Yes to Life , No to Death

 


*Yes to Life - No to Death*

       श्री सुंदरलाल जी बहुगुणा एवं उनकी स्वनामधन्या पत्नी श्रीमती विमला देवी जी से दिनांक 25 अक्टूबर, 2020 को उनके देहरादून स्थित आवास पर मिलना  ऐसे अद्भुत अविस्मरणीय सौभाग्यशाली क्षणों को 

संजोना है, जो हमारी मधुर

स्मृति में सदा अमिट रहेंगे। विश्व वंदनीय, राष्ट्र विभूति प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल जी बहुगुणा अब लगभग 94 वर्ष के हो चुके हैं। आयु की वजह से बेशक वे धीमा सुनते हैं, यादाश्त भी बहुत अच्छी नहीं है, परंतु उनकी सक्रियता एवं सजीवता इन सब पर भारी है। उनकी पत्नी श्रीमती विमला देवी जी इन तमाम कमियों को एक सहयोगी, संगिनी एवं एक सुयोग्य सचिव के रूप में पूरा करती हैं।

         आनंद तो तब रहा जब हम देहरादून स्थित शास्त्री नगर में उनके मकान नंबर को ढूंढ रहे थे। गलियों में ढूंढना कुछ असुविधाजनक भी था। हमने उनके मकान नंबर को कंफर्म करने के लिए उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क किया तो माताजी का जवाब था कि वे और बहुगुणा जी गली में बाहर आ रहे हैं और हम उन्हें देखकर घर की पहचान कर लेंगे। उस गली में लगभग 200 मीटर दूर हमने देखा कि एक विशालकाय व्यक्तित्व जो सफेद कपड़ो, सफेद दाढ़ी एवं सिर पर  बहुपरिचित सफेद पटका बांधे बेंत लिए अपने घर की सूचना देने के वास्ते बाहर खड़ा है। यह देख कर हम तो गदगद हो गए । मन ही मन सोचने लगे कि हम जैसे सामान्य लोगों के लिए ऐसा वह महान व्यक्तित्व प्रतीक्षारत है। पर जैसा कि हम जानते थे कि यह प्रतीक्षा तो उन मेहमानों की थी, जो दीदी निर्मला देशपांडे जी के संदर्भ से उनके पास पहुंच रहे थे।

         वे और माता विमला देवी जी हमें घर के भीतर ले गए। घर में कोई सेवक नहीं था।  माताजी ही मेहमाननवाजी का काम कर रही थीं।  90 वर्षीय माताजी के शरीर में कमाल की स्फूर्ति थी। बेशक कमर झुक गई थी, पर वे तुरंत हमारे लिए पहले पानी, फिर चाय नाश्ता  और फिर मिनटों में सेब इत्यादि काटकर भी ले आईं। मेरा हृदय उनके प्रति कृतज्ञ था कि हम कितने बड़भागी हैं कि ऐसे महापुरुषों का सानिध्य सहज में ही प्राप्त हो रहा है। बातचीत शुरू हुई।

       मेरा पहला ही सवाल था क्या वे कभी महात्मा गांधी से मिले हैं? यह प्रश्न सुनते ही उनकी  छोटी-छोटी आंखों में रोशनी भर आई और वे भावुकता से  टिमटिमाने लगीं। उन्होंने बड़े गर्व से कहा कि हां, बापू की शहादत से एक दिन पहले ही। बहुगुणा दम्पति  बता रहे थे कि देश बेशक 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था। परंतु वे तो टिहरी राजशाही की प्रजा थे। उन्हें आजादी मिली देश की आजादी के एक साल बाद यानी 1948 में। टिहरी की जनता की दो मोर्चों पर लड़ाई थी- एक अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ और उसकी पिट्ठू राजशाही के खिलाफ। देश की आज़ादी के बाद  टिहरी में भी एक विशाल जन आंदोलन खड़ा हो गया था। राजशाही ने उसको दबाने के लिए  सत्याग्रहियों की भीड़ पर गोलियाँ  चलवाई। जिससे दो सत्याग्रही नागेन्द्र पटियानी और मोलू सिंह भरढारी शहीद हो गए। राज हिंसा के खिलाफ लोगों में आक्रोश था और विद्रोह भी। वे खून का बदला खून से लेना चाहते थे। परंतु गांधी जी के युवा सिपाहियों ने ऐसा न होने दिया। विशाल जनसमूह का जुलूस पुल तक आ पहुंचा और शहर में घुसने की तैयारी में था। आशंका यह थी कि यह जुलूस शहर में घुसा तो हिंसा अवश्य होगी। पर युवाओं ने समझदारी से काम किया और पुल के गेट को ताला लगा दिया ताकि न ही आक्रोशित भीड़ शहर में घुस सके और न ही कोई हिंसा हो। राजवंश की राजमाता भी लोगों के बीच आई और वह भरोसा देना चाहती थी कि उन्हें न्याय मिलेगा। पर लोगों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि नहीं माना। अब लोगों का वास्तविक प्रतिनिधि सुंदरलाल और उनके युवा साथी थे। आखिरकार टिहरी राज्य में शांतिपूर्ण क्रांति सफल हुई और इसकी रिपोर्ट देने अपने मार्गदर्शक गुरु महात्मा गांधी के पास बिड़ला हाउस, दिल्ली सुंदरलाल व उनके साथी पहुंचे। महात्मा गांधीजी जी ने उनकी सारी बात को ध्यान से सुना और वे बरबस बोले," अरे वाह, अहिंसा जो हिमालय से भी उँची थी, आप उसे नीचे धरती पर उतार लाए।" ऐसा आशीर्वाद पाकर युवा सुंदरलाल व उनके साथी  वापस टिहरी लौटे। पर उससे पहले ही महात्मा गांधीजी की शहादत का समाचार पहुंच चुका था। 

          मैं अब माताजी की तरफ देखने लगा। माताजी बता रही थी कि वे बचपन से ही महात्मा गांधी के कार्यों से प्रभावित थीं। उनके गांव में एक बार प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी देव सुमन जी पधारे। उनके हाथ में एक लकड़ी की पेटी थी। हम तो उन्हें जादूगर समझे और उनकी पेटी को जादू का पिटारा। माताजी बोलती जा रही थी कि उन्होने उनसे उत्सुकता से पूछा कि क्या यह जादू का पिटारा है? तो वे सब लोगों को एक पेड़ के नीचे ले गये और उन्होंने उस पेटी को खोलकर अंबर चरखा दिखाया और बोले कि यह चरखा है। महात्मा जी का कहना है कि अगर हम इस पर सूत कातेंगे तो अंग्रेजी साम्राज्य यह देश छोड़ने को मजबूर हो जाएगा ।युवक सुंदरलाल इस पर हंस कर बोला इस पर साल भर भी सूत कातते रहोगे तो उनका कुर्ता तक नहीं बनेगा। पर यह चरखा ही था जिसे बाद में बहुगुणा दम्पति  ने अपना हथियार बनाकर आजादी की लड़ाई में भाग लिया। क्योंकि वे समझते थे कि चरखा ही स्वावलंबी भारत का निर्माण करेगा। देव सुमन जी ने उनको गांधी जी की दो किताबें भी दी। एक "हिन्द स्वराज" और दूसरी "नवयुवकों से दो बातें"।       

            बहुगुणा दंपत्ति  बता रहे थे कि  उनका मायका राजभक्त था।  इसके विपरीत युवा सुंदरलाल आजादी के दीवाने थे।। लोग उन्हें कंस का भांजा कहते थे। इस दौरान देव सुमन जी को जेल हो गई। टिहरी में राजशाही के खिलाफ आंदोलन बढ़ता ही जा रहा था। इसकी खबर दिल्ली तक नहीं थी। किसी तरह इस समाचार   के कागज का एक पुर्जा दिल्ली पहुंचाया गया ।अब तत्कालीन राष्ट्रीय समाचार पत्रों में टिहरी में हो रहे आंदोलन का जिक्र था। सुंदरलाल जी ने 11वीं पास कर कक्षा 12वीं में एडमिशन लिया था। पर वे इन तमाम इम्तिहानो से ज्यादा आजादी के इंतिहान को मानते थे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने 12वीं की परीक्षा दी । पर इससे पहले उन्हें पांच महीने हवालात में रखा गया। जबकि हवालात में रखने का दो या तीन महीने से ज्यादा का नियम नहीं है। हवालात के हालात ऐसे थे कि उनके शरीर में फोड़े हो गए। डॉक्टरों का कहना था कि अगर इन्हें छोड़ा नहीं गया तो ये मर सकते हैं । आखिरकार उन्हें रिहा करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा। इस दौरान  देव सुमन जी जेल की  अमानवीय यातनाओं के  विरुद्ध भूख हड़ताल के 84वें दिन जेल में ही शहीद हो गए। युवा सुंदरलाल पढ़ने के लिए लाहौर चले गए। पर वहां भी खुफिया विभाग की नजरें उन पर थी और वहीं से वे भेष बदलकर सरदार मान सिंह नाम रखकर  लायलपुर के परिवार में बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगे। इस रोचक दास्तान को माताजी बताती जा रही थी और मन कर रहा था कि वे रुके नहीं और बताती जाएं

        मैंने माताजी से पूछा, माताजी आपकी सुंदर लाल जी से शादी कैसे हुई ?इस बात पर वे हंसी और बोली उनका घर के बड़ों ने रिश्ता तो करवा दिया था पर शादी के लिए उनकी एक शर्त थी कि सुंदरलाल जी राजनीति छोड़कर गांधीजी के रचनात्मक कार्यों में लगे और जब वे उनकी शर्त को मान गए तो शादी हुई ।मैंने भी हंसते हुए कहा कि माताजी आपने तो यह अनर्थ कर दिया ।अगर ये राजनीति में होते तो बहुत बड़े नेता होते, मुख्यमंत्री होते,  केंद्र में कोई बड़ा स्थान होता तो वे तपाक से बोली कि क्या इनकी यह पहचान होती जो आज है। मंत्रियों, नेताओं की पहचान तो क्षणिक होती है। उनकी जो शोहरत आज पूरी दुनिया में है है, वह तभी है जब उन्होंने गांधीजी के रचनात्मक कार्यों को किया। 

    विमला देवी जी का बार-बार कहना था कि स्त्री शक्ति जागरण का काम न तो देश की आजादी से कम है और न ही देश की प्रगति से। महिला कोई अबला नहीं है और जब इसे अपनी शक्ति का एहसास हो जाएगा तो देश में न केवल पूर्ण स्वराज होगा, अपितु प्रगति का रास्ता भी प्रशस्त होगा। उन्होंने अपने अनेक आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि टिहरी बचाओ, चिपको  और शराबबंदी आंदोलन  ने यह साबित किया कि संघर्ष सामूहिक शक्ति  प्रदान करता है। सवाल हार- जीत का नहीं है, प्रश्न है आत्मिक संतोष का और आनन्दनुभूति गांधी जी के रास्ते से ही मिल सकती है। 

         आज के हालात पर उनका दृष्टिकोण था कि समाज में आज शांति नहीं है । मिट्टी, पानी, हवा पूरी दुनिया में प्रदूषित है और इसलिए कोरोना जैसी महामारी एक स्थान में सीमित न होकर पूरी दुनिया में फैली है। दुनिया की रक्षा अर्थात सृष्टि की रक्षा यानी पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने हमारे सामने चुनौती रखी थी देश को आजाद करवाने की और उनकी पीढ़ी के युवाओं ने इसे स्वीकार किया। पर आज की चुनौती जिंदा रहने की है । न केवल वातावरण में बल्कि विचारों  और आचरण में भी घृणा, द्वेष और अलगाव के विषाणु मौजूद है। सांप्रदायिकता का जहर हमें हिस्सों में बांटना चाहता है।अगर इस चुनौती को आज का युवा स्वीकार करता है तो  तो वह इस दुनिया को बचाने में सक्षम होगा।    

      *बहुगुणा दम्पति  ने अपने संदेश में कहा," यस टू लाइफ, नो टू डैथ"। "Yes to Life, No to Death*"

राम मोहन राय,

देहरादून -25.10.2020

विजयदशमी  

(Nityanootan Varta Broadcast Service)






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  1. अत्यंत अमूल्य संस्मरण

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  2. अत्यंत अमूल्य संस्मरण

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