डॉ वेद प्रताप वैदिक - एक दिव्य विभूति
डॉ. वेद प्रताप वैदिक एक ऐसी अद्वितीय विभूति थे, जिन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई। उनका योगदान न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण रहा। मैं उन्हें बचपन से जानता हूं और उनके लेखों के माध्यम से हमेशा उनके विचारों से प्रभावित होता रहा हूं। विशेष रूप से जब उन्होंने "हिंदी अपनाओ" आंदोलन की शुरुआत की और जंतर मंतर पर धरने पर बैठे, तब मेरी रुचि उनके प्रति और बढ़ गई। एक आर्य समाज के कार्यकर्ता के नाते, मैंने उनकी गतिविधियों को बहुत ध्यान से देखा और समझा।
डॉ. वैदिक एक राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्रीय भावनाओं को समर्पित किया। उनका उदार व्यक्तित्व, खुली सोच और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण उनकी प्रतिभा को और अधिक निखारते थे। मेरी उनसे पहली मुलाकात स्वामी अग्निवेश जी के कार्यालय में हुई थी। स्वामी अग्निवेश और डॉ. वैदिक के बीच न केवल विचारों की निकटता थी, बल्कि वे आर्य समाज के क्षेत्र में भी घनिष्ठ मित्र थे।
डॉ. वैदिक ने पाकिस्तान जाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात की थी, जिसमें उन्होंने भारत-पाकिस्तान मैत्री को मजबूत बनाने की बात की थी। उनकी मित्रता केवल स्वामी अग्निवेश जी तक सीमित नहीं थी, बल्कि मेरी गुरु मां निर्मला देश पांडे जी के साथ भी उनकी घनिष्ठता थी। दक्षिण एशिया में शांति स्थापना के लिए उनके प्रयास हमेशा सक्रिय रहे, और मुझे भी उन मुहिमों का हिस्सा बनने का अवसर मिला।
दिल्ली के साथ-साथ अहमदाबाद, उज्जैन और अमृतसर में भी उन्होंने भारत-पाकिस्तान के लोगों के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों में भाग लिया। वे एक अंतरराष्ट्रीय विभूति थे, जो मानते थे कि पूरी दुनिया एक परिवार है और भारत उसकी मजबूत कड़ी है। स्वामी अग्निवेश जी का सपना, विश्व आर्य समाज की स्थापना, डॉ. वैदिक के प्रयासों से साकार हुआ। वे हमेशा इस दिशा में अग्रसर रहे और उनके प्रयासों में मैं और स्वामी आर्यवेश, विट्ठल राव जी भी शामिल थे।
डॉ. वैदिक के लेख हमेशा मुझे प्रेरित करते थे। जब भी मैं उनके लेख पर टिप्पणी करता, तो उनका फोन आ जाता और हम उस विषय पर चर्चा करते। वे न केवल मेरे मार्गदर्शक थे, बल्कि मेरे मित्र भी थे। उनका कहना था कि हमारे कई मित्र एक समान हैं, जिनमें निर्मला दीदी, स्वामी अग्निवेश और डॉ. मूबाशिर हसन जैसे नाम शामिल हैं।
एक बार, जब बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रिंस रहीम हुसैन दिल्ली आए, तो हमारी मुलाकात इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुई। डॉ. वैदिक ने अपने विचार साझा किए और यह सुनिश्चित किया गया कि दक्षिण एशिया में एक विश्वास का सेतु बनाया जाए, जिसमें हम सभी मिलकर काम करें।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक जी का योगदान केवल विचारों तक सीमित नहीं था; वे मेरे लिए एक भाई, सहायक मित्र और संरक्षक थे। उन्होंने हमेशा छोटे से छोटे साथी का ध्यान रखा और उन्हें प्रोत्साहित किया। उनकी यादें और उनके विचार हमेशा मेरे साथ रहेंगे, जो मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।
राम मोहन राय,
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