स्वामी दयानंद की बोध रात्रि

*उत्तिष्ठत जाग्रत*
💐💐💐💐💐
(Nityanootan Broadcast Service)

*कल से हम अहमदाबाद में हैं , हाँ वही गुजरात की पूर्व राजधानी । जो काफी नजदीक है काठियावाड़ मोरवी के निकट टंकारा के जहां ऋषिवर दयानंद का जन्म हुआ था । जहाँ आज ही के दिन शिवरात्रि के पर्व पर एक 14 वर्षीय बालक मूलशंकर जो रियासत के दरबारी शिव भक्त क्रष्ण जी तिवारी का पुत्र था , को  बोध हुआ था । उस बालक ने भी इस दिन के महत्व को जान कर पूरे दिन उपवास रख रात्रि को मंदिर में शिवलिंग की पूजा करते हुए जाग कर परमेश्वर प्राप्ति का उद्यम किया था । पर आधी रात होते ही जब सब भक्तजन ऊँघने लगे फिर भी वह जागता रहा शिव प्राप्ति के लिये । पर यह क्या मंदिर के बिल से कुछ चुंहे निकले और लिङ्ग प्रतिमा पर उछल कूद कर उस पर चढ़े फल-मिठाई खाने लगे । और यहीं से उस बालक का भ्रम टूट गया और उसे बोध हुआ कि जो शिव अपनी रक्षा नही कर सकता वह हमारी रक्षा कैसे करेगा ? और तभी घर आकर व्रत तोड़ा और निश्चय किया सच्चे शिव की प्राप्ति का । यही एक ऐसा मोड़ रहा जिसने मूलशंकर को शुद्ध चैतन्य नाम से यात्रा करते हुए दयानंद के मुकाम पर पहुचाया । वह दर-2 भटकते हुए पहुंचा मथुरा एक प्रज्ञाचक्षु सन्यासी स्वामी विरजानंद के पास और उस गुरु ने अपने इस शिष्य के दिव्य चक्षु खोल दिये और इसके बाद वह निकल पड़ा सत्य का प्रचार करने । ईंटे और पत्थर खाए पर वे न घबराए । संवाद के लिये काशी के विद्वानों , मुस्लिम आलिम सर सैयद अहमद खान , ईसाई पादरी कर्नल ब्रुक्स आदि अनेक धार्मिक नेताओं से मिले और अंत मे सत्यार्थ प्रकाश लिख कर आर्य समाज की स्थापना की । वह ऋषि जो सत्य कहते कभी भी नही डरा । राजा, महाराजाओं ,सामन्तो को आज़ादी के लिये जगता रहा और फिर शिकार हुआ षडयंत्रो का । एक बार नही अनेक बार जहर दिया गया और फिर अंत मे काल कूट विष को सीसे में मिला कर पिलाने से मृत्यु  को  *ईश्वर तेरी इच्छा पूर्ण हो* यह कहते हुए प्राप्त हो गया । *धन्य है तू प्यारे ऋषि* ।
      आर्य समाज के लिये यह दिन ज्यादा महत्वपूर्ण व प्रेरणादायक है । इसी दिन उस व्यक्ति को प्रेरणा मिली और उसने इस संगठन की नींव रखी ।  स्वामी दयानंद ने इस संगठन के लोगों को दायित्व सौंपा कि वे अंधविश्वास , संकीर्णता व अन्य सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष करें और एक नया समाज बनाने की ओर लगे जो भेदभाव ,अस्पृश्यता , नशा से मुक्त हो।
   शिवरात्रि , बोधरात्री है ।
स्वामी दयानंद के इस संगठन की आज बेहद आवश्यकता है क्योंकि समाज मे संकीर्णता ,हिंसा और नफरत फैलाने वाले ज्यादा सक्रिय है और वह उन्हीं के साथ चलने की मजबूरी की साजिशों में घिरे है । पूरा संगठन तन्त्र सत्ता पिपासुओं के इर्द गिर्द एकजुट है और दयानन्द के विचार की हत्या हो रही है । जिस आर्य समाज पर संसार के उपकार की जिम्मेवारी थी आज वह खुद ही सोया है । इस निद्रा से कौन जगायेगा ।
क्या तुम ,मैं या हम सब मिल कर ।
*उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत* ।
 ( उठो जागो और अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिये लग जाओ)
 राम मोहन राय
अहमदाबाद ,
शिवरात्रि, 22.02.2020

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat