दुर्गा भाभी -भाग्यशाली क्षण


 भाग्यशाली क्षण 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 एल एल बी में दाखिला मिलने के बाद 1977 से 80 तक, पुरे तीन साल सहारनपुर में अपनी बहन अरुणा के पास रहने का मौका मिला । होम सिकनेस की वजह से शुरू में तो एक एक दिन काटना मुश्किल रहा पर बाद में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की गतिविधियाँ शुरू हुई और मित्रो का एक अच्छा सर्किल बनना शुरू हो गया । संजय गर्ग ,अशोक शर्मा ,राशिद , किरण जीत , राजीव ,रंजन आदि सभी  मिल कर पढ़ते व छात्र राजनीती में भी सक्रिय रहते । इन सभी के घरो में जाना भी अक्सर होता । खासतौर पर संजय व किरण जीत के , क्योकि किरण जीत का घर हमारे कॉलेज 'जे वी जैन कॉलेज 'के बिलकुल सामने ही था इसलिए उनके घर जाना सहज ही रहता था और सबसे बड़ा कारण कि वह हमारे हीरो ' स0 भगत सिंह'के  सबसे छोटे सगे  भाई स0 कुलतार सिंह जी का छोटा सुपुत्र था । सबमे अनेक गुण हो सकते है परन्तु किरण जीत को सहजता ,सरलता व मेहमाननवाज़ी के गुण अपने पिता स0 कुलतार सिंह व माता श्रीमती सतिंदर कौर         से मिला थे । माँ भी ऐसी कि कोई भी आओ,वह पानी ,दूध ,चाय व खाना बिना खिलाये नही जाने देती थी    और हमारे जेसे बेघरो को तो ये नेयमत थीं। जब भी मन करता हम बेधड़क उनके घर में जाते व धड़ल्ले से डाइनिंग टेबल पर बैठ कर अपने मन पसन्द का खाना  खाते ।ऐसे ही एक शाम को हम किरण जीत के घर गए व अपने स्वभाव के।मुताबिक घर में चल रहे डिनर में शामिल हो गए । उस दिन डाइनिंग टेबल पर हमारे अतिरिक्त स0 कुलतार सिंह ,उनके बड़े पुत्र स0 जोरावर सिंह ,किरण जीत ,एक अन्य अतिथि महिला व पुरुष बैठे थे । वह महिला अतिथि की शक्ल कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी और उनकी बाते तो बिलकुल ही एक कहानी सी । वे लाहौर से कलकत्ता तक के भगत सिंह ,राजगुरु व सुखदेव के सफ़र का किस्सा सुना रही थी व अनेक ऐसे अंतरंग  प्रसंगों को जो क्रान्तिकारियो से जुड़े थे । मै उन्हें एक संवाद के हिस्से के रूप में ले रहा था क्योकि ऐसे  वृतांत सुनाने वाले तो इस घर में आते ही रहते थे और हमारे जैसे श्रोता भी । साधारण कपड़ो में उस वृद्ध महिला के मुख पर तेज था व बातो से वे एक शिक्षिका लग रही थीं। बातो -बातो में किरण जीत ने उन्हें हमारा परिचय दिया कि हम क्लास फेलो है  तथा मै स्टूडेंट्स फेडरेशन में भी सक्रिय हूँ  । इतना जानकर उस महिला ने मुझ में रूचि दिखानी शुरू कि व पूछने लगीं कि नौजवान भारत सभा के बारे में जानते हो ,उसका घोषणापत्र पढ़ा है ? ए आई एस एफ की क्या  गतिविधियाँ है आदि आदि । मै असमंजस में पड़ गया यह महिला ऐसा क्यों पूछ रही है । इसी दौरान किरण जीत ने मुझे मुखातिब हो कर पूछा कि क्या मै इनसे परिचित हूँ न? मेरे न कहने पर वे बोले कि ये 'दुर्गा भाभी' है  और अब ये मेरठ में एक स्कूल चला रही है । इतना सुनते ही मेरा तो दिमाग ही घूम गया कि क्या वे  'दुर्गा भाभी'है जो महान क्रांतिकारी है जो भगवती चरण वोहरा की पत्नी है व सचिन की माँ । भारतीय क्रांतिकारी इतिहास के पन्ने एक चलचित्र की भांति घूमने लगे । कहाँ तो हम चहक रहे थे कहाँ एक दम गुम । अब वे ही बोलती रही सुने अनसुने इतिहास को बताने ।  दुर्गा भाभी के दर्शन व उनसे बातचीत जीवन के वे भाग्यशाली क्षण है जो अमिट है । इन्हें सोच कर व गुन कर ,कई बार अपने भाग्य पर खुद ही ईर्ष्या होने लगती है ।



राम मोहन राय,

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