our trip to the Shantiniketan (Cheena Bhawan)
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा के शताब्दी वर्ष मे चीना भवन की यात्रा करना सचमुच आनंद दायक रहा. यह भवन वसंतोत्सव के उपलक्ष्य में भारतीय और चीनी कलाकृतियों से सजा हुआ था. इसमे कई कक्षाएं चल रहीं थीं पर इसके बावजूद भी अद्भुत शांति थी जो एक आध्यात्मिक बोध करा रहीं थी. इसकी स्थापना गुरुदेव के जीवन काल में ही हुई और इसमे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ही नहीं, बल्कि चीन के प्रधानमंत्री चु एन लाई भी पधारे जिनकी स्मृतियों का आज भी सँजो कर रखा गया है. हमारे गाइड और सहयोगी के रूप में इस संस्थान के एक छात्र संग्रहिक को नियुक्त किया गया था जिन्होंने हमारे रख रखाव का ध्यान रखा वहीं भवन के अध्यक्ष डॉ अविजित बनर्जी ने भी एक रात्री भोज का आयोजन किया जिसमें बंगाली व्यंजनों को परोसा गया था. इस प्रकार से यहां हर विधि से बांग्ला आवभगत को समझने जानने का अवसर मिला और फिर अगले दिन इस चीना भवन में आए.
चीना भवन का परिचय और नेतृत्व:
विश्वभारती, शांतिनिकेतन का चीना भवन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और चीनी विद्वान तान यूं शान के सपनों और परिश्रम का प्रतीक है। यह संस्थान भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। पिछले 12 वर्षों से डॉ. अविजीत बनर्जी इस संस्थान का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने गुरुदेव और तान यूँ शान की दूरदर्शिता को आगे बढ़ाते हुए संस्थान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का दृष्टिकोण:
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने चीना भवन की स्थापना का उद्देश्य भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और बौद्धिक संबंधों को मजबूत करना था। उनका मानना था कि दोनों देशों की प्राचीन सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ एक-दूसरे को समृद्ध कर सकती हैं। उन्होंने शांतिनिकेतन को एक ऐसा स्थान बनाने का सपना देखा था जहाँ विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का समागम हो सके। चीना भवन इसी सपने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
छात्रों की संख्या:
चीना भवन में अब तक हजारों छात्र शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। वर्तमान में यहाँ लगभग 200 छात्र पढ़ रहे हैं। ये छात्र चीनी भाषा, साहित्य, इतिहास और संस्कृति का अध्ययन करते हैं। संस्थान ने कई प्रतिभाशाली छात्रों को तैयार किया है जो भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
पुस्तकालय और पुस्तकों की संख्या:
चीना भवन के पुस्तकालय में चीनी भाषा और साहित्य से संबंधित हजारों पुस्तकें उपलब्ध हैं। पुस्तकालय में लगभग 10,000 पुस्तकों का संग्रह है, जिसमें चीनी क्लासिक्स, आधुनिक साहित्य, इतिहास, दर्शन और कला से संबंधित पुस्तकें शामिल हैं। पुस्तकालय का रखरखाव बहुत ही अच्छी तरह से किया जाता है और यह छात्रों और शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।
चीनी भाषा दुनिया की सबसे बड़ी भाषा है और इसे मंदारिन के नाम से भी जाना जाता है। चीनी भाषा में हज़ारों वर्ण और शब्द हैं। मंदारिन चीनी में लगभग 50,000 वर्ण हैं, हालांकि दैनिक उपयोग में लगभग 3,000-5,000 वर्ण ही आते हैं। चीनी भाषा सीखना न केवल भाषाई ज्ञान को बढ़ाता है बल्कि चीनी संस्कृति और इतिहास को समझने में भी मदद करता है।
भारत और चीन के बीच संबंधों की आवश्यकता
वर्तमान समय में भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता है। दोनों देश एशिया की दो महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं और उनके बीच सहयोग से न केवल दोनों देशों का विकास होगा बल्कि पूरे विश्व को भी लाभ होगा। सांस्कृतिक आदान-प्रदान से दोनों देशों के लोग एक-दूसरे को बेहतर समझ सकते हैं और आपसी विश्वास बढ़ सकता है। आर्थिक और राजनीतिक सहयोग से दोनों देशों की समृद्धि और स्थिरता को बल मिलेगा।
चीना भवन न केवल भाषाई और बौद्धिक संबंधों को समृद्ध कर रहा है बल्कि राजनयिक, आर्थिक और सामाजिक संबंधों को भी मजबूती प्रदान कर रहा है। यह संस्थान भारत और चीन के बीच एक सेतु का काम कर रहा है और दोनों देशों के बीच सहयोग और समझ को बढ़ावा दे रहा है। चीना भवन के माध्यम से भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान को नई दिशा मिल रही है।
चीना भवन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और तान यांग के सपनों का एक जीवंत प्रतीक है। यह संस्थान न केवल चीनी भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है बल्कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने में भी अग्रणी है। चीना भवन का योगदान भारत और चीन के बीच सहयोग और समझ को बढ़ावा देने में अमूल्य है।
Ram Mohan Rai,
General Secretary,
Gandhi Global Family.
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