बांग्लादेश की चिंता


 *बांग्लादेश की चिंता* 

       बांग्लादेश के विभिन्न नगरों, कस्बों एवम अन्य स्थानों में रह रहे मित्रों से कल बात-चीत हुई । वे सभी उनके देश मे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे हमलों , उनके धार्मिक स्थलों पर हमलों व अन्य हिंसक घटनाओं से काफी दुखी है तथा इसे अपने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर ही हमला मानते है ।

      सन 1971 में बांग्लादेश के मुक्त होने के बाद मुझे बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का रामलीला मैदान, दिल्ली में दिया गया भाषण याद है जब उन्होंने वायदा किया था कि उनका देश अब से एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष ,समाजवादी गणतंत्र के रूप में जाना जाएगा । मेरा यह सौभाग्य है कि मैने उस वक्तव्य को आकाशवाणी ,दिल्ली के सीधे प्रसारण में सुना था ।

   

(,नोआखाली में गांधी जी जहां रुके उस मकान के बाहर)
सन 2019 में गांधी ग्लोबल फैमिली के एक प्रतिनिधिमंडल में बांग्लादेश जाने का अवसर मिला । विशेषकर नोआखाली के  उस गांव में जहां बापू ने चार महीने सोलह दिन रुक कर साम्प्रदायिक सद्भाव की अपनी यात्रा को प्रयास दिए थे । हमें वहाँ दो ऐसे व्यक्ति मिले जो बापू प्रयासों में साथ रहे । बेशक वे उस समय 17-18 साल के युवा थे परन्तु अब भी 90-95 साल की उम्र में भी उन्हें उस समय का हर लम्हा याद था । उनका कहना था कि यह महात्मा गांधी का ही प्रभाव रहा कि सन 1947 के बाद पाकिस्तान व अब बांग्लादेश में अनेक बार साम्प्रदायिक हिंसा भड़की पर नोआखाली उससे अछूता रहा । पर अब अफसोस कि नोआखाली भी इस बार हिंसाग्रस्त रहा है ।

    दंगे होते नही करवाये जाते है । कोमिला में दुर्गा पूजा के मंडप में हनुमानजी की मूर्ति व मुस्लिम धर्म ग्रन्थ की कथित बेअदबी से भड़के इस दंगे ने पूरे देश को ही अपनी आग में समेट लिया ।

     हर बार की तरह अल्पसंख्यक लोग ,उनकी सम्पत्ति व धार्मिक स्थल ही निशाने पर है । इन तमाम बातों से बांग्लादेश के हिन्दू बेहद भयभीत है तथा असुरक्षित महसूस कर रहे है । हमें याद रहे कि ये वे लोग है जिन्होंने दिवराष्ट्र सिद्धान्त पर बने भारत-पाकिस्तान को नकार कर अपनी मातृभूमि पूर्वी बंगाल में रहना स्वीकार किया था । पाकिस्तान मिलिट्री व कठमुल्ला शासन ने उन पर क्या ज़ुल्म तश्दूद नही किये थे परन्तु वे दृढ़ता से वहाँ डटे रहे ।परन्तु आज वे वहां डरे हुए है ।

(साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ वाम दलों का प्रदर्शन)

     बांग्लादेश की हसीना वाजेद सरकार ने अपने हर नागरिक को समान रूप वे सुरक्षा प्रदान करने की बात की है तथा वह ऐसा हर सम्भव प्रयास भी कर रही है परन्तु हालात अभी भी बेकाबू है ।

(कोमिला प्रशासन का जनता को आश्वासन)

    परन्तु सकारात्मक पक्ष भी है कि बांग्लादेश के सभी देशभक्त ,धर्मनिरपेक्ष व प्रगतिशील लोग अपने अल्पसंख्यक भाई-बहनों के प्रति एकजुटता के लिए सड़क पर है । नोआखाली के एक पब्लिक मार्च को हमने देखा है जब सैंकड़ों लोग हुड़दंगियों के खिलाफ सड़क पर थे । सभी नगरों में हिन्दू मोहल्लों व मंदिरों के बाहर मुस्लिम लोग पंक्ति बना कर उनकी सुरक्षा में खड़े है । ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र जिन्हें उनके निर्भीक धर्मनिरपेक्ष चरित्र की वजह से जाना जाता है ,वे भी पूरी तरह से जागरूकता कार्यक्रम जारी रखे है । स्पष्ट है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ सभी धर्मों के लोग एकजुट है ।






(नोआखाली में साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए नागरिकों का एकजुटता प्रदर्शन)

    हम पूरी तरह से आश्वस्त है कि सरकार की कार्यवाही तथा जनता की एकजुटता हालात को काबू कर लेगी फिर भी यह चिंता का विषय तो रहा ही है ।

( ढाका यूनिवर्सिटी में साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ विद्यार्थियों का प्रदर्शन)

     भारत और बांग्लादेश सन 1947 से पहले एक ही राष्ट्र थे । सन 1971 में उसके मुक्तिसंग्राम में भी भारत की भूमिका अतुलनीय नही है । यह वर्ष भारत की आज़ादी का अमृतमहोत्सव तथा बांग्लादेश की मुक्ति का स्वरणोत्सव है । इस वर्ष में ऐसी वारदात अशोभनीय है । इस पूरी वारदात में पाकिस्तान परस्त ताकतों को भी नकारा नही जा सकता । बांग्लादेश की मुक्ति के बाद उनके लिए धर्मनिरपेक्ष विकासमान देश नागवार है । शेख मुजीबुर्रहमान की नृशंश हत्या के बाद भी उनके चरित्र में कोई बदलाव नही आया है ।

       

(ढाका में जन प्रदर्शन )
भारत के लोगों के लिए भी यह एक सबक है कि हम किसी भी रूप में अपनी सर्वधर्म समभाव नीति व भावना से हटे नही । बहुसंख्यक समुदाय का यह पहला कर्तव्य है कि वे अपने अल्पसंख्यक लोगों की न केवल भावनाओ की कद्र करे अपितु हर प्रकार की सुरक्षा की भी गारंटी ले ।

   राम मोहन राय

पानीपत

(नित्यनूतन वार्ता)

21.10.2021

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