Suhana Safar-15 (Mahatma Gandhi Statue, churchillian, Amsterdam)
पूरी दुनियां में जहां भी भारतीय जाते हैं अपनी मेहनत, ईमानदारी और वफादारी से अपना नाम रोशन करते है और यही है इनकी पहचान । पर भारत की क्या पहचान है?
इसके लिए हमें और आगे जाना होगा । जब भारतीय सनातन धर्मी हिंदू जाता है तो वह अपनी पहचान के लिए अपनी आस्था के अनुरूप मंदिर बनाता है , आर्य समाजी हिंदू आर्य समाज भवन , सिख गुरुद्वारा बनवाता है, बौद्ध अपना विहार , जैन अपना मंदिर , संतमत के अनुयायी अपना सत्संग भवन अथवा सेंटर , मुस्लिम और ईसाई क्योंकि दूसरे देशों में भी है तो उन्हें बनवाने की जरूरत नहीं है ।
ऐसा स्वाभाविक भी है । अल्पसंख्यक मनोविज्ञान ऐसा करवाता है । हमारे देश की विशेषता यह है कि यहां हर धर्मावलंबी कहीं न कहीं अल्पसंख्यक है । उत्तर भारत के अनेक प्रांतों में हिंदू बहुसंख्यक है तो अन्य धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक। जम्मू कश्मीर के ही तीनों संभागों में लद्दाख में बौद्ध,कश्मीर में मुस्लिम और जम्मू में हिंदू बहुसंख्यक है । पंजाब में सिख बहुसंख्यक है और बाकी सब अल्पसंख्यक, नागालैंड में ईसाई बहुसंख्यक है और बाकी अल्पसंख्यक । ऐसी मानवीय प्रवृति है कि अल्पसंख्यक अपनी मजहबी पहचान ,संस्कृति और इतिहास के बारे में सदा असुरक्षित महसूस करता है ।
धर्म के बाद यह स्थिति समुदाय, जाति, कबीले और गोत्र पर लागू होती है । और वह इसकी प्रथाओं ,रीतियों और वंशावली को संजो कर रखना चाहता है । इस प्रवृत्ति को हम लोग संकीर्णता और अलगाववाद का नाम दे देते है ,जबकि है वह इस सुरक्षात्मक मानसिक सोच का परिणाम।
अस्तु, हम यहां बापू की प्रतिमा की बात कर रहे है जो एमस्टर्डम के चिरचिल्लिया लॉन में गांधी जयंती के अवसर पर सन 1992 में लगाई गई है । भारत और सूरीनाम के स्थानीय लोगों ने मिल कर अनेक प्रशासनिक और वित्तीय झंझटो और विवादों के निपटारे के बाद यह मूर्ति लगाई है । इतिफाक देखिए यह लॉन ,इंग्लैंड की उस पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल के नाम से है जिसने महात्मा जी को एक अध नंगा फ़कीर कह कर उपहास उड़ाया था ।
महात्मा गांधी स्टेच्यू फाउंडेशन,वेरेनाइजिंग त्रिदेवा के अनथक प्रयासों से स्थापित यह मूर्ति एमस्टेरडेम के बिलकुल मध्य एक बस्ती के बड़े पार्क में लगी है ,जहां हम अपनी एक गांधी सेवक डच मित्र Anne-Mariken के साथ 🚊 ट्राम से पहुंचे । बहुत ही शांत एवम हरा भरा स्थान है । इसकी सौम्यता आध्यात्मिक भावों से गूंथी है ।
मूर्ति भी अपने में एक अद्भुत छवि रखती है । एक डच मूर्तिकार कारेल गोम्स द्वारा बनाई गई यह मूर्ति बापू की असली चित्रण को प्रस्तुत करती है । एक दुबला पतला , मुंह पर झुरियां ,माथे पर लकीरे, बड़े कान, दंतहीन, एक एक गिने जाने वाले मूछों के बाल, कुछ झुकी हुई पीठ के साथ अपने हाथ में पकड़ी लाठी से गतिमान बापू की यह प्रतिमा मेरे द्वारा देश विदेश में देखी गईं प्रतिमाओं से बिलकुल अलग रही ।
शायद ऐसी ही किसी आकृति के बारे में वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा हो एक दुबला पुतले शरीर का व्यक्ति । ऐसे ही बापू को प्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री कुमारप्पा ने "it's my Masters' Master" कह कर संबोधित किया था।
पूरी दुनियां में भारतीय यदि अपनी पहचान देते है तो वे गांधी के देश से ही देते है । एक दिलचस्प वाकया और बताता हूं कि एमस्टेरडेम में अनेक इंडियन रेस्टोरेंट हैं। अनेक पाकिस्तानी, बांग्लादेशी , सुरीनामी और नेपाली रेस्टोरेंट खुद को इंडियन फूड्स के नाम से अपनी पब्लिसिटी करते हैं । न सिर्फ भारतीय बल्कि यूरोपीय लोगों को भी हमारा खाना पसंद है पर इन देशों का भी बनाने का अंदाज अलग है । पर यहां एक रेस्टोरेंट ने अपनी दुकान के बाहर बोर्ड ही "गांधी रेस्टोरेंट" लगाया है , लो जी अब तो यह ही गया महात्मा गांधी वाले भारत की दुकान ।
महात्मा गांधी का नाम अब भारत का एक लोकप्रिय पर्याय बन चुका है पर वे तो विश्व मानव थे ।
गांधी ग्लोबल फैमिली के एक कार्यकर्ता के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता था कि मैं इस स्थान पर आऊं और दुनियां भर के सभी शांति सैनिकों की ओर से उनका वंदन करूं।
जय जगत।
Ram Mohan Rai,
मसिस्ट्राट, Amsterdam, Netherlands.
जय जगत। आपको साधुवाद आपने उनकी आंखें खोलने की महत्त्वपूर्ण काम किया है जो अंग्रेजो की दलाली कर अपना गुजारा करते थे और आज गांधी को आईना दिखाने का साहस करना चाहते हैं पर मुंह के बल गिर पड़ते हैं।
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