Good Bye Netherlands (Suhana Safar-39)
फिर मिलेंगे नीदरलैंड !
आज नीदरलैंड में एक महीना 27 दिन रहने के बाद अपने अगले पड़ाव अमेरिका के लिए ✈️ फ्लाइट ली है । यह प्रवास अत्यंत अविस्मरणीय , ज्ञान वर्धक एवम प्रेरणादायक रहा । इन 57 दिनों में कोई भी तो ऐसा दिन नहीं रहा जिस दिन हम घर में रुके हो । वेद का मंत्र चरैवेति - चरैवेति के अनुसार हमारे पैरों में भी फिरकी बंधी थी । हमारे सुपुत्र उत्कर्ष राय इसके लिए अनंत आशीर्वाद एवम शुभकामनाओ का पात्र है जिन्होंने अपनी तमाम व्यवसायिक जिम्मेवारियों को पूरा करते हुए हमारे यात्रा प्लान को साकार किया ।
सबसे पहले मैं परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करना चाहूंगा जिसकी असीम कृपा से यह यात्रा वजूद में आई । मैं अपनी माता सीता रानी और पिता सीता राम का भी पुण्य स्मरण करते हुए उन्हें नमन करना चाहूंगा जिन्होंने खुद सदा अभाव के वैभव के जीवन को जीते हुए हमें उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान की । मेरे माता - पिता दोनों ही सरल, सात्विक तथा धर्म निष्ठ व्यक्ति थे । उनका सम्पूर्ण जीवन सरल, निष्कपट और परोपकारी था । उन्होंने सदा हमें ऐसा ही जीवन जीने की प्रेरणा दी और इतने आशीर्वाद और दुआएं दी कि हमारी झोली ही छोटी पाई । मेरी बड़ी बहन अरुणा ने अपने स्नेह, व्यवहार और सहयोग से माता - पिता दोनों का कभी भी अभाव महसूस होने दिया । मैं अपने गुरु दीपचंद निर्मोही और दीदी निर्मला देशपांडे का भी आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिनके विद्यालय ने मुझे परमार्थ जीवन जीने के लिए उद्यत किया ।
वीo एनo राय का भी विशेष धन्यवाद जिनके साथ रह कर हम प्रेमचंद से दोस्ती के माध्यम से यह सीख पाए कि बच्चों को स्वाधीन बनाना चाहिए। उनके साथ रह कर हमने लड़कियों का इंकलाब जिंदाबाद के सिर्फ नारे ही नही लगाए अपितु उनका अनुकरण भी किया। अपनी संतान की परवरिश में किसी भी तरह का भेदभाव न कर उन्हें विकसित करना, यह उस सोहबत का ही असर है जो भगतसिंह से दोस्ती मुहिम के तहत वीo एनo राय से सीखा ।
मुझे अनेक देशों में जाने का अवसर मिला है । लगभग एक साल के करीब तो सोवियत संघ में उज़्बेकिस्तान के शहरों ताशकंद, बुखारा और समरकंद , रूस के शहर मास्को , पोलैंड , चेकोसलोवाकिया , जर्मनी , पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,श्री लंका जाने का अवसर मिला । मेरे और मेरे परिवार की हिम्मत तो नही थी कि वहां जाया जा सके परंतु यह मेरा प्रारब्ध और गुरुजन का आशीर्वाद ही रहा होगा कि यह यात्राएं संभव हो पाई ।
मैं अमेरिका आते- जाते दो बार एमस्टरडम एयरपोर्ट पर जहाज बदलने के लिए रुका था । मन में यह ख्याल आता था कि क्या यह संभव होगा कि मैं भी कभी यहां रुक कर इस शहर को देखूंगा । यह एक ख्वाइश थी और सपना भी था पर वह अब पूरा हो गया। इसीलिए मैं अपने सभी साथियों को सपने लेने के लिए कहता हूं । कई कहते है की क्या सपने भी पूरे होते है । कई लोग इसे ख्याली पुलाव कहते है पर मेरा मानना है कि इच्छा रखो तभी तो वह पूरी होगी ।
नेदरलैंड एक बहुत ही खूबसूरत देश है। परमात्मा ने इसे पर्यावरण, भूगौलिक संपदा और वैभव से नवाजा है । मैं यहां राजनीतिक चर्चा नही करूंगा पर इस देश के लोग बहुत ही आत्मीय , मृदुभाषी और विनम्र है । मेरा ऐसा अनुभव है कि हमारे भारत के किसी देहात अथवा किसी छोटे कस्बे में कोई जाए और किसी से भी किसी के मकान अथवा मोहल्ले का रास्ता पूछे तो वह स्थानीय निवासी उस अनजान को घर अथवा गली तक पहुंचा कर आता है । ऐसा ही मैंने यहां पाया । यहां रहते एक दिन हम मेट्रो स्टेशन का रास्ता भूल गए । जी पी एस भी काम नहीं कर पा रहा था तभी एक अंजान स्थानीय निवासी से हमने मदद मांगी फिर क्या था वह सज्जन हमें आधा किलोमीटर दूर पैदल चल कर स्टेशन तक छोड़ने आया ।
यहां पक्षी भी खूब देखे । हर स्थान पर झुंड के झुंड पर सभी निर्भय । आप उनके पास चले जाओ आप अपना काम करें वे अपना दाना चुगते रहेंगे। एक दूसरे से कोई डर नहीं । समुंद्र , नदियां , नहरें इतनी स्वच्छ और साफ कि देखते रहने का मन करें ।
अपनी इस यात्रा के दौरान आम जन में भी सुरक्षा की भावना देखी । पूरे प्रवास में मुश्किल से 8 -10 पुलिस कर्मी देखे होंगे । महिला यौन कर्मियों के काम को न केवल आजादी आजादी देखी बल्कि सुरक्षा और सम्मान भी देखा ।
इस दौरान गौरव के क्षण तो कई आए पर मेरे बेटे उत्कर्ष और उसके सहकर्मी अभिजीत ने कभी भी निराशा और अवसाद का अवसर नहीं आने दिया ।
यहीं रहते हुए ही अनेक अपने बिछड़े परिवारों से मिलने का अवसर मिला । और ऐसे लोगों को जो हमारे अपने ही थे परंतु वे यहां है इसका पता नही था । निरंकारी मिशन से जुड़े मडलोडा - पानीपत निवासी मदन गुप्ता और उनकी पत्नी शांति गुप्ता , मेरे मामा ज्ञानेंद्र सिंह की पौत्री मीनू सैनी, उनके पति दीपक , दो प्यारे बच्चे राघव और मिष्टी, मेरे प्रिय मित्र राशिद जमील की बेटी फराह ,उनके मेराज ,सासु मां और हमारे सबसे प्यारे नाती दानियाल, मेरे बेटे उत्कर्ष के मित्र अभिषेक और उनकी माता सुपर्णा मुखर्जी , उत्कर्ष के पड़ोस में रहने वाली हमारी प्यारी बेटी दीपांशी और उनके माता - पिता, हमारे बेटे के दोस्त मिशा उनके पति विकास के अलावा अनेक डच ,गैर भारतीय और भारतीय दोस्त जिन्होंने हमें अपने घर पर प्रीतिभोज पर बुलाया और यदा कदा मिलने भी आए । वे सब हमारा परिवार के सदस्य ही बन गए ।
अपनी छोटी बहन सदृश पुष्पिता अवस्थी का तो कहना ही क्या जिसने हमें अपने संरक्षण में हमेशा रखा । हमें अपने शहर में खूब घुमाया और फिर हमे विदा करने हमारे घर एमस्टरडम तक आई और सम्मान और तोहफों से नवाज़ा ।
कई लोग ऐसे होते है जिन्हे हम अकस्मात एक बार ही मिलते है परंतु उनका व्यवहार इतना आत्मीय हो जाता है कि भुलाए से भी भुलाया नही जाता। ऐसे ही हमारे एक नौजवान पाकिस्तानी दोस्त मजहर राणा है, जो एक बार घूमते हुए पार्क में मिले थे, और आज जैसे ही उन्हें पता चला कि हम आज की फ्लाइट है तो वे हमें एयरपोर्ट मिलने के लिए आए। इन मोहब्बतों की नवाजिश को क्या कहें ?
अनेक मेरे साथी पूछते हैं कि बाहर जाकर मन लग जाता है ? अब आप ही बताइए कि जब इतना प्यार और सम्मान मिले तो क्यों नही लगेगा । स्वामी अग्निवेश ने वसुधैव कुटुंबकम् मुहिम चलाई थी जिसमें हम भी शरीक रहे । सुब्बाराव जी जय जगत गीत गाते थे । हमने इन विषयों को आत्मसात किया और पूरी दुनियां को अपना घर समझ कर विचरण कर रहें है । गुरु नानक देव जी महाराज ने फरमाया है न कोई बैरी न कोई बेगाना ,सकल जगत अपनी बन आई।
हमारे आदरणीय बड़े भाई , पिता और मित्र सुज्ञान मोदी जो हमेशा अपनी छत्रछाया प्रदान करते हुए हमारी इस यात्रा से जुड़े रहे, उनका तो विशेष आभार ।
सच मानिए इस छोटे से देश नीदरलैंड और इसकी भावना को देखने के लिए महीना - दो महीना बहुत ही कम समय है ,इसके लिए तो अनेक वर्ष चाहिए ।
Good bye और अलविदा से कतई परहेज नहीं है पर फिर मिलेंगे ,फिर आना और रूसी अभिवादन दसवीदानिया बहुत ही अच्छा लगता है ।
फिर मिलेंगे नीदरलैंड!
Ram Mohan Rai,
Netherlands.
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