*बनारस*
*Nityanootan Broadcast service*
इस शहर का कोई सानी नही । बाबा विश्वनाथ की इस पौराणिक नगरी में मैं मरना नही जीना चाहता हूं । इस शहर में दूरदराज से भी लोगों के शव उनके देवलोक की प्राप्ति हेतु अन्त्येष्टि के लिये लाये जाते हो पर यह मुर्दो का नही जिंदे लोगो की ज़िंदादिली का शहर है । *यह शहर है भगवान बुद्ध, संत कबीर ,रैदास , स्वामी दयानंद ,महात्मा गांधी व उनके प्रिय मित्र महामना प0 मदन मोहन मालवीय का , यह नगरी है मुंशी प्रेमचंद, बिस्मिल्ला खान , मकबूल फिदा हुसैन और ऐसे ही अनेक जीवंत लोगों की जो जिंदगी है जिंदगी की जीत में यकीन करते है । और यह शहर है हमारी अत्यंत स्नेही बेटी -मित्र सुनैना पाठक बनारसी* का जिसका स्नेह भरा आमंत्रण हमें यहां खींच लाया ।
*सुप्रसिद्ध कवि व रचनाकार श्री केदारनाथ सिंह ने अपने इस शहर की खूबसूरती को अपने ही अंदाज़ से इस तरह बयान किया है* ।
बनारस
इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज़ रोज़ एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ़
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घनटे
शाम धीरे-धीरे होती है
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज़ जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बँधी है नाँव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है
जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्थंभ के
जो नहीं है उसे थामें है
राख और रोशनी के ऊँचे ऊँचे स्थंभ
आग के स्थंभ
और पानी के स्थंभ
धुऍं के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्थंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!
👍👍👍👍
आभार यू आर आई
🙏🙏🙏🙏🙏
*राम मोहन राय*
*बनारस/वाराणसी/काशी*
25.11.2019
*Nityanootan Broadcast service*
इस शहर का कोई सानी नही । बाबा विश्वनाथ की इस पौराणिक नगरी में मैं मरना नही जीना चाहता हूं । इस शहर में दूरदराज से भी लोगों के शव उनके देवलोक की प्राप्ति हेतु अन्त्येष्टि के लिये लाये जाते हो पर यह मुर्दो का नही जिंदे लोगो की ज़िंदादिली का शहर है । *यह शहर है भगवान बुद्ध, संत कबीर ,रैदास , स्वामी दयानंद ,महात्मा गांधी व उनके प्रिय मित्र महामना प0 मदन मोहन मालवीय का , यह नगरी है मुंशी प्रेमचंद, बिस्मिल्ला खान , मकबूल फिदा हुसैन और ऐसे ही अनेक जीवंत लोगों की जो जिंदगी है जिंदगी की जीत में यकीन करते है । और यह शहर है हमारी अत्यंत स्नेही बेटी -मित्र सुनैना पाठक बनारसी* का जिसका स्नेह भरा आमंत्रण हमें यहां खींच लाया ।
*सुप्रसिद्ध कवि व रचनाकार श्री केदारनाथ सिंह ने अपने इस शहर की खूबसूरती को अपने ही अंदाज़ से इस तरह बयान किया है* ।
बनारस
इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज़ रोज़ एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ़
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घनटे
शाम धीरे-धीरे होती है
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज़ जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बँधी है नाँव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है
जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्थंभ के
जो नहीं है उसे थामें है
राख और रोशनी के ऊँचे ऊँचे स्थंभ
आग के स्थंभ
और पानी के स्थंभ
धुऍं के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्थंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!
👍👍👍👍
आभार यू आर आई
🙏🙏🙏🙏🙏
*राम मोहन राय*
*बनारस/वाराणसी/काशी*
25.11.2019
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