Suhana Safar-28 (Mela)
आज घर के बिल्कुल ही निकट एक मेला देखने और इसमें शामिल होने का मौका मिला । यह ऐसा ही था जैसा कि हमारे पानीपत में दशहरे, भैया दूज और नवरात्रि पर्व पर देवी मंदिर में अथवा किसी छोटे बड़े कस्बे ,शहर अथवा गांव में होते हैं । वे ही छोटे छोटे स्टॉल, रेहड़ियां और खोमचें जहां कपड़े , खिलौने और खाने - पीने का तरह - तरह का सामान मिलता है और जिसमे असंख्य लोग इकट्ठे होते है।
बस फर्क यह था कि क्योंकि यह मेला किसी यूरोपीय देश में था तो इसका ढंग वैसा ही था और हमारे यहां इससे काफी अलग । हमारे यहां मेला किसी भी धार्मिक त्यौहार के इर्द गिर्द होता है जबकि यहां साल का कोई भी एक दिन तय होता है । जैसे यह साल में जुलाई के महीने के दूसरे रविवार को हमारी बस्ती में लगा । इसकी खासियत यह भी है कि इसमें इस इलाके के लोग सिर्फ शिरकत ही नही करते अपितु अपने अपने घर से अपने ही ढंग से व्यंजन बना कर लाते हैं और उन्हें बेचते हैं । मुफ्त में कुछ भी बांटने का यहां न तो कोई रिवाज़ है और न ही कोई महत्व ।
इस मेले की यह भी एक खूबी देखी कि इलाक़े के नौजवान लड़के - लड़कियां इसके आयोजन से कुछ दिन पहले ही अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिहर्सल करते हैं ताकि पेश कर सकें। मैनें यहां जिस तरह से लडके और लड़कियों को कहा उसे यहां भेदभाव का सूचक मानते है और जिसे ये लोग अच्छा नहीं मानते । नौजवान जब कह दिया तो दोनों आ गए फिर इनकी अलग से पहचान क्यों ? जो एक दृष्टि से अच्छा भी है । हमारे भारतीय संविधान में भी लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने की बात कही है और जिसके लिए प्रयास भी जारी है परन्तु क्या हमारे यहां पूर्ण समानता हो पाएगी ?
हां एक बात और इस देश में महिला और पुरुष की पहचान के लिए उनके नाम से पहले श्री, श्रीमती अथवा कुमारी, Mr/ Ms/Mrs का संबोधन भी पसंद नही किया जाता है । क्योंकि इनका मानना है की इस से आप उनके जेंडर को प्रदर्शित कर रहे हैं ।
चलो मेले में ही चलते हैं । यहां तरतीब वार पांच सौ के आस पास अस्थाई दुकानें थी जिसमें सब सामान प्रदर्शित था । अनेक स्थानों पर स्थानीय लोग अपने कार्य कौशल का प्रदर्शन भी कर रहे थे जैसे कई जगह टोटो लगवा रहे थे और कई जगह मुंह पर रंगदार चित्रकारी हो रही थी । खाने के भी अनेक स्टॉल थे जहां सिर्फ वेस्टर्न स्टाइल का ही भोजन था । हम चटोरे के खान पान के लिए चाट पकोड़ी, गोगप्पे , टिक्की, समोसे ,कचोड़ी आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी । मेरे जैसे लोगों के लिए तो मेले का मतलब ही यही है । हां यदि आप ने कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण पर आयोजित होने वाला मेला देखा हो तो यह कुछ कुछ इस जैसा ही था ।
यहां के हिसाब से आज मौसम सामान्य था यानी गर्मी थी । इसलिए इस मेले में भीड़ सुबह सुबह ही रही ज्यों ज्यों सूरज बढ़ता रहा यह कम होती गई । मौसम ने गाहकी भी कम रही पर लोगों ने खूब मस्ती काटी।
यह मेला हमारे घर के बिल्कुल बाहर ही लगा था इसलिए हम घर की गैलरी में खड़े होकर देख सकते थे इसलिए इसके समापन तक हम इससे जुड़े रहे ।
Ram Mohan Rai,
Amsterdam, Netherlands
Very good experience. Thank you so much for sharing.
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