंतराम और अनेक नेता हिसार में महात्मा गांधी के नेतृत्व में आंदोलन और सत्याग्रह कर रहे थे। स्वयं महात्मा गांधी  और सुभाष चंद्र बोस भी यहाँ पधारे। बहन जी पर इन तमाम बातों का गहरा असर था। उनका परिवार बेशक सरकार परस्त था परंतु उनकी माता के संस्कारों ने उन्हें एक निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी बना दिया।
     उनका विवाह मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में सन 1938 में पानीपत के एक अध्यापक  सीताराम सैनी से हुआ,जो शिक्षा के प्रति बहुत अनुरागी थे और  शिक्षा का महत्व जानते थे। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को घर में ही प्राइवेट तौर पर दसवीं की परीक्षा दिलवाई और उसके बाद बहन जी ने विद्या प्रचारिणी सभा, प्रयागराज से रतन, भूषण और प्रभाकर की परीक्षाएं पास की। यह एक अद्भुत संयोग था कि मास्टर जी उर्दू ,अरबी और फारसी के जानकार थे और इन तीनों भाषाओं को पढ़ाने का काम करते थे वही अब उनकी पत्नी सीता  हिंदी ,संस्कृत और गुरुमुखी की जानकार होकर इन विषयों की शिक्षिका बन गई।
      विवाह के बाद बहनजी के पारिवारिक संस्कारों को समृद्ध करने का श्रेय उनके पति मास्टर सीताराम जी को जाता है। उन्होंने उन्हें हर प्रकार की न केवल स्वतंत्रता दी अपितु विकसित होने के भी अवसर प्रदान किए। अपने शहर पानीपत की वे पहली महिला थी जिन्होंने  घूंघट की कुप्रथा को त्याग कर बिना पर्दे के बाजार में निकली। ऐसे समय में अनेक लोग थे जिन्होंने उन पर तथा उनके पति पर कई आक्षेप किए परंतु सावित्रीबाई  फूले की यह बेटी बेखौफ होकर न केवल अपने को विकसित करने में अपितु समाज को भी जागृत करने के काम में लगी रही। यह वह दौर था जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की राष्ट्रीय आजादी का आंदोलन शिखर पर था। सन 1942 में महात्मा गांधी जी ने 'करेंगे या मरेंगे' का नारा दिया । उनकी एक आवाज पर लाखों लोग सड़कों पर निकल आए। उन्हें गिरफ्तार किया गया। बल प्रयोग के द्वारा भी उन्हें डराने- धमकाने की कोशिश की गई परंतु अहिंसा के ये तमाम सैनिक न तो झुके और न ही डरे। बहन जी ऐसे ही सत्याग्रहियों में रहीं और उन्हें भी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया और 18 दिन जेल में रखकर छोड़ दिया ।इसके बावजूद भी वे  अपने रास्ते से नही डिगी और अनवरत संघर्ष करती रहीं। महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यों में उनकी विशेष रूचि थी। वे खादी का प्रचार-प्रसार करने के लिए खुद काते गए सूत से तैयार कपड़ों को 
पहनती और दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करतीं। उनका दूसरा मनपसंद काम हरिजन सेवा था। इसीलिए वे  दलित बस्तियों में जाकर महिलाओं को एकत्रित कर उनके  शिक्षण- प्रशिक्षण का काम  करतीं।
        15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के 6 माह के अंदर ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सांप्रदायिक शक्तियों के शिकार हुए और उनकी हत्या कर दी गई। हत्या के बाद जयपुर में संपन्न हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में भाग लेने के लिए वे अपने पति के साथ गईं। सब जगह अंधकार छाया था परंतु आशा की सिर्फ एक ही किरण थी और वह था- गांधी विचार। गांधी जी के विचारों पर आधारित उनके आध्यात्मिक शिष्य आचार्य विनोबा भावे ने वर्ष 1951 में भूदान आंदोलन का सूत्रपात किया । भूदान, ग्रामदान और ग्राम स्वराज के विचारों ने पूरे देश को आंदोलित किया। ऐसे समय में भी बहन जी कहां शांत रहने वाली  थीं । उस समय तत्कालीन पंजाब में इस आंदोलन में श्री ओमप्रकाश त्रिखा, दादा गणेशी लाल, श्री सोम भाई तथा स्वामी आनंद रंक बंधु के साथ पंजाब के दक्षिण इलाके (वर्तमान हरियाणा) में बहन जी ने भूदान का काम किया और इसी दौरान उनकी मुलाकात संत विनोबा भावे की मानस पुत्री निर्मला देशपांडे जी से हुई और यह संबंध ऐसा था जो दोनों ने मृत्युपर्यंत निभाया।
      सामाजिक- राजनीतिक कार्यों के साथ बहनजी पर पारिवारिक जिम्मेदारी भी थी। उनके दो पुत्र मदन मोहन राना एवं राम मोहन राय तथा एक पुत्री अरुणा का  लालन-पालन उन्होंने एक संस्कारवान माता की तरह किया।
        इसी दौरान वे तत्कालीन पंजाब के नेताओं चौधरी देवीलाल तथा सरदार प्रताप सिंह कैरों के संपर्क में आईं।
     वर्ष 1957 में उन्हें उनके पैतृक स्थान हिसार से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया गया परंतु अपनी  गर्भावस्था के कारण वे चुनाव नहीं लड़ सकीं पर इसके बावजूद भी वे राजनीति में सक्रिय रहीं। सन 1962 में भारत और चीन के युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने साधारण जनता से 'गोल्ड बॉन्ड' लेने का आह्वान किया। बहनजी ने सोने के अपने तमाम आभूषणों को राष्ट्रीय रक्षा कोष में दान दे दिया।
       सन 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति बनाकर काम किया और इसके बाद सैनिकों की विधवाओं के सहयोग एवं पुनर्वास के लिए निरंतर कार्य किया। वे पानीपत में रेड क्रॉस सोसायटी की संस्थापक सचिव रहीं  तथा अस्पताल वेलफेयर सोसायटी के उपाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए मरीजों की सेवा सुश्रुषा करती रहीं । वे जिला महिला कांग्रेस कमेटी की भी अध्यक्ष रहीं।
     आर्य समाज तथा महर्षि दयानंद के सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने स्त्री शिक्षा के अनेक कार्य किए। पानीपत में आर्य महिला समाज के संस्थापकों में से एक रहीं। आर्य महिला प्रतिनिधि सभा पंजाब एवं हरियाणा की भी उपाध्यक्ष रहीं।
      सन 1967 में पानीपत में हरियाणा नशाबंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। बहनजी को इस सम्मेलन का स्वागताध्यक्ष बनाया गया। इसकी सफलता उनकी और उनके सहयोगियों की  अनथक मेहनत से ही संभव हो पाई। इसके बाद तो हरियाणा में शराब नीति के विरुद्ध उन्होंने शराब के ठेकों के खिलाफ अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया।
      महिलाओं पर घरेलू हिंसा के विरुद्ध उनका सतत अभियान रहा। घरेलू हिंसा करने वाले लोग उनके नाम से खौफ खाते थे।
      तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी उनकी सदैव आदर्श रहीं। पानीपत में वे अकेली महिला नेत्री थीं। इसलिए जब- जब इंदिरा जी आतीं वे ही उनके साथ रहकर उनके स्वागत सत्कार का दायित्व उठाती । सन 1977 में जनता पार्टी शासन के शुरुआती दौर में ही इंदिरा जी को शासन के पूर्वाग्रह के कारण  गिरफ्तार किया गया। इसके विरोध में बहनजी ने महिलाओं के एक जत्थे का नेतृत्व करते हुए पानीपत के जिला हेडक्वार्टर करनाल में गिरफ्तारी दी और लगभग 23 दिन तक जेल में रहीं। सन 1978 में उनकी प्रिय नेत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कर्नाटक में चिकमगलूर से चुनाव लड़ा । बहनजी अपने अन्य साथियों के साथ वहां भी गईं तथा इंदिरा जी के लिए प्रचार किया। वे इंदिरा जी के गरीबी हटाओ कार्यक्रम में भी सदैव सक्रिय रहीं और अनेक शासकीय समितियों की भी सदस्य रहीं।
      बहनजी का संपूर्ण जीवन राष्ट्रीय मूल्यों को समर्पित था और इसके लिए उन्होंने अपना जीवन आहूत किया और अंततः 29 जून 1992 को एक लंबी बीमारी के बाद पानीपत में उनका निधन हो गया ।
       उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी साथी महिलाओं ने उनकी अनन्य सहयोगी श्रीमती विद्यावती शिंगला के नेतृत्व में उनके नाम पर 'माता सीता रानी सेवा संस्था' की स्थापना की जो उनके द्वारा किए गए कार्यों को जारी रखने का ही एक प्रयास है। परिवार परामर्श केंद्र, महिला शिक्षण- प्रशिक्षण,  यौन कर्मी महिलाओं के पुनर्वास एवं पुनरुत्थान तथा बाल श्रमिक बच्चों की शिक्षा का अद्भुत कार्य यह संस्था विगत 30 वर्षों से कर रही है।
Ram Mohan Rai.
07.03.2023.
Panipat.

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