पुनर्पाठ
*कामरेड डांगे का पुनर्पाठ*
गत दिवस बेंगलुरु में कुछ गैर राजनीतिक संगठनों और व्यक्तियों द्वारा अपनी पहल पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं सांसद कामरेड एस. ए . डांगे के जीवन एवं विचारों पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। जिसमें सैंकड़ों की संख्या में युवाओं , विद्यार्थियों, ट्रेड यूनियन नेताओं और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया । इस कार्यक्रम में एस. ए. डांगे के जीवनकाल के कार्यो की विषद आलोचनात्मक समीक्षा की गयी। संगोष्ठी में मुख्य वक्तव्य प्रसिद्ध ट्रेड यूनियन नेता बाबा मैथ्यू तथा युवा समाजवादी चिंतक मेघना ने रखा, जबकि इसकी अध्यक्षता....ने की।
कामरेड श्री पाद अमृत डांगे भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के वह नेता रहे ,जिन्होंने अपने युवा जीवन का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजी शासन की जेल में बिताया। वर्ष 1924 में वे अनेक क्रांतिकारी साथियो का0 घाटे, मुजफ्फर अहमद आदि के साथ कानपुर बोल्शेविक षड्यंत्र केस में जेल में रहे। यह वह दौर था जब महात्मा गांधी आज़ादी के प्रमुख नायक बन चुके थे। परन्तु असहयोग आंदोलन के दौरान चौरा- चौरी में एक पुलिस स्टेशन में आगजनी के कारण उन्होंने शिखर पर पहुंचे आंदोलन को एक दम ही वापिस ले लिया था। जिस कारण पूरे देश में निराशा का एक माहौल था और उनके प्रति आक्रोश भी था। देश में एक वर्ग की जनता उन्हें खलनायक भी मानने लगी थी। ऐसे समय मे कानपुर जेल में बंद षड्यंत्र केस के बंदियों को मिलने महात्माजी गए थे और उन्होंने उनसे कहा था कि अच्छा रहे कि वे अब हिंसा की राह छोड़ कर उनके अहिंसात्मक आंदोलन में शामिल हों। का0 डांगे सहित अन्य क्रांतिकारी बंदियों का भी उन्हें ज़वाब था कि उन्हें भी आश्वासन देना होगा कि अब वे आंदोलन को कभी भी एकतरफ़ा वापिस नहीं लेंगे।
आज़ादी के बाद पहले संसदीय चुनावों में उन्होंने मुंबई लोकसभा सीट से सर्वाधिक मतों से जीत कर रिकार्ड स्थापित किया। यह उनकी लोकप्रियता का ही पैमाना था कि मजदूरों की सबसे लंबी सफल हड़ताल उनके नेतृत्व में हुई।
कामरेड डांगे एक स्थापित नेता रहे हैं , जिनका पक्ष-विपक्ष दोनों में सम्मान रहा। उनकी पार्टी की दो बार की गलतियों से वे शर्मिंदा भी रहे। एक बार वर्ष 1947 में जब स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी रहीं उन्हीं की पार्टी ने भारत की आजादी को झूठा कहा, दूसरा जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं के आश्वासन के बाद भी चीन ने भारत पर युद्ध थोपा। उनके ही एक मित्र का0 मुकीम फारुकी अक्सर कहते थे कि यदि कॉंग्रेस गलती करती है तो देश भुगतता है, जबकि यदि उनकी पार्टी गलती करती है तो पार्टी ही भुगतती है।
का0 डांगे मार्क्सवाद-लेनिनवाद के प्रखर व्याख्याता थे। भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के अकाट्य विद्वान। क्रांति निर्यात नहीं हो सकती तथा वह अपने अपने देश की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। भारतीय परिपेक्ष्य में उन्होंने इसको बखूबी समझा था। कार्ल मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद को भी अपने देशकाल में उन्होंने समझ कर एकता एवं संघर्ष का सिद्धांत दिया। जिस लाइन पर चल कर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों तरफ से विकास किया।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के अवांछित भत्तों की समाप्ति, भूमि सुधार कार्यक्रम और गरीबी उन्मूलन कार्य उनकी ही नीतियों का नतीजा रहा। उनके गांधी-नेहरू परिवार से न केवल राजनीतिक अपितु पारिवारिक संबंध भी थे और यहीं वजह थी कि आपातकाल का पार्टी ने समर्थन किया। अच्छे परिणाम भी आए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की तो पूरे देश में जनवादी क्रांति की शुरुआत की चहल -पहल शुरू हुई। इंदिरा जी के ही पुत्र संजय गांधी ने दक्षिणपंथी साजिश के तहत पूरे कार्यक्रम की ही दिशा को कम्युनिस्ट विरोध में मोड़ दिया और इसका सबसे बड़ा खामियाजा का0 डांगे और उनके नेतृत्व में चल रहीं कम्युनिस्ट पार्टी को हुआ। पार्टी भी इसका विश्लेषण करने में असफल रही और अफरातफरी में अपनी ही पार्टी के संस्थापक का0 डांगे को सीपीआई से निष्कासित कर दिया। इस निष्कासन के बाद भी उन्होंने ऑल इंडिया कम्युनिस्ट पार्टी बना कर अपने विचार को जीवित रखने की कोशिश की ,परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी। वयोवृद्ध डांगे अब थक चुके थे, परन्तु उनकी लाइन के सही होने के प्रति वे आश्वस्त थे।
बेशक आज का0 डांगे नहीं है, परंतु उनकी लाइन आज सर्वाधिक प्रासंगिक है। उनके नाम से परहेज हो, पर उनकी राजनीतिक सूझबूझ पर निर्मित "एकता और संघर्ष "की लाइन ही अब मुख्यधारा की कम्युनिस्ट पार्टियां कर रहीं हैं।
आज देश सबसे ज्यादा संकट के दौर से गूजर रहा है। वामपंथी दलों की स्थिति भी भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे कमजोर है। ऐसे में डांगे के विचार ही वामपंथ का सही रास्ता होगा।
राम मोहन राय.
Seattle, Washington-USA.
27th May,2022
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