30 जनवरी बनाम 10 जनवरी
10 नवम्बर बनाम 30 जनवरी
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸मेरे पिता जी उस मंजर के चश्मदीद गवाह थे ,वह दिन 10 नवम्बर ,1947 का था जब महात्मा गांधी, किला ग्राउंड पानीपत में एक जनसभा को सम्बोधित करने आए थे । विभाजन के बाद पानीपत की बड़ी आबादी जो मुस्लिम समुदाय की थी पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान मे यानि अपने बाबा ए वतन पानीपत में ही रहना चाहती थी । मेरे पिता बताया करते कि पार्टीशन से पहले पानीपत की 70 फीसदी आबादी मुस्लिम थी । आपस में भाई चारा इतना कि भाइयो से भी ज्यादा प्यार । शादी -ब्याह ,ख़ुशी -गमी व मरघट में आना जाना । मुस्लिम लोग पढ़े -लिखे व नौकरीपेशा थे व घर की सारी जिम्मेवारी घर की औरते ही सम्भालती थी और यहाँ तक कि घर की पहचान भी औरत से ही थी यानि 'फलां बीबी का घर '। मेरे पिता खुद भी उर्दू -अरबी-फ़ारसी के टीचर थे तथा उन्होंने अलीगढ मुस्लिम कॉलेज से अदीब ए आलिम ,फ़ाज़िल के इम्तहान पास किये थे । शहर में सिर्फ दो ही स्कुल थे एक मुस्लिम हाली स्कूल व दूसरा जैन हाई स्कूल ।वे जैन स्कूल में ही पढ़े व वहीँ सन् 1928 -48 तक उपरोक्त विषयो के टीचर रहे पर थे महात्मा गांधी के पक्के चेले व सेक्युलर मिज़ाज के आदमी । पिता जी बताया करते कि पानीपत में मुस्लिम कारीगर भी बहुत मशहूर थे और यहाँ के कम्बल ,दरीया व खेस दूर दूर तक बिकते थे । इस तरह अपने जमे जमाए काम को छोड़ कर कौन किसी अनजान जगह जाना चाहेगा पर ज्यो ज्यो नजदीक लगते करनाल से मुस्लिम आबादी के पलायन की खबरे आने लगी तो पानीपत के मुस्लिम आबादी में भी डर बनने लगा कि कही उन्हें भी पाकिस्तान न जाना पड़े ।पाकिस्तान से भी हिन्दू शरणार्थियो के काफिले आने शुरू हो गए थे तथा पानीपत में उनके लिये तहसील व नहर के पास कैंप बनाए जाने लगे थे । पानीपत के कांग्रेसी नेता मौलवी लकाउल्ला व दूसरे लोग उस दौरान दिल्ली गए व मौलाना आज़ाद की मार्फत महात्मा गांधी से मिले और उनसे गुजारिश कि वे पानीपत तशरीफ़ फरमा हो कर मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान जाने से रोके । अपनी तमाम मश्रुफियात के बावजूद गांधी जी 10 नवम्बर ,1947 को पानीपत आए । किला ग्राउंड पर स्टेज लगी जिसमे बापू के साथ मौलाना आज़ाद ,गोपी चन्द भार्गव व दूसरे नेता आए । पानीपत में गांधी जी के इस जलसे में हजारो लोगो की भीड़ थी और वहाँ 'महात्मा गांधी की जय'के नारे बुलंदी पर थे पर यह क्या गांधी जी ज्यो ही बोलने शुरू हुए वहाँ मौजूद कुछ उपद्रवी भीड़ जो अधिकांश स्थानीय व शरणार्थी संघ कार्यकर्ता थे , ने शोर मचा कर उनकी तकरीर में व्यवधान करना शुरू कर दिया और यहाँ तक की उन्मादी लोग बापू को स्टेज पर मारने के लिये भी चढ़ गए । इसी बीच एक नवयुवक बीच बचाव करता हुआ आया और वह गांधी जी को दबोच कर स्टेज के साथ ही लगती लायब्ररी के कमरे में ले गया।,उसने बाहर से चिटकनी लगा दी और फिर उस नौजवान ने तकरीबन आधे घंटे तक जलसे में उपस्थित भीड़ को सम्बोधित किया । पिता जी ने बताया कि उनकी तकरीर ने आग पर पानी डालने का काम किया ,माहौल बिलकुल शांत होने पर गांधी जी व दूसरे नेतागण बाहर आये फिर गांधी जी ने लोगो को सम्बोधित किया तथा लोगो से अपील कि वे मुसलमानो को पाकिस्तान न जाने दे ,वे अच्छे कारीगर है ,बुद्धिजीवी है । बापू के विचारो को लोगो ने बहुत ही शांति से सुना था उन अमल करने का उन्हें आश्वाशन भी दिया । पिता जी ने बताया जलसे के बाद सब में उस नौजवान के बारे में जानने की आतुरता बनी रही जिसकी वजह से गांधी जी की जान बची व जलसा कामयाब हुआ ।पिता जी ने बताया कि बाद में पता चला कि वह नौजवान पंजाब प्रोविंस कांग्रेस के सेक्रेटरी 'टीका राम सुखन' थे । फिर तो सुखन साहब ने करनाल -पानीपत में अपना मुकाम बना कर साम्प्रदायिक सदभाव व विस्थापितों के बसाने का काम किया । पिता जी बताते थे कि टीका राम सुखन,श0 भगत सिंह के साथी थे तथा इनके साथ नौजवान भारत सभा में सक्रिय रहे । बाद में वे 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ' में भी एक्टिव रहे और अंत में का0 अजोय घोष ,शिव वर्मा ,किशोरी लाल के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और हरियाणा बनने पर वे सी पी आई के राज्य सचिव बने । उनकी पत्नी श्रीमती शकुंतला सुखन भी एक क्रांतिकारी स्वतन्त्रता सेनानी थी व मेरी माता श्रीमती सीता रानी के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी ।सुखन साहब ,आज़ादी की लड़ाई में लगभग 14 साल अंग्रेज़ी शासन की जेल में बितायी पर जब सन् 1973 में स्वतंत्रता सेनानियो को ताम्रपत्र व पेंशन की सरकार की योजना बनी तो सुखन-दम्पति ने ताम्रपत्र और पेंशन लेने से यह कह कर मना कर दिया कि इसके लिए थोड़ी उन्होंने सजा काटी थी ।
सन् 1975 में कॉलेज में आने के बाद मैने भी आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ज्वाइन की । मेरे माता -पिता बेशक कांग्रेस विचारधारा के थे व उसके कार्यकर्ता भी परन्तु उन्हें मेरे स्टूडेंट्स फेडरेशन में होने से कभी कोई एतराज नही रहा । इस दौरान कई मर्तबा का0 टीका राम सुखन से भी मिला । जब भी मै उनसे मिल कर आता और अपने घर आकर अपने माता -पिता को बताता तो वे बहुत खुश होते क्योकि उनके लिए' उनके महात्मा गांधी'को बचाने वाले का0 टीका राम सुखन एक सामान्य राजनितिक नेता ही नही अपितु प्राण रक्षक भी थे । मेरे पिता अक्सर कहते यदि का0 टीका राम सुखन न होते तो गांधी जी 30 जनवरी को दिल्ली में नही ,10 नवम्बर को पानीपत में ही कत्ल हो जाते पर पानीपत को इस पाप से का0 टीका राम सुखन ने ही बचाया ।
राम मोहन राय
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस 30.01.17)
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸मेरे पिता जी उस मंजर के चश्मदीद गवाह थे ,वह दिन 10 नवम्बर ,1947 का था जब महात्मा गांधी, किला ग्राउंड पानीपत में एक जनसभा को सम्बोधित करने आए थे । विभाजन के बाद पानीपत की बड़ी आबादी जो मुस्लिम समुदाय की थी पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान मे यानि अपने बाबा ए वतन पानीपत में ही रहना चाहती थी । मेरे पिता बताया करते कि पार्टीशन से पहले पानीपत की 70 फीसदी आबादी मुस्लिम थी । आपस में भाई चारा इतना कि भाइयो से भी ज्यादा प्यार । शादी -ब्याह ,ख़ुशी -गमी व मरघट में आना जाना । मुस्लिम लोग पढ़े -लिखे व नौकरीपेशा थे व घर की सारी जिम्मेवारी घर की औरते ही सम्भालती थी और यहाँ तक कि घर की पहचान भी औरत से ही थी यानि 'फलां बीबी का घर '। मेरे पिता खुद भी उर्दू -अरबी-फ़ारसी के टीचर थे तथा उन्होंने अलीगढ मुस्लिम कॉलेज से अदीब ए आलिम ,फ़ाज़िल के इम्तहान पास किये थे । शहर में सिर्फ दो ही स्कुल थे एक मुस्लिम हाली स्कूल व दूसरा जैन हाई स्कूल ।वे जैन स्कूल में ही पढ़े व वहीँ सन् 1928 -48 तक उपरोक्त विषयो के टीचर रहे पर थे महात्मा गांधी के पक्के चेले व सेक्युलर मिज़ाज के आदमी । पिता जी बताया करते कि पानीपत में मुस्लिम कारीगर भी बहुत मशहूर थे और यहाँ के कम्बल ,दरीया व खेस दूर दूर तक बिकते थे । इस तरह अपने जमे जमाए काम को छोड़ कर कौन किसी अनजान जगह जाना चाहेगा पर ज्यो ज्यो नजदीक लगते करनाल से मुस्लिम आबादी के पलायन की खबरे आने लगी तो पानीपत के मुस्लिम आबादी में भी डर बनने लगा कि कही उन्हें भी पाकिस्तान न जाना पड़े ।पाकिस्तान से भी हिन्दू शरणार्थियो के काफिले आने शुरू हो गए थे तथा पानीपत में उनके लिये तहसील व नहर के पास कैंप बनाए जाने लगे थे । पानीपत के कांग्रेसी नेता मौलवी लकाउल्ला व दूसरे लोग उस दौरान दिल्ली गए व मौलाना आज़ाद की मार्फत महात्मा गांधी से मिले और उनसे गुजारिश कि वे पानीपत तशरीफ़ फरमा हो कर मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान जाने से रोके । अपनी तमाम मश्रुफियात के बावजूद गांधी जी 10 नवम्बर ,1947 को पानीपत आए । किला ग्राउंड पर स्टेज लगी जिसमे बापू के साथ मौलाना आज़ाद ,गोपी चन्द भार्गव व दूसरे नेता आए । पानीपत में गांधी जी के इस जलसे में हजारो लोगो की भीड़ थी और वहाँ 'महात्मा गांधी की जय'के नारे बुलंदी पर थे पर यह क्या गांधी जी ज्यो ही बोलने शुरू हुए वहाँ मौजूद कुछ उपद्रवी भीड़ जो अधिकांश स्थानीय व शरणार्थी संघ कार्यकर्ता थे , ने शोर मचा कर उनकी तकरीर में व्यवधान करना शुरू कर दिया और यहाँ तक की उन्मादी लोग बापू को स्टेज पर मारने के लिये भी चढ़ गए । इसी बीच एक नवयुवक बीच बचाव करता हुआ आया और वह गांधी जी को दबोच कर स्टेज के साथ ही लगती लायब्ररी के कमरे में ले गया।,उसने बाहर से चिटकनी लगा दी और फिर उस नौजवान ने तकरीबन आधे घंटे तक जलसे में उपस्थित भीड़ को सम्बोधित किया । पिता जी ने बताया कि उनकी तकरीर ने आग पर पानी डालने का काम किया ,माहौल बिलकुल शांत होने पर गांधी जी व दूसरे नेतागण बाहर आये फिर गांधी जी ने लोगो को सम्बोधित किया तथा लोगो से अपील कि वे मुसलमानो को पाकिस्तान न जाने दे ,वे अच्छे कारीगर है ,बुद्धिजीवी है । बापू के विचारो को लोगो ने बहुत ही शांति से सुना था उन अमल करने का उन्हें आश्वाशन भी दिया । पिता जी ने बताया जलसे के बाद सब में उस नौजवान के बारे में जानने की आतुरता बनी रही जिसकी वजह से गांधी जी की जान बची व जलसा कामयाब हुआ ।पिता जी ने बताया कि बाद में पता चला कि वह नौजवान पंजाब प्रोविंस कांग्रेस के सेक्रेटरी 'टीका राम सुखन' थे । फिर तो सुखन साहब ने करनाल -पानीपत में अपना मुकाम बना कर साम्प्रदायिक सदभाव व विस्थापितों के बसाने का काम किया । पिता जी बताते थे कि टीका राम सुखन,श0 भगत सिंह के साथी थे तथा इनके साथ नौजवान भारत सभा में सक्रिय रहे । बाद में वे 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ' में भी एक्टिव रहे और अंत में का0 अजोय घोष ,शिव वर्मा ,किशोरी लाल के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और हरियाणा बनने पर वे सी पी आई के राज्य सचिव बने । उनकी पत्नी श्रीमती शकुंतला सुखन भी एक क्रांतिकारी स्वतन्त्रता सेनानी थी व मेरी माता श्रीमती सीता रानी के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी ।सुखन साहब ,आज़ादी की लड़ाई में लगभग 14 साल अंग्रेज़ी शासन की जेल में बितायी पर जब सन् 1973 में स्वतंत्रता सेनानियो को ताम्रपत्र व पेंशन की सरकार की योजना बनी तो सुखन-दम्पति ने ताम्रपत्र और पेंशन लेने से यह कह कर मना कर दिया कि इसके लिए थोड़ी उन्होंने सजा काटी थी ।
सन् 1975 में कॉलेज में आने के बाद मैने भी आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ज्वाइन की । मेरे माता -पिता बेशक कांग्रेस विचारधारा के थे व उसके कार्यकर्ता भी परन्तु उन्हें मेरे स्टूडेंट्स फेडरेशन में होने से कभी कोई एतराज नही रहा । इस दौरान कई मर्तबा का0 टीका राम सुखन से भी मिला । जब भी मै उनसे मिल कर आता और अपने घर आकर अपने माता -पिता को बताता तो वे बहुत खुश होते क्योकि उनके लिए' उनके महात्मा गांधी'को बचाने वाले का0 टीका राम सुखन एक सामान्य राजनितिक नेता ही नही अपितु प्राण रक्षक भी थे । मेरे पिता अक्सर कहते यदि का0 टीका राम सुखन न होते तो गांधी जी 30 जनवरी को दिल्ली में नही ,10 नवम्बर को पानीपत में ही कत्ल हो जाते पर पानीपत को इस पाप से का0 टीका राम सुखन ने ही बचाया ।
राम मोहन राय
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस 30.01.17)
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