Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 6)

गांव बादीपुरा जिला बडगाम का चदौरा,तहसील का एक बहुत छोटा सा गांव है गांव की आबादी कल 2800 के करीब है परंतु गांव में हर तरह के लोग रहते हैं विशेष कर मेहनतकश. इस गांव में शादी का मतलब यह था कि पूरा गांव ही इस विवाह का जशन मना रहा था. पूरे भारत की एक परंपरा है कि सभी लोग मानते हैं की बेटियां तो सबकी साझी होती है. ऐसा ही  चिंतन हमने इस गांव में पाया. हमने महसूस किया कि बेशक याकुब डार की बेटी की शादी थी, परंतु उसका उत्साह एवं प्रसन्नता प्रत्येक ग्रामवासी में थी. इस विवाह में हम भाग लेने वाले पहले मेहमान थे इसलिए हमें समय भी बहुत था और जिस तरह से हमारा खैरमकदम किया गया वह भी भीड़भाड़ से अलग था. याकुब  एवं उसकी पुत्री को इस बात की प्रसन्नता थी कि हम इस विवाह में पहुंचे. हमने पहुंचकर जहां परिवार के साथ खूब बातचीत की वही हम आसपास भी कुछ घूमने के लिए निकले तो हमने पाया कि वहां के लोग बहुत ही सीधे-साधे और व्यावहारिक है. बेशक वे आपको जानते हैं अथवा नहीं परंतु हर व्यक्ति एक दूसरे को सलाम जरूर पेश करता था. याक़ूब मेरे पिछले 17- 18 वर्षों से मित्र हैं जब हम सन 2010 में गांधी ग्लोबल फैमिली की एक केंद्रीय बैठक में हिस्सा लेने के लिए श्रीनगर आए थे, तब पूरे देश से लगभग 40 लोग शामिल हुए थे. श्रीनगर के यूथ हॉस्टल में श्री एसपी वर्मा जी के सौजन्य से बहुत ही शानदार एवं साफ सुथरा इंतजाम था. हमने पाया कि उस समय भी महात्मा गांधी के नाम को लेकर हम कहीं भी आ - जा सकते थे. हमने यह भी महसूस किया कि कश्मीर के लोग शांति एवं मैत्री चाहते हैं.  इससे पहले भी लगभग सन 1993- 94 में मैं उर्मिला बहन, रमेश भाई और मेरे एक अन्य मित्र जसबीर सिंह राठी एडवोकेट, पानीपत किश्तवाड़ आए थे. किश्तवाड़ का वह वाक़या  आज तक भी हमें बुलाए को भी नहीं भूलता. हम एक रोज पहले कश्मीर के एक प्रसिद्ध शांति कर्मी एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता श्री बलराज पुरी के घर आकर रुके. उन्होंने हमें कश्मीर की स्थिति के बारे में भी बताया और दिशा निर्देश भी दिए कि हम यहां किस तरह से शांति का काम कर सकते हैं.
     हम अगले दिन किश्तवाड़ के लिए रवाना हुए. पहुंचते- पहुंचते शाम 5:00 बज चुके थे उसे समय 5:00 बजे के बाद पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया जाता था  हम जब पहुंचे तो हम ठिकाना ढूंढ रहे थे कि हम कहां ठहरे  और किस जगह से हम अपना काम शुरू करें. पांच बजे ही आर्मी के जवानों ने हमसे कहा कि आप फौरन सड़क को खाली कर दीजिए और किसी स्थान पर जाकर पनाह लीजिए. हमने तभी मंदिर से लाउडस्पीकर पर भजनों की आवाज को सुना, हमने सोचा कि मंदिर खुला हुआ है हम वहां जाते हैं और फिर वहीं ठहर जाएंगे और जब कल सुबह 8:00 बजे कर्फ्यू हटेगा तो हम अपना काम शुरू कर देंगे पर मंदिर में जाकर हमें बहुत ही आश्चर्य हुआ कि वहां लाउड स्पीकर पर भजनों को चला छोड़कर पुजारी जी मंदिर के मुख्य द्वार पर ताला लगाकर चले गए हैं. माइक शायद ऑटोमेटिक था कि भजनों की केसेट खत्म होने के बाद वह स्वत ही बंद हो जाएगा. अब हम क्या करें तभी हमने पाया सामने एक घर है. हमने उसे घर को खटखटाया तो तभी एक महिला आई उसने हमको देखा और पूछा कौन है? हमने जवाब दिया कि हम दिल्ली से आए हैं और हमारे पास यहां रुकने का कोई भी ठोर ठिकाना नहीं है. इस पर वह महिला अंदर गई और हमें आवाज आ रही थी कि वह घर के मालिक से कह रही थी कि बाहर कुछ मेहमान आए हैं क्या वह उनको आने दे. घर के मालिक ने कहा जरूर वह उन्हें अंदर ले आए और वह महिला हम चारों को अंदर ले आई हमें एक शानदार कमरे में बिठाया गया. हमारी चाय पानी से खातिर तवाजो  की गई. और फिर जब उन्होंने पूछा कि आप क्या करने आए हैं तो हमने कहा कि हम महात्मा गांधी के कारकून है और हम यहां शांति के लिए काम करने आए हैं. तो मलिक ने हमसे कुछ और नहीं पूछा बस उसने कहा आप हमारे यहां रुकिए हम रुके, रात को भोजन किया और फिर उसके बाद जब हम कुछ खुल गए तो
 हमने उनसे  काहवा की फरमाइश की. 30- 35 मिनट बीत गए परंतु जब काहवा नहीं आया तो हम थोड़े चिंतित हुए और हमने सोचा कि शायद वह नहीं बन पाया तो मेजबान से इजाजत चाहिए. वे बोले क्या कहवा का इंतजार नहीं करोगे? कहवा आपकी तरह कोई चाय नहीं होती इसको बनाने के लिए पकाने के लिए तकरीबन 1 घंटे का समय तो लगता ही है, तभी यह बढ़िया  बनता है  तो रात को हमने कहवा का आनंद लिया और फिर सोने को चले गए. सुबह- सुबह उठकर हमने नाश्ता किया. अब हमारे मेजबान और हम आमने-सामने तसल्ली से बैठे थे. अब उन्होंने पूछा कि आप कहां से हैं आपका क्या नाम है? अब हमने अपने नाम अपने रिहाइश की जगह और जब पते बताएं तो वे बहुत प्रसन्न हुए  यहां मैं इतना कहना चाहूंगा कि हमारे को आए तकरीबन 16-17 घंटे हो चुके थे और इस दौरान उन्होंने हमसे बातचीत की परंतु उन्होंने हमारा नाम तक पूछने की  जहमत नहीं उठाई क्योंकि हम उनके मेहमान थे.
   "मेहमान जो हमारा होता है वह जान से प्यार होता है" इस गीत की पूरी तस्दीक हमें यहां मिली. अतिथि का अर्थ  है कि जो बिना तिथि के आ जाए. वैदिक परंपरा में अतिथि यज्ञ की बात कही है अर्थात घर में एक अंश उनके लिए हो जो बिना किसी जान पहचान के यायावरी करते हुए आ जाए. कश्मीर में हमने उसे अतिथि यज्ञ को होते हुए देखा और आज याकूब के घर आकर हमें ऐसा ही महसूस हुआ कि आज हम एक अतिथि यज्ञ के होता के रूप में हम उपस्थित हैं.
Ram Mohan Rai,
Badipora, Badgam, Jammu and Kashmir.
01.10.2024

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