विद्यार्थियों को सलाम
*inner voice*
बात सन 1978 की है जब मैं सहारनपुर( उत्तरप्रदेश) में अपने बहन-बहनोई के पास रहते हुए जे वी जैन डिग्री कालेज में एल एल बी कक्षा में पढ़ रहा था । पढ़ाई के साथ-२ ,आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के संगठन को बनाने का काम भी करता था । वह दौर इमरजेंसी के बाद का था । विद्यार्थियों में राजनीतिक जागरूकता तो थी बस उसे उजागर करने की जरूरत थी ।
हम एक राजनीतिक विचारधारा को लेकर ही संघर्षरत थे । हमारा नारा था *शिक्षा व संघर्ष* । हम इस बात पर भी गौरान्वित थे कि हम एक विचारधारा से जुड़े है जो आधार अंतर्राष्ट्रीय है तथा जो हर एक उपेक्षित ,शोषित व निर्बल के लिये लड़ाई लड़ती है तथा हमारा संगठन उन्हीं उद्देश्यों के प्रति छात्रों में विचार विस्तार का कार्य करती है अतः पढ़ाई के साथ-2 हर मजलूम की लड़ाई से हम जुड़े है । संकीर्णता चाहे किसी भी रूप में हो वह हमारे आसपास नही थी । इसलिये साम्प्रदायिकता के खिलाफ हम खुल कर बोलते थे और ऐसे संगठनों के निशाने पर हमेशा रहते ।
मेरा पारिवारिक माहौल ने भी विकसित किया । माता जी कठोर आर्य समाजी ,पिता जी उदार सनातनी हिन्दू, नानका सिख , परवरिश एक मुस्लिम के घर व वातावरण में पिता के मित्र पादरी साहब । यह सब थे हमारे स्कूल जहां हमारी प्रारम्भिक शिक्षा हुई ।और इसी विकास ने हमें घर की विचारधारा से पोषित *राष्ट्रीय छात्र संगठन* ( एन एस यू आई) से प्रभावित न होकर आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर बढ़े ।
मैं सन 1978 की बात कर रहा था ,उस समय अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के आह्वान पर देशव्यापी जेल भरो आंदोलन चल रहा था । सहारनपुर में भी उस आंदोलन को मिर्ज़ा यूसुफ की अगुवाई में आयोजित किया गया । एक बड़ा प्रदर्शन ज़िला कलेक्ट्री के बाहर था जिसमे सैंकड़ो खेत मजदूर पूरे जिले से इकठ्ठे होकर *इंकलाब जिंदाबाद* के नारे लगा रहे थे । हम भी कॉलेज की छुट्टी होने पर घर जा रहे थे और रास्ते में ही कलेक्ट्री पड़ती थी । जैसे ढोल बजने की आवाज सुन कर नर्तक के पांव अपने आप थिरकने लगते है वैसे ही *इंकलाब जिंदाबाद* की आवाज से हम जैसे विद्यार्थियों में भी जोश भर जाता था और मैं और संजय गर्ग(वर्तमान विधायक व पूर्वमंत्री) भी निकल पड़े उस आवाज की ओर । हमारे पहुचते ही प्रदर्शनकारियों के जोश दुगना था । आन्दोलनकारियो के प्रति एकजुटता प्रदर्शन के लिये हमें भी आग्रह किया गया कि हम भी ए आई एस एफ की तरफ से उन्हें सम्बोधित करे जिस पर हमने अमल किया ,पर यह क्या -पुलिस के एक अमले ने आन्दोलनकारियो को घेर लिया । और कहा कि जिसने भी गिरफ्तारियां देनी है वे आगे आएं ।लगभग 100 के करीब खेत मजदूर अपने नेता मिर्ज़ा यूसुफ ,राज कुमार वोहरा ,राव मुख्तयार अली खान के नेतृत्व में आगे आये । हम तो साधारण कपड़ो में थे ,किताबे साथ थी किसी भी अप्रत्याशित घटना की भी तैयारी में नही थे अतः यह तमाशा देख रहे थे । मन मे डर भी था कि अब इनकी गिरफ्तारी के बाद क्या होगा ? हो सकता है इनकी पिटाई हो या कोई और प्रताड़ना । पर ये सभी लोग निर्भयता से वहीँ डटे थे व अपने नारों को ओर बुलन्दी से लगा रहे थे । राव मुख्तयार अली खान जो पेशे से वकील थे तथा गांव के बेहट के बड़े ज़मीदार थे भी खेत मजदूरों के इस आंदोलन में गिरफ्तारी दे रहे थे । मेरे मन मे विचार था कि यह मजदूर तो इन जैसे बड़े जागीरदारों के खिलाफ ही तो लडाई लड़ रहे है फिर ये क्यो इनके साथ है? पर हर मजलूम के साथ खड़ा होने का यही तो ज़ज़्बा इस विचारधारा ने दिया है । राव साहब की गिरफ्तारी से प्रेरित होकर मैं भी आगे बढ़ा और में भी गिरफ्तारी देने वालो की उस कतार में शामिल होगया । घर मे बहन को हमारी इस गिरफ्तारी की जानकारी मेरे दोस्त संजय गर्ग ने दी तो वह झल्ला उठी और
बोली कि यहाँ पढ़ने आया है या गिरफ्तार होकर उनकी बदनामी करवाने । वे लोगों को क्या जवाब देंगे कि किस जुर्म में गिरफ्तार हुआ ।
अपनी कुल 92 दिनों की जेल यात्रा में यह मेरी पहली 17 दिन की जेल यात्रा थी । दूसरी यात्रा 1980 में चंडीगढ़ में विद्यार्थी आंदोलन के समर्थन में हुई । मजे की बात यह है कि तब मैने शिक्षा पूरी करके वकालत शुरू कर दी थी और तीसरी सन 1987 में एक राजनीतिक आंदोलन के दौरान । ए आई एस एफ ने हमे हर कमजोर अथवा अपने हकों के समर्थन में लड़ने का जज़्बा दिया । मुझे अफसोस है कि बाद का जीवन घर- गृहष्ठी को जोड़ने में लगा पर अपना मन -मुताबिक आंदोलन व संघर्ष के काम को पूरा समय न दे सका ,पर मुझे खुशी है कि मेरी संतान ने मेरे इस काम को सदा सरहाया व कभी भी साम्प्रदायिक तत्वों के हामी नही रहे । परन्तु मुझे डॉ शंकर लाल व मथुरा के एडवोकेट मधुवनदत्त चतुर्वेदी से ईर्ष्या भी होती है कि उनके पुत्र डॉ नवमीत नव तथा एडवोकेट उत्कर्ष चतुर्वेदी अपने-२ पिता के कार्यो व विचारधारा पर काम करते हुए आगे बढ़ा रहे है ।
पूरे देश मे सरकार की साम्प्रदायिक भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ जिस तरह से सड़कों पर उतरे है वह सर्वदा सरहानीय है तथा आशा की नई किरण का संचार करते है । ये ज्यादातर उन छात्र संगठनों के विद्यार्थी है जो कमजोर तबकों के हक में खड़े होने को अपना कर्तव्य मानते है ।
विद्यार्थियों के इस जज़्बे को सलाम ।
राम मोहन राय
दिल्ली / 20.12.2019
बात सन 1978 की है जब मैं सहारनपुर( उत्तरप्रदेश) में अपने बहन-बहनोई के पास रहते हुए जे वी जैन डिग्री कालेज में एल एल बी कक्षा में पढ़ रहा था । पढ़ाई के साथ-२ ,आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के संगठन को बनाने का काम भी करता था । वह दौर इमरजेंसी के बाद का था । विद्यार्थियों में राजनीतिक जागरूकता तो थी बस उसे उजागर करने की जरूरत थी ।
हम एक राजनीतिक विचारधारा को लेकर ही संघर्षरत थे । हमारा नारा था *शिक्षा व संघर्ष* । हम इस बात पर भी गौरान्वित थे कि हम एक विचारधारा से जुड़े है जो आधार अंतर्राष्ट्रीय है तथा जो हर एक उपेक्षित ,शोषित व निर्बल के लिये लड़ाई लड़ती है तथा हमारा संगठन उन्हीं उद्देश्यों के प्रति छात्रों में विचार विस्तार का कार्य करती है अतः पढ़ाई के साथ-2 हर मजलूम की लड़ाई से हम जुड़े है । संकीर्णता चाहे किसी भी रूप में हो वह हमारे आसपास नही थी । इसलिये साम्प्रदायिकता के खिलाफ हम खुल कर बोलते थे और ऐसे संगठनों के निशाने पर हमेशा रहते ।
मेरा पारिवारिक माहौल ने भी विकसित किया । माता जी कठोर आर्य समाजी ,पिता जी उदार सनातनी हिन्दू, नानका सिख , परवरिश एक मुस्लिम के घर व वातावरण में पिता के मित्र पादरी साहब । यह सब थे हमारे स्कूल जहां हमारी प्रारम्भिक शिक्षा हुई ।और इसी विकास ने हमें घर की विचारधारा से पोषित *राष्ट्रीय छात्र संगठन* ( एन एस यू आई) से प्रभावित न होकर आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर बढ़े ।
मैं सन 1978 की बात कर रहा था ,उस समय अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के आह्वान पर देशव्यापी जेल भरो आंदोलन चल रहा था । सहारनपुर में भी उस आंदोलन को मिर्ज़ा यूसुफ की अगुवाई में आयोजित किया गया । एक बड़ा प्रदर्शन ज़िला कलेक्ट्री के बाहर था जिसमे सैंकड़ो खेत मजदूर पूरे जिले से इकठ्ठे होकर *इंकलाब जिंदाबाद* के नारे लगा रहे थे । हम भी कॉलेज की छुट्टी होने पर घर जा रहे थे और रास्ते में ही कलेक्ट्री पड़ती थी । जैसे ढोल बजने की आवाज सुन कर नर्तक के पांव अपने आप थिरकने लगते है वैसे ही *इंकलाब जिंदाबाद* की आवाज से हम जैसे विद्यार्थियों में भी जोश भर जाता था और मैं और संजय गर्ग(वर्तमान विधायक व पूर्वमंत्री) भी निकल पड़े उस आवाज की ओर । हमारे पहुचते ही प्रदर्शनकारियों के जोश दुगना था । आन्दोलनकारियो के प्रति एकजुटता प्रदर्शन के लिये हमें भी आग्रह किया गया कि हम भी ए आई एस एफ की तरफ से उन्हें सम्बोधित करे जिस पर हमने अमल किया ,पर यह क्या -पुलिस के एक अमले ने आन्दोलनकारियो को घेर लिया । और कहा कि जिसने भी गिरफ्तारियां देनी है वे आगे आएं ।लगभग 100 के करीब खेत मजदूर अपने नेता मिर्ज़ा यूसुफ ,राज कुमार वोहरा ,राव मुख्तयार अली खान के नेतृत्व में आगे आये । हम तो साधारण कपड़ो में थे ,किताबे साथ थी किसी भी अप्रत्याशित घटना की भी तैयारी में नही थे अतः यह तमाशा देख रहे थे । मन मे डर भी था कि अब इनकी गिरफ्तारी के बाद क्या होगा ? हो सकता है इनकी पिटाई हो या कोई और प्रताड़ना । पर ये सभी लोग निर्भयता से वहीँ डटे थे व अपने नारों को ओर बुलन्दी से लगा रहे थे । राव मुख्तयार अली खान जो पेशे से वकील थे तथा गांव के बेहट के बड़े ज़मीदार थे भी खेत मजदूरों के इस आंदोलन में गिरफ्तारी दे रहे थे । मेरे मन मे विचार था कि यह मजदूर तो इन जैसे बड़े जागीरदारों के खिलाफ ही तो लडाई लड़ रहे है फिर ये क्यो इनके साथ है? पर हर मजलूम के साथ खड़ा होने का यही तो ज़ज़्बा इस विचारधारा ने दिया है । राव साहब की गिरफ्तारी से प्रेरित होकर मैं भी आगे बढ़ा और में भी गिरफ्तारी देने वालो की उस कतार में शामिल होगया । घर मे बहन को हमारी इस गिरफ्तारी की जानकारी मेरे दोस्त संजय गर्ग ने दी तो वह झल्ला उठी और
बोली कि यहाँ पढ़ने आया है या गिरफ्तार होकर उनकी बदनामी करवाने । वे लोगों को क्या जवाब देंगे कि किस जुर्म में गिरफ्तार हुआ ।
अपनी कुल 92 दिनों की जेल यात्रा में यह मेरी पहली 17 दिन की जेल यात्रा थी । दूसरी यात्रा 1980 में चंडीगढ़ में विद्यार्थी आंदोलन के समर्थन में हुई । मजे की बात यह है कि तब मैने शिक्षा पूरी करके वकालत शुरू कर दी थी और तीसरी सन 1987 में एक राजनीतिक आंदोलन के दौरान । ए आई एस एफ ने हमे हर कमजोर अथवा अपने हकों के समर्थन में लड़ने का जज़्बा दिया । मुझे अफसोस है कि बाद का जीवन घर- गृहष्ठी को जोड़ने में लगा पर अपना मन -मुताबिक आंदोलन व संघर्ष के काम को पूरा समय न दे सका ,पर मुझे खुशी है कि मेरी संतान ने मेरे इस काम को सदा सरहाया व कभी भी साम्प्रदायिक तत्वों के हामी नही रहे । परन्तु मुझे डॉ शंकर लाल व मथुरा के एडवोकेट मधुवनदत्त चतुर्वेदी से ईर्ष्या भी होती है कि उनके पुत्र डॉ नवमीत नव तथा एडवोकेट उत्कर्ष चतुर्वेदी अपने-२ पिता के कार्यो व विचारधारा पर काम करते हुए आगे बढ़ा रहे है ।
पूरे देश मे सरकार की साम्प्रदायिक भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ जिस तरह से सड़कों पर उतरे है वह सर्वदा सरहानीय है तथा आशा की नई किरण का संचार करते है । ये ज्यादातर उन छात्र संगठनों के विद्यार्थी है जो कमजोर तबकों के हक में खड़े होने को अपना कर्तव्य मानते है ।
विद्यार्थियों के इस जज़्बे को सलाम ।
राम मोहन राय
दिल्ली / 20.12.2019
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