किसान आंदोलन(आग से न खेले)

 *आग का खेल न खेलें*


            बेशक किसान को इससे भी ज्यादा ठंड में अपने खेत मे काम करने का अनुभव है जितना कि वह दिल्ली बॉर्डर पर बैठ कर आंदोलन कर रहा है परन्तु इसे हलके में लेना न सिर्फ नासमझी है वहीं राष्ट्रीय हित मे भी नही है ।

         हम सब जानते है कि दिल्ली की सीमा पर बैठे अधिकांश किसान आंदोलनकारी पंजाब से है । यह धरती न केवल कृषि के क्षेत्र में उपजाऊ है ,और यहाँ के किसान एक से एक बेहतर उत्पाद देते है पर साथ -२ यह धरती वीर प्रसूता भी है । इस  धरती में ही जहाँ सूफी संतों का सत्य-प्रेम-करुणा का संदेश है वहीं शहादत का भी अद्भुत जज़्बा है जिसके अद्भुत समन्वय को समझना आवश्यक है ।

       भारत विभाजन के समय मुख्य बटवारा तो पंजाब का ही था ।  भारत की सीमा के साथ सटे इस सूबे के भी तीन हिस्से बने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश । पर बटवारे के बाद भी इसके विकास की गति में कोई कमी नही आई ।

    वर्तमान पंजाब की सीमाएं एक तरफ पाकिस्तान के पंजाब से है तथा दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर से । 

     एक लंबे अरसे तक पंजाब ने खून-खराबे का दौर भी देखा । कभी अति वामपंथी आंदोलन का तो कभी सिख मिलिटेंसी का । इन दोनों समय मे हजारों लोग या तो मारे गए अथवा शहीद हुए ।

अति वामपंथी आंदोलन को बहुत ही सुनियोजित ढंग से समाप्त किया गया, जबकि वह कानून व्यवस्था का प्रश्न न  होकर असमानता,भेदभाव एवं शोषण के विरुद्ध लड़ाई थी और इससे वैचारिक ढंग से ही लड़ा जाना चाहिए था । इस आंदोलन के अंत ने ही पंजाब में मिलिटेंसी को जन्म दिया। जिसका अंत ब्लू स्टार ऑपरेशन तथा सीधी कार्यवाही के द्वारा किया गया । पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह की नृशंस हत्या के बाद तो पूरे पूरे देश के अनेक हिस्सों में चुन-चुन  कर मारकाट हुई। बेशक आज पंजाब में शांति है ,पर इसका कतई यह अर्थ नहीं  लेना चाहिए कि वहां पूर्ण रूपेण मिलिटेंसी एवं उसकी विचारधारा का अंत हो गया। इस  कोरोना महामारी के दौर के दौरान पूरी दुनिया इस आपदा से युद्धस्तर पर पर लड़ रही है। भारत और पाकिस्तान भी इसके अपवाद नहीं है। आज सीमाओं पर शांति है, पर इसका मायना क्या यह है कि यह अमन आपसी रिश्तो को मजबूत बनाने के लिए है? स्पष्ट है कि पाकिस्तान, चीन और अन्य भारत विरोधी पड़ोसी देश इस ताक में है कि कैसे भारत को कमजोर बनाया जाए।

            पंजाब के साथ लगते प्रांत जम्मू-कश्मीर जिसकी सीमाएं भारत ,चीन और अफगानिस्तान को छूती हैं, उसकी स्थिति भी अलग नहीं है। धारा 370 खत्म होने तथा जम्मू- कश्मीर को तीन भागों में बांटने से बेशक विरोध प्रकट रूप में नहीं है, परंतु क्या यह शांत हो गया है अथवा अंदर ही अंदर सुलग रहा है,यह समय बताएगा। कहने का मतलब यह है कि भारत को न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करनी है, अपितु सीमावर्ती प्रांतों में भी शांति बनाने का काम करना है।

        किसान आंदोलन जोकि विशुद्ध रूप से केंद्रीय सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध की उपज थी, को सरकार के अड़ियल रवैये ने एक विकराल रूप दे दिया है। इसे न केवल अलगाववादी तत्व अपितु अन्य राजनीतिक शक्तियां भी उद्वेलित करेंगी। पर इसमें किसकी गलती है?

        हर राजनीतिक पार्टी का अपना-अपना न केवल किसान संघ है, अपितु राजनीतिक मोर्चा भी है। जिसके माध्यम से वे दल अपनी राजनीति करते हैं। ऐसे में यह कहना कि फलां पार्टी राजनीति कर रही है, बिल्कुल हास्यास्पद है। राजनीतिक दल यदि राजनीति नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?

        हमारी चिंता आज आंदोलन नहीं है। भारतीय संविधान में जनता को विरोध के माध्यम से अपनी बात कहने का संवैधानिक अधिकार दिया है। हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी इसका समर्थन किया है। चिंता इस बात की है कि सत्ताधारी दल इन तमाम प्रश्नों को नजरअंदाज कर अड़ियल रुख अपना रहा है, जो कि कभी भी भारतीय संप्रभुता एवं अखंडता को नुकसान पहुंचा सकता है।    

        कुछ लोगों का कहना है कि विभाजन की यह नीति सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाती है । सरकार का यदि मुस्लिम समुदाय विरोध करता है तो उसके पक्ष में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होता है और इसी प्रकार यदि सिख समुदाय भी सरकार का विरोध करेगा तो उसे बहुसंख्यक समुदाय का समर्थन मिलेगा। पर वे यह भी मानते हैं कि पंजाब में तो सत्ताधारी पार्टी का वर्चस्व नगण्य ही है। यहां उसे लाभ की राजनीति नहीं करनी, पर यहां की हानि उसे अन्य स्थानों पर लाभ देगी। 

            इन हालात में देश भक्त लोगों की चिंता इस लाभ- हानि, तोड़ने और राज करो अथवा किन्हीं भी ध्रुवीकरण एवं तुष्टीकरण से अलग है। वे समझते हैं कि देश में सांप्रदायिक सद्भाव एवं एकता नहीं रहेगी तो यह देश जिसको बचाने  में हजार- हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी है, वह समाप्त हो जाएगा।   

       आग सिर्फ पानी से ही बुझ सकती है। आग में घी  डालने से यह और तेज होगी। इसलिए अच्छा है कि  आग का  खेल न खेला जाए।

राम मोहन राय

(नित्यनूतन वार्ता)

19.12.2020


Comments

  1. सामयिक और प्रसांगिक लेख। शुक्रिया।

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  2. आपकी सोच दूरगामी है, मान्यवर ।

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