My family and Ram Ram
*Inner voice-6*
(Nityanootan broadcast service)
मेरे पिता सीता राम( मास्टर सीता राम जी सैनी) के महाप्रयाण का जब समय आया तो वे बोले कि ' राम-राम' बोलो पर हमारा आर्य समाजी संस्कारो का मन राम को मर्यादा पुरुषोत्तम एक महान आदर्श व्यक्ति तो मानता रहा परन्तु अवतार पुरुष भगवान राम नही ,इसलिये राम -२ का जाप करने में हिचकिचाहट दिखाई और कहा कि आप का तो नाम ही सीता राम है तो वे बोले चल छोड़ *सीता राम सीता राम* बोल । हमने उनकी आज्ञा का पालन किया और वे अपनी अंतिम यात्रा को चल पड़े । हमारा परिवार कोई सनातनी परिवार नही रहा परन्तु इसके बावजूद भी वह *राम प्रेमी* था । हमारी सात पुश्तों में मेरा नाम राम मोहन, मेरे पिता सीता राम, उनके पिता बख्तावर राम, उनके पिता जय राम ,उनके पिता श्योराम, उनके पिता राम सिंह व उनके पिता का नाम जागो राम था । मेरे बुजुर्ग साधारण किसान थे जिनकी यात्रा होशियारपुर(अब पंजाब) से शुरू होकर बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) से होती हुई तत्कालीन रोहतक (पंजाब-हरियाणा) ज़िला के गांव बलि कुतुबपुर तक पहुंची । लोक ,कुल व ग्राम देवता ही उनके आराध्य रहे होंगे । बहुत कोशिशों के बावजूद भी तीर्थ स्थलों पर हमारा कोई पुरोहित नही मिला और फिर उनकी बही में हमारी कुल परम्परा का वृतांत तो मुश्किल ही था यानी बेशक आर्य समाज तो पिछले 100 वर्ष से आई मानी जा सकती है इसकी वजह से आडंबर व धार्मिक कर्मकांड अभी समाप्त हुए हो पर वे तो पहले से ही नदारद थे । पर *राम नाम* किसी भी धार्मिक भाव से न होकर लोकभाव से था । राम नाम हमारे जीवन का अंग था । जन्म से मृत्यु तक का संग ,एक प्रिय नाम । उसके किसी भी चित्र व मूर्ति की पूजा तो कही भी नही रही । नाम मे राम ,अभिवादन में राम -२ और अंत मे राम नाम सत्य ।
लोक व्यवहार में तो सम्बोधन में राम-राम रहा परन्तु आर्य समाजी व्यवहार में वह भी नदारद । आर्य समाजी सम्बोधन में नमस्ते को ही प्रमुखता देते है किसी भी तरह से अन्य को नही । आर्य समाज ,खैल बाजार ,पानीपत में एक बुज़ुर्ग कार्यकर्ता महाशय थारू राम जी थे, वे तो इतने कट्टर थे कि जब भी कोई उन्हें राम-राम कहता तो वे नाराजगी से उसका जवाब न देते । कुछ बच्चे उन्हें तंग करने के लिये कहते - बाबा ,राम राम तो वे झल्ला कर उन्हें डांटते पर राम-राम का जवाब राम-राम से कभी नही देते ।
बहुत पहले तक पंजाब ,हरियाणा पूर्वी उत्तरप्रदेश ,राजस्थान के कुछ हिस्सों में अभिवादन मात्र राम-राम ही रहा है जबकि अन्य क्षेत्रों में नमस्ते ,नमस्कार ,प्रणाम, नमस्कारम ,नमस्कारा , वनक़्क़म आदि -२ है । अब धार्मिक क्षेत्रो में हर सम्प्रदाय के अपने -२ सम्बोधन है । जैन ,जै जिनेन्द्र कहेंगे तो अन्य अपने-२ । ऐसी हम अपने आस्थानुसार कहेंगे । गुजरात आदि में जय श्री कृष्ण ही लोग अभिवादन में कहेंगे ,पर इसका कोई भी सम्बन्ध किसी भी राजनीति से नही है । परन्तु अफसोस है कि *राम* नाम का उपयोग राजनीति के लिये हुआ है । राम मंदिर पर राजनीति और अब *जय श्री राम* को लेकर राजनीति ।
*राम नाम मुद मंगलकारी, विघ्न हरे सब बाधा सारी* राम का नाम तो शांति व आनंद का देने वाला होना चाहिये पर किसी को चिढ़ाने के लिये इसका दुरुपयोग नही होना चाहिए । क्या राजनीति के लिये और क्या नारे कम है जो अब राम का नारे का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ी ?
जब कोई राम की राजनीति करेगा तो विरोध की राजनीति हमारे अन्य राष्ट्रीय सूचकों की होगी और इससे वे कमजोर ही होंगे मजबूत नही । मैने अनेक लोगो को देखा कि वे एक कॉपी लेकर राम -२ लिखते रहते है तथा बाद में एक जगह जमा करवाते है जो राम नाम बैंक कहलवाता है ।
मेरे इस कथन पर अनेक मित्र कहेंगे कि क्या भारत मे जय श्री राम भी नही कह सकते ? जरूर कह सकते है परन्तु अपने आनंद व शांति के लिये दूसरे को चिढ़ाने व अपनी राजनीति के लिये नही । दीदी निर्मला देशपाण्डे जी कहा करती थी कि भगवान राम को आदमी की इस फितरत का पता था इसीलिये उन्होंने आदमी की बजाय भालू ,वानर व अन्य वन्य जीवों पर यकीन करके उनकी फौज बनाई क्योकि उन्हें लगता था कि आदमी कलियुग में उसके नाम का दुरुपयोग करके अपना हित साधन करेगा ।
राम मोहन राय
Seattle, Washington (USA)
05.06.2019
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