Udaipur-7 (Kailashpuri -Eklingji)


*कैलाशपुरी -एकलिंग*           नाथद्वारा से उदयपुर के लिए लौटते हुए मात्र 27 किलोमीटर की दूरी पर ही हाईवे से मात्र 3-4 किलोमीटर पर ही एक ऐतिहासिक कस्बा कैलाशपुरी स्थित है जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतों के कुलदेव भगवान शंकर का विशाल मंदिर है जिसे एकलिंग जी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण, मेवाड़ के बप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी में करवाया था और फिर इसका पुनरनिर्माण महाराणा मोकल ने करवाया और अंततः महाराणा रायमल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।सभी जगह प्रचलित कथाओं जैसी एक कथा यहाँ भी है कि यहां स्थापित प्रतिमा स्वयं प्रकट है यानि डूंगरपुर से आती नदी में यहाँ प्राप्त हुई थी. मंदिर का कई बार पुनरनिर्माण और जीर्णोद्धार भी हुआ और अब यह मंदिर इस अवस्था में विशाल मजबूत पत्थरों से निर्मित है। मंदिर परिसर में ही अन्य 108 देवी देवताओं के मंदिर है और मूल मंदिर इसके बीचो बीच स्थित है।
       मुख्य मंदिर में लगभग 50 फुट ऊँची चतुर्मूखी शिव जी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है जिसके आसपास ही उनका परिवार पार्वती और गणेश की प्रतिमा है और मंदिर के बाहर शिव वहां नंदी की मूर्ति है। मंदिर की चार दिशाओं में उत्तर में भगवान विष्णु, दक्षिण में रूद्र, पूर्व में सूर्य तथा पश्चिम में ब्रह्मा की मूर्तियां स्थापित है। भगवान शिव की मूर्ति के गले में चांदी धातु से बना सर्प है। मंदिर के दरवाजे भी चांदी के है जहाँ नर्तकियां नृत्य करती दर्शाई गई है। वहीं प्रवेश द्वार पर गणेश तथा कार्तिकेय की सुंदर आकृतियाँ तराशी गई है। मंदिर में अद्भुत चित्रकारी का प्रदर्शन है।
    मंदिर के आसपास ही गणेश, अंबा माता, नाथ पंथ और कालिका के मंदिर भी हैं। मेवाड़ के महाराणा, एकलिंग जी को अपना इष्ट देव ही नहीं अपितु राजा भी मानते थे तथा उनका कहना था कि वह उनके प्रतिनिधि के रूप में ही राजकाज करते हैं और वह स्वयं को 'दीवाण जी' कहकर पेश करते थे यानी कि राजा के मंत्री।    
       आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि  दयानन्द सरस्वती ने अपने जीवन में लगभग साढ़े छह महीने उदयपुर में प्रवास कर वेद प्रचार किया था. अपने तर्को के आधार उन्होंने मूर्ति पूजा को वेद विरुद्ध बताया था. तब उदयपुर के तत्कालीन महाराणा सज्जन सिंह ने उन्हें कहा था कि यदि वें मूर्ति पूजा का विरोध छोड़ दें तो वें उन्हें इस मंदिर का महंत बना देंगे.
   इस पर स्वामी जी ने उत्तर दिया कि वें अपने योग बल से एक ही सांस में दौड़ कर उनकी रियासत की सीमा को पार कर सकते है परन्तु वह परम पिता परमात्मा जो कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का मालिक है उसकी वेद में प्रदत्त आज्ञा को कैसे प्रचरित करना छोड़ दें ?
    मंदिर के बाहर खाने- पीने की काफी दुकान हैं और यहाँ का मिर्ची- बड़ा , कचौरी , कुल्हड़ की चाय बहुत ही स्वादिष्ट होती है । 
नाथद्वारा, राजसमंद और कैलाशपुरी ये एक ही इलाके हैं और मुझे इस बात की खुशी रहती है कि खान- पान के अनेक  रेस्तरां के मालिक मेरी पत्नी के मायके के रिश्तेदार ही है और राजस्थान की मेहमाननवाजी तो मशहूर ही है। इस तरह से हम भजन और भोजन करके उदयपुर के लिए रवाना हो गए।
   Ram Mohan Rai,
Kailashpuri-Ekling ji.

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