Suhana Safar-3
एमस्टर्डम, नीदरलैंड्स में आए आज तीन दिन हो गए और हम थे कि पहले दिन से ही बिना कोई आराम किए घूमने फिरने में लग गए । इसका एक कारण यह भी रहा की वीक एंड था और सोमवार की प्रभु यीशु मसीह के विशेष दिन की वजह से छुट्टी थी और हमारा सुपुत्र उत्कर्ष इन दिनों का सदुपयोग करना चाहता था । हम भी इस बात के इच्छुक थे कि इन तीन दिनों में इतनी जगह चाहे सरसरी नज़र से ही देख ले ताकि अगले पांच दिनों में यहीं फुरसत से आए और पूरा दिन यहीं व्यतीत कर इन जगहों के बारे में जानकारी हासिल करें । इस ढंग को मेरी उस्ताद निर्मला देशपांडे दीदी जुगाली कहती थी कि एक बार सरसरी निगाह से किसी भी वस्तु के बारे में पढ़े और देखें और फिर इतमीनान से उस पर चिंतन करें । बेशक जुगाली दूध देने वाले पशु करते हैं परंतु उनसे यह खूबसूरत चीज सीखने की है ।
" *ग्राम स्वराज* "
आज हम एमस्टर्डम के नजदीक कस्बे जाडम (Zaandam) के एक गांव जांसे स्कांस (Zaanse Schans ) आए है ।
हमारे गांवो की तरह यहां भी खेती है, पशुधन है और अल्हड़पन भी । परंतु यहां की स्वच्छता और शुद्धता का कोई सानी नहीं है ।
इस गांव का निर्माण लगभग १८ वीं शताब्दी में माना जाता है । यहां सभी मकान एक ही डिजाइन और रंग में साथ साथ है । लगभग १५० वर्ष पहले इस देश में बिजली आ चुकी थी । इस गांव के लोगों ने भी इसे अपनाया । कहीं बाहर से खरीद कर अथवा लाकर नही अपितु अपनी बना कर । इसके लिए उन्होंने बड़ी बड़ी पवन चक्कियां तैयार की । इसके निर्माण की प्रक्रिया यह रही की गांव के कारीगरों ने लकड़ी से इसका निर्माण किया और इसे घुमाने के लिए कपड़े का इस्तेमाल किया यानी विशुद्ध स्वदेशी । गांव की विशेषता यह भी है की सभी उत्पाद गांव में ही तैयार किया जाता है । बहुत बड़ी बडी गौ शालाएं (पशु शाला) है जहां सैंकड़ों गाय है ,जिनके दूध से दही ,माखन ,घी इत्यादि प्रचुर मात्रा में बनाया जाता है । अकेले पनीर की ही ३२ तरह की वैरायटी बिक्री के लिए उपलब्ध है जैसे जीरा पनीर, अदरक, वेजीटेबल आदि-२ । गांव के बीच में ही एक दुग्ध उत्पाद बिक्री केंद्र है जहां खरीदने से पहले उसे टेस्ट करवाया जाता है । आप सोचे कि इन तमाम तरह के पनीर के छोटे छोटे टुकड़ों में मैने भी चखा जो १०० से १५० ग्राम तो बनता ही होगा । इसी प्रकार से दूध और दही की भी अनेक किस्में हैं। गांव के इसी हाट में ग्रामोद्योग एवम कुटीर उद्योग के अनेक उत्पादों की अनेक छोटी छोटी दुकानें है जहां ब्रेड की अनेक किस्में, साबुन , कपड़े, खिलौने बिक्री के लिए उपलब्ध है । यहां सब कुछ सहकारी आधार पर है और काम और मुनाफा बटवारे का ढंग भी इस सिद्धांत पर आधारित है कि जो जितना कर सकता है करेगा और जितना उसकी जरूरत है उतना मिलेगा । सभी निर्णय करने के लिए ग्राम सभा है जिसके निर्णय बहुमत से न होकर सर्व सम्मति से है । महात्मा गांधी और संत विनोबा भावे के विचारों का ग्राम स्वराज हम कितना भारत के गांवों में बना पाए है ऐसा मेरे पास कोई तथ्यात्मक आंकड़ा नहीं है परंतु यहां भारत से ८ हज़ार किलोमीटर दूर यूरोप के एक छोटे से गांव में इसके प्रत्यक्ष दर्शन है ।
आज हम सुबह जल्दी ही यहां आ गए थे अत: खूब फोटोग्राफी हुई । देखते देखते ही काफी भीड़ बढ़ने लगी थी और हमने आगे भी जाना था इसलिए यहां से जल्दी ही रुखस्ती ली। पर मन और हृदय में इस गांव और गांव वासियों के प्रति श्रद्धा एवम आदर भाव था उनकी इस प्रेरणा के लिए भी कि यदि गांव मजबूत होंगे तभी देश मजबूत होगा । संत विनोबा का नारा था " सभै भूमि गोपाल की , नही किसी की मालकी"। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का भी कहना था कि किसी भी देश की तरक्की का रास्ता गांव के खेत खलिहान से गुजर कर आता है ।
Part -Two
टेस्ल (Texel)
डच भाषा में अनेक शब्दों और उनके उच्चारण एक नही है जैसे टेक्सल को टेसल, जी को ई आदि आदि । टेस्ल एक बहुत ही सुंदर द्वीप का नाम है जो एमेस्ट्रडेम से लगभग १५० किलोमीटर की दूरी पर Wadden Sea में स्थित है । इसमें जाने के लिए एक ferry (फेरी) से जाना होता है जिसमे एक बार में लगभग २०० गाड़ियों का लदान मय सवारी होता है और लगभग ३० मिनट सफर के बाद हम उस पर पहुंचते है । द्वीप पर पहुंचते ही लगभग ४० मिनट सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी से यात्रा करते हुए मुख्य कस्बे में पहुंचते है । टेड़ी मेड़ी परंतु मजबूत और ढंग से बनाई ये सड़के इस यात्रा की लंबाई को महसूस ही नही होने देती । आज इसी सफर का हमने आनंद लिया ।
टेस्ल लगभग १६२ किलोमीटर भूभाग पर फैला है और इसकी कुल आबादी 13,643 है जिसमें मर्द, औरतें और बच्चें सभी शामिल हैं । लोगों का मुख्य व्यवसाय पर्यटन , खेतीबाडी और ग्रामोद्योग है । छुट्टी के दिनों में हज़ारों पर्यटक यहां आते है । मुख्य स्थान पर एक बड़ा बाज़ार है जहां एक से बढ़कर एक रेस्त्रां के अतिरिक्त बेकरी, कपड़ो और स्थानीय उत्पाद जिनमें भेड़ की ऊन की जर्सियां और कोट की दुकानें तथा टेस्ल की ख़ास बीयर और शराब की दुकानें है । पूरा इलाका इतना खूबसूरत और शांतप्रिय है कि यहां आकर वापिस लौटने का मन नहीं करता । लोग भी बहुत ही मिलनसार है ,बिना किसी परिचय के अभिवादन करते हैं और किसी भी प्रकार की सेवा की पेशकश करते हैं। हमने भी इस द्वीप पर लगभग 5-6 घंटे गुजारे । भोजन किया कुछ देर सुस्ताये और फिर एक बेकरी पर जाकर स्पेशल पेस्ट्री का स्वाद लिया और फिर चल दिए समुद्र किनारे
मैने भारत सहित अनेक देशों के समुद्री तट देखें है। अमेरिका तक के तटों पर अनुशासन तो है परंतु सफाई और खूबसूरती गायब है पर सच मानिए नीदरलैंड्स के इस टेसल लाइट हाउस का कोई मुकाबला नहीं । यहां पर निर्मित लाइट हाउस से आप तीन तरफ के समुद्र को देख सकते है । यह एक रेत के ऊंचे टीले पर बना है और ऐसा मानना है कि सौ साल से भी ज्यादा समय पहले इसे बनाया गया है । समुद्र तक लगभग आधा किलोमीटर की दूरी महीन रेत से लबालब है जिस पर चलना कठिन पर आनंद दायक है । इस आध किलोमीटर के रास्ते को पार कर समुद्र तक पहुंचने में एक घंटे का समय लगता है पर इसे पार कर हम रोमांच से भर गए ।
और फिर हम पहुंचे टेसल द्वीप पर ही एक दूसरे समुद्री तट पर । वहां भी समुद्र की लहरें ऊंचा शोर करती हुए आगंतुकों का जोरदार स्वागत कर रही थी । अब शाम के 6 बजने को आए थे । वैसे तो फैरी हर आधे घंटे बाद लगातार चक्कर लगाती है और यह क्रम सुबह 10 बजे शुरू होकर रात 11 बजे तक चलता है पर हमें डेढ़ घंटे का सफर करके वापिस अपने घर एमेस्ट्रडम भी वापिस लौटना था । आज लगभग 10 हजार से भी ज्यादा कदम चले थे । इतना चलने और घूमने के बाद भी कतई भी थकावट का अहसास नही हो रहा था । ज़ुबान पर एक ही गाना बुदबुदा रहे थे :-
"ऐ सागर की लहरों
हम भी आते है ठहेरो
ऐ सागर की लहरों
हम भी आते है ठहेरो
ओ साहिल साहिल मंज़िल
मंज़िल हमको ले चलो,
ए सागर की लहरों
हम भी आते है ठहरो
ऑय सागर की लहरों
Texel Iceland,
Netherlands.
30.05.2023
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