Tribute to Vimla Bahuguna

विमला माता जी का अवसान.
मेरी जन्मदात्री माँ तो सीता रानी ही थी जिसने हमेशा हमे अच्छी परवरिश देकर लोकतांत्रिक और सर्व धर्म समभाव के मूल्यों में जीना सिखाया. इसके साथ साथ गुरु माता कमला निर्मोही ने भी व्यवहारिक शिक्षा दी. दूसरी माँ निर्मला देशपांडे जी ने उन्हीं मूल्यों को संपुष्ट किया और एक शांति सैनिक के रूप में तैयार किया. तीसरी माँ वैदेही पंड्या ने राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति के व्यवहारिक विचार दिए और चौथी माँ विमला बहुगुणा जिन्होंने अपने स्नेह और वात्सल्य से कभी भी स्वयम को मातृ विहीन होने का अह्सास नहीं होने दिया. प्रकृत्ति के शास्वत नियम के अनुसार सभी एक के बाद एक चली गई और आज माँ विमला भी महाप्रयाण कर गई.
   वे मात्र राजीव, मधु और प्रदीप की ही माँ नहीं थी बल्कि उन सब की भी माँ थी जो सामाजिक क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की चाहत रखते थे.
   महात्मा गांधी और उनके विचारों के प्रति वे हमेशा आसक्त रहीं. इस विचार ने तो उनके पति सुन्दर लाल बहुगुणा को उनकी युवावस्था में मे विवश कर दिया था कि वे राजनीति त्याग कर बापू के सर्वोदय विचार को अपनाए. यह सुनना भी रोमांच भर देता है कि 70 साल पहले कोई ग्रामीण परिवेश की एक युवती अपने होने वाले पति के सामने शर्त रखे कि वह शादी तब करेगी जब वह युवक राजनीत को हमेशा के लिए छोड़ कर आजीवन रचनात्मक कार्य करने की प्रतिज्ञा लेगा. वचन पूरा हुआ और सप्तपदी के साथ साथ यह व्रत भी लिया गया. यद्यपि उनके भाई विद्या सागर नोटियाल अपने क्षेत्र के प्रख्यात कम्युनिस्ट नेता थे. 
    हमारी उनसे पहली मुलाकात वर्ष 1990-91 के आसपास हुई थी जब उत्तरकाशी में भयंकर भूकम्प आया था और मैं, हरिजन सेवक संघ के तत्कालीन मंत्री जटा शंकर राहत सामग्री लेकर वहां गए थे. तब दीदी निर्मला जी के कहने पर हम उनसे मिलने गए थे और उसके बाद वर्ष 2020 में देहरादून में उनके आवास पर मिले.
    गाड़ी में जी पी ऐस लगाने के बावजूद भी घर का रास्ता नहीं मिल रहा था. हम ने माता जी को फोन लगाया तो वे बोली कि वे पिता जी (सुन्दर लाल बहुगुणा जी) को बाहर भेज देती हूं ताकि उन्हें देख कर घर पहचान सकें और फिर उन्हें देख कर हम घर मे आ सके. उस समय घर के भीतर वे पति - पत्नि ही थे और दोनों ही वृद्ध थे. मैं, मेरी पत्नी कृष्णा कांता और पुत्र उत्कर्ष असमंजस में थे कि कहीं हमारे आने से उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी परंतु माता जी अपनी इस 90 वर्ष की अवस्था में भी चुस्त और चेतन थी. उन्होंने हमारी खूब खातिर तव्वजो की. पिता जी भी सक्रिय थे परन्तु उम्र के साथ साथ याददाश्त कमजोर हो गई थी. इसके विपरित माता जी उनके और अपने जीवन के संघर्षों के घटनाक्रम को तरतीबवार बारीकी से एक फिल्म की तरह बता रहीं थीं. इस अवसर पर बहुत बातचीत हुई. उन्होंने हमे कुछ किताबें भी भेंट की और हम इन अद्भुत गौरवशाली पलों को संजो कर पानीपत लौट आए.
    इसके बाद तो माता जी का स्नेह हमेशा हमें मिलता ही रहेगा और फिर चाहे हम देश मे हों या विदेश में उनका हर खुशी - गम में उनका फोन आता ही रहता. निर्मला देशपांडे दीदी की वे हमेशा चर्चा करती और फिर हमारे कार्यो की भी प्रशंसा करती. वे न केवल सामाजिक मसलों पर अपितु राजनीतिक घटनाक्रम पर भी अप डेट थी. संपर्क और समबन्ध बनाने में तो कोई उनका सानी नहीं था. सोशल मीडिया नेटवर्किंग की भी उन्हें खूब जानकारी थी जिसका वे भरपूर उपयोग करती. उनसे बातचीत का विषय और कारण वे खुद थी और यह ही थी उनकी खूबी. बातचीत में वे परिवार की भी खैरियत की भी जानकारी लेती. बेशक मेरी बेटियाँ सुलभा और संघमित्रा और पुत्र वधु आकांक्षा की उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई थी.
 परंतु वे हमेशा न केवल उनकी बल्कि उनके परिवार के बारे में भी जानकारी लेती. खासकर मेरे पुत्र उत्कर्ष और उसकी पत्नी आकांक्षा को तो खूब याद करते हुए आशीष देती. ऐसा कोई भी पर्व, त्यौहार, उत्सव अथवा महोत्सव नहीं होता जब वे हमे अपना आशीर्वाद न देती हो. तब अह्सास होता कि बड़े होना का मतलब क्या होता है?
   उनसे मिलने का मतलब था उत्तराखण्ड में स्वतंत्रता आंदोलन, उसके संघर्षों, बापू और सरला बहन के कार्यों, शराबबंदी, चिपको आंदोलन, टिहरी बचाओ और फिर उसके विस्थापित लोगों के बचाने की पूरी मुहिम की जानकारी लेना था. वास्तव में वे एनसाइक्लोपीडिया थी. पंडित नेहरू ने मौलाना आजाद और आचार्य नरेंद्र देव के बारे मे बताते हुए कहा था कि अगणित पुस्तकों से भरी एक चलती फिरती साक्षात लाइब्रेरी, कुछ ऐसा ही माता जी के बारे में कहा जा सकता है.
  उनसे आखिरी मुलाकात गत वर्ष फिर उनके देहरादून स्थित आवास पर ही हुई. वही चेतनता और स्फूर्ति. अपनी आयु दशा के बावजूद वे न तो कोई दया की पात्र थी और न ही कोई अनाधिकृत सम्मान की इच्छुक. वे हर आयु वर्ग के व्यक्ति के अनुसार उसकी संजीदा और गम्भीर मित्र थी.
    कल सुबह उनके पुत्र राजीव की पोस्ट से जानकारी मिली कि माता जी अब नहीं रहीं. एकदम बिना किसी को भी न तो कष्ट दिए और न ही कोई तकलीफ लिए वे अनंत में समा गई. अब उनके साक्षात दर्शन तो नहीं हो पाएंगे पर अब जब भी कभी बात करने का मन करेगा तो तुरन्त बात हो पाएगी, क्योंकि माँ तो कभी भी अपने बच्चों से विछोह नहीं करती.
    अब ऋषिकेश की तरफ जाते हुए सफ़र में है उनके पार्थिव शरीर के दर्शन करने के लिए और फिर अग्नि में उनकी आहुति देने के साक्षी बनने के लिये. पर वे तो अमर है अपने जीवन, कार्यो और संदेश के साथ .
Ram Mohan Rai,
Rishikesh, Uttarakhand.
नित्यनूतन वार्ता.
15.02.2025

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat