मेहमान नवाज़ी (आभार मैंगी परिवार, जम्मू )
दुनियां में जहां जहाँ भी गए वहीं पाया कि पूरा विश्व ही हमारा परिवार है। कई बार ऐसा लगता है कि भारत में ही ऐसा है पर वास्तविकता यह है कि सब जगह ही ऐसा ही है।
हमारे शास्त्रों ने कहा है अतिथि देवो भव। यज्ञ कर्मकांड में अतिथि यज्ञ का विधान है। स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकानंद और स्वामी प्रभुपाद इसके उदाहरण है कि जब वें अमेरिका गए तो वे किसी को भी तो नहीं जानते थे, परन्तु वहाँ अपरिचित लोगों के कई कई महीने ठहरे।
अरबी में एक कहावत है कि अल्लाह जब बेहद खुश होता है तो वह अपने रकिबों के मेहमान भेजता है।
ऐसा ही जम्मू आने पर हुआ। हमारा यहां आगमन गाँधी ग्लोबल फैमिली द्वारा आयोजित महात्मा गाँधी के शहीदी दिवस पर एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए था। हम इस शहर में पहले भी अनेक बार आ चुके है और हर बार अपने बड़े भाई और लीडर पद्मश्री डॉ एस पी वर्मा के घर पर ही रुकें है और उनकी पत्नी तृप्ता वर्मा की रसोई के विविध व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया है। पिछली बार ज़ब 17 अक्टूबर को दीदी निर्मला देशपांडे जी के जन्मदिन पर एक समारोह में भाग लेने के आये थे तो गाँधी ग्लोबल फैमिली के अध्यक्ष तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने उलाहना देते हुए कहा था कि हम उनके घर क्यों नहीं रुकें? इस बार जम्मू के लिए चलने से पहले मैंने उन्हें मैसेज किया था कि इस बार अपने जम्मू प्रवास के दौरान हम उनसे मिलना चाहेंगे और उनके घर पर रुकना चाहेंगे। हमारे ऐसा कहने पर आज़ाद साहब ने मिलने का समय तय किया और हमारे रुकने की व्यवस्था एक सरकारी गेस्ट हाउस में करवा दी. उनका कहना था कि वें अपने कार्यक्रमों में व्यस्त हैं और घर पर उनके सिवाय कोई नहीं है। पर उनका कहना था कि जम्मू के बेहतरीन गेस्ट हाउस में हमारी व्यवस्था है, परन्तु इसके साथ साथ ही एस पी वर्मा जी ने हमारे ठहरने का इंतज़ाम रामेश्वर मैंगी जी के घर करवा दिया था, जिनका पहले दिन से ही फोन आने लगे थे कि वें कब, किस ट्रेन और किस समय पर जम्मू पहुँच रहे हैं। उन्होंने अपने छोटे सुपुत्र रिशीक का जिम्मा हमें रेलवे स्टेशन से रिसीव कर घर पहुंचाने का लगाया था. हमनें अम्बाला से वन्दे भारत ट्रेन पकड़ने के लिए पहली रात को अम्बाला पहुँच कर अल सुबह ट्रेन पकड़ने का निश्चय किया। हम ट्रेन के नियत समय पहुंच भी गए पर पाया कि वह तो डेढ़ घंटे लेट है। स्टेशन पर ही बेहद ठंड में इंतज़ार करने के इलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था. आखिरकार हमनें देरी से पहुंची ट्रेन हमनें पकड़ी। हम उम्मीद करते थे कि शायद यह रास्ते में समय को कवर कर लेगी परन्तु ऐसा नहीं हुआ और दोपहर बाद 12.25 पर पहुंचने वाली यह रेल गाड़ी लगभग 3 बजे जम्मू पहुंची। इस बीच एक और दिक्क़त आई कि जम्मू से पहले कठुआ पहुंचने पर हमारे प्रीपेड मोबाइल नेटवर्क बंद हों गया था और इसलिए मैंगी परिवार से कोई भी कांटेक्ट नहीं हों पा रहा था। जम्मू पहुंचने पर रेलवे पुलिस के एक सुरक्षा गार्ड की मदद से हमनें रिशीत से सम्पर्क किया और हमनें पाया कि वह बहुत पहले ही स्टेशन हमारी आमद के लिए पहुंच गए थे. हम उनकी गाड़ी में बैठे और कतई तौर पर इस अपरिचित परिवार के घर चल दिए। इधर आज़ाद साहब के सचिव परेशान थे कि हम अब तक गेस्ट हाउस में क्यों नहीं पहुंचे। हमारा मन था कि हम मैंगी साहब के चाय पी कर गेस्ट हाउस चले जाए ताकि आज़ाद साहब की व्यवस्था का भी सम्मान हों और परिवार को भी हमारी वजह से कोई कष्ट न हो। हमनें अपनी इस मंशा को रामेश्वर मैंगी जी को बताया। इस पर उनका सख्ती से कहना था कि हम उनके मेहमान है और अब हम यहीं रुकेंगे और कहीं नहीं जाएंगे। आखिरकार उनके अधिकारपूर्ण आग्रह की जीत हुई और हमनें आज़ाद साहब के रॉयल मेहमान नवाज़ी को विनम्रता से अस्वीकार किया।
इस परिवार की मुख्य धुरी श्रीमती रीटा आनंद मैंगी है जो M. Sc, Mphil शिक्षा के साथ साथ एक बेहतरीन शिक्षाविद एवम प्रशासक भी है पर इसके साथ साथ एक सुयोग्य गृहणी। उन्हें मिल कर मुझे वह बात याद आई जिसे एक क्रांतिकारी कवि ने अपने शब्दों में कहा था कि जब इतिहास एक गृहणी के श्रम का हिसाब तय करेगा तो कोई भी उसे चुकता नहीं कर पाएगा।
परिवार में कुल चार लोग है। पति पत्नी और दो पुत्र रक्षण और रिशीक। दोनों अपने माता पिता के अनुरूप ही अति विनम्र और मेहमाननवाज़। दोनों पुत्र उच्च शिक्षा प्राप्त है और परिवार द्वारा संचालित चार स्कूलों का प्रबंधन संभालते है। हमारे आने के बाद रामेश्वर मैंगी जी और रिशीत ने तो अपने सब काम छोड़ कर हमारी सेवा भाव को ही पूरा वक़्त देने का मन बना लिया था, और दूसरी ओर रीटा जी ने सब कुछ छोड़ कर रसोई में हमारे लिए विविध स्थानीय व्यंजन बनाने का बीड़ा। थोड़ी थोड़ी देर में हमें तरह तरह के लज़ीज़ शाकाहारी खाने परोसे जा रहे थे और हम जैसे चटोरे लोगों को तो कोई मनाही थी ही नहीं। यह एक ऐसा परिवार पाया जो वसुधैव कुटुंबकम की भावना से परिपूर्ण था।
हमारी इंतज़ार में पूरे परिवार ने लंच नहीं किया था। गृह स्वामिनी का तो पुग्गे (सकट चौथ ) का कठोर निर्जला व्रत था जिसमें उन्होंने भोर में ही सहरी ली थी और अब रात को चाँद दर्शन और पूजन के बाद ही जल एवम फलाहार करना था। और व्रत के बावजूद भी उन्हें अपने मेहमानों के खानपान की चिंता थी. उन्हें छोड़ कर मैंगी परिवार ने हमारे साथ ही शाम चार बजे लंच किया और फिर हमारे साथ चल पड़े उस स्थान पर जहाँ अगले रोज़ गाँधी ग्लोबल फैमिली द्वारा कार्यक्रम का आयोजन था और जिसमें जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मुख्यातिथि होंगे। मैंगी पिता -पुत्र हमें अपनी कार में जम्मू की सकड़ी सड़को के घुमावदार रास्तों से मुबारक मंडी पहुंचे, जहाँ वर्मा जी और दूसरे साथी हमारा इंतज़ार कर रहे थे। उनसे मुलाक़ात कर हम आस पास थोड़ी घुमाई की पर मैंगी साहब को कहना था कि क्यों न जम्मू के प्रसिद्ध बावे वाली माता जी के मंदिर जो किला के परकोटे में है उसके दर्शन करने के लिए जाया जाए और हम भी चल दिए लगभग 400 वर्ष पुराने इस मंदिर को देखने के लिए।
इस मंदिर का ऐतिहासिक एवम धार्मिक महत्व है तथा लगभग एक किलोमीटर नंगे पैर पैदल चल कर मंदिर पहुंचते है। प्रांगण विशाल एवम साफ सुथरा हैं और यहीं से संगीतमय फुव्वारों का दीदार होता है। मंदिर से लौट कर हमनें रास्ते में ही जम्मू का मशहूर क्लाड़ी कुलचा खाया और देर रात घर लौटे तो पाया की रीटा जी ने हम सब का डिनर बनाया हुआ है। यह उनकी तपस्या थी कि व्रत होने के बावजूद भी उन्होंने खाने की कई वैरायटी बनाई हुई थी। पेट में बिलकुल जगह नहीं थी
फिर भी गृह स्वामिनी की तपस्या से बने भोजन को उनके परिश्रम को सलाम करते हुए एक प्रसाद के रूप में स्वीकार किया और इसका तो आनंद ही अनंत था। इसे प्राप्त करते ही निंद्रा देवी की गोद में समा गए और फिर आठ घंटे बाद सुबह ही उठे. संत विनोबा भावे ने ऐसी निद्रा को ही निद्रा समाधि कहा है।
वेद में राष्ट्रगान के रूप में एक श्रेष्ठ परिवार की कामना की है :-
आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम् ।
आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽति व्याधी महारथो जायताम् ।
दोग्ध्री धेनुर्वोढाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम् ।
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ।।
(क्रमशः )
Ram Mohan Rai,
Jammu.
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