बांग्लादेश मे अल्पसंख्यकों पर हमले और हम

बांग्लादेश के एक मेरे मित्र जो इत्तेफाक से मुस्लिम है, ने मुझे एक मैसेज भेज कर वहाँ हो रहे घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि दुर्भाग्यवश उनके देश में बढ़ती संकीर्ण कट्टरता के कारण हिंदू अल्पसंख्यक भयभीत हैं। उनका यह भी कहना है कि अल्पसंख्यकों की संपत्ति और धर्मस्थलों पर लगातार हमले हो रहे हैं तथा इस्कॉन के एक प्रचारक दास की गिरफ्तारी तथा उनके वकील पर हमले ने इस घटनाक्रम को और अधिक गंभीर बनाया है। मेरे एक अन्य मित्र ने भी मुझे इसी तरह का एक मैसेज सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किया है कि वहाँ न केवल भारतीय ध्वज बल्कि भारत के राष्ट्रगान जो कि स्वयं गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा स्वलिखित है, उसको भी अपमानित किया जा रहा है। अपने ही देश के प्रगतिशील साहित्यकारों, कलाकारों और सुविख्यात सामाजिक हस्तियों के उनके ही घरों मे बने म्युजियम को तहस- नहस कर जलाया जा रहा है और पूरे देश में इस्लामिक सरिया कानून को लागू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है और जब संजीदा लोग इसका प्रतिवाद करते हैं तो वे भारत में हिंदू राष्ट्र की मांग का हवाला देते है. पूरे देश में भारत विरोधी माहौल एक आग की तरह फैलाया जा रहा है। जिससे उस देश के सभी देशभक्त, प्रगतिशील तथा जनतंत्र पसंद लोग बेहद चिंतित हैं और यदि यही सिलसिला चलता रहा तो न केवल बांग्लादेश खुद अपितु उसके तथा भारत के बीच राजनयिक और  कूटनीतिक संबंधों पर उसका असर पड़ सकता है जो दक्षिण एशिया के माहौल को अशांत तथा निराशाजनक बनाएगा। बहुत ही अफसोस की बात है कि बांग्लादेश की  निर्वासित प्रधानमंत्री श्रीमती हसीना शेख, जो आजकल भारत में है उनके बयानों पर भी पाबंदी लगा दी गई है।     
           बांग्लादेश तथा उसके लोगों के साथ हम भारतीयों के भावनात्मक संबंध रहे हैं। हमें याद है कि आजादी से पहले सन 1946 में जब उस क्षेत्र में आग लग रही थी तो उसे समय महात्मा गांधी नोआखाली और उसके आसपास के  गाँवों में लगभग चार महिने तक रहे थे। परिणामस्वरूप वहाँ शांति स्थापित हुई थी। 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश सांप्रदायिकता की आग में जल रहा था तब बापू कोलकाता में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अनशन पर बैठे थे।
          मेरा वह मित्र जिसकी मैंने उपरोक्त चर्चा की है, मेरे साथ 1980 - 81 में ताशकंद यूनिवर्सिटी उज्बेकिस्तान 
(सोवियत संघ) में साथ पढ़ता था, हम दोनों बहुत अच्छे मित्र रहे। उस समय अक्सर उसकी और मेरी कभी कहा- सुनी इस बात को लेकर होती थी कि रविंद्रनाथ टैगोर और काजी नज़रुल इस्लाम भारत के हैं या उनके देश के, तो हमारी एक ही बात पर सहमति बनती थी कि वे समान रूप से हम दोनों के हैं। भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का गान 'आमार सोमार बांग्ला' गुरुदेव की की रचना है। हमें इस बात से इत्मीनान मिलता है कि देश बेशक अलग हो गए परंतु दिल जोड़ने वाले स्रोत तो एक ही हैं। सन  2019 में बांग्लादेश जाने का और वहाँ स्थान- स्थान पर घूमने का मौका मिला। हमने हर जगह रविंद्र कला केंद्र, गुरुदेव की प्रतिमाएँ और उनके नाम पर बने संस्थान देखे और पाया कि उस देश में बंग बंधु शेख मुजीबुर रहमान के साथ-साथ गुरुदेव, काजी और इंदिरा गांधी समान रूप से लोकप्रिय है। 
      फिर ऐसा क्या हो गया कि उस बांग्लादेश में आज शेख मुजीब, गुरुदेव और इंदिरा गांधी के साथ-साथ भारत विरोधी भावनाएँ बड़ी तेज गति से फैल रही हैं। हम यहाँ शेख हसीना का कोई बचाव नहीं करना चाहते। इस  हालात की जिम्मेदारी से उन्हें बचाया नहीं जा सकता पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि सीआईए और आई सी आई का नापाक  गठजोड़  इस पूरे षडयंत्र के पीछे है ।
बांग्लादेश के मुख्य कार्यकारी प्रशासक मोहम्मद यूनुस तो एक कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं जिनकी तारे फंसी हैं बांग्लादेश आर्मी, अमेरिका, पाकिस्तान और अन्य भारत विरोधी शक्तियों के हाथों में । 
   हमें यह याद रखना चाहिए कि बांग्लादेश में हो रही घटनाओं को हम इस तरह खत्म नहीं कर सकते कि उसको रोकने के नाम पर उसका बदला भारत के अल्पसंख्यकों से लें। कीचड़ तो पानी से ही धुलेगा। खुद कीचड़, कीचड़ को नहीं धो सकता। हमारे देश में जो नित नए-नए प्रयोग सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं फिर चाहे वह मस्जिदों- दरगाहों के नीचे मंदिर अथवा मूर्ति ढूंढने की कोशिशें हों, वे सभी उन तमाम भारत विरोधी ताकतों तो ही बढ़ावा देंगे जो बांग्लादेश और दूसरे देशों में काम कर रही हैं। ऐसी गंभीर स्थिति में भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण दायित्व है। भारतीय जनता सरकार के उन तमाम निर्णयों के प्रति आश्वस्त है जो वह पड़ोसी देश के साथ न केवल संबंध सुधारने अपितु भारत विरोधी माहौल न खराब होने के लिए करेगी पर इसके लिए यह भी जरूरी है कि हमें साफ संदेश देना होगा कि भारत मजबूती से धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और समाजवाद के आदर्शों के प्रति अडिग है तथा इसके लिए कोई भी समझौता नहीं करेगा। हम अपने देश के अल्पसंख्यकों को जब सुरक्षा देंगे तभी हमे अन्य देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात करना वाजिब लगेगा।  स्थितियाँ बहुत ही गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है पर इसका हल दक्षिण एशिया के तमाम प्रगतिशील, जनतांत्रिक एवं 
शांतिप्रिय लोगों की एकता ही है।
राम मोहन राय. 
rai_rammohan@rediffmail.com

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