19 जून -अमेरिका में दासता से मुक्ति का पर्व


 *Inner voice*-12

(Nityanootan broadcast service)


न केवल अमेरिका के लिये अपितु पूरे विश्व के लिये आज 19 जून का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है आज ही के दिन सन 1865 में अमेरिका के टेक्सास प्रान्त में गुलाम प्रथा के अंतिम गढ़ को समाप्त कर, सम्पूर्ण रूप से इस प्रथा पर रोक लगा दी गयी थी । इसी दिन को याद रखते हुए पूरे अमेरिका में अनेक स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किये गये है जो इस बात का सूचक है कि अब इसकी पुनरावृति किसी भी रूप में नही होनी चाहिए ।

     हमारे देश भारत ने भी अपने स्वतंत्रता आंदोलन को इसी संघर्ष का हिस्सा मान कर इसे सिद्धान्त रूप में स्वीकार किया था । अठारवीं सदी के महान क्रांतिकारी समाज सुधारक जोतिबा फुले ने भारत मे अस्पृश्य जातियों पर हो रहे अत्याचार ,शोषण व भेदभाव को गुलाम प्रथा का हिस्सा माना था और जब 1857 में उन्हें ईस्ट इंडिया  शासन के विरुद्ध देशी शासकों के समर्थन देने को कहा तो उनका मानना था कि क्या विदेशी राज जाने के बाद उनकी जातियों को अन्य स्वर्ण जातियों के बराबर अधिकार दिए जाएंगे? उनके इस प्रश्न पर देशी राजे खामोश रहे यानी वे शुद्र जातियों के प्रति यथावत व्यवहार रखने के ही इच्छुक थे । जोतीबा फुले ने भारतीय समाज व्यवस्था पर लिखी अपनी पहली पुस्तक *गुलाम गीरी* को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन को समर्पित किया था । उन्होंने अब्राहिम लिंकन व गुलाम प्रथा के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धाओं को सलाम करते हुए उन्हें भारत के लिये अनुकरणीय बताया था । 

      विश्वस्तर पर रंगभेद वाद व नस्लवाद  भारत मे वर्ण के नाम पर भेदभाव व छुआछूत से अलग बिल्कुल भी नही रहा है । शुद्र जाति के व्यक्ति को धर्म, समाज, शिक्षा व व्यवसाय में हर प्रकार से उत्पीड़न व अन्याय का सामना करना पड़ा है उसे भारत मे दलित जातियों ने झेला है । दक्षिण भारत के जननायक नारायण गुरु व पेरियार रामास्वामी ने अपने पूरे आंदोलन को ही इसी व्यवस्था के विरुद्ध लड़ाई का हिस्सा बनाया ।  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अश्पृश्यता को मानव जाति के प्रति अपराध व पाप बताया तथा स्वतंत्रता आंदोलन के तमाम नेताओ को अस्पृष्यता निवारण के काम मे झोंक दिया । *हरिजन सेवक संघ की स्थापना कर सभी जन को आह्वान किया कि वे दलितोद्धार व भंगी कष्टमुक्ति के काम मे लगे । न केवल शब्दो से अपितु व्यवहार में भी उन्होंने हरिजन सेवा के काम को ही स्वतंत्रता प्राप्ति का एक साधन बनाया । बाबा साहेब अंबेडकर के साथ मिलकर सन 1932 में पूना पैक्ट किया जो इस बात की गारंटी था कि आज़ाद भारत ,समानता के मूल्यों पर निर्मित देश होगा । स्वयं ,बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने जीवन तथा कृत्यों से दलित जातियों को संगठित होने व शिक्षित होने की प्रेरणा दी उन्होंने अपने प्रमुख उदबोधन में कहा कि उन्हें मनुष्यत्व का अधिकार चाहिए । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान में बेशक समानता के अधिकार का संकल्प व्यक्त किया गया है परन्तु गणतंत्र बनने के 72 वर्ष बाद भी धरातल पर अभी और अधिक हालात बदलने की जरूरत है । भारत की संविधान निर्मात्री सभा ने अमेरिका के *स्वतंत्रता ,बंधुत्व व समानता* से प्रभावित होकर नए भारत के निर्माण की संकल्पना की ।

     जब तक दुनियां में रंगभेद व नस्लवाद जिंदा है तब तक उसके विरुद्ध संघर्ष भी ओर अधिक मुस्तैदी से लड़ने की जरूरत है । हमे इस बात की प्रसन्नता है कि *गांधी 150 वर्ष* में न केवल भारत मे अपितु पूरी दुनियां में इस वर्ष को मनाने का जोरदार प्रयास चल रहा है । महात्मा गांधी एक नाम नही अपितु शोषण व अन्याय के विरुद्ध शांतिपूर्ण अहिंसात्मक संघर्ष का नाम है जो यहाँ अमेरिका में भी और पूरी दुनियां में जारी रहना चाहिए ।

हमे आज़ादी चाहिए-रंगभेद वाद से , जाति वाद से ,नस्लवाद से तथा हर प्रकार के जुल्म व अन्याय से  ।

 महात्मा गांधी के ही शब्दों में *खुद वो बदलाव बनिये जो आप दुनियां में देखना चाहते है* ।


राम मोहन राय

(Seattle, Washington (USA)

19.06.2019

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