घूमकड़ की डायरी -10 My trip to the Chicago . Swami Vivekananda Memories.
दुनियां में हर जगह जाने की न तो क्षमता है और न ही हिम्मत परंतु इच्छा तो रहती है कि इस जीवन में कुछेक जगह तो जाया जाए । और ऐसा सोचने के बाद अवसर भी मिल ही जाता है । कारण मैं तो आज तक समझ नही पाया ।
मैं अपने जीवन में कुछ ऐसी जगह जरूर जाने की तमन्ना रखता हूं जो हमारे देश से तो बहुत दूर है । उसमे से एक शहर शिकागो भी था । पिछले आठ वर्षों में प्राय: हर साल ही अमेरिका जाने का अवसर मिलता है,पर यह देश इतना बड़ा है कि एक से दूसरे स्थान पर जाने में हवाई जहाज से पूरा पूरा दिन ही लग जाता है ।
शिकागो मेरे लिए सपनो का शहर रहा है । इसके दो कारण है । एक - यह मई दिवस का शहर है और दूसरा - स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण का शहर है ।
तो इस बार पिछले पांच दिन से शिकागो में हैं। यह इतना बड़ा शहर है कि इसकी अनेक खूबसूरत जगह देखने में पूरा समय चाहिए । पर मैने बिना किसी लालच के कुल पांच जगहों को छांटा है जिनमें से एक प्रमुख स्थान वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में 11 सितंबर , 1893 को अपना ऐतिहासिक व्याख्यान दिया था ।
वह भी कोई आज जैसा समय तो था नहीं कि हवाई जहाज में बैठो और 14-15 घंटो में दूर से दूर स्थान पर उड़ कर पहुंच जाओ। यह तो वह समय था जब दूर की यात्रा सिर्फ पानी के जहाज से ही होती थी और वह जलयान भी कई स्थानों पर रुकते रुकते कई महीनों में अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचता था । यात्रा महंगी और दुर्गम थी। अनेक यात्री तो रास्ते में ही बीमार हो जाते और कई तो मर भी जाते थे । मृतक व्यक्ति को समुंद्र में ही जल समाधि देकर यात्रा आगे बढ़ती थीं। ऐसा सुन कर ही दिमाग सन्न और शरीर सुन्न हो जाता है । पर संकल्प के धनी ऐसी यात्राओं पर निकलते ही थे । दुनियां के इतिहास में चीन से आए बौद्ध यात्री हु एन सांग और फाहियान, यूरोप के यात्री कोलंबस और वास्को डी गामा, भारत से श्री लंका गई सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा और पुत्र महेंद्र के नाम प्रमुख है । हिंदू धर्म शास्त्रों में तो समुद्र पार यात्रा करने वाले को धर्म विरोधी मलेच्छ तक कहा है और संन्यासी के लिए तो समुद्र पार की यात्रा एक अपराध की श्रेणी में रहा है । यही कारण है कि बौद्ध धर्म को छोड़ कर कोई भी भारतीय धर्म कहीं विदेश में नही जा पाया । पर इस अपवाद को भारत के एक 29 वर्षीय युवा संन्यासी ने तोड़ा और उसे हम स्वामी विवेकानंद के नाम से जानते है ।
स्वामी जी 31 मई ,1893 को मुंबई से एक पानी के जहाज में सवार होकर शिकागो, अमेरिका में दिनांक 11से 27 सितंबर को होने वाली के लिए रवाना हुए परंतु उनकी यह यात्रा पश्चिम की तरफ से न होकर पूर्वी देशों चीन, जापान से होते हुए कनाडा और फिर वहीं से अमेरिका पहुंचने की थी । वे लगभग दो महीने की कष्टप्रद समुद्री यात्रा पूरी करके यहां पहुंचे और वह भी उस देश में जहां उनका कोई परिचित नहीं था । खेतड़ी के महाराजा ने उन्हें जो डॉलर देकर आर्थिक मदद की थी वह भी यहां पहुंचते ही गुम हो गए । ऐसे दुर्गम हालात में वह मस्ताना जोगी यहां पहुंचा । यह किस्सा भी रोमांचक है कि उनके पास कोई परिचय पत्र नही था और संसद की तिथियां भी आगे सरका दी गई थी । संसद स्थल से भी वे अनभिज्ञ थे ।
बड़ी जद्दोजहद के बाद वे वहां पहुंचे पर वहां तो कोई भी नही था । भयंकर सर्दी में पर्याप्त गर्म कपड़ों के अभाव में रेलवे स्टेशन के सामने ही एक होल में उन्होंने जैसे तैसे अपनी रात बिताई और फिर एक महिला एलेन हेल की मदद से वे शिकागो में रहे ।
आज मैं, मेरी पत्नी कृष्णा कांता, मित्र मेघना चंद्रा और जहान चौधरी के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां कुल 30 वर्षीय इस युवा संन्यासी स्वामी जी ने 11 सितम्बर ,1893 को अपना ऐतिहासिक व्याख्यान दिया था। इस स्थान को उस समय Permanent Memorial Art Palace के नाम से जाना जाता था और अब इसका नाम बदल कर *The Art Institute of Chicago* रखा गया है और जिस सड़क पर यह स्थित है उसका नाम भी अब *Honorary Swami Vivekananda Way* रखा गया है । इस स्थान पर आकर हमे अपार हर्ष और असीम संतुष्टि का अनुभव हुआ ।
इस संस्थान के अंदर एक सीढ़ीनुमा विशाल सभागार है जहां 11,000 लोगों की उपस्थिति में स्वामी विवेकानंद जी ने अपने विचार व्यक्त किए थे । वे शब्द *My Brothers and sisters of America* जिन्हें सुनते ही तमाम श्रोता अपने स्थान से खड़े होकर करतल ध्वनि से आनंदित हुए थे । आज उसी स्थान पर हमें भी लगा कि न थमने वाली तालियों की वह आवाज आज भी हमारे कानों में गूंज रही है । लगभग 6 फीट लंबे, केसरिया रंग की राजस्थानी स्टाइल में बंधी पगड़ी में एक अत्यंत गरिमा पूर्ण मुखाकृति स्वामी जी का उस समय का व्याख्यान आज भी बेहद प्रासंगिक है।
स्वामी जी के व्याख्यान के बाद विश्व धर्म संसद की एक विज्ञप्ति में कहा गया
"Swami Vivekananda of India delivered a historical address in the space that is now Fullerton hall urging respect for all traditions of belief and the end of fanaticism".
"भारत के स्वामी विवेकानन्द ने उस स्थान पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया जो अब फुलर्टन हॉल है, जिसमें विश्वास की सभी परंपराओं के सम्मान और कट्टरता के अंत का आग्रह किया गया है"।
अपने कुल 473 शब्दों के अत्यंत संक्षिप्त व्याख्यान में उन्होंने हिंदू धर्म के धार्मिक सद्भावना और सार्वभौमिक मैत्रीभाव को प्रस्तुत किया ।
इस भाषण के बाद तो स्वामी जी न केवल अमेरिका में अपितु पूरे यूरोपीय देशों में छा गए । हर कोई उन्हें सुनना चाहता था क्योंकि इससे पहले इतना धर्म मर्मज्ञ यहां नही आया था । वे कहते कि भारत में गरीबी है अत: उन्हें रोटी की भूख है और यहां पैसा है और इन्हें अध्यात्म की भूख है । यानी कि भूखे भजन न होए गोपाला।
इसी इंस्टीट्यूट के अंदर एक विशाल संग्रहालय है जहां स्वामी विवेकानंद गैलरी भी बनी है जहां उनके यहां रहते हुए लिए गए दुर्लभ चित्र एवम कथन प्रदर्शित किए गए है ।
मैं समझता हूं कि स्वामी जी के विचारों को जानने और समझने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए । पर मुझे इस बात का अफसोस भी है कि स्वामी विवेकानंद के जिस स्थान ने भारत को इस धर्म संसद का परिचय दिया वहां के अधिकांश भारतीय प्रतिनिधि वर्तमान संसद स्थल जो एक अत्यंत महंगे स्थान पर था वहां समेत शिकागो के अन्य दर्शनीय स्थलों पर तो दृष्टिगोचर थे परंतु यहां आने की जहमत नहीं उठाई।
Ram Mohan Rai,
Honorary Swami Vivekananda Way,
Chicago, USA.
15.08.2023
There is neither the ability nor the courage to go everywhere in the world, but there is a desire to go to some places in this life. And after thinking like this, the opportunity is also available. The reason I could not understand till date.
I definitely wish to visit some such place in my life which is far away from our country. Chicago was one of those cities. In the last eight years, almost every year I get an opportunity to go to America, but this country is so big that it takes a whole day by plane to go from one place to another.
Chicago has been the city of dreams for me. There are two reasons for this. One - it is the city of May Day and second - it is the city of historical speech of Swami Vivekananda.
So this time he is in Chicago for the last five days. It is such a big city that it takes a whole lot of time to see its many beautiful places. But I have shortlisted five places without any greed, one of which is the place where Swami Vivekananda gave his historic lecture on September 11, 1893 in the Parliament of World Religions.
There was no time like today that you can sit in an airplane and fly to a faraway place in 14-15 hours. This was the time when long distance travel was done only by ship and that ship also used to stop at many places and reached its destination in several months. The journey was expensive and difficult. Many passengers fell ill on the way and many even died. The journey proceeded by giving water samadhi to the dead person in the sea itself. Hearing this, the mind becomes numb and the body becomes numb. But the rich of determination used to go on such journeys. In the history of the world, the names of Buddhist travelers Hu En Tsang and Fahien from China, European travelers Columbus and Vasco da Gama, Emperor Ashoka's daughter Sanghamitra and son Mahendra who went to Sri Lanka from India are prominent. In Hindu religious scriptures, the person traveling across the sea has been called anti-religion malechha and for the monk, traveling across the sea has been in the category of a crime. This is the reason why except Buddhism, no Indian religion could go anywhere abroad. But this exception was broken by a 29 year old young monk from India and we know him by the name of Swami Vivekananda.
On May 31, 1893, Swamiji boarded a ship from Mumbai and left for Chicago, America, to be held from September 11 to 27, but his journey was to the west. It was to reach Canada and from there to America via the eastern countries, China, Japan and not from the side of India. They reached here after a grueling sea voyage of about two months and that too in a country where they had no acquaintances. The dollar that the Maharaja of Khetri had given him for financial help also disappeared as soon as he reached here. That Mastana Jogi reached here in such difficult circumstances. This anecdote is also exciting that he did not have any identity card and the dates of the Parliament were also postponed. He was also unaware of the place of Parliament.
After a lot of struggle they reached there but there was no one there. He spent the night in a hole in front of the railway station in the absence of enough warm clothes in the fierce winter and then with the help of a woman namely Ellen Hale, he lived in Chicago.
Today I, along with my wife Krishna Kanta, friends Meghna Chandra and Jahan Chowdhary, reached the place where this 30 year old young Sanyasi Swamiji took his vow on September 11, 1893. Gave a historical lecture. This place was then known as the Permanent Memorial Art Palace and has now been renamed *The Art Institute of Chicago* and the street on which it is located has also been named *Honorary Swami Vivekananda Way* Is . We felt immense joy and immense satisfaction after coming to this place.
Inside this institute there is a huge staircase-like auditorium where Swami Vivekananda had expressed his thoughts in the presence of 11,000 people. Those words *My Brothers and sisters of America* on hearing which all the listeners stood up from their places and were delighted with the sound of clapping. Today at the same place, we also felt that the sound of unstoppable applause is echoing in our ears even today. About 6 feet tall, saffron-coloured turban tied in Rajasthani style, Swamiji's lecture at that time is very relevant even today.
After Swamiji's lecture, a release from the World Parliament of Religions said
"Swami Vivekananda of India delivered a historical address in the space that is now Fullerton hall urging respect for all traditions of belief and the end of fanaticism".
"India's Swami Vivekananda delivered a historic speech at what is now Fullerton Hall, urging respect for all traditions of faith and an end to bigotry" .
In his very short lecture of total 473 words, he presented the religious harmony and universal friendship of Hinduism.
After this speech, Swamiji became famous not only in America but also in all European countries. Everyone wanted to listen to him because such a religious person had never come here before. They used to say that there is poverty in India, so they need bread and here only money, so they need spirituality. Means that Gopala should not be hungry hymns.
There is a huge museum inside this institute where Swami Vivekananda gallery is also built where rare pictures and statements taken by him while living here are displayed.
I think efforts should be made to know and understand Swamiji's thoughts. But I also regret that the place where Swami Vivekananda introduced this Parliament of Religions to India, most of the Indian representatives there were visible at other places of interest in Chicago, including the present Parliament, which was at a very expensive place, but Didn't bother to come here.
Ram Mohan Rai,
Chicago, 15.08.2023
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