श्री गणेश लाल जी माली

*समाज रत्न, बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वनाम धन्य - स्वर्गीय श्री गणेश लाल माली*                         

      भारतीय समाज एक परंपरागत समृद्ध संस्कृति व सभ्यता से परिपूर्ण व्यवस्था है। वर्ण व्यवस्था तथा जातीय व्यवस्थाओं में यह बंटा है। ऐसा माना जाता है  कि महर्षि मनु ने वर्णो  का विभाजन जन्म से न कर  कर्म से किया था। परंतु धीरे-धीरे यह रूढ़ीगत हो गया तथा समाज पर उन जातिगत समुदायों का वर्चस्व हो गया जो सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली थे। व्यक्ति के कार्यों को उनकी जाति बना दिया गया और समाज की शोषित श्रेणी ने इसे अपनी नियति मान कर अपना जीवन यापन प्रारंभ किया ।कई ऐसी जातियों ने अपने कार्यों , प्रयोग की गई तकनीकों तथा श्रमशक्ति के माध्यम से व्यवसाय को इतना विकसित किया कि वे जातियां वर्ण का ही  पर्याय बन गई । ऐसी ही एक विकसित जाति माली समाज है जो देश के विभिन्न भागों में फैली है तथा माली ,फूल माली  सैनी, शाक्य,मौर्य, कुशवाहा, कोइरी, रेड्डी,पुष्पधब्राह्मण  ,शूर सैनी तथा अनेकों नामों से जानी जाती है तथा जिनका कार्य खेती-बाड़ी तथा बागवानी ही है । इन जातियों का मानना है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भी इसी जाति में हुआ जिन्होंने अपने कार्यों से इस समाज को धन्य किया। 
*महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक तथा क्रांतिकारी संत महात्मा ज्योतिबा फुले* ने भी इसी माली जाति के एक  निर्धन व पिछड़े परिवार में जन्म लेकर समाज में रूढ़ियों के विरोध में जो कार्य किया इससे वह क्रांति बा फूले कहलाए।                   

       राजस्थान का उदयपुर जो मेवाड़ शिरोमणि महाराणा प्रताप का कर्म क्षेत्र रहा है उसी के पवित्र तीर्थ धाम श्री कृष्ण के गोवर्धन लीला के प्रसिद्ध  मंदिर कस्बे,  नाथद्वारा में ऐसे ही एक राष्ट्र कर्मी, कर्मठ तथा तपस्वी व्यक्तित्व तथा जाति कुलदीपक एक ऐसे सत्पुरुष ने जन्म लिया जिसका संपूर्ण जीवन संघर्ष मे बीता तथा जिसके कार्य राष्ट्र निर्माण में लगे युवाओं को सतत प्रेरणा देते रहेंगे। ऐसे उस कर्म योगी व्यक्ति का नाम था *श्री गणेश लाल माली*
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 *जन्म ,जन्म स्थान* -                     9 जनवरी 1924 को  नाथद्वारा में एक सामान्य माली परिवार में जन्मे गणेश लाल अपने पिता *श्री नाथू लाल जी*  की 6 संतानों में से दूसरी संतान थे ।इसके अतिरिक्त उनके तीन भाई स्वर्गीय श्री मोहनलाल ,स्वर्गीय श्री विट्ठल लाल तथा श्री कन्हैयालाल थे। उनकी दो बहने श्रीमती कंचन देवी तथा श्रीमती लक्ष्मी देवी थी। स्वर्गीय श्री माली के पिता एक कुशल भवन कर्मी (मिस्त्री )थे तथा तत्कालीन अनपढ़ व पिछड़ी माली समाज में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त थे। समाज तथा जाति सेवा
की लगन उनके पिता में थी तथा इसी कारण समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण उत्पन्न विवादों को निपटाने के लिए सदैव तत्पर रहते तथा इस निमित् अनेक पंचायतों तथा बैठको  में भाग लेने के लिए प्राय: आते जाते थे ।  समाज में अनेक ऐसे विवाद थे जो श्री नाथू लाल ने अपने हस्तक्षेप तथा कुशाग्र बुद्धि के कारण निपटाए ।  गणेश की माता *श्रीमती सोना  बाई* एक अनपढ़ परंतु बुद्धिमति थी। घर के कार्यों के अतिरिक्त परिवार की स्थिति बेहतर बनाने के लिए भी वह अतिरिक्त कार्य करती थी और वह छोटे से छोटा कार्य करने में भी कभी नहीं शर्माती । श्री सोना देवी एक धार्मिक महिला थी तथा *तिलकायत संप्रदाय* में आस्था रखती थी ।ऐसे माता पिता के गुणों के अनुपम  संयोग का ही कारण रहा होगा कि बालक गणेश में प्रारंभ से ही राष्ट्र ,जाति व समाज की सेवा की भावना पनपी।पिता की कुशाग्र बुद्धि तथा माता के परिश्रम व अध्यात्म के प्रति अटूट श्रद्धा ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि वह भी ऐसे कार्य करें जिससे कि वह अपना तथा अपनी जाति का नाम उज्ज्वल कर सकें और इस प्रकार  वह बात का धनी व्यक्ति तमाम विपरीत पारिवारिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के उस पथ पर अकेला ही चल पड़ा, जो रास्ता कठिन ही नहीं अपितु कंटीला भी था तथा उनकी प्रेरणा का मंत्र था *गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर का संदेश ,"एकला ही चलो रे* "।              

 *शिक्षा*   -                           
 श्री गणेश लाल माली ने नाथद्वारा के गोवर्धन हाई स्कूल में अपनी शिक्षा उस समय प्राप्त करनी शुरू की जब पूरे देश में पूज्य महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आजादी का आंदोलन चल रहा था। आंदोलन के दो रूप थे- एक अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए सीधी टक्कर, दूसरा रास्ता था  रचनात्मक कार्यों के जरिए समाज में व्याप्त अस्पृश्यता ,भेदभाव तथा विषमताओं को समाप्त करने के लिए जनजागृति के कार्य करना। युवा  गणेश लाल ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का रास्ता अपनाया तथा विद्यार्थी काल में ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए।
 नाथद्वारा में मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात इन्टर शिक्षा    प्राप्ति  के लिए उदयपुर चले गए ।स्कूल शिक्षा के दौरान युवक गणेश ने अपने चतुर्मुखी गुणों का परिचय दिया ।वे प्रारंभ से ही एक *शानदार खिलाड़ी के रूप में उभरे तथा वॉलीबॉल ,हॉकी तथा फुटबॉल  के बेहतरीन खिलाड़ी साबित हुए*। उदयपुर के महाराणा कॉलेज से इन्टर तक शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए मध्यप्रदेश के विख्यात नगर *इंदौर चले गए ।जहां उन्होंने क्रिश्चियन कॉलेज* से बीए तथा राजनीति शास्त्र में एम ए तक शिक्षा प्राप्त की।    
श्रीमाली की प्राथमिक शिक्षा से उच्चतर शिक्षा  तक ,तत्पश्चात मृत्यु पर्यंत *नाथद्वारा निवासी श्री नंदलाल कच्छारा एडवोकेट* उनके मित्र बने।  और वे दोनों ऐसे दोस्त थे जिनके दो शरीर थे परंतु  एक प्राण थे । जीवन के हर क्षेत्र में उनकी अगाढ़ मैत्री बनी रही जो सभी के लिए प्रेरणादायी व  स्मरणीय है । इंदौर में एम ए तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उदयपुर के ही   *एम बी कॉलेज से एल एल बी* की परीक्षा पास की। इस प्रकार एक  अत्यंत पिछड़ी जाति में जन्म लिए युवक ने ज्योतिबा फूले के आदर्श वाक्य,"शिक्षा के बिना विकास असंभव है "को चरितार्थ करने के लिए शिक्षा के प्रकाश को अपने पूरे समाज में जगमगा दिया। वह प्रकाश जो मात्र अभी तक उपलब्ध था किन्हीं विशेष वर्गों ,वर्ण तथा जातियों के लिए ।

*जीवनसंगिनी श्रीमती केसर देवी*   -                      
     श्री गणेश लाल माली का विवाह मात्र 13 वर्ष की अवस्था में ही नाथद्वारा निवासी श्री तुलसीदास माली की सुपुत्री श्रीमती केसर देवी के साथ हुआ। विवाह के पश्चात पत्नी की आयु मात्र 9 वर्ष की थी विवाह था अथवा गुड्डा- गुड्डी का खेल ।दोनों मासूम बच्चे थे। विवाह के तुरंत बाद पत्नी अपनी ससुराल आ गई और पलने लगी अपनी बड़ी बहन तथा जेठानी श्रीमती कमला देवी पत्नी स्वर्गीय श्री मोहनलाल की छत्रछाया में । यद्यपि श्रीमाली के उद्देश्य बहुत व्यापक तथा दूरगामी थे व इस छोटी आयु में विवाह इन उद्देश्यों की प्राप्ति में  बाधक बन सकता था। परंतु श्रीमती केसर देवी उन संस्कारों में पली थी कि कभी भी वह अपने पति के पथ में बाधा ना बनी। सिद्धार्थ की यशोधरा तो पति विरह में पति के चुपचाप छोड़ जाने पर उलाहना करती हुई अपनी सखी को ,श्री मैथिलीशरण गुप्त की कविता में कहती है, "सखी यदि वे मुझको कहकर जाते तो क्या पथ की बाधा पाते" ।परंतु श्रीमती केसर देवी ने अपनी शिक्षा व समाज सेवा के अनुरागी पति को अपने मोहजाल में नहीं फसाया व जीवन पर्यंत अनपढ़ होने के बावजूद एक आदर्श पत्नी बनने का प्रयास किया ।जिसमें वह पूर्ण सफल थी। रघुवंश में कवि कुलगुरु कालिदास ने इंदुमती एवं अज के विषय में बड़े ही मार्मिक वाक्य कहे हैं। "*गृहणी सचिव: सखी मित्र: प्रियशिष्ये ललितेक्लाविधौ।।   करुणा विमुखेन मृत्यजा हरता त्वाम   बतक्रिन्नुंमेहतम "।          यह अज की उक्ति   अक्षरशः सत्य है । यहां पर श्रीमती केसर देवी ,श्री गणेश लाल जी की  सहधर्मिणी थी , सचिव भी थी , सखी तो थी ही। शिष्य भावत्व  भी प्राप्त था ।श्रीमती केसर देवी अपने पति के अंत समय में स्वयं अस्वस्थ रही ,परंतु पति सेवा सुश्रुषा के लिए उन्होंने कोई कमी नहीं रखी ।माली जी चाहे नाथद्वारा नगर पालिका के सदस्य रहे अथवा राज्यसभा के सदस्य के रूप में दिल्ली में रहे ,अथवा देश देशांतर के भ्रमण पर ,उनकी धर्मपत्नी अपने परिवार को संभाले रखी तथा परिवार के प्रति अपनी कभी भी कोई चिंता अपने पति को ना होने दी, चाहे परिवार किन्ही विपदाओ से गुजर रहा हो । स्वर्गीय श्री माली 1978 वर्ष के बाद तो शारीरिक रूप से  प्राय: अस्वस्थ रहे तथा परिवार में भी आर्थिक मंदी रही ।परंतु निरक्षर श्रीमती माली एक कुशल घरेलू विज्ञान की पंडित साबित हुई। श्रीमती केसरबाई प्राचीन भारतीय समाज की प्रतिनिधि महिला है ।जिसका पवित्र जीवन तमाम महिलाओं के लिए अनुकरणीय है। श्रीमती  केसर देवी ने सात बालक -बालिकाओं को जन्म दिया ।जिसमें से एक बाल्यावस्था में ही चल बसे तथा बाकी छह बच्चों ने जीवन पाया। दूसरे नंबर की सुपुत्री श्रीमती भगवती भी दुर्भाग्यवश विवाह उपरांत
यौवन अवस्था में ही मृत्यु का ग्रास बन गई तथा वर्तमान चार पुत्रियां तथा दो पुत्र हैं ।वेद के वाक्य के अनुसार ," मातृमान
 पितृमान आचार्य मान पुरुषों वेद: को चरितार्थ  करते हुए माता तथा पिता द्वारा उत्तम संस्कारित होते हुए अपने अपने परिवारों को संभाले हैं।           श्रीमती व श्री माली की बड़ी पुत्री श्री प्रेमलता ने हायर सेकेंडरी शिक्षा प्राप्त की  व तत्पश्चात डूंगरपुर के होनहार श्री देवी लाल माली से विवाहित हुई। जो  राजकीय कॉलेज डूंगरपुर में उपाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए । वे  एक सुसंस्कृत व मृदुभाषी व्यक्ति हैं ।श्रीमती प्रेमलता व उनके अध्यापक पति  ने अपने बच्चों को श्री गणेश लाल माली के परिवार के अनुरूप शिक्षा दी है तथा उनके छह बच्चे श्रीमती अनीता, भारती, कल्पना व रचना(दिवंगत) (पुत्रियां) व राहुल  व विवेक पुत्र हैं ।  श्री माली की दूसरी  पुत्री श्रीमती मधु सैनी ने भी हायर सेकेंडरी तक शिक्षा प्राप्त कर एक स्वाबलंबी  युवक  श्री दयानंद सैनी निवासी श्री गंगानगर से आदर्श  विवाह किया ।  विवाह के समय यद्यपि श्री दयानंद सैनी एक साधारण राजकीय  पद पर ही थे परंतु अपनी कर्मठ भावना तथा कुशाग्र बुद्धि के कारण उन्होंने राजस्थान शासकीय सेवाओं (आर ए एस )की परीक्षा पास की तथा  राजस्थान में अनेक स्थानों पर विभिन्न पदों पर रह कर सेवा निवृति प्राप्त और अब परिवार सहित उदयपुर में ही रह रहे है । ।जिनके दो बालक  पुत्री सोनल व पुत्र  कांति मोहन  हैं ।श्री माली के तीसरे नंबर पर पुत्र    डॉक्टर रमाकान्त माली हैं जिन्होंने एमबीबीएस उदयपुर मेडिकल कॉलेज से पास कर राजलदेसर जिला बीकानेर के श्री मांगीलाल जी की सुपुत्री  श्रीमती पुष्पा से विवाह किया है ।पति पत्नी दोनों विनम्र तथा सेवा भावी है।
 श्री रमाकांत की दो पुत्रियां कुमारी जया व प्रियंका व पुत्र श्री प्रतीक है। श्रीमाली की चौथे नंबर पर  सुपुत्री श्रीमती तारा देवी बी ए पास है तथा जिनका विवाह अजमेर निवासी श्री बिहारी लाल कच्छावा के सुपुत्र श्री अंबा लाल कच्छावा के साथ हुआ है। श्री  कच्छावा भी   न्यू  बैंक ऑफ इंडिया ब्रांच में कार्यरत रहे तथा उनके एक पुत्री कुमारी कीर्ति व समीर है। श्री माली के पांचवे नंबर पर एक सुपुत्री श्रीमती कृष्णा कांता है जिन्होंने एम कॉम प्रथम तक शिक्षा प्राप्त की है तथा जिनका विवाह पानीपत (हरियाणा) में सैनी समाज की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सीता रानी सैनी तथा परवाना ए कौम   मास्टर सीताराम सैनी के एडवोकेट सुपुत्र श्री राम मोहन राय के साथ हुई है। जिनकी दो पुत्रियां  सुलभा, संघमित्रा तथा पुत्र श्री उत्कर्ष है ।श्री माली के छठे नंबर पर सुपुत्र श्री हरिकांत है जो आज कल मुंबई में रहकर कार्य कर रहे हैं ।श्री हरिकांत का विवाह मुंबई में कार्यरत श्री नंदलाल  जी तंवर की सुपुत्री संतोष के साथ हुआ है ।उनकी दो पुत्रियां  कनिका व इत्ती हैं ।   

*राजनीतिक व सामाजिक जीवन*     
श्री गणेश लाल माली प्रारम्भ से ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प0 जवाहरलाल नेहरू के जीवन दर्शन से प्रभावित रहे तथा उन्ही से प्रेरित हो कर वे कांग्रेस में शामिल हो गए जहाँ उन्हें नाथद्वारा के ही निवासी श्री मोहन लाल सुखाड़िया (पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान) का सानिध्य व नेतृत्व प्राप्त हुआ । नाथद्वारा नगरपालिका के वे प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष बने तथा मृत्युपर्यन्त ज़िला शहर कांग्रेस समिति ,उदयपुर के भी अध्यक्ष रहे । वे एक कुशल वक्ता व सुयोग्य संगठनकर्ता भी रहे और इसी कारण देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के सम्पर्क में आये जिन्होंने उनकी क्षमता व योग्यता को पहचान कर वर्ष 1973 में राजस्थान से राज्यसभा के लिये टिकट दिया और वे वर्ष 1973 से 79 तक 6 वर्षो के लिए सांसद रहे । श्री माली ने इस दौरान राजस्थान सहित देश के अन्य हिस्सों के ज्वलन्त मुद्दों को संसद में उठाया ।  वे संसद में भी अनेक संसदीय समितियों तथा  कांग्रेस कार्यसमिति के भी भी सदस्य रहे  । राजनीति के साथ-२ सामाजिक कार्यो की वजह से उन्होंने पूरे देश का भृमण किया व पिछड़ी जातियों में शिक्षा व जागृति का कार्य किया । राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय छात्र संगठन ,जोधपुर के तत्कालीन अध्यक्ष *श्री अशोक गहलोत* उनके विशेष प्रिय रहे तथा उनकी कामना रही कि यह युवक किसी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी को लेकर राष्ट्र सेवा करे  जो आशीर्वाद अब फलित हो रहा है ।       वर्ष 1977 में  जनता पार्टी के शासन के दौरान जब श्रीमती इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया तो श्री माली ने भी इसके विरोध में उदयपुर ज़िला मुख्यालय पर एक भारी प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए गिरफ्तारी दी ।जेल यात्रा के दौरान यातना  के कारण वे अस्वस्थ हो गए जिसकी सही जांच न होने की वजह से अक्सर अस्वस्थ ही रहे । राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो कर राजस्थान के अनेक निकायों जैसे राजस्थान बुनकर सहकारी संघ व राज्य सहकारी बैंक  के अध्यक्ष पद पर रहे । वे राजस्थान वॉलीबॉल संघ तथा  अनेक खेल संघों का भी नेतृत्व करते रहे । अपनी अस्वस्थता के दौरान भी उन्होंने अपनी सामाजिक -राजनीतिक कार्यक्रमों को जारी रखा ।  अपने जीवन पर्यन्त वे, श्री नाथद्वारा मंदिर बोर्ड के वकील रहे परन्तु जब मंदिर में हरिजन प्रवेश को लेकर दीदी निर्मला देशपाण्डे व श्री केयूर भूषणजी के नेतृत्व में हरिजन सेवक संघ ने सत्याग्रह किया तब भी वे अग्रणी दस्ते में रहे व वहाँ प्रताड़ना सह कर हरिजन बंधुओ को मन्दिर प्रवेश करवाया ।           

इस प्रकार श्री माली ने अपना जीवन भरपूर  क्रियाशीलता व सुख से जिया तथा एक भरा पूरा परिवार छोड़कर दि0  13 मई ,1992 को  उदयपुर में ही उनका निधन हो गया ।
श्री माली की अपने जीवन काल मे यह हार्दिक इच्छा रही कि उनका जीवन वृतांत प्रकाशित हो जो उनके परिवार सहित समाज के अन्य लोगो को प्रेरित कर सके । परिस्थितियोंवश ऐसा न हो सका पर,जो एक लंबे समय के बाद हो रहा है ।
(*यह लेख वर्ष 1992 में श्री गणेश लाल जी माली की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा गया था परन्तु प्रकाशित न हो सका ,अतः अब यहाँ दिया जा रहा है* ।)

राम मोहन राय
(Nityanootan broadcast service)
Seattle (USA)
24.04.2019

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