Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 15)
हमारा स्वभाव उत्सव धर्मिता का है अर्थात हम तीज - त्योहार एवं पारिवारिक समारोह चाहे वह शादी के हो अथवा जन्मोत्सव के या इसके अलावा कोई ओर, तो उसे बहुत ही आनंद से मनाते हैं. मुझे ने केवल भारत में अपितु दक्षिण एशिया के अनेक देशों में जाने का तथा वहां के उत्सवों अर्थात विवाह समारोह में जाने का मौका मिला. कुछ वर्ष पूर्व में ही लाहौर (पाकिस्तान) में मेरी मुंह बोली बहन जुबेदा नॉमिनी की बेटी असमारा की शादी में शामिल होने के लिए लाहौर गया था. इसके बाद पद्मश्री एसपी वर्मा जी के सुपुत्र के विवाह में भाग लेने के लिए जम्मू जाने का अवसर मिला. मित्र मारुति के बेटी की शादी में शामिल होने के लिए चेन्नई (तमिलनाडु) जाने का मौका मिला तो श्री शंकर कुमार सान्याल के सुपुत्र के विवाह में शामिल होने के लिए कोलकाता (वेस्ट बंगाल) में जाने का मौका मिला.
42 वर्ष पूर्व मेरी खुद की शादी उदयपुर (राजस्थान) में हुई. मेरे तीनों बच्चों की शादियां अलग-अलग प्रांतों में हुई है मेरी बड़ी बेटी की राजस्थान, छोटी बेटी की झारखंड और बेटे की शादी पंजाब में हुई. शादियों में जाने का अर्थ वहां की लोक संस्कृति, सभ्यता संवाद को समझने का है और लोगों से मेलजोल का भी है. हम जब विवाह अथवा, गम - खुशी में शामिल होते हैं तो हम सिर्फ परिवारों का मिलन ही नहीं करते अपितु संस्कृतियों उनके इतिहास को भी जानने की कोशिश करते हैं. ऐसा ही इस बार अवसर हमें याकूब भाई की बेटी शेफाली के विवाह उत्सव में शामिल होने के लिए श्रीनगर जाकर मिला. यह शादी कश्मीरी ढंग से हुई. रीति रिवाज कश्मीर के थे और यही की लोक संस्कृति में रचा- बसा यह वैवाहिक उत्सव था जो कई दिन पहले से शुरू हो जाता है. परंतु उसमें जो रस्में थी वे तो दो दिन की थी. पहले दिन मेहंदी की और दूसरे दिन निकाह और उसके बाद रुख़सती की. इन दोनों दिन में विवाह के जो कार्यक्रम देखने के अवसर मिले उससे बहुत कुछ जानने का मौका मिला.
आज मेहंदी की रसम है. सुबह 11:00 बजे से ही महिलाओं ने लोक वाद्य पर लोकगीत गाने शुरू किया जो अगले दिन सुबह 4:00 बजे तक चले. इस बीच दुल्हन और दूसरी महिला रिश्तेदारों और मेहमानों को मेहंदी भी लगाई गई. जो गीत इस अवसर पर गाए जा रहे थे उन्हें तो हम नहीं समझ सके परंतु उसकी भावना अवश्य समझ आ रही थी. ऐसे लोक संगीत और गीत सुनकर मन में उमंग जागृत होती है जो मन को आल्हादित करती है. मुझे यह जानकर बेहद अच्छा लगा कि यहां पर मेहमानों के हर प्रकार का ध्यान रखा गया था. जैसा कि हम सब जानते हैं कश्मीर में उत्तर भारत की तरह का भोजन नहीं बनता. यहां ज्यादातर लोग चावल खाते हैं और मांसाहारी है. जबकि हमारे जैसे मेहमान भी थे जो बिल्कुल शाकाहारी थे. यह जानकर तो और भी अच्छा लगा की दोनों तरह का भोजन बनाने की पाकशाला तकरीबन 100 मीटर की दूरी पर थी और उनके बनाने वाले भी अलग-अलग कारीगर थे और यहां तक की बर्तनों का भी कहीं कोई घाल मेल नहीं था. जब हमने पूछा कि ऐसा क्यों? तो जवाब था कि हम एक दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं. यह आस्थाएं ही हमारे पारस्परिक विश्वास को मजबूत करती हैं.
कश्मीरी रिवाज़ और परम्पराएं उत्तर भारत से बिल्कुल अलग है और उन्हें समझने - सीखने की जरूरत है. विवाह उत्सव एक दूसरे के नजदीक आने और मैत्री के एक साधन है.
आज पूरे गांव की दावत थी. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में जहां इसे चूल्हा- न्योत कहते हैं कि यानी कि आज किसी के भी घर खाना नहीं पकेगा और घर के प्रत्येक सदस्य का भोजन विवाह के घर में ही होगा. ऐसा ही आज यहां भी था. पूरे गांव के लोग इकट्ठे थे और सब ने मिलकर सामूहिक प्रीतिभोज किया. और रात तक सब लोग आनंद में डूबे हुए थे. ऐसा विवाह समारोह देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता है और हम यह कामना करते हैं की बेटी शेफाली और उनके पति हमीद दोनों का जीवन आनंद पूर्वक हो.
Ram Mohan Rai,
Badipora, Badgam,
Jammu and Kashmir.
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