ईश्वर और किसान



 विहाग वैभव की बेहतरीन कविता !



                         ईश्वर को किसान होना चाहिए  !

 

ईश्वर सेनानायक की तरह आया

न्यायाधीश की तरह आया

राजा की तरह आया

ज्ञानी की तरह आया

और भी कई-कई तरह से आया ईश्वर


पर जब इस समय की फसल में

किसान होने की चुनौतियाँ

मामा घास और करेम की तरह

ऐसे फैल गई है कि

उनकी जिजीविषा को जकड़ रही है चहुँ ओर

और उनका जीवित रह जाना

एक बहादुर सफलता की तरह है


तो ऐसे में

ईश्वर को किसान होकर आना चाहिए

( मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है )


वह जेल में

महल में

युद्ध में

जैसे बार-बार

लेता है अवतार

वैसे ही उसे

अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार


ऐसे कि

चार हाथों वाले उस अवतारी की देह

मिट्टी से सनी हो इस तरह कि

पसीने से चिपककर उसके देह का हिस्सा हो गई हो

बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया

ढँक रही हों उसकी पसलियाँ

और उस चार हाथों वाले ईश्वर के

एक हाथ में फरसा

दूसरे में हँसिया

तीसरे में मुट्ठी भर अनाज

और चौथे में महाजन का दिया परचा हो

( कितना रोमांचक होगा ईश्वर को ऐसे देखना )


मुझे यक़ीन है — ईश्वर महाजन का दिया परचा

किसी दिव्य ज्ञान के स्रोत की तरह नहीं पढ़ेगा

वह उसे पढ़कर उदास हो जाएगा

फिर वह महसूस करेगा कि

इस देश में ईश्वर होना

किसान होने से कई गुना आसान है


सृष्टि के किसी कोने

सचमुच ईश्वर कहीं है

और वह अपने अस्तित्व को लेकर सचेत भी है

तो फिर अब समय आ गया है कि

उसे अनाज बोना चाहिए

काटना चाहिए, रोना चाहिए


ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए।


Mahesh Punetha  की दीवार से

Courtesy Parmanand Shastri


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