किसान आंदोलन
*राजाओं का राजा राजधानी से बाहर*
यह कोई साधारण किसान आंदोलन नही है ,इस बारे में किसी को भी मुगालता नही होना चाहिए । ऐसा कहना भी गलत है कि यह आन्दोलन नेतृत्व विहीन ,गैर वैचारिक एवम स्वतःस्फूर्त है । यदि ऐसा हम समझते है तो इस आन्दोलन के किसी भी पड़ाव पर आना होगा ।
इन्ही सभी बातों को समझने के लिए आज अपने अनेक मित्रों के साथ दिल्ली- हरियाणा राज्य बॉर्डर सिंघु-कुंडली पर आने का अवसर मिला ।
बॉर्डर से लगभग 10 किलोमीटर पहले ही हरियाणा में किसानों के ट्रैक्टर-ट्राली एवम तम्बू लगे है । राष्ट्रीय राजमार्ग जी टी रोड अब एक सड़क नही लगता अपितु एक बसा हुआ कस्बा लगता है । जगह-२ लोग खाना पका रहे है । लोगों को रोक-२ उन्हें खाना ,चाय, दूध, लस्सी ,मिठाई एवम फलों का लंगर छकने का आग्रह किया जा रहा था । प्रदर्शनकारी ऐसे बैठे है जैसे उनका उठने का कोई इरादा नही है ।
इस सत्याग्रह में न केवल बुजुर्ग ,नौजवान एवम महिलाओ की शिरकत है बल्कि बच्चों की तादाद भी कम न है । पूरे के पूरे परिवार इसमे शामिल है और यहां तक की नवविवाहिता वधुएं भी जिनकी पहचान शादी के मौके पर हाथ मे पहने चूड़े से सहज ही हो जाती है । राशन इतना है कि महीनों खत्म न हो जबकि हरियाणा के किसान दूध ,दही , लस्सी व सब्ज़ियां इतनी भेज रहे है कि बरसों तक पहले रखा ही समान कम न हो । यह धरना किसी भी मेले से कम नही है ।
हर कोई बाबा गुरु नानक देव जी महाराज के उन शब्दों को साकार करना चाहता है " कीरत कर ,नाम जपो , वण्ड छको" मेहनत करो ,नाम जपो और बांट कर खाओ । स्वयं बाबा नानक ने अपने देश-विदेश की धर्म प्रचार (उदासी) के बाद करतारपुर में लगभग 13 वर्षो तक खेती की तथा यहीं उनका महाप्रयाण हुआ । आंदोलनकारी भी संगत और पंगत ( सत्संग और पंक्तिबद्ध होकर सामूहिक भोजन) की पूर्णतया पालन कर रहे है ।
गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के शब्द " सूरा सो पहचनिबे जो लड़े दीन के हेत ,पुर्जा -२ कट मरे पर कभी ना छाड़ै खेत" । आज पूरे आंदोलनकारी इन आदेश शब्दो से प्रेरित है ।
पंजाब वह प्रान्त है जहां के किसानों ने सन 1907 में स0 भगतसिंह के चाचा स0 अजीत सिंह के अगुवाई में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की शुरुआत की थी । वह पंजाब ही था जहां से प्रेरित होकर मोहन दास करमचंद गांधी , महात्मा बने ।
किसान आंदोलन ने भारत की राष्ट्रीय आज़ादी के आंदोलन का भी सदा नेतृत्व किया है । बारदौली (गुजरात) किसान आंदोलन जिसने स0 पटेल का परिचय दिया और चंपारण का आंदोलन जहाँ महात्मा गांधी ने अपने सत्य के प्रयोग का पहली बार परीक्षण किया ।
यह आंदोलन मात्र अनाज की कीमत एम एस पी को स्थिर करने की मांग के निमित नही है । यह है उन तीन काले कानूनों की वापिसी का सत्याग्रह, जो पूरी कृषि व्यवस्था को कथित उच्च घरानों को समर्पण करना चाहता है । किसान इसे अपने जीवन- मरण का सवाल बनाये हुए है । इस संघर्ष क्षेत्र में भी पूरे देश के किसान संगठनों के नुमाइंदे मौजूद है । यदि आवा- जाही पर बलात रोक न हो तो इतनी संख्या में लोग आएंगे जिनकी गिनती करना मुश्किल होगा ।
ऐसा भी नही है कि सिर्फ किसान ही यहाँ है । उनके अतिरिक्त हर वर्ग ,व्यवसाय एवम क्षेत्र से लोग इसमे शामिल है । आज ही दिल्ली के वकीलों , ट्रांसपोर्टर्स , ट्रेडर्स ,स्वास्थ्य कर्मियों , कर्मचारियों एवम महिला संगठनों के जत्थे भारी तादाद में यहाँ आये थे ।
ध्यान रहे कि इस आंदोलन की नियति सिर्फ जीत ही है । हारने और खोने के लिए तो इनके पास गुलामी की जंजीरे ही है ।
स्वामी दयानंद का कथन कि किसान राजाओं का भी राजा है और रहबरे आज़म चौ0 छोटू राम का संदेश " ए भोले किसान , बात तू मेरी दो मान । एक बोलना सीख और दूसरे दुश्मन की पहचान ।
राम मोहन राय
( सिंघु- कुंडली बार्डर , दिल्ली)
07.12.2020
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