Buzurgaan-e Panipat . Shahid Kranti Kumar

*पानीपत के बुजुर्ग* 
शहीद क्रांति कुमार    
              बेशक उनका जन्म तो पानीपत में नही हुआ परंतु उन्होंने भारत विभाजन के बाद वर्ष 1947 से अपनी मृत्यु पर्यन्त साल लगातार लगभग 20 वर्षो तक यहां रह कर लोगों की सेवा की वहीं अपने संघर्षों को भी जारी रखा ।
        कॉमरेड क्रांति कुमार उर्फ श्री हंसराज शर्मा का जन्म 6 दिसंबर, 1902 को गांव सतधारा तहसील पाटन जिला मिंटगुमड़ी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था।
        आपके पिता पंडित हरदयाल शर्मा गांव में ही पुरोहित का काम करते थे । आप के बचपन का नाम हंसराज था परंतु क्रांति कुमार का नाम शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह ने दिया था, क्योंकि उनका एक अन्य साथी किसका नाम हंसराज था वह वादा माफ गवाह हो गया था और इसलिए इस नाम की बदनामी से बचने के लिए  उनका नाम क्रांति कुमार रख दिया । भगत सिंह  प्यार से उन्हें लंच कुमार भी कहते थे। लंच कुमार इसलिए क्योंकि जेल में रहते आप ही अपने साथियों के पूरे लंच की व्यवस्था आप ही करते थे। भगत सिंह उन्हें रसगुल्ला कहकर भी बुलाते थे, क्योंकि मौका मिलते ही किसी भी आगंतुक के आने पर वे इसकी व्यवस्था करते। 
      क्रांति कुमार ने अपने प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव में प्राप्त की थी । तत्पश्चात लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज , लाहौर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की ।  विद्यार्थी काल में ही वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए और कॉलेज में स्टूडेंट्स कांग्रेस बनाकर काम करने लगे । सन 1920 में महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता प्राप्त की और उसके बाद अपने पूरे जीवन को स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अर्पित कर दिया ।
      सन 1921 में आप मिंटगुमरी जिला कांग्रेस कमेटी की ओर से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के लिए प्रतिनिधि चुने गए और इस पथ पर हमेशा बढ़ते ही रहे।  कांग्रेस की सदस्यता अभियान  के लिए आपने पूरे पंजाब का दौरा किया और इस तरह से कांग्रेस के संगठन से जुड़े तिलक स्वराज फंड के लिए चंदा जुटाने का काम आपने जिस तरह से किया उसकी पूरे कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व ने भूरी भूरी प्रशंसा की । उसी दौरान आप पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के सम्पर्क में आए  और उनके ही निर्देश पर  उनके द्वारा स्थापित  नवरत्न आश्रम में कार्यरत रहे।
      पंजाब कांग्रेस के तत्कालीन नेता डॉक्टर रियाजउद्दीन किचलू पूरे पंजाब में अपना असर रखते थे। आपने उन्हें अपना गुरु माना तथा फिर उनके नेतृत्व में कार्य करने लगे। डॉक्टर किचलू वह व्यक्तित्व थे जिन्होंने जलियांवाला बाग में हुई जनसभा को आहूत किया था और यही व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे के पूरे हत्याकांड  के प्रत्यक्षदर्शी भी थे। इसके बाद उन्होंने पूरे पंजाब का दौरा किया और  महात्मा गांधी को पंजाब की दुर्दशा देखने के लिए निमंत्रित किया। इस सारे काम में आपने डॉक्टर किचलू के न केवल एक सचिव के रूप में अपितु एक सहायक और  साथी के रूप में भी कार्य किया।
         सन 1922 में आप फिरोजपुर पंजाब में कांग्रेस के कुलवक्ति कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगे। अंग्रेज सरकार की आंख का रोड़ा आप शुरू से ही बने रहे  और इसी कारण आपको धारा 124 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट ने बिना किसी सबूत के तथा अंग्रेजी सरकार के दबाव से सवा दो साल की सजा सुनाई ।  इस दौरान भी आप फिरोजपुर जिला कांग्रेस कमेटी के सह सचिव के तौर पर कार्यरत रहे । इस सजा को काटने के बाद भी आप बापू के सत्याग्रह के कार्य में सर्वथा अग्रणी रहे, जिसके कारण आपको दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और लाहौर जेल में रखा गया।  यह वह समय था जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का कार्य पूरे देश के नौजवानों के दिलों दिमाग पर छाया हुआ था । आप भी इसी एसोसिएशन से जुड़ गए और भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद, बीके दत्त और अजय घोष जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए। इसी दौरान आप भी नौजवान भारत सभा की कार्यकारिणी के सदस्य बने और इसी आरोप में आपको गिरफतार कर  6 महीने के लिए  पुन: जेल में डाल दिया । परंतु इस तमाम यात्राओं की भट्ठी में आप फौलाद ही बन कर उभरे ।
      यह वह दौर था जब नौजवान भारत सभा पूरे देश के नौजवानों का एक लोकप्रिय संगठन बन चुका था। आप इस नौजवान सभा के महासचिव चुने गए । साथ ही साथ लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार हुए क्रांतिकारियों की डिफेंस कमेटी के भी प्रचार मंत्री के रूप में कार्य करते रहे
     सन 1930 में आपने अपने मार्गदर्शक डॉ रियाजुद्दीन किचलू के साथ पूरे सिंध प्रांत का दौरा किया, पर अंग्रेज सरकार आपकी लोकप्रियता को बर्दाश्त नहीं कर सकी और आपके वापस लौटते ही गिरफ्तार कर लिया गया। 
सरदार भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के डिफेंस कमेटी के सदस्य होने की वजह से आप पर एक बहुत ही मशहूर मुकदमा चला। जिसका नाम ,"चटनी में गोली" पड़ा।  आपको शाही किला लाहौर जेल में रखा गया और यातना की प्रकाष्ठा यह थी कि  आपको चारपाई के पांवे से मुंह के बल बांधकर चारपाई के नीचे उपलों की आग में लाल मिर्च को जलाकर उसने में रखा गया, जिससे आपके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा और सारी उम्र उस प्रभाव से पीड़ित रहे । पर बाद में सन 1930 में ही इन्हें बाइज्जत रिहा किया गया और यह रिहाई कोई स्थाई नहीं थी उन्हें दोबारा अंतर्गत धारा 124 आईपीसी के तहत गिरफ्तार करके जिला गुरदासपुर ,(पंजाब) जेल में 1 साल की सजा देकर बंदी बना लिया गया ।
    फरवरी 1931 में पंजाब हाई कोर्ट के आदेश पर आपको रिहा किया गया लेकिन अंग्रेज सरकार आपको बाहर नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि उनका मानना था कि यदि आप बाहर रहे तो अपने जैसे अनेक क्रांतिकारियों को इकट्ठा करेंगे और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध काम करेंगे । इसलिए आपको फिर तीसरे लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार कर लिया गया और उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
    इसी दौरान शहीद भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को सजाए मौत सुनाई गई । भगत सिंह के साथी उन्हें बचाना चाहते थे। इसलिए भगत सिंह डिफेंस कमेटी के सदस्य जिसमें आप भी एक थे पंडित जवाहरलाल नेहरु से मिले। पंडित जी का मानना था कि महात्मा गांधी यदि ब्रिटिश वायसरॉय इरविन से मिल कर क्रान्तिकारियों की सजा माफ कर रिहाई की बात करें तो बात बन सकती है । परंतु यह बात सिरे नही चढ़ी । आखिरकार 23 मार्च,1931 को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई । इस बात से पूरे देश के नौजवानों का गांधी जी के प्रति गुस्सा था ।  उसी दौरान कराची में कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था । क्रान्ति कुमार और उनके साथीयों ने लाहौर के रास्ते कराची जाते हुए महात्मा गांधी को लाहौर से पहले एक छोटे रेलवे स्टेशन पर खून से सना एक गुलाब भेंट किया जबकि ऐसा ही एक मंजर कराची में भी हुआ । यह प्रतीक था कि यदि बापू चाहते तो भगत सिंह और उनके साथी बचाए जा सकते थे । बाद में क्रांति कुमार खुद इस बात के कायल नही थे और उनका मानना था कि यदि  खुद भगत सिंह ही बचना नही चाहते था और महात्मा गांधी पर इस तरह का आरोप बचकाना और नादानी से भरा था । ऐसे ब्यान क्रान्तिकारियों के बलिदान को कमतर आंकना है ।
      सन 1934 में पंजाब हाई कोर्ट ने आपको  बेगुनाह मानते हुए रिहा कर दिया । इसके बाद का समय आपका कांग्रेस पार्टी और गांधी विचार को समर्पित रहा । पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रचार मंत्री के पद पर आप  अनेक वर्षों तक निरंतर काम करते रहे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद के निर्देश पर आपने उनके साथ भी बिहार में भूकंप पीड़ित लोगों के पुनर्वास एवं सहायता के लिए कार्य किया।
     सन 1936 में आपको पुन: गिरफ्तार कर लिया गया और शाही किला लाहौर जेल में एक साल की सजा काटने के बाद 1937 में रिहा किया गया। सन 1939 में आप जिला मिंटगुमरी कांग्रेस कमेटी के महासचिव के पद पर कार्य करते रहे जिस कार्यभार को आपने सन 1946 तक निभाया।
     3 सितंबर 1939 को दूसरे विश्व युद्ध के समय भी आप को गिरफ्तार किया गया। आप पर यह आरोप था कि आप अंग्रेजी शासन के खिलाफ राजद्रोह कर रहे हैं परंतु उस समय भी आपका मानना था कि हमारी आजादी की लड़ाई अंग्रेजी शासन के खिलाफ है और हम इसको महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसात्मक ढंग से लड़ना चाहते हैं।  1940 में आप रिहा हुए लेकिन इसके तुरंत बाद ही दोबारा गिरफ्तार कर लिए गए। आपकी लोकप्रियता का पैमाना यह था  जेल में रहते हुए भी आप ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के डेलीगेट पद पर चुने गए और उसके बाद ही आप को रिहा किया गया । सन 1942 में महात्मा गांधी ने ,"करेंगे या मरेंगे" का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। आप उस आंदोलन में भी अग्रणी रहे और आपने अपने पूरे क्षेत्र में महात्मा गांधी के सत्याग्रह को जन जन तक पहुंचाने का कार्य किया। अंग्रेज सरकार इसे कहां बर्दाश्त करती और आपको उन्होंने तुरंत गिरफ्तार कर लिया एक वर्ष तक आप जेल में रहे सन 1943 में आप रिहा होकर जब घर आए तो घर आए कुछ घंटे ही नहीं हुए थे कि अंग्रेज की पुलिस ने आपको दोबारा गिरफ्तार कर लिया और इस बार आप की रिहाई लगातार  चार वर्षों तक नहीं हुई। पर जब यह ऐलान हुआ कि भारत 15 अगस्त को स्वतंत्र होने जा रहा है और उससे पहले भारत और पाकिस्तान के नाम पर दो देश बनेंगे और बटवारा होगा इस कारण आपको 11 अगस्त 1947 को रिहा किया गया ।यह विभाजन आपके द्वारा लड़ी गई आजादी की लड़ाई के अनुरूप नहीं थी । पर मजबूरी थी जिसे स्वीकार किए बिना और कोई चारा भी नहीं था।  विभाजन के बाद एक विस्थापित के रूप में आप पानीपत आ गए ।                   
         सन 1948 में आपने यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद प्रेस कमीशन में बतौर डेपुटेशन कार्य करना प्रारंभ किया तथा सन् 1957 में आप सेवानिवृत्त हुए। इसी सेवाकाल में आपका नाम राष्ट्रपति सम्मान के लिए चुना गया। सेवानिवृत्ति के बाद भी आप ने  पत्रकार के रूप में उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी के वंदे मातरम, वीर भारत, प्रभात, जय भारत, दैनिक मिलाप जैसे मशहूर समाचार पत्रों में कार्य किया। 
        देश की आजादी के बाद भी आप राष्ट्र एवं समाज की सेवा में लगे रहे । राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के स्मारक जलियांवाला बाग, अमृतसर जहां की दीवारों पर गोलियों के निशान थे और वह कुआं जहां पर सैंकड़ो लोगों ने  कूदकर अपनी जान दी थी उसे पुनर्निर्मित करने में आप ने अहम भूमिका निभाई, और इसके साथ साथ इलाहाबाद के एल्फर्ड पार्क जहां अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों की गोलियों से छलनी हुए थे, वहां पर भी गोलियों के निशान आप को सुरक्षित रखने के लिए जालियां लगवाई।
    1965 की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान फौज़ की बमबारी के कारण शहीदे आजम सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फिरोजपुर में निर्मित समाधि क्षतिग्रस्त हुई थी । आपने अपने इन मित्रों की समाधि का भी पुनर्निर्माण करवाने में अहम भूमिका निभाई।1965 की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान फौज़ की बमबारी के कारण शहीदे आजम सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फिरोजपुर में निर्मित समाधि क्षतिग्रस्त हुई थी । आपने अपने इन मित्रों की समाधि का भी पुनर्निर्माण करवाने में अहम भूमिका निभाई।
      सन 1965-66 का वह समय था जब पंजाब में पंजाबी सूबा और हरियाणा को अलग राज्य बनने का आंदोलन चल रहा था। क्रांति कुमार ने सन 1947 में उस त्रासदी को देखा था जब उनके प्रिय देश भारत का विभाजन हुआ था। यह विभाजन उनकी भावना के विरुद्ध था क्योंकि वे तो अंग्रेज साम्राज्यवाद के खिलाफ एक लोकतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष, समाजवादी हिंदुस्तान  के लिए लड़े थे जो समानता और शोषण मुक्त होगा न कि संप्रदाय के नाम पर बटे भारत और पाकिस्तान के लिए ।  दुखद यह भी था कि इस विभाजन के सबसे ज्यादा घाव उनके पंजाब को झेलने पड़े क्योंकि वह पंजाब जहां उनका जन्म हुआ था वह पाकिस्तान में चला गया और वह पंजाब जो उनका कार्यक्षेत्र रहा वह हिंदुस्तान में आ गया। अब स्थिति यह आ गई कि अब उनके इस बचे खुचे पंजाब को भी विभाजन का डर सता रहा था। ऐसे समय में उन्होंने इस विभाजन का विरोध किया। संकीर्णतावादी तत्वों को उनकी यह बात गवारा नहीं थी। परिणाम स्वरूप 15 मार्च 1966 को उन्हें तथा उनके दो साथियों दीवान चंद टक्कर और संत कुमार लांबा को महज इसलिए कि वे विभाजन के विरोधी थे, एक साइकिल की दुकान में बंद करके जला कर मार दिया ।  इस तरह उसे अपने स्वतंत्र भारत में सम्मान की जगह मिला एक अमानुषीय मृत्युदंड । जिसे अंग्रेज की काली सरकार न तो दबा सकी और न ही मार सकी ।  वह क्रांतिकारी  सांप्रदायिक तत्वों के घिनौनी साजिश का निर्मम शिकार हो गया । 
     वे अपने परिवार पत्नी कृष्णा कुमारी, चार बेटियों उर्मिला, उर्वशी , चंद्रप्रभा,अनुराधा और दो पुत्रों सत प्रकाश और विनय के पालन पोषण के एकमात्र आधार कामरेड क्रांति कुमार ही थे । उनकी जघन्य हत्या के बाद उनके इस परिवार को तत्कालीन प्रधानमंत्री से लेकर अन्य राजनेताओं के सांत्वना संदेश तो प्राप्त हुए लेकिन मदद के नाम पर कुछ नही । परिवार ने भी संघर्ष को ही अपनी नियति मान कर इसे स्वीकार कर अत्यंत अभाव ग्रस्त जीवन जिया । 
      दुखों का पहाड़ अभी टूटा नही था । इस हत्याकांड में नामजद सभी अभियुक्त गवाहों के मुकरने और कमजोर पैरवी के कारण बा इज्जत बरी हो गए और जेल से छूटने के बाद उनका इस तरह शानदार स्वागत किया गया मानो किन्हीं राष्ट्र द्रोहियों का वध कर वे निकले हों । और वह दोहा घृणित और भद्दा मज़ाक लगने लगा जिसमें कहा है ,-
" शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यहीं बाकी निशान होगा ।'
     पर यहां तो विपरीत हालात थे इन शहीदों के कातिलों की ही याद में शौर्य दिवस मनाया गया ।

      
 (स्त्रोत : काo क्रांति कुमार के द्वारा लिखे कुछ लेख और उनकी सुपुत्री श्रीमती उर्वशी शर्मा द्वारा अपने पिता के जीवन पर लिखी पुस्तक अमर शहीद क्रान्ति कुमार )
राम मोहन राय

Comments

  1. हमारे देश को आज़ाद करने में कितने महान- महान सत्पुरुषो का सहयोद हे, में उन सभी को कोटि- कोटि वंदन करती हु..अस्तु

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