ईश्वर की अस्तित्व पर बहस: परंपरा, दर्शन और निरर्थकता
ईश्वर की अस्तित्व पर बहस: परंपरा, दर्शन और निरर्थकता आजकल सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में जावेद अख्तर और एक मौलवी (मुफ्ती शमैल नदवी) के बीच हुई चर्चा की खूब चर्चा हो रही है। यह बहस "ईश्वर का अस्तित्व क्यों है?" विषय पर केंद्रित थी, जहां जावेद अख्तर ने अनीश्वरवादी (एथीस्ट) दृष्टिकोण अपनाया, जबकि मौलवी ने धार्मिक तर्कों से ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने की कोशिश की। इस बहस में जावेद अख्तर को कुछ लोगों ने तर्कपूर्ण और विनम्र बताया, जबकि मौलवी के तर्कों को शब्दजाल से भरा हुआ माना गया।हालांकि, कुछ पक्षों ने जावेद अख्तर को काफिर और शैतान तक कहा, जिससे पश्चिम बंगाल में एक कार्यक्रम तक रद्द हो गया। यह बहस न केवल धार्मिक भावनाओं को उकसाती है, बल्कि हमें अपनी सांस्कृतिक परंपराओं पर विचार करने के लिए मजबूर करती है। शास्त्रार्थ, अर्थात् शास्त्रों पर आधारित तर्कपूर्ण चर्चा, हमारी भारतीय संस्कृति की एक स्वस्थ और प्राचीन परंपरा रही है। प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि, दार्शनिक और विद्वान विभिन्न मतों पर खुलकर बहस करते थे। यह परंपरा न केवल ज्ञान की वृद्धि करती थी, बल्कि समाज को सं...