आमार बांलार झुली ( Amar Banlar Jhuli)
1. नाम की महत्ता
मेरा नाम राम मोहन राय अकस्मात ही नहीं रखा गया था । मेरी माता श्रीमती सीता रानी तथा पिता श्री सीताराम सैनी दोनों ही परिपक्व देशभक्त तथा सामाजिक सुधार आंदोलन से जुड़े थे । वे भारतीय नवजागरण के पुरोधा ज्योतिबा फुले ,उनकी पत्नी सावित्री फुले ,राजा राममोहन राय तथा महर्षि दयानंद के जीवन, व्यक्तित्व तथा विचारों से प्रभावित थे ,इसलिए उन्होंने अपने जीवन को भी उन्हीं के मूल्यों व सिद्धांतो पर चलने का हर दम प्रयास किया ।मेरे पिता ज्योतिष विज्ञान के भी माहिर थे जबकि वे यह भी मानते थे कि फलित ज्योतिष कुछ नहीं अपितु एक मनोवैज्ञानिक क्रिया है ।जिसे कोई भी व्यक्ति सामान्य ज्ञान के आधार पर अपनी विशेष बुद्धि से निरूपित करता है । मेरा नाम 'राजा राममोहन राय ' रखा गया । जब मेरा जन्म हुआ तो मेरे पिता नगर पालिका ,पानीपत में चुंगी अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे । शहर छोटा था तथा कार्यालय भी उसी के अनुरूप ही ।मेरा जन्म हुआ तो सेवक ने पिताजी को सूचना दी कि बेटा हुआ है तो पिता ने तुरंत नगर पालिका में जन्म मृत्यु - पंजीकरण रजिस्टर में उसका इंद्राज करवाया और पूरा नाम' राजा राममोहन राय' दर्ज करवाया । कोई भी ऐसे नाम नहीं दर्ज करवा पाता था, क्योंकि नाम तो नामकरण संस्कार के बाद ही रखा जाता था , लोग तभी नाम लिखवाते थे । इतने तो रजिस्टर में बेटा अथवा बेटी ही लिखते थे । जब मैं होश में आने लगा तो मेरे पिता नाम का अर्थ बताते थे और कहते कि यह नाम बंगाल के महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय के नाम पर रखा गया है जिन्होंने सती प्रथा का उन्मूलन करवाने में कानून बनवाया था तथा विधवा विवाह की पैरवी की थी । पिताजी ,राजा राममोहन राय की अनेक कहानियां तथा उनके द्वारा स्थापित समाज के सिद्धांतों , उद्देश्यों तथा नियमों को भी बताते ।इस तरह से मैं मानसिक रुप से राजा राममोहन राय तथा ब्रहमो समाज के प्रति न केवल परिचित रहा अपितु आस्थावान भी बना रहा । हमारे यहां ब्राहमो समाज का कोई आधार नहीं था परंतु मेरी इच्छा रहती कि मैं अपने क्षेत्र में इसके लिए कार्य कर अपने नाम को सार्थक करू । ऐसा तो नहीं हो सका परंतु इसकी पूर्ति आर्य समाज ने की । यद्यपि आर्य समाज और ब्राह्णों समाज बिल्कुल विपरीत आस्थाओं पर थे परंतु एक दूसरे के पूरक के रूप में दिखते थे । मै सदैव राजा राममोहन राय के चित्र के प्रति आस्थावान रहता तथा विद्यार्थी जीवन में बाजार से चित्र लाकर अपने घर पर लाकर लगाया था । राजा राममोहन राय के जीवन चरित्र पर आधारित अनेक पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मिला । जिससे मुझे बंगाल के तत्कालीन परिवेश , संस्कृति व समय काल की जानकारी मिली ।मेरी प्रिय पोशाक धोती कुर्ता ही हुआ करती । मेरी ममेरी बहन सुनीता जब कोलकोता में रहने लगी तो मैं उससे मिलने वहां गया । मैंने कहा कि मुझे बंगाली लोग बहुत पसंद है ,उसने हंसकर मुझसे कहा 'क्या कोई लड़की पसंद आ गई है 'तो मेरा जवाब था कि मैं यहां जन्म लेना चाहता हूं ताकि यहां की संस्कृति कला व जीवन को नजदीक से जान सकूं और ऐसा तभी हो सकता है जब मेरी मां बंगाली हो । मेरे नाम के कारण मुझे सब बंगाली समझते थे तथा मिलते ही पूछते "क्या तुम बंगाली हो "। मेरे मना करने पर कहते फिर ऐसा नाम क्यों ?
मेरा चेहरा मोहरा यानी गोल मुख, गहरी आंखे तथा सामान्य नैन नक्श बंगाली ही थे ,इसीलिए ऐसा समझना स्वाभाविक था । परंतु यह साफ है कि मैं हमेशा बंगाल के जन जीवन से सदा प्रभावित रहा हूं तथा यहां के नायक मेरी प्रेरणा के पुंज रहे है ।
2.अहो भाग्य
प्रभु कृपा से देश -देशांतर में जाने का सुअवसर मिला है । यूरोप , अमेरिका सहित दक्षिण एशिया के अनेक देशों में नई -२ चीजें देखने व सीखने को मिली । मेरे पिता एक साधारण अध्यापक थे जबकि मां एक स्वतन्त्रता सेनानी सामाजिक कार्यकर्ता । दोनो ने ही बहुत सात्विक जीवन जीया । घर की माली स्थिति ऐसी नही थी कि घुमा फिरा जाए परन्तु इसे प्रारब्ध , गुरुजन का आशीर्वाद , अच्छा संग तथा अब अपने बच्चों का ही पराक्रम माना जाए कि घूमने फिरने की सदा मौज रही । पर इस बार की यात्रा जितना कभी भी उत्साही नही रहा क्योकि इस बार की यात्रा मेरे सपनों के प्रदेश -देश ,बंग - भूमि की है । बेशक 8 -10 दिन की यात्रा में हर कुछ देखना सम्भव नही है परंतु मुझे संतोष होगा कि मै ईश्वर चंद्र विद्यासागर , ठाकुर देवेंद्र नाथ , राम कृष्ण परमहंस , स्वामी विवेकानंद की चरण रज को माथे पर रखूंगा । मैं जानता हूं कि बेशक मुझे समझ नही आएगा पर गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर के रबीन्द्र संगीत को सुनूंगा तथा क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की क्रांतिकारी कविताओ के बारे में जान पाऊंगा । क्रांतीकारी अमर वीरांगना सरला देवी , कल्पना दत्त, शहीद जतिन दास , बी के दत्त ,अजय घोष जैसे अगणित वीरो को जिस धरती ने जन्म दिया उसके दर्शन करूँगा । उस भूमि को जहाँ 'वंदे मातरम' 'जय हिंद 'तथा 'लाल सलाम' की गूंज से सारे देश को हिला दिया उसे प्रणाम करूँगा । रास बिहारी बोस ,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस तथा विधान चंद्र राय जैसे तपस्वी लोगों ने पूरे देश को राष्ट्रवाद का संदेश दिया उसे नमन करूँगा । और हाँ जिस धरती ने कानू सान्याल तथा ज्योति बसु जैसे इंक्लाबीओ का परिचय दिया ,वहाँ जाना सचमुच एक गौरवपूर्ण घटना होगी । न केवल कोलकोता अपितु खुलना ,चटगांव ,ढाका और जोरहाट जाना मेरे लिए ऐतिहासिक क्षण होंगे ।
पता नही क्यो लगता है कि मै मूलतः बंगाली हुँ जबकि मेरा जन्म तो ठेठ हरयाणवी परिवार में हुआ है । मेरी गुरु तथा मार्गदर्शक स्व0 निर्मला देशपांडे स्वयं को चीनी मूल की मानती थी जबकि उनका जन्म तो महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के नागपुर ज़िले में अमरावती नगर में हुआ था । संत विनोबा की भूदान यात्रा में वे लगभग 40 हजार किलोमीटर पदयात्रा उन्होंने एक काल्पनिक पात्र 'चिंगलिंग' के रूप में की थी । उन्होंने अपने इस यात्रा वृतांत को "चिंगलिंग" के नाम से एक उपन्यास रूप में प्रकाशित भी किया है । चर्चा के दौरान उन्होंने कई बार कहा कि 'यदि उन्हें चीन के शंघाई शहर में छोड़ दिया जाए तो वे कतई अपरिचित नही होंगी क्योकि वही तो उनका असली शहर है '। मुझे भी बंगाल के बारे में ऐसा ही अहसास होता है कि मै भी बंगाल के किसी सुदूर गाँव का हूं तथा जैसा उतावलापन व मचलना किसी बच्चे को अपनी मां की गोद मे जाने को होता है ,वैसा ही भाव मुझमे भी ' बंगाल' जाने में हो रहा ।
3.हावड़ा -1
रेलवे स्टेशन ,हावड़ा से हम सीधे हनुमान भक्त गेस्ट हाउस ,घुसरी में पहुचाये गए । तैयार हो कर लंच के लिए श्री शंकर कुमार सान्याल की बेटी जिसका मकान गेस्ट हाउस के बिल्कुल सामने ही था वहीं गए । बेटी के पति श्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ,बंगाल क्रिकेट टीम के कैप्टेन रहे है तथा भारतीय क्रिकेट टीम भी खेल चुके है । बहुमुखी प्रतिभा का धनी शुक्ला , एक बहुत ही होनहार युवा है तथा आजकल बंगाल सरकार में खेल राज्य मंत्री के पद पर शोभयमान है । लक्ष्मी रतन शुक्ला ने युवा क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक निशुल्क क्रिकेट अकादेमी बनाई है जिसमे प्रशिक्षण का काम वह खुद करते है । प्रदेश भर के लगभग 800 छात्र -युवा इसमे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है । भोजन के पूरे समय मंत्री महोदय हमारे साथ ही रहे । बंगाल में एक अच्छी चीज देखने को मिली कि मंत्री एवम राजनेता न केवल जनता के बीच रहते है वही किसी भी तामझाम एवम सुरक्षा व्यवस्था से परे है । शायद यह एक ऐसी परम्परा है जिसे वाममोर्चा सरकार के लोगो ने स्थापित किया तथा अभी 5-10 साल तक तोड़ना मुश्किल है ।भोजन के दौरान ही उनसे काफी देर तक पारिवारिक चर्चा होती रही । जिसमे श्रीमती जयवंती श्योकंद , पी मारुति व उनका परिवार , रजनीश एवम जयेश भाई और मैं शामिल रहे । और फिर उन से विदा लेकर महिलाए बाजार की तरफ रवाना हो गयी जबकि हम लोग गंगा दर्शन को ।
4.कोलकोता -1
कलकत्ता में आने का एकमात्र प्रयोजन बेशक हमारे प्रिय बड़े भाई तथा हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शंकर कुमार सान्याल के सुपुत्र के विवाहोत्सव में शामिल होना ही था परंतु हमारे मित्र जयेश भाई पटेल ने इसमें ऐसे रंग भरे कि यात्रा को सुंदरता ही बढ़ा दी । हम ट्रैन से सुबह 11 बजे स्टेशन पर पहुचे ,गेस्ट हाउस ले जाए गए वही जयेश भाई के कमरे में मेरे रुकने का स्थान था । जयेश पटेल मेरे पुराने मित्र है वे प्रसिद्ध रचनात्मक कार्यकर्ता एवम विश्वविख्यात हरिजन सेवक पद्मविभूषण स्व0 श्री ईश्वर भाई पटेल के सुपुत्र है । जयेश अपने पिता के अनुरूप ही सरल ,विनम्र तथा मृदुभाषी है । वर्तमान में वे हरिजन सेवक संघ ,गुजरात तथा साबरमती आश्रम समिति ,अहमदाबाद के अध्यक्ष है । अस्तु , जयेश भाई ने कहा कि समय का सदुपयोग करते है अतः चलो 'मदर टेरेसा होम ' चलते है ।
मदर टेरेसा के घर यानी मिशनरीज ऑफ चैरिटी में जाने की इच्छा बरसो से थी पर यह इतनी सहज पूरी हो जाएगी इसकी कल्पना कदापि नही थी । मै , जयेश भाई , पी मारुति तथा राजघाट समिति के सचिव श्री रजनीश ने एक टैक्सी ली तथा हम पहुँच गए 'जगत मां मदर टेरेसा ' के घर । एक अद्भुत शांति व आध्यात्मिक अनुभूति इस स्थान में प्रवेश करते ही हो रही थी । न कोई सिक्योरिटी और न ही कोई चेकिंग , पर स्थान -२ पर 'सिस्टर्स ' आपकी सहायता तथा मार्गदर्शन के लिए तैनात थी । यद्यपि 'होम' में फोटोग्राफी करने की अनुमति नही फिर भी प्रवेश द्वार के साथ ही 'मदर ' की एक प्रतिमा आशीर्वाद देते हुए की मुद्रा में उनकी की कद काठी के साइज की लगी है जिसके नीचे एक पैड़ी पर बैठ कर आप उनका आशीर्वाद लेते हुए फोटो खिंचवा सकते है । जयेश अपने मे अनेक प्रतिभाओ को सहेजते हुए एक अच्छे फोटोग्राफर भी है , उन्होंने सभी साथियो की 'मां' से आशीर्वाद लेते हुए फोटो ली । इसके बाद हम उस सभागार में पहुचे जहाँ मदर टेरेसा की समाधि है । अदम्य शांति एवम अलौकिक सौम्यता की अनुभूति । वही एक जगह लिखा था 'मौन रहकर प्रार्थना करना प्रभु को सबसे ज्यादा प्रिय है '। इसके साथ ही मदर टेरेसा संग्रहालय है जहाँ उनके जीवन पर्यन्त भर के दुर्लभ चित्रो , पत्रो , उनको मिले सम्मान तथा निजी प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है । सामने ही सीढ़ी चढ़ कर पहली मंजिल पर एक बहुत ही छोटा कोठरी नुमा कमरा है जहाँ 'मदर टेरेसा ' का एक छोटा पलँग ,दो टेबल व चेयर रखी है । एक अत्यंत ही सादगी व किफायती का परिचायक । बाहर निकलने से पहले एक सिस्टर मां की संक्षिप्त जीवनी , पॉकेट चित्र तथा लॉकेट प्रशाद रुप मे सभी को दे रही थी ,जिसे प्राप्त करके हम बाहर आये ।
5.कोलकोता-2
मदर टेरेसा होम से ही हम लोग गंगा नदी में नौका विहार के लिए बाजार लॉन्च पहुचे । अभी लॉन्च आयी नही थी ,इंतज़ार का लाभ उठाया और जयेश भी ने अपनी फोटोग्राफी कला का प्रदर्शन करते हुए हम सभी की विभिन्न मुद्राओं में फोटो ली । लॉन्च आने पर हम लोग उस पर सवार होकर गंगा के विहंगम दृश्य अवलोकन करते रहे । सामने हावड़ा ब्रिज दिख रहा था वही गंगा के बीचों बीच अनेक सजी धजी नौकाएं विहार कर रही थी ।गोमुख से गंगोत्री ,हरिद्वार ,गढ़ मुक्तेश्वर , इलाहाबाद में त्रिवेणी , बनारस में अनेक घाट ,पटना में गंगा दर्शन करने स्नान का सौभाग्य मिला है परंतु इतने बड़े और विस्तृत गंगा के पाट कही देखने को नही मिले जितने हावड़ा में है । इन्ही लांच से हम घुसरी घाट पर आए और बैटरी रिक्शा से हनुमान भक्त मण्डल स्थल पर आगये । जहाँ इतिफाक से हमारे साथ की महिलाए भी शॉपिंग करके वहाँ आ चुकी थी । समय बहुत ही थोड़ा था जबकि दर्शनीय स्थल अनेक । हमारे गाइड जयेश भाई ने भी अगले दिन दोपहर की फ्लाइट से अहमदाबाद लौटना था अतः निश्चय किया कि समय का सदुपयोग करते हुए "बेल्लूर मठ" जो कि राम कृष्ण परमहंस , मां शारदा और स्वामी विवेकानंद की पुण्य भूमि एवम समाधि स्थल है , के दर्शन को निकल पड़े ।
6.हावड़ा-2
बेल्लूर मठ पूरे 6 बजे शाम को दर्शनार्थियो के लिये बन्द हो जाता है और हम भाग- दौड़ में पहुचे साढे पांच बजे । इस आधे घंटे में जितना ज्यादा हो सकता था उतना करना था । हम सीधे पहुचे राम कृष्णपरमहँस के मंदिर में । एक अजब शांति व आध्यात्मिक अनुभूति महसूस हो रही थी । अनेक साधक लोग वहीं बीच मे ध्यान मगन थे पर इसके साथ -२ हमारे जैसे लोग भी ठाकुर की समाधि को नतमस्तक होकर अपनी मूक श्रधांजलि अर्पित कर रहे थे । इस विशाल सभागार में यद्यपि सैंकड़ो श्रद्धालु उपस्थित थे लेकिन मौन इतना था कि किसी एक का भी उपस्थिति का अहसास नही हो रहा था । हम जल्दी से बाहर निकले व कुछ दूरी पर मां शारदा की समाधि स्थल पर पहुचे । मां शारदा , ठाकुर रामकृष्ण की पत्नी ,गुरु और मां । वहाँ भी एक अलग ही रूहानियत का मंजर पसरा था । मैं ,मन्दिरो में चला जरूर जाता हूं परन्तु मूर्ति पूजक कदापि नही । महापुरुषों के पवित्र स्मृति स्थलों पर जाने से अनायास ही उनका स्मरण होता है जो जीवन को प्रेरित करता है फिर ये ऐसे सिद्ध पुरुष थे जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को मानव सेवा के लिये समर्पित किया । इन्हीं की प्रेरणा एवम पुरषार्थ का परिणाम था कि नरेंद्र नाथ का पूरा जीवन ही परिवर्तित हो गया तथा विश्व को एक महान ओजस्वी व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद के रूप में मिला ।जिन्होंने अपने जीवन ,दर्शन तथा विचारों से दुनियां में ऐसी धाक जमायी कि पूरी मानवता उनकी युगों युगों तक उनकी ऋणी रहेगी । अपने गुरु परिवार के निकट ही इस यशस्वी शिष्य की समाधि है जिसके दर्शन कर मन स्वत: ही आंदोलित होता है । उनके विचार आज ज्यादा प्रासंगिक है जिसमे उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया था । एक ऐसा संत जिसने जन्म के आधार पर निर्मित जाति व्यवस्था को ही चुनौती दी हो तथा अस्पृश्यता को भारतीय समाज के लिये कलंक बताया हो । एक ऐसा साधु जिसका मानना हो कि दरिद्र नारायण की सेवा ही नारायण सेवा है और अपनी इसी आस्था पर रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की जो दीन - हीन की सेवा सुषुर्षा का अद्भुत कार्य कर रहा है । गंगा तट पर बसे इस बेल्लूर मठ की प्राकृतिक छटा भी निराली है जो सहज ही हरकिसी को अपनी और आकृर्षित करती है । 24 मिनट में इससे ज्यादा दर्शन ही भी नही सकते थे । वैसे भी एक घटिका के दर्शन -ज्ञान का ही महत्व है । हम भी जल्दी में थे , क्योकि दादा शंकर कुमार सान्याल के बेटे की शादी की रिसेप्शन पार्टी में जाना था ,फिर हम आये भी तो इसी शादी में थे।
7.कोलकोता -3
शादी -विवाह , गम -ख़ुशी के मौके ऐसे होते है जहाँ अनायास ही ऐसे लोगो से मुलाकात हो जाती है जिनसे अक्सर भेंट नही होती । दादा के पुत्र का विवाह समारोह एक बैंक्वेट हॉल में था । सैंकड़ो लोगो ने इस मे भाग लेकर वर -वधु को आशीर्वाद दिया । बांग्लादेश से श्री नब कुमार राहा व उनकी पत्नी श्रीमती तन्द्रा बरुआ ,केरल से प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ राधाकृष्णन , दिल्ली से श्री बी आर कामराह उनके पुत्र हर्ष तथा पुत्रवधु नीलिमा , पूर्व मंत्री श्री मंगत राम सिंघल , श्री लक्ष्मी दास ,श्री रजनीश कुमार ,श्री हरभगवान शर्मा व उनका परिवार श्री श्याम सूरी (आइए एस सेवा निवृत्त) शोभित यूनिवर्सिटी के कुलपति कुँवर शेखर विजेंद्र, तमिलनाडु से पी मारुति उनकी पत्नी श्रीमती सुधा व पुत्री,गुजरात से श्री जयेश पटेल तथा पूर्व सांसद राजू भाई परमार ,महाराष्ट्र के पुणे से विधान परिषद के सदस्य श्री मोहन जोशी, बिहार से पूर्व सांसद व हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री नरेश यादव , ओडिशा से अग्रणी गांधी सेवक श्री आदित्य पटनायक व श्री आर्यभट्ट मोहन्ती ,हरियाणा से श्रीमती जयवंती श्योकंद सहित मै और मेरी पत्नी श्रीमती कृषणा कांता , गांधीवादी श्री चन्दनपाल सहित अनेक लोग थे । यू पी से श्रीमती उर्मिला व कुसुम बहन ट्रैन लेट होने की वजह से देरी से पहुची पर उनकी आमद से सबको प्रसन्नता रही । देखने मे आया बंगाल सरकार के अनेक मंत्री ,विधायक , मेयर व सभासद अनेक छोटे बड़े राजनीतिक नेता वहाँ मौजूद थे । दादा के प्रभाव तथा उनके दामाद का सरकार में मंत्री होने से सभी इसमे शामिल होने के इच्छुक रहते है । मेहमानों की अगुवाई में भी ये दोनो व्यक्ति बहुत ही आदर व विनम्रता से सबकी अगुवाई कर रहे थे । पर हम तो दो ही राजनेताओ से परिचित थे ,एक तो दादा के जंवाई साहब तथा राज्य मंत्री श्री लक्ष्मी रतन शुक्ला से दूसरे हमारे मित्र वर्तमान लोकसभा सदस्य तथा पूर्व मंत्री श्री मोहम्मद सलीम से । इस समारोह में खाने -पीने का बेहतरीन इंतज़ाम था , दोनो तरह के लोगो के लिये यानी शाकाहारी और मांसाहारी । चाट ,पकोड़ो और गोलगप्पों की भी भरमार थी , जी भर के खाओ । बंगाल में मांसाहार एक सामान्य है जबकि मछली तो विशेष । मेरे बेटे उत्कर्ष ने मुझे कहा था कि पापा मछली खाना तो आप भी शुरू कर देना । इस पार्टी में एक डिश मुँह में डालने पर पता चला अरे यह तो मछली का कुछ बना था इसे मैने तुरन्त थूक दिया । पर मेरी तो तबियत ही मिचलाने लगी । दिल किया कि उल्टी कर दू । मन मे अनेकानेक ख्याल । मां से वायदा किया था कि मांसाहार नही करूँगा । बेशक मां अब ज़िंदा नही है पर मन पर बोझ रहा । मेरी स्थिति देख कर जयेश भाई ने मुझे सम्भाला और कहा " तुम से भूल वश ऐसा हुआ है ,इसपर पश्चाताप न करे ।" पर मन उद्विग्न तो रहा ही ।
मोहम्मद सलीम के आते ही शादी का माहौल ही बदल गया । वे हर मेहमान के पास जाकर उसका नाम लेकर उसका हाल चाल पूछ रहे थे ,फिर पूछे भी क्यो नही वे हर उस व्यक्ति को जानते है जी निर्मला देशपांडे दीदी के साथ जुड़ा है । उनके कहने पर ही 'दीदी की टीम " ने एक सामूहिक उनके साथ खिंचवाई । वे सब से उनके परिवार व कार्यो की जानकारी ले रहे थे और दीदी के काफी कामो में निष्क्रियता होने पर चिंता भी ।
देर रात हो चुकी थी पर मेहमान रुकने का नाम नही ले रहे थे । हम भी थके थे इसलिये बैटरी रिक्शा ली और हम अपने 'डेरा' हनुमान भक्त गेस्ट हाउस में वापिस सोने को आ गए । हमारे लीडर जयेश भाई का कहना था कि सुबह जल्दी उठ कर ' दक्षिणेश्वर मंदिर ' दर्शन करने जाना है और वही चल कर हम गंगा पर स्व0 निर्मला दीदी की पुण्यतिथि पर श्रधांजलि देंगे ।
8.मई दिवस
यकम मई ,अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस जिस दिन अमेरिका के शिकागों शहर में आज ही के दिन समय के घंटे नियत करने के लिये सन 1853 में एक विशाल मजदूर आंदोलन खड़ा हुआ । निर्दयी सत्ता एवम वर्ग उससे हिल गया । मजदूरों के जुलूस पर अन्धधुन्ध गोली बारी हुई परिणाम 8 आंदोलनकारी मजदूर शहीद हुए व सेंकडो खून से लथपथ हुए । उन्ही क्रांतिवीरों के लाल लहू से लाल झंडा सिंचित हुआ । उसी की प्रेरणा थी कि पेरिस कम्यून वजूद में आया । इसीकी असफलता ने प्रसिद्ध दार्शनिक ,चिंतक व वैज्ञानिक कार्ल मार्क्स तथा फ्रेडरिक एंगल्स ने 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र ' की रचना कर 'दास कैपिटल' के जरिये वैज्ञानिक समाजवाद का सिद्धांत दिया । " दुनियां भर के मेहनतकशो -एक हो जाओ " तथा सर्वहारा की तानाशाही ने पूरी दुनियां में एक नए युग की शुरूआत की । यह दिन उन तमाम शहीदों को सलाम का दिन है जिन्होंने एक नई दुनियां बनाने के लिये अपने प्राण न्योछावर किये और उनको भी जो इस दुनियां को बेहतर बनाने के लिये आज भी क्रियाशील है । हमारे इस भारत देश मे महात्मा गांधी -विनोबा ने बेशक सत्य -अहिंसा-करुणा का रास्ता अख्तियार किया परन्तु विचार 'शांति पूर्ण अहिंसात्मक ढंग से समाज परिवर्तन का ही था । बापू के शिष्य विनोबा ने कार्ल मार्क्स को "महृषि कार्ल मार्क्स " कहा था वही उनकी मानस पुत्री निर्मला देशपांडे उन्हें ' महामुनि मार्क्स ' ही सम्बोधित करती थी । इसे किसी पवित्र दिवस एवम पूण्य तिथि नही समझे परन्तु इसे महज इतिफाक ही जाने कि इस दिन ही एक मई ,2008 को हमारी प्रिय दीदी निर्मला देशपांडे जी का देहांत हुआ था । मई दिवस एक बड़ा त्योहार है ,इसे हम अपने जज्बे से मनाएंगे परन्तु दीदी के अनुयायियों तथा शिष्यो के लिये यह उनका स्मृति दिवस भी है । इसलिये जयेश भाई का यह आग्रह था कि जब हम दक्षिणेश्वर मंदिर जाए तो वही गंगा में स्व0 दीदी को जलांजलि भी दे । इसीलिये प्रातः ही हम मन्दिर की तरफ प्रस्थान कर गए । यह मंदिर वैसे तो हिन्दू पुरातन देवी मां काली का मंदिर है जिसे राम कृष्णपरमहँस की प्रेरणा से माता रूपमती ने निर्मित करवाया था । इसी मंदिर में रामकृष्ण परमहंस अपनी इष्ट देवी की पूजा अर्चना में लीन रहते थे और ऐसा मानना है कि यहीं उन्हें मां काली का साक्षात साक्षात्कार हुआ था । मन्दिर में ही ठाकुर की बैठक है जहाँ वे घण्टो समाधिस्थ रह कर भक्ति में लीन रहते थे । यही एक भवन की छत पर खड़े होकर वे अपने होनहार विरले शिष्य नरेंद्र नाथ की प्रतीक्षा किया करते और उनके आने पर उनके मुख से बरबस निकला था " अरे नरेंद्र तू कहाँ था ,जल्दी आ , तुझे तो लोककल्याण करना है "। यही उनकी पहली भेंट नरेंद्र नाथ से हुई फिर इसी नरेंद्र ने स्वामी विवेकानंद बन कर सम्पूर्ण मानवजाति को आंदोलित किया । इसी मंदिर में मां काली का भव्य मंदिर है जहाँ घण्टो लाइन में खड़ा हो कर दर्शन लाभ मिलता है । धार्मिक लाभ , पूण्य तथा आनंद तो श्रद्धालुओं को मिलेगा ही परन्तु इसका ऐतिहासिक महत्व भी किसी भी तरह से कम न है । मंदिर से होकर हम गंगा घाट पर आए तथा वहाँ स्व0 दीदी के चित्र पर जलांजलि एवम श्रधांजलि देकर वापस लौटे । जयेश भाई एवम जयवंती श्योकंद दीदी ने फ्लाइट पकड़नी थी जिन्हें हम नेता जी सुभाषचंद्र बसु एयरपोर्ट पर विदा करके हम अपने गेस्ट हाउस की तरफ रवाना हुए ।
एयरपोर्ट से लौटते हुए भूख पूरे जोरो से थी । सुबह से नाशता जो नही किया था । मन्दिर में सोचा रास्ते मे करेंगे ,रास्ते पर कोई दुकान नही मिली फिर इरादा।किया एयरपोर्ट पर करेंगे और वहाँ से जयेश भाई और जयवंती श्योकंद को ज्योही विदा किया तो गेस्ट हाउस पर चलने की जल्दी रही । अब रास्ते मे एक जगह एक ढाबा देखा ,वहीँ कार रोक कर नाश्ते पर टूट पड़े । ऐसा मानना है कि कोलकाता में किसी के पास यदि 50 ₹ हो टी वह भरपेट नाशता भी करेगा ,लंच भी , शाम को चाय समोसा -पकोड़ा भी और डिनर भी । ऐसा सुना ही था पर पाया यही हमने एक -२ प्लेट पूरी सब्जी ली । तीन पूरी चने की दाल मात्र 10 ₹ में और एक प्याली चाय सिर्फ 5₹ में ।
9.हावड़ा-3
गेस्ट हाउस आने पर हम अपने सामान की पैकिंग में लग गए । का0 मोहम्मद सलीम तथा जिस होटल में उन्होंने हमारा इंतज़ाम किया था ,बार -२ फोन आ रहा था कि हम अब तक पहुचे क्यो नही इधर दादा श्री शंकर सान्याल का भी आग्रह था कि हम उनसे उनके घर मिल कर व भोजन कर के जाए । बेशक हम नाशता के रूप में पुरीओ को खा चुके थे पर भोजन को मना न करने का नियम तो हमने दीदी निर्मला जी से सीखा था । वे कहीं भी भोजन करती फिर 10 मिंट बाद अगली जगह जब वे पहुचती तो कोई खाने को पूछता तो वे भी वे मना नही करती और यदि तीसरी जगह भी मनुहार होता तो भी उनकी मनाही नही होती । मेरे देखने पर वे समझ जाती और बोलती " वो ब्राह्मण क्या जो भोजन को मना कर दे हमने तो इसी भोजन के फेर में दिल्ली पहुचने में देरी कर दी थी जिसकी वजह से हिंदुस्तान का बादशाहत हार गए थे ।" उनका इशारा सन 1857 में पेशवाई सेना की ब्रह्म भोज के कारण देरी से था ,जिसकी वजह से दिल्ली हारी गयी । दिल्ली का तो पता इतिहास जाने पर कई बार इस भोजन के चक्कर मे जोधपुर हाउस, दिल्ली से उदयपुर जाने वाली मेरी बस जरूर छूट गयी थी । पता नही क्यो कुछ भी हो भोजन के लालच को मै भी नही छोड़ सकता और इसी स्वाद के फेर में हम पहुँच गए दादा के घर । वहाँ जल्दी जल्दी मिष्टी दोही , रोसोगुल्ला ,सोन्देश और आलू भुजिया खाया और दादा को विदा करके होटल की राह ली । हमारा होटल गोल्डन आफरीन ,कोलकोता के बिल्कुल मध्य पार्क स्ट्रीट पर स्थित था जिसके हर कोई दर्शनीय जगह तो पास थी । हम ने होटल में सामान रखा ,चेक इन की और टैक्सी करके काली मंदिर चल पड़े ।
हां वही काली मंदिर जिसके बारे में कलकत्ता मशहूर है । "काली कलकत्ते वाली ,तेरा वचन न जाए "। वही जहाँ पशु बलि एक आम बात रही , वही मन्दिर । हम होटल से कुल 20 मिनट में मन्दिर पहुच गए । मन्दिर के पंडो ने हमे गाड़ी से उतरते ही घेर लिया । रजनीश भाई तथा मेरी पत्नी तो श्रद्धालु ठहरे उन्होंने उन्हें निश्चित किया तथा अंदर दर्शन को गए । कुल 5 -7 मिनट ही दर्शन में लगे फिर एक टैक्सी पकड़ी और हम आ गए होटल में । टैक्सी ड्राइवर मन्दिर में पंडो की दादागिरी तथा धींगामस्ती पर बताने लगा । उसका कहना था कि दक्षिणेश्वर तथा इस काली मंदिर की व्यवस्था में दिन रात का अंतर है । वहाँ कोई एक बार जाएगा तो बार बार जाना चाहेगा पर यहां आएगा तो कभी नही आना चाहेगा । पर इन मंदिरों में कैसी भी व्यवस्था हो श्रद्धालु हर कीमत पर आना चाहेंगे । हम अपने होटल एक छोटे रास्ते से जाने के रास्ते से आधे समय मे ही पहुँच गए । हमारा होटल गोल्डेन आफरीन बेशक नया था परन्तु उस मे हर प्रकार की सहूलियत थी जिसका हमने भरपूर प्रयोग किया । का0 सलीम बेशक अब उत्तर दनाज़ पुर क्षेत्र से लोकसभा सदस्य है पर एक समय मे वे इस क्षेत्र से विधायक व लोकसभा सदस्य भी रहे है । जिसकिसी को भी पता चलता कि हम उनके मेहमान है वह बहुत ही आदर से हमे पेश आता । मैने भूतपूर्व विधायको व सांसदों के प्रति जनता के व्यवहार को देखा है । लोग ऐसा उनसे व उनके लोगो से वैसा ही घृणिततम व्यवहार करते है जैसा वे अपने निर्वाचित होने पर वे अपने मतदाताओ से करते है परंतु का0 सलीम की स्थिति सर्वथा भिन्न है । उनके क्षेत्र के अनेक लोग पानीपत में रह कर मेहनत मजदूरी करते है ,उनके अधिकांश के बच्चे हमारे हाली स्कूल में पढ़ने के लिये आते है । मैं जब भी का0 सलीम का नाम लेता हूं तो वे मुझे स्वयम के ज्यादा निकट महसूस करते है । यह है असर जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि का ,जो शायद हमारे यहां नही है । ऐसा तो बंगाल में हर वाममोर्चा के निर्वाचित प्रतिनिधियों का रहा होगा और यही वजह थी कि इस राज्य में लगातार 34 वर्षों तक इनकी सरकार रही ।फिर पता नही क्यो हालात बदले यह तो जनता से ही जानना होगा ।
10.थैंक्यू बिमल शर्मा
मेरे मित्र श्री बिमल शर्मा से अंतरंगता तो सोशल मीडिया के कारण ही हुई परन्तु उनका मेरा परिचय स्टूडेंट्स फेडरेशन की वजह से रहा । उनके और मेरे अनेक कॉमन फ्रेंड्स है जिनमे हम दोनों की चर्चा होती रही होगी इसलिये ही हम एक दूसरे के स्वाभाविक मित्र बने । वे एक खुले दिल के इंसान है शायद ऐसे लोगो के बारे में ही ,'हाली पानीपती: ने फरमाया है :
यही है इबादत यही दीनो इमां ,
कि काम आए दुनियां में इंसां के इंसां'
उनसे मेरी पहली रूबरू भेंट मोहाली (पंजाब ) में हुई जब मै और दीपक कथूरिया ,वहाँ शहीद ए आज़म स0 भगत सिंह के छोटे भाई स्व0 स0 कुलबीर सिंह जी के युवा पौत्र स0 अभिजीत सिंह (सुपुत्र )स0 अभे सिंह की एक सड़क हादसे में निधन पर आयोजित भोग पर गए । उस समय न केवल उनसे मुलाकात हुई अपितु काफी चर्चा भी हुई । हमने पाया कि वे एक ऐसे ज़िंदादिल इंसान है जिसपर किसी भी तरह का भरोसा किया जा सकता है । इतना ही नही वे बाद में हमे तथा प्रो0 चमन लाल जी को रेलवे स्टेशन तथा उन्हें घर तक छोड़ने तक आये । इसके बाद से लगातार हम सोशल मीडिया पर ही जुड़े है उनके द्वारा एक व्हाट्सअप ग्रुप 'सद्भावना ग्रुप 'के नाम से है जिससे हम भी जुड़े है । इसके माध्यम से वे सब को लगातार जागतिक वैचारिक मुद्दों से जोड़े रखते है । उन्होंने कई आर्थिक व्यवसायिक उपक्रमो में उच्च पद पर काम किया है तथा अब वे एक 'फ्री लौंसर कंसलटेंट ' है । उनकी पत्नी , केंद्रीय सरकार के किसी विभाग में एक उच्च पद पर कोलकोता में पदस्थ है अतः वे फिलहाल कोलकोता में रहते है । मैने उनसे व्हाट्सएप्प पर ही बताया कि मैं कोलकोता आ रहा हूं तथा उनसे मिलना चाहूंगा । इस पर उनका बहुत ही गर्मजोशी भरा सकारात्मक जवाब पाकर मैं गदगद हो गया । श्री शंकर कुमार सान्याल के पुत्र की शादी से फारिग हो कर मैने ज्यो ही 'होटल गोल्डन आफरीन' में शिफ्ट किया तब मैंने श्री बिमल शर्मा जी को इसकी सूचना दी जिसे पाते ही वे हमसे मिलने आये । होटल के कमरे दो घण्टे तक मैं उनकी वैचारिक कक्षा का विद्यार्थी रहा तथा बंगाल की संस्कृति , लोकव्यवहार , वर्तमान राजनितिक परिदृश्य तथा वर्तमान सन्दर्भो की जानकारी प्राप्त की । शर्मा जी का वही विश्लेषण था जो अगले दो दिन तक कई लोगो से बातचीत कर अलग -२ सन्दर्भो से मैने तस्दीक भी किया । वे इतिहास के एक अच्छे अध्येता भी है । एक पंजाबी व्यक्ति बंगाल के बारे में इतना कुछ जानता हो यह एक ताज्जुब ही था । देर रात को अगले दिन लगभग सुबह 11 बजे मिलने का वायदा के उन्होंने विदा ली ।
जब भी कोई परिचित अथवा अपरिचित हमारे शहर पानीपत में इसे देखने आता और किसी संदर्भवश हमे मिल जाता तो हम हर काम धंधा छोड़ कर उसे यहां के सभी दर्शनीय स्थल बहुत ही जिम्मेवारी से दिखाने की कोशिश करते है । पानीपत की पहली ,दूसरी तथा तीसरी लड़ाई के स्मारक , अन्य ऐतिहासिक स्थल , हज़रत बू अली शाह कलन्दर की दरगाह तथा देवी मंदिर दिखाने में हमारा पूरा दिन ही बिताने में हमारा उत्साह रहता । मेरा साथी दीपक मुझसे पूछता कि हमारे जैसे दीवाने कोई और भी कहीं है । मेरा जवाब यही होता ,अपनी मेहमान नवाजी में कमी न रखो बिना इस तमन्ना से कि कोई और है या नही । पर नही हमसे भी ज्यादा लोगो मे मेहमाननवाजी की दीवानगी है जिसका साक्षात दर्शन प्रमाण हमने श्री बिमल शर्मा में पाया । दि0 2 मई को अपने वायदे के मुताबिक वे हमारे पास अपनी कार लेकर हाज़िर थे । उनके पास पूरे दिन का चार्ट भी था कि कहाँ -२ अपने सीमित समय मे हमने घूमना है और इसी योजना के अनुसार हम सबसे पहले कोलकोता के बिल्कुल मध्य में स्थित 'विक्टोरिया म्यूजियम' पहुचे जिसे तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य की महारानी विक्टोरिया की ताजपोशी की स्मृति में सन 1876 में बनवाया गया था । विशाल क्षेत्रफल में फैले इस स्मारक के चारो और जलाशयों से पटा बगीचा है जिसमे तरह -२ के।फूल अपनी छटा व खुशबू बिखेर रहे है । म्यूजियम में ब्रिटिश पूर्व काल से अब तक की गाथा को चित्रो , मूर्तियों तथा लेखों के माध्यम से दर्शाया गया है । इसकी गुम्बदनुमा इमारत में दीवारों पर भित्तिचित्र भी अति सुंदर है । सन 1857 के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के बाद
जब महारानी विक्टोरिया ने भारत का शासन सीधे तौर पर अपने अंतर्गत ले लिया उसकी सभी घोषणाए इस म्यूजियम में बड़े बड़े अक्षरों में इसमे लगी है बेशक उसका कभी पालन नही हुआ । भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का भी बहुत ही सुंदर चित्रण इसमे दर्शाया गया साथ - २ बंगाल में नवजागरण आंदोलन की भी सुंदर झलक यहाँ अंकित है । भारतीय जनता पर जुल्म करने वाले अनेक लॉर्ड्स और वायसरॉय के बड़े बड़े बुत भी यहाँ सम्मानपूर्वक सजे है । शायद यही है हमारी सुंदरता कि दुश्मन के साथ भी कोई अभद्रता नही । गुरु नानक देव जी महाराज ने शायद इसे ही 'निरवैर' की श्रेणी में रखा होगा ।
पूरा म्यूजियम देखने मे कम से कम तीन घण्टे चाहिए पर हमने तो इसे आधे समय मे ही निबटाया और हम बाहर आये । मय्यूजियम से निकलते ही बाहर मेरे पसंदीदा गोलगप्पे जिसे यहाँ 'फुचके'कहते है का छाबा लगा देखा और चल दिये उसी ओर । वहाँ आठ रुपये की छह गोलगप्पे खाये और फिर सामने ही एक चर्च के दर्शन के लिये बढ़े । ब्रिटिश कालीन यह चर्च वास्तव में सभी केथोलिक गिरिजाघरों का मुख्य केंद्रीय कार्यालय रहा था जहाँ से पूरे देश के लिये चर्च का कार्य निर्देशित होता रहा । कला की दृष्टि से भी यह एक अत्यंत सुंदर भवन निर्माण की श्रेणी में है । थोड़ी देर रूक कर हम कोलकोता के पुराने शहर 'ठाकुर बाड़ी ' की तरफ रवाना हुए । 'ठाकुर बाड़ी ' यानी कवि गुरु रबीन्द्र नाथ टैगोर का घर । हम वहां पहुचे भी पर अफसोस राजकीय छुट्टी होने की वजह से हम वहां नही प्रवेश पा सके । निराशा तो हुई पर आशा यह बनी रही की फिर आएंगे और दर्शन करेंगे । यही से हम 'मोम।म्यूजियम ' की तलाश करते हुए 'नेता जी सुभाष चंद्र बोस' के पैतृक मकान में पहुचे । वही मकान जो देश की आज़ादी के आंदोलन का गवाह रहा । जहां देश के शीर्ष नेता कई बार एकत्रित हो कर देश की जनता को नेतृत्व देते रहे । मकान के बाहर ही नेता जी के पिता का नाम खुदा ' जे सी बोस ' नाम का शिलापट्ट है । घुसते ही नेता जी की पुराने मॉडल की कार खड़ी है । इस घर को अब एक म्यूजियम के रूप में रूपातंरण कर दिया है जिसमे नेता जी तथा उनके भाई शिशिर बिहारी बोस के कमरों तथा सामान को बहुत ही व्यवस्थित ढंग से सँजोया गया है ।
शाम के पांच बजने को थे मौसम भी बदलने लगा था हमने मय्यूजियम के सामने ही एक खोखे से पांच रुपये की चाय , तीन रुपये की कचोड़ी खाई और। चल दिये होटल की ओर । यह श्री बिमल शर्मा का ही पराक्रम था कि हम आज की यात्रा में कोलकोता के ऐतिहासिक स्थानों को देख सके और वह भी एक हिस्टोरियन गाइड के साथ । मैने दीपक को तुरंत फोन करके कहा कि भाई जो हम पानीपत में करते है उसको हर शहर में हम से बेहतर करने वाले लोग कम नही है ।
धन्यवाद ,श्री बिमल शर्मा जी !
आपकी वैचारिक सूझबूझ और मेहमाननवाजी को सलाम ।
11.धन्यवाद ममता
श्रीमती ममता दास हमारी सोशल मीडिया पर ही बनी मित्र है । जिन्होंने मुझे बंगाली समझ कर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी । इन्होंने मेरा चित्र देख कर भी अंदाजा लगाया कि मैं सम्भवतः बंगाली ही हूं । उनके कुल 68 फेसबुक फ्रेंड्स है उनमें एक मैं भी हूं । वह एक बेहद चुलबुली और प्यारी लड़की है । उसकी मासूमियत भरी बातें अपनी और आकर्षित करती है । उनकी बात का लहजा देख कर कोई भी अन्यथा ले जाएगा परन्तु उनका अंदाज ही ऐसा है ,बिल्कुल बच्चों जैसा । वह हमारे कोलकोता आगमन को बहुत ही उत्सुकता से देख रही थी । मार्च में ही पूछने लगी थी कि हम कब उनके शहर पहुंच रहे है जब पहुचे तो भी हमारी इतनी फिक्र कर रही थी जैसे हमारी मां तो वह ही है ।शाकाहारी खाना मिला या नही ,कुछ खाया या नही ,ठहरे कहाँ हो कोई दिक्कत तो नही आदि आदि । यह अच्छा भी लगता था और डर भी कही मेरी पत्नी कुछ अन्यथा न सोचने लगे परन्तु उनका बेबाक तथा निस्वार्थ प्रेम कही भी छिपा न था । आखिरकार वह अपने पति के साथ हमे 2 मई की शाम को शियालदाह से दो घण्टे का सफर तय करके आयी । उनका पति भी उनकी ही तरह एक बेहद विनम्र तथा भला व्यक्ति । मेरी पत्नी तो उनसे इतनी प्रभावित हुई मानो वे हमारे अत्यंत निकटस्थ एवम विश्वाश पात्र है ।दोनो हमारे साथ लगभग तीन घण्टे रहे , हमारे न -न करते, एक रेस्टोरेंट में डिनर करवाने भी ले कर गए और अपनी न परवाह करते हुए रात साढ़े दस बजे होटल में ऐसे छोड़ कर गए जैसे बड़े अपने अनजान छोटे बच्चों को छोड़ कर जाते हो । हम ममता और उनके पति मनोरंजन की विनम्रता के कायल है । अगली बार कोलकोता आये तो उनके घर ही रुकेंगे ,ऐसा वायदा लेकर ही उन्होंने हमें छोड़ा । आभार ममता व मनोरंजन ।
हमारा आशीर्वाद व स्नेह हमेशा आपके साथ रहेगा ।
12.दोस्त , भाई और साथी मो0 सलीम !
अपने 3 दिन के प्रवास के दौरान हम लोकसभा के वर्तमान सदस्य तथा बंगाल सरकार में पूर्व मंत्री का0 मोहम्मद सलीम के व्यक्तिगत पारिवारिक मेहमान रहे । उनकी पत्नी कोलकोता के ही एक अस्पताल में डॉक्टर है तथा दोनों पुत्र रोजगार एवम शिक्षा के लिये देश मे ही बाहर रहते है । हमारे कोलकोता पहुचने से यहां से रवाना होने तक उन्होंने क्षण -प्रतिक्षण हमारा हर प्रकार से ख्याल रखा । मई दिवस के अवसर पर उनकी अनेक व्यस्तताओं के बीच वे हमेशा हमारे बीच बने रहे । वे बंगाल के ही नही अपितु पूरे देश के एक लब्धप्रतिष्ठित राज नेता है जो जन -२ में अत्यंत लोकप्रिय है। टीवी चैनल्स पर अपनी पार्टी सीपीएम का प्रतिनिधित्व बहुत ही सौम्यता एवम विद्वत्ता से तार्किक ढंग से करते है जिसका कोई सानी नही है । हमारे कोलकोता से ढाका को चलने से पहले वे हमें विदा करने होटल गोल्डेन आफरीन आये । हम पहले से ही इंतज़ार में थे । अपनी गाड़ी से उतरे और एक सामान्य व्यक्ति की तरह उन्होंने प्रवेश किया । पर उन्हें देखते ही वहाँ उपस्थित लोगों में उनके आने के मकसद के बारे में उत्सुकता थी । हमारे साथ स्वागत कक्ष में ही काफी देर तक बातचीत कर स्व0 निर्मला देशपांडे दीदी के कार्यो के बारे में स्मरण करते रहे । घर -परिवार के जानकारी के साथ साथ अन्य सामान्य मसलो पर चर्चा की और फिर हमारी सफल एवम सुखद यात्रा की शुभकामनाए देकर हमसे विदा ली । हम भी तुरन्त एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए । कुछ लोगो ने हमेशा सवाल किया "आप इनको कैसे जानते है ।" तब तो साधारण सा जवाब था कि मेरे बहुत पुराने मित्र है ।
बाद में गाड़ी में एयरपोर्ट तक के 40 मिनट के सफर में इस सवाल का जवाब ढूंढता रहा कि कौन सा वह दिन था जब दोस्ती की शुरुआत हुई थी । पूरी तरह मौका तो नही कहा जा सकता परन्तु वर्ष 1997 में निर्मला दीदी के घर उनसे मेरा परिचय, दीदी ने करवाया था । फिर तो उनसे मेरे व्यक्तिगत घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध रहे है । उसी वर्ष में जब वे राज्यसभा के सदस्य थे तथा जनवादी नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे उस समय वे नौजवानों के वैचारिक स्कूल में सोनीपत आये थे और सूचना मिलने पर मै उनसे भेंट करने कैम्प में गया था । उसी वर्ष पानीपत में नौजवान सभा का प्रांतीय सम्मेलन हुआ था वे सम्मेलन के मुख्यवक्ता तथा मुख्यातिथि थे तथा मुझे राज्य के साथियो ने स्वागताध्यक्ष बनाया था । उस समय भी हिन्दू -मुसलमान का झगड़ा हमारे झगड़ालू मित्र जारी किए हुए थे । का0 सलीम ने खुली सभा मे अपने सम्बोधन में अपने और मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा था " मोहम्मद भी यहाँ है और राम भी ,और ये दोनो दोस्त है फिर इनके लोगो को झगड़ा करवाने वाले लोग कौन है ?" । सम्मेलन के दौरान ही वे हमारे आवास पर डिनर पर आए । सलीम मेरे लिये सदा ही सहज रहे । उनके मेरे साथ पारिवारिक रिश्ते भी रहे । मुझे याद है कि एक बार अपने परिवार सहित शिमला से लौटते हमारे घर अचानक ही आ पहुचे थे ।
पानीपत में ही जब हमने राष्ट्रीय एकता शिविर का आयोजन वर्ष 1998 में किया तब भी वे दीदी के साथ पधारे थे । अपनी तकरीर में हाली को उदधृत करते हुए उन्ही के एक शेर को पढ़ा था ," यही है इबादत ,यही दिनो इमां कि काम आए दुनियां में इंसां के इंसां ।"
इसी वर्ष में दीदी निर्मला देशपांडे जी के नेतृत्व में मो0 सलीम ,संजय गर्ग ,पवन थापर सहित 22 लोग और मै कराची (पाकिस्तान) एक शांति सम्मेलन में भाग लेने के लिये गए । वह ही एक ऐसा मुकाम था जब हम लगभग पांच दिन तक साथ रहे और इस दौरान दोस्ताना ताल्लुक और अधिक मजबूत हुए । अन्य सभी लोग जबकि होटल में ठहरे थे हम तीन- सलीम , संजय और मैं , फरहत अली पानीपती के घर । हम सब ने एक हिन्दू मोहल्ले में जाकर होली के त्योहार के अवसर पर होली भी मनाई थी । हमारे लिये अजूबा था कि हमारा मुस्लिम कम्युनिस्ट दोस्त सलीम , इस्लामिक पाकिस्तान में हिन्दू मोहल्ले में हमारे साथ ऐसे होली खेल रहा था ,मानो हम भारत मे ही किसी स्थान पर हो ।
का0 सलीम उन अग्रणी साथियो में शुमार है जिनके प्रयासो से 'हाली पानीपती ट्रस्ट ' की स्थापना हुई । वे ट्रस्ट के संस्थापक ट्रस्टियों में से एक है । पानीपत में जब भी' हाली मेला का आयोजन हुआ उसमे वे जरुर पधारे । हमारे लिये का0 सलीम ही कोलकाता का प्रयोजन है । हम उनका आतिथ्य तथा मैत्री सानिध्य पाकर गदगद है ।
आभार का0 मोहम्मद सलीम ।
13.बांग्लादेश में साम्प्रदायिक वातावरण
बांगलादेश की पांच दिवसीय यात्रा के दौरान कुछ अन्य बातों के अतिरिक्त एक बात हमेशा कौंधती रही कि इस सेक्युलर देश मे सम्प्रदायीक सद्भाव एवम समरसता की क्या स्थिति है । बांग्लादेश की लगभग 14 करोड़ जनसंख्या में लगभग डेढ़ करोड़ जनसंख्या हिन्दुओ की है और इसके बाद बोद्ध ,सिख एवम क्रिस्तान आबादी है । दुनिया मे हिन्दू आबादी को संख्या की दृष्टि से जाने तो यह दुनियां का भारत ,नेपाल के बाद तीसरा देश है और यदि प्रतिशत के हिसाब से जाने तो यह पांचवा देश है । सन 1905 का बंग -भंग का दंश अंग्रजो की ' तोड़ो और राज करो ' नीति ने बंगाल की इस धरती को दिया था । जिसका विरोध बंगाल के समस्त तत्कालीन नागरिको ने मिल कर किया था । खुद कविगुरु रबीन्द्र नाथ ठाकुर ,सामान्य जनता के साथ अपने गीत एवम कविताओ का पाठ करते सड़को पर उतरे थे ,परिणाम स्वरूप अंग्रेज शासन को अपना यह आदेश वापिस लेना पड़ा था परन्तु विभाजन का बीज तो बोया जा चुका था जिसकी परिणीति सन 1947 में भारत विभाजन के रूप में हुई । पाकिस्तान के संस्थापक मो0 अली जिन्ना ने मजहब के नाम पर दो राष्ट्र की मांग की जिसे हिन्दू महासभा के अनेक नेता पहले ही कर चुके थे । सम्प्रदाय के नाम पर भारत का विभाजन ,राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भरसक विरोध के बावजूद हुआ । पाकिस्तान का विश्व मान चित्र पर आना एक अजीब ही शक्ल लिए था जिसका एक तरफ हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान कहलवाया तथा इसके सैकड़ो मील दूर का हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान का नाम दिया गया । एक ऐसा देश जिसके दो हिस्सों की सीमाएं मिलती ही नही थी पर जिसे मजहबी आधार पर एक कहा गया था । इतिहास ने यहां फिर साबित किया कि धर्म को राजनीति से घाल मेल एक निरर्थक एवम बकवास कवायद है जो जोड़ने की नही अपितु तोड़ने का काम करती है। कायदे आज़म जिन्ना एक मजहब ,एक जुबान और एक निशान पर अडिग थे जो पाकिस्तान के ही दूसरे हिस्से में रहने वाले मुसलमानों को स्वीकार नही थी और यही से दो राष्ट्र सिद्धान्त की असफलता की कहानी शुरू होती है और जिसकी परिणीति हुई भाषा के नाम पर बने बांग्लादेश का अभ्युदय ।
भारत विभाजन के बाद निर्दयी पाकिस्तानी सेना ने धर्म के नाम पर वर्तमान बांग्लादेश में दूसरे धर्म के अनुयायिओं पर जुल्म तश्दूद में कोई कसर नही छोड़ी । कुछ पलायन भी हुआ परन्तु वह अल्पसंख्यक आबादी जिन्होंने सन 1947 में ही तहिय्या कर लिया था कि किसी भी कीमत पर अपनी मातृभूमि को नही छोड़ेंगे ,विवश नही कर सके । ध्यान रहे सन 1947 का विभाजन का मंजर बहुत ही यातना पूर्ण था । पंजाब ,सिंध ,बंगाल से करोड़ो लोगो की अदला बदली हुई थी । हजारो लोग मारे गए थे ,अरबो रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ था , मां -बहनों की इज्जत लूटी गई थी । ऐसे हालात में देश को आज़ादी मिली थी । देश का पिता महात्मा गांधी 15 अगस्त ,1947 को आज़ादी के जश्न में शामिल न होकर दिल्ली से सेकड़ो मील दूर कोलकोता में साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये अपनी जान कुर्बान करने को तत्पर था । एक प्रश्न तथा उसका एक ही जैसा उत्तर इधर -उधर दोनों तरफ है कि जब धर्म के नाम पर बटवारा हो ही गया था तो बटवारे के समय सभी हिन्दू हिंदुस्तान क्यो नही चले गए तो उसका जवाब भी वैसा ही है विभाजन का फैसला राजनेताओ का राजनीतिक फैसला था उनका नही ,यह देश उनकी मातृ भूमि है ,यह उनकी पुरखो की धरती है वे इसे छोड़ कर क्यो जाए ? यह उनका देश है ,यही पैदा हुए थे यही मरेंगे ।
सन 1971 में निर्दयी निरंकुश सत्ता से पश्चिमी पाकिस्तान के लोगो को मुक्ति मिली । बांग्लादेश के प्रथम प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान ने घोषणा की कि नवोदित बांग्लादेश बेशक मुस्लिम बाहुल्य देश होगा परन्तु यह अन्य सभी धर्मों का आदर करेगा तथा सभी धर्मो को अपना प्रचार प्रसार करने की पूरी छूट होगी ।
ध्यान रहे समूचा बंगाल ,वर्तमान सन्दर्भ में बांगलादेश आने प्राचीन काल से सर्व धर्म समभाव का केंद्र रहा है । प्राचीन मंदिर , गुरुद्वारे ,चर्च एवम बौद्ध विहार यहां की एक सुंदर अनुपम विरासत रही है । ढाका में माँ जगदम्बा का ढाकेश्वरी मन्दिर ,मां काली मंदिर ,चैतन्य महाप्रभु की माई का मन्दिर , गुरु तेग बहादुर महाराज द्वारा गुरु नानकदेव जी महाराज की याद में बनवाया 'नानकशाही गुरुद्वारा ' तथा सन 1661 के आस पास बनी चर्च ऐतिहासिक ही नही अपितु सभी धर्मों के लोगो के लिये आस्था के केंद्र है । इतना ही नही बांग्लादेश के कोई छोटा बड़ा कस्बा नही होगा जहां कोई मन्दिर , चर्च अथवा गुरुद्वारा न हो । मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि इन धार्मिक स्थलों में दर्शनार्थी सभी तरह के लोग है । लक्ष्मी पुर के श्री बलदेव मन्दिर में जाने पर हमें वहाँ की भव्यता के दर्शन भी हुए जो हर प्रकार से मंगलकारी थे । गांधी आश्रम ट्रस्ट के नोआखाली के पास के ' गांधी स्कूल ' में लगभग 450 विद्यार्थी है जिसमे अधिकांश मुस्लिम सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते है वहाँ जाकर इन बच्चों से मिलने तथा इनकी एक सभा को सम्बोधित करने का अवसर मिला । सभा का प्रारम्भ बापू की रामधुन से हुआ जिसे सभी बच्चे सस्वर गा रहे थे । ऐसी सभी सभाओ मे हमारा यह आग्रह रहा कि समापन भारत एवम बांग्लादेश के राष्ट्रगान से हो । बांग्ला बच्चे गुरुदेव रबीन्द्र नाथ द्वारा रचित गीत "आमार सोनार बंगला " गाते और हम उन्ही गुरुदेव का लिखा " जन गण मन" का गान करते । कुमिला में हमे वह जगह दिखाई गई जहां मुस्लिम लोग अलग से दुर्गा पूजा का उत्सव मनाते है ।
पर इसका दूसरा पहलू भी है जिसे हम भारत मे भी मुस्लिम लोगो के बारे में सवाल खड़ा करके करते है कि फलां धर्म की आबादी इस कद्र बढ़ रही है कि मौजूदा बहुसंख्यक आबादी कुछ ही वर्षो में अल्पसंख्यक हो जाएगी तथा दूसरी आबादी बहुसंख्यक । यह एक ऐसा प्रचार है जो अति साम्प्रदायिक तत्व हौवा बनाने के लिए करते है ताकि धर्मान्धता बढ़ती रहे जबकि जनसंख्या बढ़ने के जो आंकड़े 1947 में थे वे आज भी बदस्तूर है यानी बांगलादेश में हिन्दू आबादी 8.5 प्रतिशत व भारत मे मुस्लिम आबादी लगभग 14 प्रतिशत । पर भय एवम अफवाहों के शगूफे दोनो देशो में छोड़े जाते रहते है । एक तथाकथित मुस्लिम विद्वान बहुत ही विश्वाश से कह रहा था कि बांगलादेश में यदि इसी तरह हिन्दू आबादी बढ़ती रही तो सन 1925 तक यहाँ वे बहुसंख्या में हो जाएंगे । मैने जब तथ्यों की तफशीश की तो पाया कि हाँ यदि आबादी बढ़ी तो बांग्लादेश जो अब हिन्दू प्रतिशत आबादी में दुनियां में पांचवे नम्बर पर है वह तीसरे नम्बर पर आ जाएगी परन्तु इस तरह की मनमाफिक व्याख्या दोनो देशो में होती रहती है ।
6 दिसम्बर ,1992 को अयोध्या में
बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद सबसे ज्यादा नुकसान हिन्दू मन्दिरो एवम अल्पसंख्यकों की सम्पत्ति के नुकसान का हुआ है । जो काम पाकिस्तान शासन नही कर पाया वह अब हुआ । एक जानकारी के अनुसार बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अकेले बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग ढाई हजार मकानों , 3600 पूजा स्थलों को क्षति पहुचाई तथा सेंकडो लोगो की हत्या हुई तथा हजारो घायल हुए । आयोध्या में तो पता नही मन्दिर कब बनेगा परन्तु ऐतिहासिक तथा आस्था के प्रतीक सैंकड़ो साल पहले बने मन्दिरो को जरूर तोड़ा गया यह था उस 'गौरव दिवस ' का परिणाम ।
इसके बावजूद भी सामान्य जन में शांति व सद्भाव की आकांक्षा है वे इसे निहित स्वार्थी लोगो की ही करतूत मानते है । जब कि जैसा कि हमारे देश मे भी होता है कुछ शरारती लोग सोशल मीडिया में कभी' मक्का ' में शिवलिंग बता कर अथवा ताजमहल को तेजोमय मन्दिर बता कर उन्माद एवम तनाव बढ़ाने की कोशिश करते है जिसे सिविल सोसाइटी के लोग तथा शासन के संजीदा अधिकारी बेहद समझदारी से हल करते है ।अच्छा हो सभी इन फिजूल की बातों से उठ कर प्रेम , भाईचारे तथा सदभाव का संदेश दे इसीसे मानवता बचेगी । दोनो देशो में ऐसी ताकते है जो अपनी राजनीतिक रोटी ही हिन्दू -मुसलमान की नफरत की आग पर सेकते है वे यह नही जानते कि इस आग से तुम्हारा तो काम बन जाता होगा पर गरीब का चूल्हे की आग नही जलती ।
14.ढाका-ढकेश्वरि-मस्जिदो का शहर
बांगलादेश की राजधानी ढाका के छोटे परन्तु अत्यंत सुविधाजनक एयरपोर्ट ' हज़रत शाहजलाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट ' पर हमारी मेजबान श्रीमती तन्द्रा बरुआ तथा उनका सुपुत्र श्री अनन्य राहा हमे लेने के लिए आये थे । बहुत ही जल्दी इमीग्रेशन तथा सिक्योरिटी चेकअप के बाद हम बाहर निकले तो तन्द्रा दीदी तथा अनन्य ने हमारा गुलदस्ते देकर तथा बंगाल की लोकप्रिय मिठाई 'संदेश ' खिला कर स्वागत किया । इसके बाद उनकी गाड़ी में बैठ कर हम धानमंडी स्थित उनके घर रवाना हुए । गाड़ी को उनका ही कार्यकर्ता नकुल चला रहा था । बंगला तथा हिंदी में नाम तो चाहे एक हो परन्तु उसका उच्चारण अलग -२ होता है । मैं अनन्य को जब हिंदी उच्चारण से बुलाता तो वह उसका ' बंगला ' में शुद्ध करके बताता ' ओनोनोय'। जो मेरे लिए बोलना सरल न था । इस पर मुझे अपने बचपन की एक बात याद आयी जो मेरे एक अध्यापक ने बंगला भाषा के बारे में बताई थी कि बंगाली लोग तथा उनकी बोली इतनी मीठी होती है जिसे हर कोई नही जान सकता । बोली में तो इतनी मधुरता है कि यदि मुँह में रसगुल्ला ( रोसोगुल्ला) हो तो यदि हिंदी में बोलोगे तो ही बंगाली उच्चारण होगा । इस बात पर सभी खूब हंसे । रास्ते मे जगह -२ शेख मुजीबुर्रहमान तथा वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रीमती हसीना वाजेद के बड़े -२ पोस्टर लगे थे जिसे देख कर मन अत्यंत प्रसन्न हुआ । चलती गाड़ी में हमारी मेज़बान हमे रास्ते मे आये स्थल जैसे पार्लियामेंट , सुप्रीम कोर्ट , आर्मी हेडक्वार्टर , मंत्रिमंडल कार्यालय को दिखा कर उसके बारे में बता रही थी । जब रास्ते मे गुरुदेब रबीन्द्र नाथ टैगोर तथा क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम के चित्र दीवारों पर एकसाथ छपे देखे तो मन की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न था । भारत - बांगलादेश दोनो मित्र राष्ट्र है परन्तु इसके बावजूद भी पानी , गैर कानूनी आवाजाही की समस्या पर विवाद बना रहता है पर इसको सरकार अपने स्तर पर हल करने की कोशिश करती ही है , परन्तु जनता के स्तर पर एक विवाद और भी है कि ' रबीन्द्र नाथ टैगोर ' किसके है , हमारे या उनके । वे कहते है कि गुरुदेब का जन्म तो बंगाल के इस हिस्से में हुआ था जो अब बांगलादेश में है हमारा कहना है कि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन कोलकोता में बिताया । अपने विश्वविख्यात ' शांति निकेतन ' की स्थान बोलपुर में की और उनका पारिवारिक मकान 'ठाकुर बाड़ी' भी तो कोलकोता में है जो भारतीय हिस्से में है ,इसलिये वे हमारे है । वे कहते है कि उनके देश का राष्ट्रगान ' आमार सोनार बांग्ला ' गुरुदेव का ही लिखा है ,इधर का क्लेम यह है कि यहां का राष्ट्रगान 'जन गण मन ' भी तो उनका लिखा है इसलिए वे हमारे है । परन्तु वास्तविकता यह है कि यह तो दोनों देशों की बात है कि 'टैगोर' दोनो देशो के है । उन्होंने तो सिर्फ इस अखण्ड देश के लिये लिखा जो अब विभाजित है । देश बेशक दो हो गए परन्तु गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर तथा क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम का कोई बटवारा नही कर सकता वे हम सबके है । भारत या बांगलादेश के ही नही अपितु पूरी दुनिया के पूरी मानवता के । जब तक यह दुनियां है उनका महान कृतित्व एवम व्यक्तित्व सदा अमर रहेगा । रास्ते मे ही दिलोदिमाग में ढाका ही छाया रहा । ढाका की मलमल जिसके बारे में कहा जाता था कि वह इतनी महीन होती थी कि हाथ की अंगूठी में से पूरा थान का थान निकल जाता था और जो निर्दयी ब्रिटिश शासन को इतनी नागवार गुजरी की उन्होंने मलमल बनाने वालों की अंगुलियां ही कटवा डाली ताकि यहां का माल न बिक कर उनके देश का कपड़ा यहाँ बिके जिससे वे मुनाफा कमा कर अपने देश ले जाए ।
रास्ते मे ही ढाका यूनिवर्सिटी से सटा ' एक गुरुद्वारा ' के दर्शन हुए । हमारी मेजबान जो एक परम विदुषी एवम इतिहास वेत्ता भी है ने बताया कि अपने जीवन काल मे गुरु नानक देव जी महाराज स्वयम ढाका पधारे थे और उनकी ही याद में सन 1661 में गुरु हरगोबिंद सिंह जी महाराज ने इस का निर्माण करवाया था । उन्होंने यह भी जानकारी दी कि बेशक बांग्लादेश में सिखों की तादाद बेहद कम है परन्तु यह एक ऐसा दर रहता है जहाँ सभी धर्मों के लोग बेझिझक दर्शन करने आते है और यहाँ के रागी बेशक सिख है परन्तु उनके संगीतज्ञ साथी बांगला मुस्लिम तथा अन्य लोग भी है । ऐसा ही प्रत्यक्ष नज़ारा मैंने पाकिस्तान में ननकाना साहब गुरुद्वारा तथा लाहौर के किला के बिल्कुल सामने गुरु अर्जुन देव जी महाराज के गुरुद्वारा में भी पाया कि वहाँ भी साजिंदे मुस्लिम ही थे । ननकाना साहिब में तो वे साजिंदे थे जिनके पूर्वज मरदाना और बाला, गुरु नानक देव महाराज के साथ साजिंदे का काम करते थे । इसी सोच विचार को बुनते हुए हमारी गाड़ी भीड़भाड़ एवम ट्रैफिक जाम को झेलती हुई बढ़ी जा रही थी । ढाका के लोग जाम के अभ्यस्त है क्योंकि पूरी दुनियां में यह ही एक ऐसा शहर है जहाँ आबादी का घनत्व सबसे ज्यादा है ।
चलते -२ मुझे मेरे सबसे प्रिय ' गोलगप्पों ' का छाबा दिखाई दिया । मैं तो इनको देख कर कभी रूक नही सकता हूं । मैंने दिल को मसोस कर कहा अरे यहाँ भी गोलगप्पे' । पर मेजबान में मेरा मन पढ़ लिया था , उन्होंने कहा कि आपको भी यहाँ के सबसे मशहूर 'फुचके '(गोलगप्पो का स्थानीय नाम ) खिलाते है । खुशी का ठिकाना न था । हम एक जगह रुके तथा कुछ चल कर 'फुचके रेस्टोरेंट' मे पहुचे । यहाँ के 'फुचके ' हमारे यहां के गोलगप्पो की तरह वैसे तो गोलमटोल है पर खाने का ढंग अलग है । हमारे यहाँ इन्हें इमली ,पुदीना ,जलजीरा ,नमक मिर्च के पानी डाल कर पीते है जबकि ढाका में इन्हें आलू - चाट के साथ मीठी चटनी के साथ खाते है । हमारे यहाँ इसीलिए इसे 'पानी के पतासे ' भी कहते है । इनका पूरा आनंद लेकर हम उनके घर की तरफ रवाना हुए और कुछ ही देर में घर पहुंचे ।
15."नोआखाली में गांधी ज़िंदा है !"
बा बापू 150वी जयंती वर्ष में गांधी विचार के साथ गांधी धाम की यात्रा किये जाने का सुख जिसे मिले वह बहुत ही भाग्यशाली है । ऐसा ही सौभाग्य हमे मिला है जिसके लिए हम,गाँधी आश्रम ट्रस्ट , नोआखाली के आभारी है कि उसके निदेशक श्री नब कुमार राहा के आमंत्रण पर गांधी ग्लोबल फैमिली तथा एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स ऑफ एशिया के दो सदस्यीय संयुक्त प्रतिनिधिमंडल में हमे जाने का सुअवसर मिला । मन मे बार २ यह विचार कौंधता है कि ऐसी क्या बात थी कि महात्मा गांधी उस क्षेत्र में चार महीने रहे और वह भी ऐसे समय मे जब स्वतन्त्रता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था और अंग्रेज़ी हुकूमत अपना बोरी बिस्तर बांध कर चलने की तैयारी में थी । बापू ,आज़ादी को अधूरा मानते थे यदि वह सत्य- अहिंसा के रास्ते से हट कर प्राप्त हो । इसीलिये वे कहते थे कि अंग्रेज भी यहाँ से मैत्री भाव से जाए कोई कटुता लेकर नही । अहिंसा के ये ऐसे प्रयोग थे जिनको पूरी दुनियां का जनमानस बहुत ही उत्सुकता से देख रहा था । बापू के आज़ाद देश मे स्वामी विवेकानंद की वह भावना छिपी थी जिसकी मान्यता थी कि वे ऐसे भारत का निर्माण चाहते है जिसमे हिन्दू शरीर हो पर जिसकी आत्मा इस्लाम की हो । इसीलिये सर्वधर्म समभाव का काम उनके लिए स्वतन्त्रता की लड़ाई का एक हिस्सा था । सन 1946 में जब उन्होंने सुना कि पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांगलादेश) का ज़िला नोआखाली साम्प्रदायिकता की आग में जल रहा है तो वे मार्च, 1946 में रेल द्वारा वहाँ पहुंचे और एक दिन नही ,दो दिन नही बल्कि पूरे चार माह तेरह दिन वहाँ रहे । वे इस ज़िला के लगभग 22 गांवो में पैदल -पैदल घूमे और लोगो को प्यार मोहब्बत का संदेश दिया और उस सन्देश में भी इतना जादू की वे लोग जो उनकी भाषा को बिल्कुल भी तो नही समझते थे ,वे उनके ऐसे दीवाने हो गए कि उन्होंने हिंसा ,द्वेष एवम नफरत की दीवारों को तोड़ कर प्यार को अपनाया । हम यह भी जानते है कि 15 अगस्त ,1947 को पूरा देश जब आज़ादी का जश्न मना रहा था । दिल्ली में नई सरकार का गठन होने जा रहा था उस समय वह राष्ट्र नायक कोलकोता में शांति स्थापना के काम मे लगा था । उनका कहना था कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा , एक बात ही साबित हुआ । देश विभाजन हुआ और वह भी धार्मिक कट्टरता एवम नफरत के नाम पर । बापू को यह विभाजन मान्य नही था इसीलिये उन्होंने विवशता में कहा देश बेशक बट जाए परन्तु दिल नही बटने चाहिए । वे जिन्ना को समझाने तथा अपनी जनता से मिलने पाकिस्तान के दोनो हिस्सो में जाना चाहते थे पर नियति को तो कुछ और ही मंजुर था इसीलिये उनकी यात्रा प्लान से पहले ही 30 जनवरी ,1948 को दिल्ली में उनकी हत्या कर दी गयी । हम इस बात से वाकिफ है कि उनकी हत्या किसी एक अथवा कुछ सिर फिरो की साजिश का परिणाम नही थी अपितु एक वैचारिक समूह द्वारा एक विचार को समाप्त करने की योजना थी ।
स्व0 निर्मला देशपांडे जी बापू के इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहती थी और इसी के लिये उन्होंने वर्ष 1998 में पाकिस्तान की यात्रा की । मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि उस सात सदस्यीय दल में मैं भी शामिल रहा । स्व0 दीदी ने इस सिलसिले में 'वीमेन इनिसिएटिव फोर पीस इन साउथ एशिया' बैनर के अंतर्गत बांग्लादेश सहित सभी दक्षिण असियाई देशो के दौरे किये तथा जनता के स्तर पर मैत्री सम्बन्ध मजबूत करने के लिये ' असोसिएशन ऑफ पीपुल्स ऑफ एशिया ' संगठन की स्थापना की जिसके संस्थापक सदस्य के रूप में उस काम को निरन्तर चलाने के लिये हम लोग संयुक्त तौर पर कार्य कर रहे है ।
हमे कुल चार दिन नोआखली में रहने एवम जगह -२पर लोगों से मिल कर जानकारी लेने का अवसर मिला ।
ढाका से सड़क मार्ग से चल कर हम बीच मे एक कस्बा जसोरा में लगभग दो घंटे रुके यह स्थान प्रकीर्तिक रूप से अत्यंत सुंदर है तथा यही एक 'जादूघर' (म्यूजियम) है । इस स्थान पर हमारी आगवानी का0 राणा ने की जो गांधी आश्रम ट्रस्ट ,नोआखाली के कामो से काफी जुड़े है । इस जादूघर में प्रवेश करते ही 'बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान ' की एक विशाल प्रतिमा है तथा उसके पास ही उनके छोटे बेटे शेख रईस ,उम्र 12 वर्ष , की भी जिसे 15 अगस्त ,1975 को बांगलादेश में हुई सैन्य बगावत में अपने पिता सहित परिवार के 18 सदस्यों के साथ गोलियों से भून दिया था । जादूघर में बांग्लादेश की लोकसंस्कृति को जानने का हर सामान उपलब्ध है । साथ ही गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर के जीवन के अनेक चित्र भी लगे है । बाहर ही एक युवा जो सफेद धोती चादर पहने लम्बे -२ घुंघराले बालों में हर किसी को आकर्षित कर रहा था अपने हाथ मे एकतारे जैसा वाद्ययंत्र लिये बैठा था । मेरी सहज जिज्ञासा इस युवा साधु को जानने की हुई तो पता चला कि यह 'लालन गीति ' का प्रचारक है । ऐसे सेकड़ो प्रचारक आपको बांग्लादेश के हर हिस्से में मिल जाएंगे जो हमारे देश के सूफी संतों का अनुसरण करते हुए 'राम -रहीम एक है ' के शब्द गाते लोगो को जागृत करने का काम करते है । का0 राणा ने मुझे भी एक ऐसे ही व वाद्ययंत्र का छोटा स्वरूप भेंट में दिया । बांगलादेश का मौसम भी अत्यंत सुहावना तथा आनंददायक है । बारिशें लगभग शुरुआत में है । जगह -२ आम और अलीची से भरे वृक्ष जिनकी डलियां उनका बोझ अब नही सह पा रही सब जगह दृष्टी गोचर हो रहे थे ।
घनी शाम हम लोग नोआखाली से 20 किलोमीटर आगे गांव जायग में पहुचे जहाँ गांधी आश्रम ट्रस्ट का मुख्यालय है तथा इसके तत्वावधान में अनेक रचनात्मक प्रवृतियां चल रही है । यह स्थान बहुत ही रमणीय है तथा पेड़ -पौधों , तालाब एवम छोटे - छोटे अनेक जल कुंडों से पटा है । इसी के बीच म्यूजियम ,जिसका की पुनर्निर्माण चल रहा है स्थित है । एक तरफ ट्रस्ट का सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित कार्यालय है वहीं दूसरी ओर कार्यशाला है। जहाँ महिलाएं खादी एवम अन्य ग्रामोद्योग का काम करती है । इसके पूर्व की ओर दो मंजिल के अन्य कमरों में अतिथि गृह , कार्यकर्ताओं की रिहाइश तथा भोजन कक्ष है तथा पश्चिम उत्तर की तरफ ट्रस्ट की सचिव पद्म श्री दीदी झरना धारा चौधरी का आवास है जहाँ वे कुछ अन्य बहनों के साथ रहती है । आश्रम में पहुचते ही ,अतिथि गृह में समान रखते ही हम झरना बहन को अपना आदर प्रेषित करने तथा औपचारिक भेंट के लिए पहुचे । वे बेशक अब वृद्धावस्था में है परन्तु अब भी एक जागरूक एवम चेतन महिला है । हमने उनके चरण स्पर्श ले कर आशीर्वाद लिया और फिर वे पूछने लगी कि भाई जी सुंब्बाराव , रमेश चंद्र शर्मा तथा अंत शीर्षस्थ गांधी - विनोबा सेवको के बारे में । हमने भी हेना चक्रबर्ती , एस पी वर्मा तथा अन्य साथियो का जिन्होंने हमे अपना आदर सम्प्रेषित करने को कहा था ,उनके बारे में बताया । जिससे वे बेहद प्रसन्न हुई । देर रात हो चली थी और भूख भी लगी थी इसलिये बिना अधिक विलम्ब करे हम भोजन कक्ष की ओर बढ़े ।
उस रात पूरे समय वर्षा होती रही । रात भर कभी तेज बारिश की आवाज तो कभी मेंढको के टर टराने की आवाज गूंजती रही । थकावट की वजह से कब नींद आ गयी पता ही नही चला फिर भी अगले दिन भोर में पक्षियो की चहचहाट में सुबह जल्दी उठ गए । श्री नब कुमार जी राहा ने पूरे दिन का कार्यक्रम बहुत ही टाइट बनाया हुआ था ,वे चाहते थे कि दो -तीन दिन में वे हमें सब कुछ ही तो दिखा दे । हम भी सुबह जल्दी जल्दी उठ कर तैयार हुए तथा नाश्ते की मेज पर आगये । उसी दौरान इसी गांव के जहाँ आश्रम स्थित है , काफी लोग मिलने के लिए आगये । इनमे कुछ गांव सभा के लोग थे ,कुछ सामाजिक कार्यकर्ता तथा कुछ राजनीतिक नेता भी । वे लोग चर्चा करने के लिए आये थे कि इसी गांव के कुछ युवक भटक कर बांग्लादेश सरहद पार कर रोजगार की तलाश में चले गए थे परन्तु दिल्ली के पास नोएडा में वे पुलिस द्वारा पकड़े गए है तथा उनका अभी सूरजपुर कोर्ट में आपराधिक दफाओं के तहत मामला चल रहा है तथा वे पिछले दो -अढ़ाई साल से जेल में है । मिलने आये लोगो मे केस में फंसे युवकों के माता -पिता भी थे ,जो परेशान थे तथा अपने बच्चों की रिहाई चाहते थे । मैने पूरे मामले की गम्भीरता को एक एडवोकेट के नाते पूरा सुना तथा हर प्रकार की कानूनी मदद का भरोसा दिलवाया ।
16.गाँधी मेमोरियल इंस्टिट्यूट, जाएग(नोआखाली)
लगभग सुबह 10 बजे श्री नब कुमार राहा तथा श्रीमती तन्द्रा बरुआ के साथ हम लोग गांधी आश्रम ट्रस्ट के मुख्यालय के पीछे ही चल रहे गांधी मेमोरियल इंस्टीट्यूट पहुचे जहां पहुचने पर कार्यालय में स्कूल के प्रिंसिपल श्री गोपाल रॉय ने अपने अन्य स्टाफ सदस्यों सर्व श्री नारायण देबनाथ,शरीफुल इस्लाम,ओमर फारुख ,मो0 इब्राहिम तथा श्रीमती अस्मा अख्तर के साथ हमारा स्वागत किया । प्रिंसिपल साहब ने बताया कि इस समय इस स्कूल में आसपास के देहात के लगभग साढे पांच सौ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है जिनमे से 98 प्रतिशत मुस्लिम है । स्कूल परिसर में तीन तरह की बिल्डिंग्स देखने को मिली । पहली जो टीन शेड से निर्मित है जो सबसे पुरानी है पर अब इसमें कक्षाए नही चलती ,दूसरी भारत सरकार की मदद से बनी नई बिल्डिंग ,तीसरी बांगलादेश सरकार के सहयोग से बना नया भवन । ऐसा लगता था यह नए पुराने का मेल तो है ही वही भारत और बांग्लादेश के सांस्कृतिक मिलन का भी संगम है । दो नये भवनों के बीच मे पुराने को भी इस ढंग से संजो कर रखा है जिसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी थोड़ी । ऐसे ही पुराने की सम्भाल एवम रखरखाव की जरूरत है चाहे वे घर हो या बुज़ुर्ग । कार्यालय में चार चित्र महात्मा गांधी , शेख मुजीबुर्रहमान , बांगलादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद एवम दीदी झरना धारा चौधरी के बहुत ही करीने से सजाए थे । अपनी बुज़ुर्ग झरना दीदी की सेवा सुषुर्षा यह संस्थान कर रहा है ,वह सीखने योग्य है ।
हमे स्कूल की पहली मंजिल पर स्थित महात्मा गांधी सभागार में ले जाया गया जहाँ हमारे से पहले ही 8 से कक्षा 12 तक के विद्यार्थी मौजूद थे । हमारे पहुचने पर सभी बच्चों ने हमारा ,'सलाम वालेकुम' तथा 'नमस्कार' से स्वागत किया । फिर सभी बच्चों ने सर्वधर्म प्रार्थना तथा सस्वर राम धुन का गायन किया । वातावरण इतना सुरम्य था कि मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता भी भावविभोर हो गयी और उन्होंने भी बापू के प्रिय भजन ' वैष्णव जन तो तेने कहिये' का मधुर गायन किया । जिसे सुन झरना दीदी ने उन्हें गला लिया लिया । स्कूल के कक्षा दसवीं के छात्र फतेहमून फिरदोसी ने महात्मा गांधी जी का संक्षिप्त जीवन वृतांत बांग्ला में सुनाया जबकि इसी कक्षा की छात्रा सोहागी अख्तर ने बापू द्वारा बताए सात पापो की व्याख्या की । बेशक वे बंगला में बोल रहे थे परन्तु बोले आने दिल की गहराईयों से जिन्हें समझना मुश्किल न था । यह जान कर बेहद प्रसन्नता हुई कि हमारी मेजबान श्रीमती तन्द्रा बरुआ इसी स्कूल की हेडमिस्ट्रेस रही है । उन्होंने न केवल स्कूल का परिचय दिया वहीं स्कूल विषयक अनुभवों को भी रखा । इस सभा मे झरना दीदी की गरिमामय उपस्थिति सभी को गदगद कर रही थी । यद्यपि अब वे कुछ -कुछ अस्वस्थ रहती है फिर भी उन्होंने अपना अधियक्षीय वक्तव्य एवम सन्देश दिया । श्री नब कुमार राहा ने इस सभा मे बापू विचार को समर्पित ट्रस्ट के कार्यो को बताया । सभी तो अपनी मिष्टी बंगला में अपने विचार रखे औऱ मैने अपनी बात हिंदी में कही । पर मै समझ पा रहा था कि वे हिंदी और हम हिंदी पूरी तरह से समझ रहे थे क्योकि वह सभी प्यार की मिठास की चासनी से सनी थी । अंत मे भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान के बाद सभा समाप्त हुई ।
17.उद्योग शाला (जायग)
गांधी आश्रम ट्रस्ट ,नोआखाली के गांव जायग में स्थित उद्योग शाला में आस पड़ोस की लगभग एक सौ के करीब वे महिलाए काम करती है जो या तो विधवा है अथवा घरेलू हिंसा की शिकार होने की वजह से अपने पति अथवा परिवार से अलग रह रही है , ऐसे महिलाओ के शिक्षण -प्रशिक्षण का अद्भुत काम यहाँ होता है । महिलाए सभी जगह पर विशेषकर दक्षिण एशिया में और अधिक हिंसा ,उत्पीड़न तथा भेदभाव की शिकार है । बेशक भारत ,बांग्लादेश , पाकिस्तान , श्रीलंका आदि दक्षिण असियाई देशो में समय -२ पर राष्ट्राध्यक्ष अथवा अनेक प्रतिष्ठित पदों पर पर अनेक महिलाए आसीन रही है और हां बांगलादेश में मौजूदा समय मे भी शेख हसीना वाजेद ,प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान है तथा नेपाल में राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती विद्यादेवी भंडारी कार्यरत्त है , परन्तु इन सभी पद प्रतिष्ठाओं ने महिलाओं की स्थिति तो बदली है परन्तु परिस्थितियों में कोई अंतर नही किया है । कन्या भ्रूण हत्या सभी दक्षिण एशियाई देशों में एक सा है तथा स्त्री -पुरुष अनुपात में भी महिलाओ की संख्या काफी कम है । घर मे महिला श्रम का कोई आंकलन अथवा सम्मान नही है तथा वह हेय दृष्टि से ही देखी जाती है । ऐसी स्थितियों में यदि अपने माता -पिता के घर का भी आश्रय नही मिले तो स्थिति और अधिक भयानक हो जाती है । ऐसी ही महिलाओ को स्वावलम्बी बनाने का अद्भुत कार्य गांन्धी आश्रम ट्रस्ट ,नोआखाली के द्वारा किया जा रहा है जो सर्वदा प्रशंसिय है । हम लगभग शाम को लगभग पांच बजे इस उद्योगशाला मे पहुंची । कार्यरत्त महिलाएं काम खत्म कर घर जाने की तैयारी में थी परन्तु जब उन्होंने हमें अंदर आते देखा तो वे उत्सुकतावश रूक गई । मैने बांग्लादेशी लुंगी ( धोती ) पहने हुई थी जिसमे मैं कुछ भी तो अलग नही दिख पा रहा था । हमने अंदर जाकर महिलाओ के काम को देखना शुरू किया । लगभग 20-25 औरते चरखा चला रही थी इतनी ही हथ करघे पर कपड़ा बन रही थी । कुछ रंगदारी का काम कर रही थी , कुछ सिलाई का तो कुछ बाहर दुकान पर सेल्समैनशिप का । हमने पाया कि हर महिला आने कार्य मे पारंगत है तथा बहुत ही हुनरमंदी से काम कर रही है । उनमें पूर्ण आत्मविश्वाश सहज ही दिखाई पड़ रहा था । जानकारी से पता चला कि ऐसे केंद्र नोआखाली के अनेक गांवों में है जहाँ उत्पादन से लेकर निर्माण और बिक्री का काम ऐसी ही महिलाएं करती है । उद्योगशाला कि मैनेजर जो कुछ ज्यादा पढ़ी लिखी तो नही थी परन्तु पूरी कार्यकुशल थी ,ने हर महिला श्रमिक से मिलवाया तथा उनके कामो की जानकारी उन्हें से दिलवाई । एक युवा महिला अपने दो छोटे -बच्चों के साथ वहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रही थी ने बताया कि उसके पति ने उसे बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर ली है तथा अब उसी के साथ रहता है और उसे छोड़ दिया है और वह आश्रम में ही रह कर अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने बच्चों को सम्मान पूर्वक पालना चाहती हूं । ऐसी महिलाओं के लिये आश्रम ट्रस्ट ,कानूनी सहायता भी उपलब्ध करवाता है ताकि वे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके । एक जानकारी के लिए ही भारत और बांग्लादेश के लगभग कानून एक से ही है बस फर्क यह ही है कि हमारे कानून के आगे इंडियन लगा है और वहाँ बांग्लादेश अथवा सन 1971 से पहले पाकिस्तान । उदाहरण के तौर पर ' इंडियन पीनल कोड -1860 ' का नाम वहां ' बांगलादेश पीनल कोड ' ही है जैसा कि पाकिस्तान में 'पाकिस्तान पीनल कोड'। हम आज़ाद तो हो गए परन्तु ओउपनेशिक गुलामी हम पर अभी भी ज्यो की त्यों है । अस्तु , हमने पाया कि इस उद्योगशाला मे सभी महिलाएं वे है जो हिंसा , पारिवारिक परिस्थितियों के दंश से ग्रसित है परन्तु इस आश्रम में खुद को महफूज पाती है । हमने खुद पाया कि झरना धारा दीदी के पास एक विधवा परित्यक्ता महिला जो गर्भवस्था में लगभग 25 वर्ष पहले निकाल दी गयी थी अब तक रह रही है । यहाँ रहते हुए ही उसकी बेटी हुई जिसको उच्च शिक्षा दिलवा कर उसका विवाह एक खादी कार्यकर्ता से ही हुआ तथा अब वह दोनो पति -पत्नी खूब सामाजिक कार्य करते है तथा अन्य कही रहते है । उनके एक आठ माह की बेटी भी है जो अब गर्मी की छुटियों में अपने मायके यानी झरना दीदी के घर अपनी मां के पास आई हुई थी । घर मे बच्ची की हंसने -रोने ,खेलने की वजह से पूरी रौनक हमने पाई । गांधी -खादी की संस्थाए पहले सभी ऐसे निराश्रित लोगों की आश्रय स्थल होते थे अब भारत मे कही है या नही मैं नही जानता परन्तु जायग का यह आश्रम तो है जैसा मैने पाया । ऐसी उद्योगशाला की दुकान से हमने भी कुछ कुर्ते ,लेडीज सूट आदि लिये जिनकी बुनावट , कशीदाकारी एवम सिलाई का कोई मुकाबला नही । इसी उद्योगशाला में महिलाएं साबुन तथा अन्य ग्रामोद्योग का भी कार्य करती है जिन्हें भी देखने व जानने का अवसर मिला । यहाँ आने पर एक अजीब सी ऊर्जा शक्ति तथा कार्य करने की प्रेरणा मिली । ऐसे संस्थान सभी जगह बने तभी 'सशक्त नारी - सशक्त समाज ' का नारा चरितार्थ हो पायेगा ।
18.यंग गाँधीयन्स के बीच
जायग (नोआखाली)
05.05.2018
युवाओ के बीच जाना ,उनको सुनाना तथा उनकी सुनना सदा ऊर्जादायक रहता है । यह आपको कभी भी उम्र का अहसास नही होने देता । मै आने विद्यार्थी काल मे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन तथा युथ फेडरेशन में रहा हूं जिनका यह मत था कि युवा क्रांति का अगुवा दस्ता तो नही होता परन्तु एक ऐसी प्रेरक शक्ति होता है जो क्रांति के लिये सदा तततपर रहता है । उनमें त्याग और बलिदान का जज़्बा कूट कूट कर भरा होता है । स0 भगत सिंह ने अपने जज्बाती लेखों में युवा शक्ति को सदा आंदोलित करने का काम किया है । महात्मा गांधी एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिनके आवाहन पर हजारों युवकों ने अपने व्यवसाय को छोड़ कर आज़ादी के आंदोलन को ही अपना ध्येय मान लिया था । उन्ही युवाओ का ही पराक्रम था कि 15 अगस्त ,1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ ।
बांगलादेश में गांधी आश्रम ट्रस्ट इन्ही युवाओ के बीच बेहतर काम कर रहा है । नोआखाली के आस पास के लगभग 72 गांवो में शांति पूर्वक अहिंसक ढंग से समाज परिवर्तन का काम ये युवा कर रहे है । उन्ही कुल अस्सी युवाओ से एक बैठक में भेंट का प्रबंध , ट्रस्ट ने अपने मुखयालय में करवाया । लगभग सभी गांवो से ये युवा कुछ पैदल , कुछ साईकल से तथा कुछ ऑटो से यहां आए थे । लगभग दो घण्टे चली बैठक में इन सभी ने अपना परिचय देने के अपने -२ कामो की जानकारी भी दी ।
इन युवाओ ने विस्तार से बताया कि कैसे ये लोग नोआखाली के 74 विभिन्न गांवों में वैकल्पिक न्याय साधन , पारस्परिक विवाद को संवाद के द्वारा हल करने , सत्य तथा अहिंसा के प्रयोग एवम साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये काम कर रहे है । इन सभी युवाओ से बातचीत कर एक नई ऊर्जाशक्ति का संचार हुआ । श्री एस एन सूबा राव जी नेशनल सर्विस परियोजना , श्री अशोक भारत के नेतृत्व में 'युवा संवाद कार्यक्रम' तथा अन्य कुछ संगठन एवम व्यक्तित्व, भारत के युवाओं के लिये गांधी विचार का प्रचार -प्रसार के लिये कर रही है ऐसे ही कार्यक्रमो का विचार बांगलादेश में गांधी आश्रम ट्रस्ट कर रहा है जिसके लिये ये सभी साथी साधुवाद के पात्र है । पूरे विश्व मे आज युवजन में हताशा एवम निराशा का माहौल है । बेरोजगारी एक बडी समस्या है जिसके लिये हजारों युवा अपना देश और यहाँ तक घर-बार छोड़ने को तैयार है । मुनाफे,व्यापार एवम कारोबार को तो मुक्त कर दिया , श्रम को कब मुक्त करोगे । ऐसा होने पर ही युवकों को रास्ता मिलेगा परन्तु पूंजीवादी व्यवस्था सिर्फ मुनाफे की लूट को ही आज़ाद करती है पर इसका चिंतन ये यंग गाँधीयन्स बांगलादेश में ढूंढ रहे है । ये अध्य्यन शील है तथा देश -विदेश की खबर रखते है । मैने एक दिन भावुकतावश एक युवा को कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि एक दिन दोनो बंगाल एक न हो जाए इस पर वह एकदम बोला 'बंगाल ही क्यो ,यह पूरी दुनियां एक होगी ।उसका दृढ़ विश्वास था कि 'राज्यविहीन विश्व ' बन कर रहेगा । मै उसकी सोच , विचार तथा यकीन के सामने स्वयम को बोना महसूस कर रहा था । ऐसा होगा , फ़ैज़ अहमद फैज़ के शब्दों में ' यह लाज़िम है , हम देखेंगे '। बांग्लादेश का युवा मुखर है खास तौर से वैचारिक दृष्टि से और यह ही उसे इस उप महाद्वीप का नेतृत्व प्रदान करने का अवसर देगी । महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत को आज़ादी इस लिये चाहिए ताकि वह दुनियां के जरूरत मन्द लोगो की सेवा कर सके । बांग्लादेश के युवा बापू के इस कथन को साकार करने की तरफ बढ़ना चाहते है ।
19.गांव अतखोर(वर्तमान ज़िला लक्ष्मीपुर,तत्कालीन नोआखाली)
दि0 06.05.2018
सुबह ही झरना दीदी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेकर अब उन क्षेत्रों की ओर बढ़े जहाँ गांधी आश्रम ट्रस्ट की या तो गतिविधियां चल रही है अथवा वे जगह महात्मा गांधी से सम्बंधित है । इस श्रृंखला में हम सड़क मार्ग से लगभग 20 किलोमीटर चल कर पहुचे 'गांव अतखोर' में । इस गांव की सीमा पर ही इस गांव के कुछ कार्यकर्ता हमारी अगवानी के लिये खड़े थे जो हमेअपनी मोटरसाइकिल से एस्कॉर्ट करके बीच गांव में ले गए जहाँ एक घर मे पहले से ही 20-25 महिलाए उपस्थित थी । सभी से सलाम तथा नमस्कार हुआ व गांव का परिचय वहीं के एक बुजुर्ग तथा मुक्ति वाहिनी के पूर्व सैनिक (स्वतन्त्रता सेनानी ) श्री जे एम सादिक अली ने दिया । अपनी यात्रा के दौरान बापू यहाँ आये थे तथा उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया था । इस छोटे से गांव में आज भी बहुसंख्या आबादी हिन्दुओ की है तथा यह गांव सद्भाव की एक मिसाल है । सादिक मियां ने बताया कि पाकिस्तान के बंगाल पर शासन के दौरान जरूर हिन्दुओ को शासन की ओर से प्रताड़ित करने की घटनाएं सुनने में आती थी परन्तु बांगलादेश की मुक्ति के बाद यहां कभी भी ऐसा नही होने दिया गया । उनका कहना था कि इसकी परीक्षा की दो घड़ियां आयी एक बाबरी मस्जिद गिराने के बाद दूसरे सन 2013 में जमायते इस्लामी के नेता दिलावर हुसैन सईदी को कोर्ट द्वारा उम्र कैद की सजा के बाद ।पूरे बांगलादेश में कट्टरपंथियो ने बदले के नाम पर अल्पसंख्यक हिन्दुओ तथा बौद्ध लोगो को अपना निशाना बनाया परन्तु यह हिस्सा अनेक उत्तेजनाओं के बावजूद, फिर भी शांत बना रहा । मैने जब इसका कारण पूछा तो सभी युवा - वृद्ध ग्रामीणों का एक ही जवाब था कि " साम्प्रदायिक सद्भाव की जो ज्योति गांधी जी ने आज से बहत्तर वर्ष पहले जलाई थी उसकी रोशनी आज भी लोगो के अंदर बुलंद है । मेरा मानना है कि गांधी आश्रम ट्रस्ट ,नोआखाली का इस क्षेत्र में काम जो निरन्तर झरना दीदी के। संरक्षण तथा नब कुमार राहा व उनके साथी कार्यकर्ताओ द्वारा निरन्तर चलाया जा रहा है ,वह है असली ज्योति जो शांति व सद्भावना का संदेश दे रही है । सादिक मियां ने हमारा स्वागत यहाँ ' बंकिम चन्द्र बेनर्जी ' द्वारा लिखित 'आनंद मठ' के गीत' वंदे मातरम' जो अब भारत का राष्ट्रीय गीत के रूप में जाना जाता है का सस्वर पाठ करके किया । उन्होंने इस गीत के सभी पद्यों को ऐसे गाया की हम सब मन्त्र मुग्ध हो गए । भारत मे कुछ लोग जब इसे अपनी आस्था की वजह से नही गाने की विवशता बताते है वही बांग्लादेश के एक छोटे से गांव का मुस्लिम स्वतन्त्रता सेनानी उसे बहुत ही गर्व से गा रहा था तो अनेक शंकाए स्वत: ही निर्मूल हो रही थी । इस गान के बाद हम भी इतने भाव विभोर हो गए कि हमने भी उनका गले लगा कर अभिनंदन किया और एक गुलदस्ता भेंट किया ।
महात्मा गांधी का मानना था ," स्त्री पुरुष की सहचरी है , उसकी मानसिक शक्ति पुरुष के समान ही है और उसे पुरुष की छोटी से छोटी प्रवृति में भाग लेने का अधिकार है । जितनी स्वतन्त्रता पुरुष को है उतनी ही स्वतन्त्रता भोगने का अधिकार उसे भी है । जैसे पुरुष अपने क्षेत्र में सर्वोपरि है , वैसे ही स्त्री भी अपने क्षेत्र में सर्वोपरि है । यह स्थिति स्वाभाविक होनी चाहिए ।"
इस गांव में महिलाओं के स्वावलम्बन के लिये किये जा रहे कार्यो को देख कर बेहद प्रसन्नता हुई । न केवल महिलाओ द्वारा कार्य का करना अपितु जनवादी ढंग से उनका कार्यान्वयन करना यह थी यहाँ से सीखने की शिक्षा ।इन महिलाओं ने पन्द्रह गांवो में निम्न स्तर से अपनी इकाइयां गठित की है जो केंद्रीय स्तर पर अपनी समितियों का गठन प्रतिनिधित्व के आधार पर करती है । यह जान कर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि अनेक युवतियां इस कार्य को नेतृत्व प्रदान कर रही है । खासियत यह कि वे घर का चूल्हा चौका भी सम्भालती है , काम भी और पढ़ाई भी जारी रखे हुए है । श्री राम देवी तथा कोनिका रानी नाथ व शुभा रानी साइंस विषय मे ग्रेजुएशन कर रही है जबकि कार्यकर्ता बहने ज्योति रानी ,रत्ना रानी , आणि बेगम, आरती रानी ,जहाँआरा बेगम, अमीना, ख़दीजा ,जन्नत फिरदौस ,सलीमा, मुमताज ,नसीमा , आसमा व अन्य सभी को सलाम ।
20.राजबाड़ी, (वर्तमान उप जिला रामगंज ,तत्कालीन नोआखाली ,बांगलादेश)
यह वह गांव है सन 1946 में नोआखाली प्रवास के दौरान जिसमे महात्मा गांधी कुल 13 दिन रहे थे । यह गांव वास्तव में केंद्र था उन सभी गांवो का, जहां तनाव व साम्प्रदायिक नफरत पूरे जोरो पर थी । कुल आबादी की बहसँख्या में हिन्दू थे परन्तु मुस्लिम लीग तथा हिन्दुमहासभा की राजनीति ने इस पूरे क्षेत्र में आदमी - आदमी के खून का प्यासा था । सुहरावर्दी सहित अनेक मुस्लिम लीग के नेता तथा इसके विपरीत एस पी मुख़र्जी की हिंदुत्व की राजनीति अपनी चरम सीमा पर थी । ऐसे समय मे जब वातावरण घृणित एवम हवाओ में खून और हिंसा का बवंडर हो ऐसे में शायद इस सहस्त्राब्दी का नायक ही इसे शांत कर सकने की हिम्मत कर सकता था । वे यहाँ नजदीक के 'मोहिनी ' रेलवे स्टेशन तक कोलकोता से आये तथा फिर बैलगाड़ी से यहाँ पहुचे । इस गांव में उनका वह मकान सुरक्षित है ( कुछ सुधरे हालात में) जहाँ वे रुके थे । उस घर के बाहर ही कुछ खुला स्थान है जहाँ बापू सुबह तथा शाम को सर्व धर्म प्रार्थना करते थे । बेशक यहाँ कोई स्मारक नही है परन्तु स्थानीय लोगो के दिलो दिमाग मे यह छाया हुआ है । गांव के हर छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े तक, इस मकान तथा खुली जगह की अहमियत को बखूबी जानते है । सबसे प्रसन्नता यह रही कि गांव के दो बुजुर्गो मोहम्मद जीतू मियां उम्र 90वर्ष तथा श्री अब्दुल कलाम भूरिया उम्र 92 वर्ष से मिलने का सौभाग्य मिला । ये वे भाग्यवान है जिन्होंने अपनी उस समय 18 -20 साल की आयु में न केवल बापू के दर्शन किये अपितु उनके साथ शांति -सद्भाव पदयात्रा में भाग लिया । गांधी जी का नाम सुनते ही उनकी बुझी आंखों में चमक आ गयी तथा वे ऐसे स्फूर्त एवम सक्रिय नज़र आये जैसे अपने 72 वर्ष पूर्व के जीवन में पहुंच गए हो । वे एक नौजवान लड़के की तरह फुदक फुदक कर हर उस स्थान के बारे में बता रहे थे जैसे वह कल की बात हो । वे बता रहे थे 'यहाँ बापू रहते थे ,यहाँ प्रार्थना करवाते थे और यह वह रास्ता था जहाँ से वे हर सुबह आस पास के इलाकों में जाते और शाम को थक हार कर लौटते थे ।' मन चाह रहा था कि वे बोलते रहे और हम सुनते रहें । जब हमने इन बुजुर्गो से पूछा कि बापू कैसे थे ? तो वे दोनों भावुक हो कर बोले " गांधी जी जैसा, न तो कभी हुआ है और न कभी होगा"। उन्हें बीबी आलमातुल सलाम की भी खूब याद है जिन्होंने इस इलाके में रह कर काम किया । और उस होम्योपैथिक डॉक्टर को तो भूले नही भूलते जो उस समय दक्षिण भारत के विशाखापटनम से आया था बापू के आह्वान पर ,परन्तु बस गया यहीं । रेड्डीपुलह सत्यनारायण ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने गांधी जी के वापिस जाने के बाद भी यही रह कर छोटे -२ पुल बनाये । एक छोटी पत्रिका 'प्रेम समाज'का भी प्रकाशन किया और यहीं लोगो के बीच रहते हुए वर्ष 1994 में अपनी अंतिम यात्रा की । लोग आज भी मोनू रज़ा , वसु तथा पगला रज़ा को याद करते है जो बापू के साथ रह कर सद्भाव तथा मोहब्बत का काम करते रहे । हमारे लिये यह 'बापू तीर्थ यात्रा ' रही जो न केवल पुण्य दायक रही अपितु प्रेरणादायक भी है ।
' दे दी तूने आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल ,
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल ।'
21.रामगंज ,वर्तमान ज़िला कुमिला , बांग्लादेश
गांव राजबाड़ी से हम गाड़ी से लगभग 30 किलोमीटर चल कर बाजार रास्ते से रामगंज के केंद्र में स्थित " श्री बलदेव मंदिर " में पहुचे । मन्दिर का लगभग 25-30 एकड़ भूमि में फैला परिसर है । बीच मे एक विशाल तालाब है तथा उसके साथ ही लगता मन्दिर है जहाँ श्री बलदेव ( भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई ) तथा परिवार की सुंदर मूर्तिया प्रतिष्ठित है तथा बाहर उनकी लीला झांकियों की आकर्षक झांकियां है । इसके बिल्कुल पीछे ही मन्दिर के अधिष्ठाता श्री अपूर्वा साहा जी का निवास है वही आज का दोपहर का भोजन था । श्री अपूर्वा साहा ,स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दुओ के लोकप्रिय नेता है । विद्यार्थी जीवन मे वे वामपंथी छात्र यूनियन में सक्रिय रहे तथा अब सत्तारूढ़ अवामी लीग के समर्थक है । वे हमारे भाई जी आदरणीय सुब्बाराव जी के भी अनुयायी है तथा अनेक बार उनके द्वारा आयोजित युवा शिविरों में भाग लिया है । वैसे तो उनका पूरे का पूरा घर ही देवी - देवताओ के विभिन्न चित्रो से पटा है परन्तु इसी बीच भाई जी सुब्बाराव व उनका चित्र बहुत ही आकर्षित करता है । मुझे उनमे भाई जी के प्रति श्रद्धा तथा अनुराग को देख कर बेहद खुशी हुई । भाई जी के देश -देशांतर में काफी युवा अनुयायी है वे सभी उन्हें अपना मार्गदर्शक एवम गुरु मानते है । इस 90 वर्षीय युवा में भी अजीब ऊर्जा ,स्फूर्ति एवम प्रेरणादायक आकर्षण है जो सहज ही सभी ओर खींचता है । वे बहुत ही सहज तथा विनोदी है । वे अक्सर कहते है कि वे तो अपनी जीवन यात्रा पूरी करने के लिए पिछले अनेक सालों से तैयार है पर वे क्या करे जब यमराज अपना दूत उन्हें लेने के लिये दिल्ली भेजता है तो मैं मुम्बई में होता हूं ,और जब वह मुम्बई भेजता है तो मैं इंदौर में , जब वह इंदौर तो मैं श्रीनगर में । वह मेरे पीछे भागते -२ थक गया है । वास्तव में वे एक ऐसे यायावर है जो हमेशा " चैरिवति - चैरिवति'( चलते रहो - चलते रहो ) के सिद्धांतों का पालन करते है । वे बांगलादेश में भी एक और शिविर लगाना चाहते है हम समझते है कि उनकी यह कामना शीघ्र ही पूरी होंगी । मैने जब अपूर्वा साहा को भाई जी के विशेष स्नेह के बारे में बताया तो वे भावपूर्ण हो गए । उनका कहना था कि वे भी भाई जी का बांगलादेश में आगमन का उत्सुकता से इंतज़ार कर रहे है , हरि कृपा से वह शीघ्र ही पूरी होगी ।
हमने जब अपूर्वा से बांगलादेश में अल्पसंख्यको के हालात के बारे में जानकारी चाही तो उनका कहना था कि वैसे तो सब ठीक -ठाक है परन्तु जब भारत से कुछ अप्रिय समाचार आते है तो उसका लाभ धर्मांध लोग हिंदुओं के खिलाफ दमन चक्र चला कर उठाते है इसलिये भारत मे सहिष्णुता ही अन्य देशों में अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा की गारंटी है ।
हम इस स्थान पर लगभग दो घण्टे रुके। इस समय मे भोजन के साथ -२ ,वार्ता , परिवार के साथ मेल-जोल तथा फोटो सेशन में रहा । पूरा परिवार पूर्णतः वैष्णव तथा धर्मनिष्ठ है । उनका अतिथि सेवा भाव अनुकरणीय एवम प्रशंसनीय है ।
उनके मन्दिर दर्शन ,बुजुर्गो को चरण स्पर्श तथा प्रणाम कर हम अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर रवाना हुए ।
22.नोआखाली
"
मनोरथ पूरा हुआ"
यह कहना औपचारिकता से परे है कि झरना दीदी किसी भी परिचय की मोहताज नहीं है। उन्हे केवल बांग्लादेश में ही नही अपितु पूरे विश्व के अनेक देशों ने उनके कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्हें कई सम्मान, अवार्ड एवं पुरस्कारों से सम्मानित किया है। भारत सरकार ने उन्हें अपने तीसरे सर्वोच्च पुरस्कार 'पद्मश्री ' से अलंकृत किया है वही रचनात्मक कार्यों का सर्वोच्च पुरस्कार 'जमनालाल बजाज पुरस्कार' से भी उन्हें नवाजा गया है मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे संत विनोबा की मानस पुत्री दीदी निर्मला देशपांडे जी के संरक्षण ,सानिध्य एवं नेतृत्व में काम करने का शुभ अवसर मिला है। वह मेरी मां ,गुरु एवं मित्र थी, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हर समय प्रेरणा देने का कार्य किया । उन्हीं के सानिध्य एवं प्रेरणा का ही सुयश रहा कि अनेक दिग्गज राजनेताओं, संत- महात्माओं एवं समाज सेवकों से मिलने का सौभाग्य मिला । वे सब को जोड़ना चाहती थी । उनके गुरु संत विनोबा का कथन था कि 'जोड़ना अध्यात्म है तथा तोड़ना पाप ।'इसलिए उन्होंने' 'तोड़ो नहीं जोड़ो' का सदा आह्लाद किया । न केवल मित्रों से अपितु अमित्रो से भी प्रेम व्यवहार एवं स्नेह पूर्वक व्यवहार का उनका संदेश सदैव स्मरणीय है गांधी- विनोबा परंपरा की वह एक ऐसी विरासत थी कि उनके महाप्रयाण के पश्चात भी वह परंपरा हमें लगातार काम करने की प्रेरणा देती है ।
झरना दीदी हमारे लिए स्वर्गीय निर्मला देशपांडे जी का ही प्रतिरूप है जिनका जन्म 15 अक्टूबर 1936 को नोआखाली के एक सभ्रांत परिवार में हुआ था । वह जब 8 वर्ष की ही थी तभी उन्होंने नोआखाली क्षेत्र में सांप्रदायिकता हिंसा मंजर को अपने बाल सुलभ आंखों से देखा । हालात ऐसे पैदा हुए उनके पूरे परिवार को नोआखाली से असम विस्थापित होना पड़ा । इस दौरान महात्मा गांधी उस क्षेत्र में आए और कुल 4 माह 13 दिन तक पूरे तनावग्रस्त क्षेत्र में नंगे पांव पदयात्रा की ।झरना दीदी के बाल सुलभ मन पर 'हिंसा और बापू' दोनों का प्रभाव पड़ा । वह इससे मुक्तिदाता के रूप में महात्मा गांधी को ही महसूस करती थी ,इसलिए उस बालिका ने अपने बचपन में ही गांधीजी को अपना गुरु ,आदर्श एवं नायक मानकर उनके रास्ते पर चलने का संकल्प किया । मात्र 17 वर्ष की अवस्था में उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी बहन के साथ मिलकर हिंसाग्रस्त परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए एक स्कूल चलाने का कार्य किया । दोनों बहने सप्ताह में 2 दिन भोजन न खाकर उस बचत से पैसे इकट्ठे कर अभावग्रस्त विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें, स्टेशनरी एवं शिक्षा के अन्य संसाधन जुटाती थी । दुर्भाग्यवश वह स्कूल नहीं चला पर उन्होंने जिस संकल्प को लिया था, शिक्षा- प्रशिक्षण, स्त्री शक्ति जागरण ,स्वावलंबन, सशक्तिकरण और सर्वधर्म समभाव उस पर वे आज भी चल रही है ।अपने नोआखाली प्रवास के दौरान ,झरना बहन से 5 बार मिलने का अवसर मिला उनका आकर्षक व्यक्तित्व, तेजपूर्ण चेहरा एवं गरिमामय उपस्थिति किसी को भी अपनी और आकर्षित करती हैं । हमें भी उनको मिलने के लिए कभी भी पूर्व सूचना एवं अपॉइंटमेंट की जरूरत नहीं पड़ी। जब चाहा उनके घर की तरफ गए, दरवाजा खोला और घर मे दाखिल हो गए ।झरना दीदी को अन्य बहनें बताती कि 'इंडिया वालेआये हैं' , और जैसे तैसे वे मोटे खादी की धोती लपेट और मिलने के लिए चली आती ।अन्य सेविका बहनों को कहती ," चाय लाओ, मिठाई लाओ ,नमकीन लाओ ।" तन्द्रा बहन कहती कि अभी वे अस्वस्थ हैं यदि कभी हम पहले आते तो वे अपने हाथ से कई तरह के शाकाहारी व्यंजन पकवान बना कर आपको खिलाती । ऐसा सुनते ही मुझे अनायास ही निर्मला दीदी याद आ गई कि हम जब भी उनके पास दिल्ली जाते तो दीदी किचन में जाकर पोहा, चावल ,सब्जी -रोटी खुद बनाती और डाइनिंग टेबल पर बिठाकर एक मां की तरह बड़े प्यार से खिलाती और कहती " राम मोहन जी और खाओ न ।" ऐसे क्षण बहुत ही भावुकतापूर्ण होते और यदि यह किसी को मिल जाए तो वह अत्यंत भाग्यशाली होता है जब गांधी इंस्टिट्यूट में एक सभा हमारे स्वागत में आयोजित की गई तो सभी बच्चे एवं स्टाफ सदस्य वहां मौजूद थे पर तभी देखा कि उस दूसरी मंजिल स्थित सभागार में झरना दीदी भी आ पहुंची । वें बड़ी मुश्किल से चढ़ी होंगी परंतु यह उनका स्नेह ही था थकते -हांफते , रुकते -२ दूसरी मंजिल पर आई और हमें अपने आशीर्वाद स्वरुप अंग वस्त्र भेंट किया ।उन्होने हमे अनेक उपहार दिए पर हमारे पास तो मेरे द्वारा लिखित पुस्तक "दीदी की छांव में" ही थी । हमने उसे ही उन्हें दे दिया उन्होंने उसे स्वीकार किया । मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता ने बापू का प्रिय भजन "वैष्णव जन तो तेने कहिए" का गायन किया तो वे मंत्रमुग्ध हो गई और उन्हें गले लगाया । शाम को हम उनसे मिलने उनके घर गए तो मैंने पाया कि उनके कक्ष में महात्मा गांधी की एक छोटी मूर्ति जिसको खादी के वस्त्र एवं सूत माला पहनाई हुई थी ,उसके चरणों में मेरी पुस्तक रखी है । ऐसा कर उन्होंने ने न केवल हमें अपितु अपने प्रिय मित्र स्वर्गीय दीदी निर्मला देशपांडे को भी सम्मानित किया था । हमारी अश्रुधारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी पर झरना दीदी थी कि घर में रखे बिस्कुट, रोस्सोगुल्ला ,संदेश और अंगूर को लाने के लिए सेविका बहन को कहे जा रही थी ऐसा निश्चल प्रेम दीदी निर्मला देशपांडे जी के निधन के 10 वर्षों बाद हमें झरना दीदी से मिला ।अगले दिन सुबह दीदी के पास फिर मिलने गए जबकि विदाई मुलाकात तो शाम को हो ही चुकी थी । पर कौन नही ऐसा आशीर्वाद बार बार लेना चाहेगा। चरण स्पर्श किया आशीर्वाद लिया उनसे प्रार्थना कि वे इंडिया आये ।उन्होंने भी मंगल कामना की और कहा कि आश्रम में फिर आइएगा ।हमने वे सभी मार्मिक चित्र फेसबुक पर लगाये । इस पर प्रसिद्ध गांधी सेवक रमेश चंद्र शर्मा ने कमेंट किया " झरना दीदी से मुलाकात कर तुम्हारा मनोरथ पूरा हुआ , तीर्थ यात्रा सफल हुई ।"
23.नोआखाली में बापू
गांधी आश्रम ट्रस्ट, नोआखाली, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक ऐसी विरासत है जिसे उनकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में वर्ष 1946 में स्थापित किया गया ।बापू इस क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव के दिनों में लगभग 4 माह रहे थे उन्होंने इस पूरे इलाके में नंगे पांव घूम-घूमकर सामान्य जनों को सद्भावना एवं अहिंसा का संदेश दिया था। हिंसा की आग में एक तरफ लोगों के घर जल रहे थे, हत्याएं हो रही थी, बहन- बेटियों की इज्जत लूटी जा रही थी और सबसे बढ़कर आपसी विश्वास खत्म हो रहा था, ऐसे समय में गांधी अपने चन्द साथियों के साथ गांव-गांव में सत्य - प्रेम -करुणा का संदेश दे रहे थे। वह निहत्था शांति सैनिक तमाम हथियारों से लैस साम्प्रदायिक तत्वों के उन्मादी समूह पर भारी था। 29 जनवरी 1946 को वह गांव जायग में आए। हर वर्ग व संप्रदाय के नर- नारीयों ने उनका अभिनंदन किया और यहीं से शुरुआत थी शांतिपूर्ण-अहिंसक ढंग से परिवर्तन की । इसी गांव के एक सम्मानीय बैरिस्टर श्री हेमंत कुमार घोष ने इसी गांव की अपने तमाम संपदा को इस क्षेत्र के विकास तथा शांति के लिए बापू जी के चरणों में भेंट स्वरूप रख दिया। इस प्रकार "अंबिका कालीगंगा चैरिटेबल ट्रस्ट" की स्थापना हुई और गांधी शांति मिशन जो कि गांधी शिविर के नाम से जाना जाता था को जायग के वर्तमान परिसर में बदल दिया गया। इस गांधी शिविर में शांति एवं अन्य सेवा कार्यों को भारत विभाजन तक जारी रखा गया और इस के बाद विशेषकर गांधी जी के बलिदान के पश्चात उनके कुछ सहयोगियों को छोड़कर अधिकांश महिलाएं एवं कार्यकर्ता नोआखाली से चले गए । पाकिस्तान के तत्कालीन कठमुल्ला शासन ने गांधी सेवको के ऊपर दमनचक्र का कहर ढाया और उनमें से अधिकांश आजीवन जेल में डाल दिए गए। ट्रस्ट की जमीन व अन्य संपत्तियों को समाज विरोधी और भूमाफियाओं ने हथिया लिया और इन हालात में ट्रस्ट द्वारा कोई भी कार्य किए जाना असंभव हो गया पीस मिशन के प्रबंधक श्री चारू चौधरी को 1963 से 1971 तक अनेक बार जेल जाना पड़ा । बांग्लादेश की स्वाधीनता के पश्चात वर्ष 1971 में वे रिहा हुए । श्री चारु मजूमदार ने बांग्लादेश की स्वाधीनता के पश्चात आश्रम के सभी कार्यों को सुचारु रुप से संचालित करना प्रारंभ किया । उन्होंने ट्रस्ट की संपदा को छुड़वाया और उन्हीं के प्रयासों से बांग्लादेश सरकार ने गजट नोटिफिकेशन द्वारा 'अंबिका कालीगंगा चैरिटेबल ट्रस्ट' का नाम परिवर्तित कर 'गांधी आश्रम ट्रस्ट ' के रूप में मान्यता दिलवाई। बांग्लादेश एवं भारत सरकार के संयुक्त प्रतिनिधियों के नेतृत्व में एक प्रबंधन समिति का गठन किया गया और इस प्रकार ट्रस्ट का कार्य प्रारंभ हुआ ।
प्रारंभ में अंबिका कालीगंगा चैरिटेबल ट्रस्ट ने नोआखाली हिंसा के दौरान पीड़ित लोगों के पुनर्वास का कार्य करना प्रारंभ किया। पीड़ितों को पुनर्वासित किया गया और इसके साथ-साथ अन्य सहायता कार्य भी जारी रखे गए । यह कार्य आसान नहीं था परंतु गांधी सेवा ट्रस्ट के वजूद में आने के बाद इसने अपने कार्यों को नए ढंग से प्रस्तुत करने का निश्चय किया। अब यह गांधी दर्शन के अनुसार ग्रामीण विकास एवं सद्भाव का काम करने वाली एक अन्य संस्था है। गांधी आश्रम ट्रस्ट स्थानीय निर्धन समुदाय, श्रमिक वर्ग एवं विधवा एवं परित्यक्ता महिलाओं के विकास एवं सशक्तिकरण के लिए एक समूह के रूप में कार्य करता है। जिसका मकसद स्थानीय कला एवं विज्ञान को जागृत कर समाज को एक नई दिशा देना है। इसकी संपूर्ण गतिविधियां जनतांत्रिक है, जो निचले स्तर पर छोटे-छोटे समूह बनाकर उच्चतम स्तर पर केंद्रीय परिषद के नेतृत्व में काम करती है। यह मानव संसाधनों के विकास, मानवाधिकार, सुशासन, स्थानीय निकाय के लोगों को प्रशिक्षण, कानूनी अधिकार एवं लिंग संवेदनशीलता पर अनेक कार्यशालाओं, जागरूक शिविरों एवं सम्मेलनों का आयोजन करके करता है। कक्षा एक से 10 वीं तक एक स्कूल ट्रस्ट द्वारा परिसर में ही संचालित है, जिस स्कूल का स्वयं महात्मा गांधी ने वर्ष 1947 में उदघाटन किया था और वर्तमान में स्कूल में निर्धन परिवारों के 500 से भी अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 3000 विद्यार्थियों को अनौपचारिक शिक्षा तथा 2000 वयस्क लोगों को भी शिक्षित किया जा रहा है। आश्रम ट्रस्ट आपसी बचत के माध्यम से बैंक समूह का कार्य भी सफलतापूर्वक कर रहा है और अब तक 10000 से भी ज्यादा ऐसे लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य किया गया है। उत्तम एवं वैज्ञानिक ढंग से खेती एवं बागवानी का शिक्षण प्रशिक्षण भी ट्रस्ट द्वारा लगातार किया जाता है। और इसके साथ-साथ पानी के बचाव, स्वच्छता एवं हाइजेनिक प्रमोशन पर भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा हैं। मानवाधिकार एवं सुशासन पर ट्रस्ट का काम अनुकरणीय है। ग्रामीण स्तर पर सूचना, ज्ञान एवं प्रबंधन का प्रशिक्षण भी निरंतर किया जा रहा है। मछली पालन संस्कृति एवं उसका विस्तार भी इसकी योजनाओ में शामिल है । गांधी जी के दर्शन को आधार मानकर उसकी उपयोगिता को दर्शाते हुए हस्तकला और खादी जैसे उत्तम विचार के प्रचार प्रसार के लिए ट्रस्ट के कार्य सर्वथा अनुकरणीय है। देश में महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा एवं प्रेम के विचार को बढ़ाने के लिए समय-समय पर विभिन्न स्थानों, स्कूलों एवं अन्य सामुदायिक केंद्रों में ट्रस्ट का कार्य चलता रहता है। ट्रस्ट परिसर में ही वर्ष 2000 में गांधी स्मृति संग्रहालय की स्थापना की गई है जिसमें प्रतिवर्ष हजारों लोग इसे देखकर प्रेरणा प्राप्त करते हैं। बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि अब यह ट्रस्ट इंटरनेशनल पोजीशन ऑफ साइंस ऑफ कांशसनेस का भी सदस्य है । आश्रम की स्थापना एक युगांतरकारी कदम है।
इसके अतिरिक्त पर्यावरण बदलाव ,आपातकाल सहायता, शोध एवं प्रकाशन के अनेक मुद्दों पर लगातार कार्य हो रहे हैं। भारत, बांग्लादेश सहित जैसे अनेक राष्ट्रों के सहयोग से ट्रस्ट निरंतर प्रगति पथ पर है। ट्रस्ट के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गौर गोपाल साहा ,सचिव पद्मश्री झरना धारा चौधरी एवं निदेशक नब कुमार राहा के यशस्वी नेतृत्व में यह ट्रस्ट संपूर्ण बांग्लादेश में एक अग्रणी संस्थान के रूप में उभर रहा है। हम इसके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं हमारा यह सौभाग्य है कि हमें ऐसे ऐतिहासिक विश्वविख्यात संस्थान में जाने एवं मार्गदर्शन प्राप्त करने का अवसर मिला।
24.नोआखली(बांगलादेश) में बा- बापू 150 पर संवाद
रामगंज से सड़क रास्ते द्वारा लगभग ढाई घंटे लगातार चलकर हम लोग नोआखाली शहर पहुंचे । पूरा रास्ता सरसब्ज था। बीच में एक छोटा सा कस्बा पड़ा जहां एक बड़ा जलसा हो रहा था। जलसे में हर तरफ लाल झंडे लगे थे और एक युवा महिला लोक भाषा में क्रांतिकारी गीत गा रही थी। देखने पर आभास हुआ कि महान क्रांतिकारी, चिंतक एवं दार्शनिक कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती के अवसर पर समारोह आयोजित किया जा रहा है, जिसमें बांग्लादेश सरकार के एक मंत्री भी पधार रहे हैं। वे किसान श्रमिक पार्टी के एकमात्र सांसद हैं तथा सत्तारूढ़ नेशनल अवामी लीग की सरकार में सहयोगी हैं। भारत की तरह बांग्लादेश में भी कम्युनिस्ट आंदोलन कई हिस्सों में बंटा है। बांग्लादेश कम्युनिस्ट पार्टी से टूटकर बनी कृषक श्रमिक पार्टी तो सत्तारूढ़ गठबंधन में है परंतु कम्युनिस्ट पार्टी उससे बाहर है। कार्ल मार्क्स के जन्मदिन को एक छोटे कस्बे में मनता देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। वे एक ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था की समाप्ति तथा मजदूर वर्ग के शासन समाजवादी व्यवस्था की बात कही थी। वैज्ञानिक समाजवाद के प्रबल प्रवक्ता मार्क्स ने 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र' तथा 'दास कैपिटल' की रचना करके 'दुनिया भर के मेहनतकशों एक हो जाओ' का नारा दिया था। अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा वाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स ने अपना पूरा पारिवारिक जीवन अभावों में जिया था, परंतु उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था का सिद्धांत दिया जिसमें कोई भी भूखा, नंगा, बेरोजगार और बीमार न हो। संत विनोबा ने कार्ल मार्क्स को महामुनि मार्क्स कहा था। इसी महामुनि को स्मरण करते हुए हम शाम 5:30 बजे नोआखाली पहुंचे, जहां एक गैर सरकारी संगठन 'नोआखाली रूरल डेवलोपमेन्ट सोसाइटी' के मुख्यालय में लगभग 100 बुद्धिजीवी एकत्रित थे जिनकी सभा में हमने भाग लेना था। सभा मे स्थानीय एडवोकेट्स , शिक्षक , डॉक्टर्स , रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स , कलाकार , सामाजिक कार्यकर्ता एवम अनेक राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि सभी तो थे । संगठन के मुख्य समन्वयक श्री अब्दुल अवल एक बहुत ही संजीदा विचारक एवं अग्रणी कार्यकर्ता है। वे मार्क्स एवम गांधी दोनों को ही मानने वाले हैं। बैठक से पूर्व ही मेरा परिचय उनके बड़े भाई श्री मोहम्मद अकबर,एडवोकेट से करवाया गया। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई श्री अकबर भी सन 1986 में ताशकंद के उसी स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं, जिसमें मैं सन 1981 में पढ़ा था ।सभा में औपचारिक स्वागत-सत्कार के पश्चात मैंने वर्तमान संदर्भ में 'महात्मा गांधी एवं उनके विचार की प्रासंगिकता' पर अपनी बात रखी और उसके बाद तो प्रश्नों की झड़ी लग गई सवाल यह था कि 'भारत की आजादी के बाद उसे स्वतंत्रता दिलाने वाले गांधी के आदर्शों को भारत में क्या अमल में लाया गया है?' 'सांप्रदायिक शक्तियों के सामने क्या भारत के धर्मनिरपेक्ष लोगों ने घुटने टेक दिए हैं?' 'क्या वर्तमान हालात में वामपंथी जनवादी शक्तियां एक हो पाएंगी?' 'महात्मा गांधी अभी मठों में है अथवा जनता के बीच में है?' 'क्या भारत की राजनीतिक सत्ता संकीर्णता वादी नेतृत्व की जकड़न की तरफ बढ़ रही है?' 'क्या वामपंथी आंदोलन नेपाल के घटनाक्रम से सबक लेकर एकता की तरफ बढ़ेगा?' 'भारत में महिलाओं की स्थिति क्या है?' 'युवा एवं विद्यार्थियों की सत्ता से क्या अपेक्षाएं हैं क्याउसे पूरा किया जा सकेगा?' 'भारत और बांग्लादेश की मैत्री स्वाभाविक है अथवा सिद्धांतों पर है?' ऐसे अनेक प्रश्नो के जवाब देने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। सभा की अवधि एक घंटा निश्चित की गई थी परंतु 6:00 बजे से प्रारंभ हुई बैठक रात्रि 9:00 बजे तक समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी। भारत और बांग्लादेश के दरवाजे तो खुले है परन्तु खिड़कियां बंद हैं। एक दूसरे को समझने के लिए तथा बेहतर बनाने के लिए दोनों तरफ से जनता के स्तर पर निरंतर कार्यक्रम प्रारंभ किए जाने की बेहद आवश्यकता है। जनता ही वह शक्ति है जो एक प्रबल शांति आंदोलन को जन्म देकर नफरत, भेदभाव और विघटन की दीवार को गिरा देगी। बैठक में निश्चित किया गया कि अक्टूबर माह में बांग्लादेश से 5 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल भारत आएगा जो बा- बापू 150 के पूरा होने तक 200 लोगों के आने जाने का मार्ग प्रशस्त करेगा सभा का समापन गुरु रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित बांग्लादेश एवं भारत के राष्ट्रगान से हुआ। इससे पूर्व बांग्लादेश की एक युवा कार्यकर्ता ने स्थानीय भाषा में गीत गाया जिससे उत्साही होकर मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता ने भी राजस्थानी लोक भाषा में एक गीत का सस्वर गायन किया। 'हम होंगे कामयाब एक दिन' का सामूहिक गान बांग्ला, अंग्रेजी तथा हिंदी में सभी ने मिल कर किया। मैंने सभी को 'जय बांग्ला' 'जय हिंद' तथा 'जय जगत' के नारों से अभिवादन कर प्रसन्नता की वृद्धि की। रात्रि को भोजन के पश्चात इसी NGO में रात्रि विश्राम किया। श्री अब्दुल अवल की विनम्रता, उदारता एवं आतिथ्यभाव ने हमारे मन को जीत लिया। बहाने से वे तो किचन के साथ वाले छोटे कमरे में सोए जबकि उन्होंने अपना शयनकक्ष हमें दे दिया। प्रातः काल, श्री अब्दुल अवल से विदा होकर नोआखली की अनेक भावपूर्ण स्मृतियों को संजोकर हम ढाका की तरफ रवाना हुए।
25.अभय आश्रम ,कोमिला
नोआखाली का सुबह का मौसम बहुत ही डरावना रहा । तेज हवाओं के साथ अंधड़ के साथ बारिश होने लगी थी । इधर पानीपत के साथियो से पता चल रहा था कि सरकार ने उत्तर भारत मे तेज तूफान के आने की सूचना जारी कर सभी विद्यालय , सरकारी एवम गैर सरकारी संस्थानों को तीन दिन के लिये बन्द कर दिया । जब नोआखाली में भयंकर तूफान आया तो मैने सोचा शायद यही तूफानी हवाएं वहाँ जाएंगी । पर शंका निर्मूल साबित हुई । मैंने जब पानीपत के साथियो से सम्पर्क किया तो पता चला कि तूफान की इंतज़ार तो है पर अभी तक तो आया नही । बाद में पता चला कि बारिश के साथ ओले तो पड़े परन्तु वह नही आया जिसका हौव्वा खड़ा किया गया था । यहाँ तूफान -बारिश बन्द होने के बाद हम कोमिला की तरफ रवाना हुए । इस बार हमारे साथ हमारी होस्ट फैमिली श्री नब कुमारजी , उनकी पत्नी तंद्रा व सुपुत्र अनन्य भी साथ रहे । कोमिला एक ऐतिहासिक शहर है । सेना की छावनी के रूप में इसकी पहचान रही है । बांग्लादेश के मुक्ति संघर्ष में हम अक्सर इसके बारे में सुनते थे । यही से मुक्ति वाहिनी तथा भारतीय सेना की वीरता पूर्ण कार्यवाहियों से त्रस्त होकर पाकिस्तान की फ़ौज पीछे हटनी शुरू हुई थी तथा जिसकी परिणीति ही आत्म समर्पण रही ।
इसी शहर में गांधी जी द्वारा स्थापित 'अभय आश्रम' है जहाँ गांधी आश्रम ट्रस्ट की अनेक गतिविधियां चल रही है । आश्रम में प्रवेश करते ही ' एक कमरे में एक शिक्षिका लगभग 15 -20 छोटे -२ प्यारे बच्चों को पढ़ा रही थी । शायद यह नर्सरी क्लास थी । हम सहज ही उस क्लास में प्रवेश कर गए । बच्चों से बातचीत शुरू की व अपना परिचय दिया । इसके बाद पूरे स्कूल में घूम कर एक जायजा लिया । इसका वातावरण इतना सुरम्य था कि इस स्थान की गरिमा का अंदाजा खुद ही हो जाता है । परिसर में ही एक विशाल तालाब है जिसमे कमल के फूल तथा सुनहरी मछलियां तैरती दिख रही थी ।ऐसा रमणीय वातावरण कहीं और देखने को नही मिला । महात्मा गांधी के दर्शन एवम व्यक्तित्व की छाप यहाँ आकर प्रत्येक कार्यकर्ता , उपस्थित जन एवम क्रियाकलापो से मिली । स्कूल की सेवा सुषुर्षा ने भी हमे अभिभूत किया । बैठते ही सेवक वाहिद मियां ने गरमा गरम समोसे ( सिंघाड़े), मिठाई तथा चाय परोसी । उनका आग्रह इतना था कि कुछ भी औपचारिकता की गुंजाइश नही थी । स्कूल के प्रिंसिपल श्री मोती लाल फदरा ,तथा अन्य स्टाफ सदस्य गणेश चंदर पाल, निर्पेन्द्र चंद्र दत्ता एवम श्रीमती स्वर्णा पाल का व्यवहार एवम आतिथ्य सदैव स्मरणीय रहेगा । मेरे पास कुल तीन पुस्तके " दीदी की छांव" ही थी । एक मैने झरना दीदी को भेंट की तथा दूसरी यहां देनी उपयुक्त समझी । बेशक किताब हिंदी में है और ये सभी हिंदी नही जानते परन्तु मेरा मन रहा कि इस बहाने स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी का चित्र तो यहाँ रहेगा । कुछ समय रुक कर हम जल्दी जल्दी में ढाका की तरफ रवाना हुए । श्री नब कुमार जी ने कार्यक्रम ही इस प्रकार बनाया था कि समय का पूरा सदुपयोग हो तथा सभी वृतियों को देखा - समझा जाए । तभी मेरे एक मित्र का भारत से मैसेज आया कि क्या बात ,वापिस नही लौटना क्या ? इस पर मेरा जवाब था कि वापिस आना तो पड़ेगा पर यदि सच पूछो तो यहीं बस जाने का मन है ।
26.बंगबंधु भवन ,ढाका
कुमिला से चल कर हम लगभग शाम चार बजे , बांग्लादेश के राष्ट्रपिता व पूर्व प्रधानमंत्री बंगबंधु शेख़ मुजीबुर्रहमान के धानमंडी स्थित घर ''बंगबंधु भवन 'पहुचे । यह वह स्थान है जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ मुजीबुर्रहमान सहित उनके सत्रह पारिवारिक सदस्यों को बागी सेना के सैनिकों ने बहुत ही निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया था । उस दिन का वह मंज़र मुझे याद है जब हमारी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी , भारत के स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त ,1975 को लाल किला ,दिल्ली की प्राचीर से राष्ट्र को सम्बोधित करने आयी थी । उनका गला रुंधा हुआ था तथा आवाज में कम्पन थी इसे रुआंसे स्वर में उन्होंने बताया था कि ' बांग्लादेश की आज़ादी का हरण हो गया है तथा वहाँ के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की उनके परिवार सहित हत्या कर दी गयी है ।' यह सुन कर पूरा देश स्तब्ध हो गया था । उस दिन कोई ही तो ऐसी आंख होगी जिससे आंसू न टपके हो और कोई ही घर ऐसा होगा जिसके घर चूल्हा जला हो । मन मे तड़पन थी कि कभी कोई ऐसा अवसर आये जब मैं अपने 'हीरो' शेख मुजीब को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने उनके आवास पर जाऊ और उनके पारिवारिक जन को मिल कर अपनी संवेदना प्रकट करू । यह अवसर आज मिलने जा रहा था । ढाका पहुचते ही घर जाने से पहले हमने यहाँ आना ही मुनासिब समझा । इस भवन को मार्च ,1981 में शेख़ मुजीब की बेटियों शेख हसीना ( बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री) व शेख रेहाना को वापिस कर दिया था क्योंकि सिर्फ वे ही दो ऐसी सौभाग्यशाली रही जो हत्या की उस काली रात को पढ़ाई के सिलसिले में लंदन में होने की वजह से बच गयी थी जब कि उनका परिवार ,मां ,तीनों भाइयों कमाल, जमाल और रुशेल , दो भाभियो तथा रिश्तेदारों को आतताइयों ने गोलियों से भून दिया था । उनकी नृशंशता का यह आलम था कि उन्होंने छोटे बच्चे 10 वर्षीय रुशेल को भी नही छोड़ा । तानाशाही आदमजात से ही नही अपितु हवाओ से भी भयभीत रहते है । भवन में पहुचते ही हमने घर के बाहर 'बंगबंधु ' की स्मृति स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की व फिर अंदर प्रवेश किया ।प्रवेश द्वार के अधिकारियों का जब पता चला कि हम इंडिया से आये है तो उन्होंने बहुत ही विनम्र भाव से आदर प्रेषित किया । शायद यह सम्मान था उनके मित्र राष्ट्र भारत के प्रति और अपने मुक्ति संग्राम मे महान प्रेरक श्रीमती इंदिरा गांधी को । अब इस पूरे घर को एक स्मारक बना दिया है । पारिवारिक सदस्यों ने इसे स्मारक समिति को दे दिया है । हमने ज्योही भवन में प्रवेश किया तो पाया कि शेख साहब की छोटी बेटी शेख रेहाना सामने से गुजर रही है । यह एक अजब इतिफाक ही था । उस दिन वे भी अपने इस घर मे अपने स्व0 पिता को स्मरण करने आई थी जब कि भारत से भी उनका एक मानसिक भाई उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देने के लिए उपस्थित था । दो मंज़िल में स्थित इस घर मे हर कमरा अपने बलिदान की दास्तां कह रहा था । कमरे ऐसे ही व्यवस्थित किये गए है जैसे 15 अगस्त की वह मनहूस सुबह को थे । शेख मुजीब का शयन कक्ष जहाँ से उन्होंने गोलियों की आवाज सुन कर सीढ़ियों की तरफ आवाज लगाते बढ़े और वही सीढ़ियों से उतरते हुए उनका पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया । उनकी पत्नी को बेड रूम ही मारा जबकि अन्य सदस्य जहाँ मिले उनकी हत्या की । उनके बिस्तर ,दीवार मेज पर रखी किताबो, कपड़ो व निजी वस्तुओं सहित सभी को तहस कर दिया था । आज भी उसकी स्मृतियां यहाँ तक कि शेख मुजीब की 1969 की पॉकेट डायरी , कुरान ए पाक की प्रति , उनका कुर्ता , पत्नी की साड़ी , रुशेल का नीले रंग की शर्ट सबको बेहतर सँजोया गया है जिसे देख कर दिल भर आता है ।मुझे बताया गया कि शेख साहब को सूचना दी गयी थी कि उनकी जान खतरे में है पर उन्हें अपनी जनता के प्यार पर इतना भरोसा था कि उनका कौन दुशमन । और यही भरोसा उनका काल साबित हुआ । सूचना तो महात्मा गांधी को भी थी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी पर क्या हम उन्हें बचा पाए । मुजीब साहब के घर की रसोई ,उनका स्वागत कक्ष व अंतरंग मन्त्रणा कक्ष सभी तो सुरक्षित है पर जिसके लिए यह बनाये गए बस वह ही नही है । घर मे ही परिवार के सभी लोगो के चित्र लगे है तथा उनके बारे में भी सभी जानकारी ।
भवन में पीछे की तरफ एक नया भवन बनाया गया है जिसमे बंगबंधु की सम्पूर्ण राजनीतिक -सामाजिक गाथा का सम्पूर्ण चित्रण है । इनमे से अधिकांश वे वृतांत अंकित है जिन्हें मैने भी एक राजनीति के विद्यार्थी के नाते पढ़ा - सुना है । हर मंजिल पर शेख मुजीब की भाषण देते हुए व आंदोलन का नेतृत्व करते हुए वीडियो भी चलते मिलेंगे । हमारी लोकप्रिय प्रधानमंत्री स्व0 इंदिरा गांधी के साथ उनके पारिवारिक सदस्यों के चित्र बहुत ही सम्मान पूर्वक ढंग से रखे गए है । "भवन" में पहुंच कर मन उदास ही रहा, आंखों में आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे । मन कर रहा था अभी यहाँ कुछ देर जाए ,पर पांच बजने को थे स्मारक बन्द होने को था, न रुकने की विवशता थी । अपनी श्रधांजलि देते हुए मैंने "आगंतुक पुस्तिका " पर लिखा -
" Tearful tribute to the great warrior , revoulutionary and leader."
27.सैंतीस वर्षो बाद मिलन
शहीद मीनार
बांग्लादेश जाने की एक तरफ तैयारी चल रही थी वहीँ मन मे उमंग झूल रही थी । एक बिल्कुल धूमिल स्मृति भी आ रही थी अपने प्रिय मित्र 'प्रिंस' की । वह प्रिंस जो वर्ष 1981 में मुझे ताशकंद में कोमसोमोल स्कूल में मिला था । हम भारत से तीन विद्याथी सुरेश त्रिपाठी ,नवतेज सिंह तथा मैं थे और वे बांग्लादेश से दो प्रिंस और शाहजहाँ थे इनके अतिरिक्त श्री लंका से भी तीन युवा थे ,सिंघानायकं व दो और । हमारी क्लास में इस तरह से कुल आठ विद्यार्थी थे । परन्तु उनमे मैं और प्रिंस बिल्कुल अलग थे । उसकी उम्र तब अठारह साल थी और मेरी बाइस साल । पर दोस्ती में चार साल की छोटी -बड़ी मायने नही रखती । वह बंगला भाषी था और मैं हिंदी । हमारी इंग्लिश बस काम चलाऊ ही थी परन्तु कहते है न आवश्यकता अविष्कार की जननी है । हम दोनों ने हिंदी -बंगला का मिक्सचर तैयार किया था जिसे हम आपस मे प्रयोग करते । वह एक बहुत ही गम्भीर एवम विचारवान युवा था जो हर बात पर गहराई से चिंतन करता था । दिन -रात के कुल चौबीस घंटे में से हम दोनों सोलह घंटे साथ रहते । साथ -२ सैर को जाते ,व्यायाम करते , क्लास अटेंड करते , खाना खाने इकठे जाते , मगाज़ीन (मार्किट) जाते , अध्ययन करते और खूब गप्प भी लगाते। जब हमारे कुछ साथी दूसरे अपने पसंद के कामो में अपना समय बिताते उस समय भी हम उन्हें देख कर मुस्कराते जरूर थे पर उनका साथ नही देते । हमारे हमेशा साथ रहने की वजह से कुछ लोग ईर्ष्यालु भी रहते परन्तु मेरी व प्रिंस को जो पसंद था वही हम करते । एक बात पर हमारा जरूर झगड़ा रहता 'वह कहता रबीन्द्र नाथ टैगोर और क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम उनके है ' और मैं कहता 'हमारे '। पर हमारी दोनो की सहमति इस बात पर होती कि वे दोनों के है । आठ माह का समय थोड़ा नही था । इस बीच दशहरा , दीवाली , भारत का गणतंत्र दिवस व बांग्लादेश का मुक्ति दिवस भी आया । इन सभी को मनाने में मेरी व प्रिंस की भूमिका हमेशा अग्रणी रही । वह मेरा बांग्ला भाषा का भी टीचर रहा और उसी ने मुझे बांगलादेश का राष्ट्रगान ' आमार सोनार बांग्ला , आमी तोमार भालो बाषि ' सिखाया और मैने उसे 'जन गण मन'। इसी तरह से कब टाइम निकल गया पता ही नही चला । और एक दिन विदाई का क्षण आया ।हमे मास्को के रास्ते दिल्ली वापिस आना था और उन्होंने अपने देश । एक डायरी पर मैने उसका पता उसके हाथ से लिखवाया एक 'ऑटोग्राफ ' की तरह और फिर भावुक वातावरण में 'फिर मिलेंगे' की कामना करते एक दूसरे से विदा हुए । पूरे सैंतीस साल हो गए थे उससे मिले । पर हां कोई सम्पर्क भी तो नही था इस दौरान । पर उसके पता लिखी डायरी ,मैंने सदा सम्भाल कर रखी इस आशा से की कभी तो मुलाक़ात होगी । पर यह क्या वह दिन तो आने लगा । मेरा ज्योहीं बांगलादेश का वीसा लग कर आया तो मैने यात्रा कन्फर्म समझी । अपनी डायरी निकाली , प्रिंस का पता ढूंढा और श्री नब कुमार राहा को व्हाट्सएप्प पर एड्रेस टाइप कर लिखा कि यह मेरा मित्र 'खुलना' में रहता है आप उसकी खोज खबर कर मुझे बताओ। पर यह क्या तुरन्त राहा जी का जवाब आया कि वे इन्हें बचपन से जानते है तथा अब प्रिंस ढाका में ही रहते है । मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नही रहा । अब जाने का डबल मकसद हो गया था ।
ढाका एयरपोर्ट पर पहुचते ही बहन तंद्रा बरुआ ने जहाँ और सुखद समाचार दिए वही यह भी बताया कि मेरा मित्र प्रिंस भी मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है और उनसे मुलाकात की तिथि 7 मई तय की गई है । ढाका में राहा परिवार में आते ही श्रीमती तंद्रा ने जो महत्वपूर्ण काम किया वह प्रिंस से बात करवाने का था । मैसेंजर पर हम दोनों ने काफी देर तक वीडियो कॉल की । उसकी पत्नी से भी बात हुई । अब वह शक्ल सूरत में बिल्कुल बदल गया था । बदल तो मै भी गया हूं पर अपना खुद को पता नही चलता जबकि दूसरे के बारे में अक्सर कहते है। शरीर मे अब वह वजनी हो गया और क्योकि सिर के बालों और मूछों पर कलर नही करता इसलिये बिल्कुल चांदी से बाल । और आज मुलाकात की घड़ी आ गयी । यह उसी ने तय किया कि ' शहीद मीनार ' पर मिला जाए फिर उनके घर चलेंगे । ठीक टाइम पर हम नियत स्थान पर पहुंचे । वह पहले से वहाँ मौजूद था । फिर मिले , बहुत ही भावुक क्षण थे । राम और भरत तो चौदह साल बाद मिले थे पर हम तो 37 साल बाद मिले । मुझे तो ऐसा लगा मानो हम कभी बिछड़े ही न हो । उसी तरह बातें करने लगे जैसे ताशकन्द में ही हो ।
शहीद मीनार वह जगह है जहाँ सन 1952 में पूर्वी बंगाल के सेनानियों ने बांग्ला भाषा को उचित स्थान दिलवाने के लिये निरंकुश तानशाही के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका था परिणाम स्वरूप उन्हें मिली थी बुलेट्स । अनेक युवा प्रदर्शनकारी शहीद हुए थे ,उन्ही वीर बलिदानियों की स्मृति में एक प्रतीकात्मक स्मारक यहाँ निर्मित है जहाँ हर समय सेकड़ो लोग जमा रह कर अपनी श्रधांजलि अर्पित करते है । क्योंकि शाम का समय था तो पाया कि युवा अलग -२समूहों में सामूहिक गीत गा रहे है ,कुछ नाटक कर रहे है तो कही गोष्ठी चल रही है । यह स्थान ढाका का एक सांस्कृतिक केंद्र बन गया है । प्रिंस ने इसी परिसर में गोलगप्पो का रसास्वादन करवाते हमे इसके महत्व को बताया ।मैने इस अवसर पर प्रिंस व नब कुमार जी को खुद की सम्पादित का0 राम दित्ता जी की जीवनी भेंट की । एक इंकलाबी को इससे बड़ी भेंट कुछ और हो भी नही सकती थी । इसे प्राप्त करते हुए का0 प्रिंस का कहना था कि एक क्रांतिकारी का दूसरे से मिलने का इससे नायाब ढंग हो ही नही सकता ।
28 ढाका यूनिवर्सिटी दर्शन
शहीद मीनार में प्रिंस से भावपूर्ण मुलाकात के बाद उनका कहना था कि ढाका यूनिवर्सिटी भी साथ लगती हुई ही है चलो उसको देखा जाए । हम सभी यानी श्री नब कुमार जी उनकी पत्नी तन्द्रा बरुआ ,पुत्र अनन्य ,मेरी पत्नी और मैं , प्रिंस के साथ यूनिवर्सिटी कैंपस में दाखिल हुए । हर जगह विद्यार्थियो के समूह के समूह आपस मे चर्चा करते खड़े मिले । प्रिंस हमारे गाइड का भी काम कर रहा था । यूनिवर्सिटी का इतिहास भी बहुत अद्भुत है । वर्ष 1905 के बंग-भंग के पश्चात पूर्वी बंगाल तथा असम के भाग को एक करके एक अलग प्रान्त बना दिया गया तथा इसी भाग को शिक्षा के क्षेत्र में विकसित करने के लिये सन 1921 में इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई ।इसका कैंपस 240 हेक्टेयर भूमि में फैला है । इस विश्विद्यालय में अनेक विष्वविख्यात शिक्षाविद, समाज शास्त्री ,वैज्ञानिक व राजनेताओ ने बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त की है । बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुर्रहमान ने भी यहीं से शिक्षा प्राप्त की है । वर्ष 1936 इस कि महान उपलब्धियों का वर्ष रहा जब महान वैज्ञानिक श्री जगदीश चंद्र बोस, इतिहासकार जादू नाथ सरकार , शरत चंदर चटर्जी , अल्लामा इक़बाल तथा रबीन्द्र नाथ टैगोर को आनरेरी डॉक्टरेट से सम्मानित किया । वर्तमान में यहाँ लगभग पैतीस हजार विद्यार्थी विभिन्न संकायों में शिक्षा प्राप्त कर रहे है। इसमे स्थित तीन पुस्कालयो में 6,17,000 पुस्तके है जिनमे विभिन्न भाषाओं की अन्य पुस्तकें अलग है । एशिया में 100 श्रेष्ठ विश्विद्यालयों में इसका दर्जा 'टॉप' पर है । न केवल जनवादी अधिकारों के लिये अपितु प्रगतिशील विचारों के लिये यहाँ के छात्रों की अलग पहचान है । 15 अगस्त ,1975 को जब प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान व उनके परिवार को उनके भारत तथा सोवियत पक्षधर होने के इल्जाम पर कत्ल कर दिया गया तो विरोध का कही भी स्वर नही था । इतना भय था कि कोई भी राजनीतिक दल अपना विरोध दर्ज कराने तक की हिम्मत न कर सका ,उस दिन इसी कैंपस से हज़ारों विद्यार्थी सड़को पर उतरे थे । यह कोई पहला मर्तबा नही था । सन 1952 में जब उर्दू को राष्ट्रभाषा के रूप में तत्कालीन पाकिस्तानी शासन ने कोशिश की तब भी यही के विद्यार्थियो ने विरोध की कमान संभाली थी ।
इनमे से अनेक शहीद हुए जिनकी स्मृति में ही 'शहीद मीनार' निर्मित है । यूनिवर्सिटी की दीवारों पर लगी वाल राइटिंग्स व चित्रो से विद्यार्थियो के प्रगतिशील एवम वामपंथी रुझान का पता लग रहा था । कार्ल मार्क्स ,ऐंगल्स ,लेनिन , चेगुआर , माओ त्से तुंग, रबीन्द्र नाथ टैगोर , क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम व शेख मुजीब के पोस्टर्स हर जगह दृश्य थे । जानकारी से पता चला कि बांग्लादेश के अधिकांश प्रगतिशील राजनेताओ की पृष्ठभूमि " बांग्लादेश छात्र यूनियन " ( बांगलादेश कम्युनिस्ट पार्टी का छात्र विंग) ही है । उनमें से अनेक सत्ता में है और कुछ विपक्ष में । कैंपस का पूरा वातावरण एकदम जीवंत नज़र आता है । कही भी किसी भी प्रकार की संकीर्णता का समावेश नही । रात के आठ बजने को आये थे परन्तु लड़के -लड़कियों के समूह वैसे ही मौजूद थे जैसे कि हमारे यहाँ दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (JNU) में दिखाई देती है । आज के युवाओं को आज़ादी चाहिए - हर प्रकार की जड़ता , पाखण्ड , सम्प्रदायवाद एवम जातिवाद से । और इसी का परिभाषित करते हुए प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार व कथा लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा था ' बच्चों को स्वाधीन बनाओ '। ऐसा ही एक सफल प्रयोग इस जगह हो रहा है । ' हम एक है'- हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है '। और उन्हें यकीन है कि वे ' होंगे कामयाब एक दिन।
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29.रबीन्द्र जन्मोत्सव'
ढाका यूनिवर्सिटी से निकल कर प्रिंस का आग्रह था कि अभी समय है क्यों न बांगलादेश कला अकादमी को भी एक नज़र देखा जाए और हम सभी वहाँ चले गए । वहाँ जाकर पता चला कि यहाँ दो कार्यक्रम चल रहे है । एक गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर के जन्मोत्सव का दूसरा नेपाल की कला , संस्कृति एवम साहित्य पर । मुझे यह जान कर बेहद प्रसन्नता हुई कि गुरुदेव के जन्मोत्सव पर न केवल अकादमी में अपितु पूरे ढाका शहर में बड़े-२ फ्लेक्स , वाल राइटिंग्स एवम पोस्टर्स लगे हुए थे जो केवल सरकार के स्तर पर न होकर जनता के संगठनों की ओर से लगे थे ।अकादमी में भी एक उत्सव का माहौल था । कही रबीन्द्र संगीत की धुन थी ,कहीं उनकी कहानियों पर आधारित नाटक चल रहे थे व कहीं उनकी लिखी कविताओ का पाठ ।प्रिंस मुझे यह सब दिखा कर खुद मन्द -२ मुस्करा रहा था । मैं भी उसकी कुटिल हंसी को भांप रहा था ।पर हम भी हरियाणवी है " गन्ना नही देंगे , चाहे गुड़ की भेली देनी पड़े" । पर यह तो मानना पड़ेगा कि रबीन्द्र नाथ की जन्मदिन की जो चमक ढाका में देखने को मिली वह और कहीं नही थी । मन ही मन मैं प्रिंस के साथ वह समझौता तोड़ने को तैयार था कि " गुरुदेब किनके है "। मैं मानना चाह रहा था कि वे तो उनके ही है । हमारे यहां तो अब भी ऐसे तत्व है जो अपनी संकीर्ण वैचारिक मानसिकता के कारण ' राष्ट्रगान' के बारे में भी उलूल जलूल बकने से बाज नही आते पर किस तरह से अपनी सांस्कृतिक विरासत तथा बुजुर्गो को आदर दिया जाता है वह कोई बंगलादेशियो से सीखें । कला भवन में ही लालन गीति के प्रचारक गायक भी मिले जो अपने वाद्ययंत्र पर प्रेम व सौहार्द के गीत गा रहे थे ।
इस दौरान हमारी मुलाकातअकादमी के महा निदेशक श्री लियाकत अली लक्की से हुई जो बेहद ही विनम्र तथा ज्ञानवान व्यक्ति है । उन्होंने बताया कि इस नेशनल अकादेमी ऑफ फाइन एंड परफार्मिंग आर्ट के इस दो मंज़िल के भवन में कला ,फोटिग्राफ़ी ,वास्तुकला ,मूर्तिकला व पेंटिंग का अद्भुत संग्रह है । वर्ष 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान के मार्गदर्शन में बने इस कला केंद्र में अनेक सभागार, प्रदर्शनी एवम कलाकक्ष है जहाँ युवाओ के अनेक समूह लगातार काम करते है । प्रसिद्ध कलाकार ज़ैनुल अबेदीन तथा कामुनुल हसन जैसे लोगो ने इसे अपनी मेहनत से सींचा है । हसन तो वे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी लेखनी से पाकिस्तान के तानाशाह याह्या खान तथा बांगलादेश के तानाशाह का जोरदार विरोध किया । उनकी कृति ' our land is now champion of shamefulness' ने निरकुंश तानाशाहों की नींद ही हराम कर दी थी ।
बांगलादेश की यह आर्ट अकादेमी न केवल कला को संजोए है अपितु लोकतांत्रिक , धर्मनिरपेक्ष एवम समानता के। मूल्यों को भी संजोए है । कोई ढाका आए और इसे न देखे तो वह अपने मे अपूर्णता ही ले जाएगा ।
30.' रेड गाँधीयन्स'
नेशनल आर्ट अकादेमी ही वह स्थान रहा जहाँ हमारी मुलाकात बांगलादेश के संस्कृति मंत्री श्री असदुज़्ज़मान नूर से हुई । वे स्वयं एक लोकप्रिय रंगमंच तथा फ़िल्म कलाकार है तथा बांग्लादेश में अनेक फिल्मो में काम कर चुके है जिसके लिये उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है । 72 वर्षिय नूर चिर युवा है उनकी शारीरिक बनावट उनकी आयु नही दर्शाती । वर्ष 1966 में वे पूर्वी पाकिस्तान छात्र यूनियन (बांगलादेश कम्युनिस्ट पार्टी का छात्र विंग ) में शामिल हुए तथा एक समय पार्टी के लिये भी बतौर कुलवक्ति कार्यकर्ता के रूप में सीमावर्ती क्षेत्रो में काम किया । यह वह समय था जब वहां मुक्ति संघर्ष सरगर्म था । उन्होंने अपने जीवन की तमाम व्यक्तिगत आकांक्षाओं को त्याग कर स्वयं को 'बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष 'को समर्पित कर दिया । मुक्ति के बाद वे अपने पैतृक शहर निलपहमरी चले गए तथा वहाँ रह कर अपनी राजनीतिक - सामाजिक गतिविधियो को अंजाम दिया । वर्ष 2001 में वे नेशनल अवामी लीग में शामिल हो कर ' निलपहमरी क्षेत्र ' से सांसद चुने गए और अब प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की सरकार में मंत्री पद पर आसीन है ।वे एक विनम्र एवम हंसमुख व्यक्तित्व है । वे इतनी सरलता से मिले जैसे हम उनके पूर्व परिचित है । प्रिंस ने हमारा परिचय देते हुए कहा कि हम 'गाँधीयन्स है ' तथा 'बा -बापू 150 ' के सिलसिले में गांधी आश्रम ट्रस्ट के न्यौते पर आए है । नब कुमार राहा जी से आश्रम के कार्यो तथा वृतियों की जानकारी पाकर उन्हें अच्छा लगा । फिर उन्होंने 'प्रिंस' को पलट कर देखा व पूछा कि वह कैसे मुझसे परिचित है जब प्रिंस ने उन्हे ,मेरे और अपने बारे में ताशकन्द स्कूल के बारे में बताया तो वे अपनी खुशी को दबा न सके । फिर बोले यह चेंज कैसे तो मेरे इस उत्तर से कि हम ' रेड गाँधीयन्स है' से वे खिलखिला कर हँसे और जेवाब में कहा ' हम भी' । महात्मा गांधी की स्वीकार्यता हर जगह है ,वास्तव में प्रेम - करूणा , अहिंसा , सद्व्यवहार तथा संवाद ही से समस्याओ का हल सम्भव है । आज का तंत्र - शांति पूर्ण अहिंसक क्रांति ही है और मन्त्र जय जगत ।
नूर साहब से जनता के स्तर पर भारत - बांगलादेश सम्बन्धो पर भी चर्चा की तथा 'बा बापू 150' कार्यक्रमो को हर प्रकार के सहयोग का भरोसा दिया ।उनका मानना था की 'नोआखाली' को केंद्र मान कर कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये । वे चाहते थे कि इस मसले पर अगले दिन भी बातचीत हो परंतु हमारी विवशता थी कि अगले दिन हमने भारत लौटना था । एक खुशनुमा माहौल में हमने उनसे विदा ली ,इस आशा के साथ कि बा बापू 150 का संदेश जन-२ तक पहुचाने का सार्थक प्रयास दूर तक जाएगा ।
31.मेहमान नवाजी,
शागुंबग़ीचा, ढाका
नेशनल आर्ट अकादेमी से हम लोग पैदल ही शागुंबग़ीचा स्थित प्रिंस के घर चले । घर निकट ही तीसरी मंजिल पर था । सीढ़ियों पर तेज तेज चलते हुए मैं पहले ही पहुंच गया । घण्टी बजायी , दरवाजा खुला और मैं अंदर जाकर बोला ' प्रिंस कहाँ है '। उनके परिवार के लोग सकते में आगये यह कौन है जो इस भाव से नाम ले रहा है परन्तु तब तक नीचे से सभी आ चुके थे । प्रिंस की पत्नी से हम पहले ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बात कर चुके थे । उन्होंने ही अपनी दोनों बेटियों रोहिणी आतशी व शोहिनी केटकी से हमारा परिचय करवाया । प्रिंस की पत्नी श्रीमती शहरयार परवीन कोकिला अपने विद्यार्थी काल से ही राजनीतिक कार्यकर्ता रही है । छात्र व महिला मोर्चे पर उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई है तथा अब एक सामाजिक संगठन में कार्य करती है । दोनो बेटियां एक प्लस टू तथा दूसरी ग्रेजुएशन कर रही है । प्रिंस के माता -पिता अभी भी खुलना में ही रहते है । उनके छोटे भाई का गत दो वर्ष पूर्व एक रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया था । इन सभी के चित्र उन्होंने अपने घर मे लगाए है । उनका घर भी किताबो से ठसाठस भरा है पर सजी है सब तरतीबवार । परिवार में बेटियों को मैं उनके पिता की साल 1981 की यादगार बातें बता रहा था और वे बहुत ही उत्सुकता से सुन रही थी । तभी शहरयार का खाने को बुलावा आ गया । उन्हें इस बात की जानकारी थी कि हम विशुद्ध शाकाहारी है । प्रिंस की पत्नी अपने आफिस से शाम 6.30 बजे आयी थी पर इन तीन घण्टे में उन्होंने क्या नही बनाया - "स्पेनिश बोरा, टोरमुस, अनारस, पेपे, खिसुरी, पोराथा, बेगुन चटनी,सादा भात, आलू पोटल, बेगुन भेजा , दाल , संदेश और मिष्टी दोही "। टेबल पर इनके रखने की जगह छोटी पड़ रही थी । पर क्या कहे इनको यदि और समय मिलता तो अनेक और व्यंजन बनाती । बांग्लादेश में जाने से पहले हमें सन्देह था कि वहाँ हमारे खाने का कैसे रहेगा ,क्योकि वहाँ तो सभी मांसाहारी है और मछली को तो वे शाकाहारी मानते है परन्तु हमारी यह धारणा गलत साबित हुई । हमारे पांच दिन के प्रवास के दौरान लगभग 100 तरह के शाकाहारी व्यंजनों का हमने स्वाद लिया ।आज का खाना भी एक से बढ़ कर एक था । अन्य पारिवारिक महिलाओ की तरह मैडम का भी यही आग्रह रहा कि पहले हम खाए फिर वे खाएंगी । बहुत ही आग्रह के बाद उन्होंने हमारे साथ डिनर लिया । नब कुमार - तंद्रा जी का बेटा अनन्य बहुत ही सीधा परन्तु व्यवहारिक है वह खाना खिलाने में श्रीमती प्रिंस की मदद भी कर रहा था व साथ साथ इन खूबसूरत क्षणों को कैमरे में कैद भी कर रहा था । समय फ़ुर्र से कैसे उड़ गया पता ही नही चला । रात के साढ़े ग्यारह बज गए थे परन्तु कोई भी उठने का नाम ही नही ले रहा था । मेरे बेटे उत्कर्ष (दिल्ली) तथा बेटी संघमित्रा ( अहमदाबाद) से भी उनके परिवार के सभी सदस्यों से बात करवाई गई । मेरे बच्चे बहुत खुश थे कि उनके पापा को 37 वर्षो से जुदा दोस्त मिला था । पर मैं भावुक व चिंतित भी कि अबके जुदा हुए कब मिलेंगे । खैर आशाओ और विश्वास पर दुनियां टिकी है । जब हम अब मिले है तो फिर भी मिलेंगे । आपस मे गले मिल कर तथा रूसी विदाई शब्द ' दसविदानिया' कह कर फिर मिलने की कामना करते हुए हम रात को प्रिंस के घर से निकले । धन्यवाद - नब कुमार और तंद्रा जी, जिन्होंने हम नाउम्मीदो को उम्मीद दी ।
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तंद्रा - नबकुमार परिवार
इस यात्रा की सफलता का यदि किन्ही को श्रेय दे तो यह तंद्रा -राहा परिवार को है जिन्होंने न केवल इस यात्रा की सफलता में सहयोग दिया वहीं हमेशा एक संरक्षक ,मार्गदर्शक व मित्र की तरह साथ रहे । बा बापू -150 वर्ष में महात्मा गांधी की जीवन यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष जहां बीते ,जहाँ उन्होंने नंगे पांव घूम -२ कर सद्भावना ,शांति एवम अहिंसा का संदेश दिया उस नोआखाली क्षेत्र में जाना ,किसी भी तीर्थ यात्रा से कम नही है । मैं पूण्य प्राप्ति की बात नही करता परन्तु बहुत कुछ सीखने समझने का अवसर यहाँ मिला है । तंद्रा -राहा दम्पत्ति एक बहुत ही सहृदय , अतिथिपरायण एवम गांधीनिष्ठ पति -पत्नी है जिनका सम्पूर्ण जीवन बापू विचार एवम सिद्धान्त के प्रचार -प्रसार को समर्पित है । सम्भवत: मेरा एवम श्रीमती तन्द्रा बरुआ का परिचय सोशल मीडिया पर ही हुआ था पर आजकल यह इतना सशक्त माध्यम है जिसने पूरी दुनियां के समविचार लोगो को जोड़ने का काम किया है । मैंने साहस कर इस दम्पत्ति को अपनी बेटी संघमित्रा के विवाह समारोह दि0 12 दिसंबर, 2016 को आमंत्रित किया था ,यह एक औपचारिक निमंत्रण था परन्तु हमे यह जान कर बेहद प्रसन्नता हुई कि वे शादी में शामिल होने के लिए ढाका से पधारे और वे सभी वर्ताव किये जो एक बुआ -फूफा अपनी भतीजी की शादी में करते है । खूब मेल- जोल किया , हर रस्म में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया व हर मौके पर खूब नृत्य -संगीत में भी भाग लिया । अपने देश पहुचने के बाद हरदम उनका आग्रह रहा कि हम भी बांग्लादेश आये । जैसा कि सर्व विदित है कि श्री नबकुमार जी राहा , नोआखाली स्थित गांधी आश्रम ट्रस्ट के निदेशक पद पर सेवारत है और उनकी पत्नी श्रीमती तंद्रा बरुआ एक अंतरराष्ट्रीय संगठन में कंसलटेंट का काम करती है ।
हमने ज्यो ही आने की इच्छा व्यक्त की श्री राहा ने तुरंत ' निमंत्रण पत्र ' भेजा व इसके बाद मेरे सुपुत्र उत्कर्ष ने दिल्ली स्थित बांग्लादेश हाई कमीशन में ऑनलाइन वीसा के लिए आवेदन किया । हम हाई कमीशन के अधिकारियो के बहुत ही आभारी है कि उन्होंने केवल तीन दिन में हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर हमें वीज़ा प्रदान कर दिया और फिर यात्रा की तैयारियां शुरू हो गयी । महात्मा गांधी ने कहा है कि चरित्रवान माता -पिता जैसा कोई अध्यापक नही तथा संस्कारवान परिवार जैसा कोई विद्यालय नही । यह कथन इस परिवार पर अक्षरशः पूर्ण होता है । इनके दोनो सुपुत्र शुभरो तथा अनन्य निहायत ही आज्ञाकारी तथा संस्कारवान है । शुभरो अपने काम के प्रति ईमानदार है तथा ज्यादा समय अपना वहीं देता है जबकि अनन्य मेरे पुत्र उत्कर्ष जैसा , माता -पिता की हर इच्छा को पूरा करने वाला , सीधा -साधा एवम मां का लाडला । अनन्य उच्च शिक्षा के लिए भारत आना चाहता है ,हमारी कामना है कि उसकी इच्छा शीघ्र पूरी हो । स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा है कि वे माता -पिता धन्य है जो अपनी संतान को उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान करते है । इसलिये मामले में तंद्रा - राहा व मेरा परिवार सौभाग्यशाली है । तंद्रा - राहा दम्पति सर्वधर्म समभाव के भी प्रतीक है । श्री नबकुमार , बांगलादेश के ऐतिहासिक नगर खुलना के एक कायस्थ हिन्दू परिवार से है जबकि श्रीमती तंद्रा , क्रांतिकारियों की नगरी चटगांव के बौद्ध परिवार से है पर दोनों का इतना सुंदर समन्वय बेमिसाल है । दोनो पुत्रो में भी इसकी छवि दर्शनीय है । दोनो, रेड गाँधीयन्स जैसे मेरे तीनो बच्चे सुलभा ,संघमित्रा व उत्कर्ष जैसे क्योकि उन्होंने भी तो अपनी कट्टर वैष्णव सनातन धर्मी परिवार की माता को एक खुले आर्य समाजी परिवार में समाते देखा था । निर्मला देशपांडे दीदी ने हमे न केवल 'जय जगत' का नारा सिखाया वही उसे आत्मसात भी करवाया जिसका परिणाम यह है कि दुनियां में कही भी चले जाएं ,वहाँ हमारा सजीव परिवार मिलता है ।
तंद्रा - बरुआ परिवार से बिछुड़ने की घड़ी बहुत ही भावुक रही । हम कतई वापिस नही आना चाहते थे पर क्या करते ,वापिस आना मजबूरी थी । ऐसे परिवार सबके बने ,तभी 'वसुधैव कुटुंबकम ' का वेद वाक्य सत्य होगा ।
जय बांग्ला,
जय हिंद,
जय जगत !
अलविदा सोनार बांग्ला ।
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