कल तलक जो सुखन थे, आज है यादे सुखन. एस पी सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि.
जीवन की यात्रा में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हमारे दिलों में एक विशेष स्थान बना लेते हैं। वे न केवल हमारे मित्र होते हैं, बल्कि हमारे जीवन के हर मोड़ पर एक साथी, एक मार्गदर्शक और कभी-कभी तो एक प्रेरणा भी बन जाते हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति थे एस. पी. सिंह। उनकी यादें आज भी हमारे साथ हैं, लेकिन उनकी अनुपस्थिति का गहरा शोक हमारे दिलों में बसा हुआ है।
एस. पी. सिंह: एक प्रेरणा
एस. पी. सिंह का परिचय जाट आरक्षण आंदोलन के बाद की हिंसा के दौरान जनता के स्तर पर बने जन आयोग के माध्यम से हुआ। इस बीच, मैंने जाना कि वे मेरे प्रिय मित्र महावीर नरवाल के बहनोई हैं। यह संबंध धीरे-धीरे एक गहरे और मजबूत मित्रता में बदल गया। एस. पी. सिर्फ मेरे व्यक्तिगत मित्र नहीं थे, बल्कि सामाजिक रिश्ते में भी वे मेरे बहनोई बन गए। उनके विचारों में एक गहराई थी, जिसने हमें और भी करीब ला दिया।
कोरोना महामारी ने हम सभी को अपनों से दूर किया। मेरे परिवार के कई बुजुर्गों और मित्रों को खोने का दर्द सहना पड़ा। इस कठिन समय में, नित्यनूतन वार्ता की शुरुआत हुई, जिसमें देश-विदेश के सैकड़ों लोग जुड़े। इस वार्ता का संयोजन और आयोजन एस. पी. और हमारे अज़ीज़ दीपक ने किया। इस संवाद ने न केवल हमारी मित्रता को और गहरा किया, बल्कि एस. पी. को नित्यनूतन के प्रमुख सूत्रधार के रूप में स्थापित किया। वे एक बेह्तरीन साहित्यकार, लेखक और पत्रकार भी थे. देस हरियाणा मे विभिन्न विषयों पर प्रकाशित लेख एक ऐसी एतिहासिक धरोहर के दस्तावेज है जो समाज की चिंतन परंपरा को एक दिशा देने के काम करते है.
आगाज़ ए दोस्ती यात्रा
यह यात्रा एस. पी. की पहचान बन गई थी। अगस्त में शुरू होने वाली यात्रा की तैयारी में वे पूरे मन से जुट जाते थे। उनकी नेतृत्व क्षमता और अनुशासन ने हर यात्रा को सफल बनाया। इस बार की यात्रा में भी उन्होंने अपनी अस्वस्थता के बावजूद भाग लिया। यह उनकी सिद्धांतों और विचारों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण था। उनके लिए यात्रा केवल रोमांच नहीं थी, बल्कि एक शांति सैनिक के रूप में आंदोलन का हिस्सा बनना था।
अपने छात्र जीवन में वामपंथी आंदोलनों से जुड़ने के बाद, एस. पी. ने बैंक अधिकारी के रूप में कार्य किया। लेकिन उनका दिल हमेशा जन आंदोलनों में धड़कता रहा। किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने धरने पर भाग लिया और स्वराज आंदोलन से जुड़कर जन पक्ष की राजनीति को आगे बढ़ाया। हरियाणा की राजनीतिक स्थिति को समझते हुए, उन्होंने युवाओं का एक वैचारिक समूह बनाने का सपना देखा, जिससे प्रदेश की राजनीतिक बंजर भूमि को उर्वरक बनाया जा सके।
हाल ही में, जब हमें उनके निधन की खबर मिली, तो हम सभी शोकाकुल हो गए। उनकी पत्नी गीता और उनके बच्चों के लिए यह समय अत्यंत कठिन है। लेकिन नियति को टाला नहीं जा सकता। देशभक्ति, संवेदना और सेवा उनके लिए राजनीति नहीं अपितु मन, वचन और कर्म मे लिप्त थे. इसीलिए अपने जीवन काल में ही अपनी मृत्यु के पश्चात देहदान का वचन पत्र भरा और परिवार ने उनकी इच्छा को पूरा किया.
देश की धरती तुझे कुछ ओर क्या दूँ,
हमेशा याद रहेंगे हमारे मित्र, साथी और भाई एस. पी. सिंह। आपकी प्रेरणा और आपके विचार हमेशा हमारे साथ रहेंगे।
We always miss you our friend, comrade and brother S.P. Singh.
— राम मोहन राय
कहीं अपना भी था आशियाना याद आएगा ।
कल चमन था आज इक सहरा हुआ।
देखते ही देखते ये क्या हुआ ।
दिवंगत एस पी सिंह जी जैसी सख्शियतें बहुत कम होती हैं। बहुत कम होतें हैं वो जिन्दादिल इन्शान जो हमेशा दबे , कुचले , निर्बल ,दीन दुखी,प्रताडित और बेसहारा लोगों के दर्द को अपना समझ कर हमेशा उन्हीं के हक़ो के लिए लडते रहते हैं ।जब भी लगा की किसानों की हक़तल्फी हो रही है ,जब भी उन्हें लगा की गरीबों के साथ अन्याय हो रहा है ,जब भी लगा की कमर्चारियों के साथ न्याय नहीं हो रहा है ,जब भी लगा की छोटे व्यवसाईयों के साथ अन्याय हो रहा है ,जब भी अहसास हुआ की देश का सत्ताधारी राजा प्रजा के हक़ो को नकार रहा है ,जब भी लगा की कोई भी ताकतवर राजनीतिक पार्टी संविधान को बाईपास कर रही है या तानाशाही रवैय्या अपना रही है.....आदि आदि तो एस पी सिंह जी कभी भी सिविल सोसायटी के साथ आवाज़ बुलन्द करने मे कभी भी पीछे नहीं रहे। आम जनता मे जाकर सब कुछ बताया गया और सरकारों को टेबल तक लाने मे महती भूमिका निभाई। संसार मे ऐसी विभूतियां बहुत ही कम होती हैं। आज उनके असमय जाने से जो खाली स्थान हुआ है वो हमे काफी समय तक याद आता रहेगा।
अल्लाह/भगवान/वाहेगुरु ऐसी सख्शियत की आत्मां को अपने श्री चरणों मे स्थान अता करे।
अभी पिछले सालों में एक पत्रिका मेरे हाथ मे आई। पत्रिका में एक लेख के शीर्षक 'पंचकूला से मेलबर्न' ने मेरा ध्यान खींचा। एक ही सिटिंग में पूरा लेख पढ़ गया। लीक से हट कर और मजे़दार लगा। नीचे रचनाकार का नाम सुरेंद्र पाल सिंह और संपर्क दिया हुआ था। तुरंत मैंने मोबाइल नंबर मिलाया और रचनाकार को खूबसूरत लेख पर बधाई दी ।बातों बातों में उन्होंने अपना परिचय दिया। यह जानकर अच्छा लगा कि वे भी मेरी तरह बैंक से रिटायर्ड उच्च अधिकारी रहे हैं और साहित्यिक / सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
उन्होंने अपनी अन्य रचनाओं का ज़िक्र भी किया और किसी मौके पर मुलाकात करेंगे कह कर हमारा संवाद समाप्त हुआ। बंदा हमें नेक इंसान लगा और संवाद का सिलसिला चल निकला। इसके कुछ महीने बाद ही हमारे आत्मीय मित्र कमलेश भारतीय के दिशा निर्देशन और प्रख्यात रचनाकार लघु कथा विशेषज्ञ हमारे मित्र डॉक्टर अशोक भाटिया के मार्गदर्शन में करनाल में आयोजित हरियाणा लेखक मंच के प्रथम वार्षिक सम्मेलन हुआ तो वहां अंबाला से एक टोली बनाकर पंकज शर्मा और अन्य साथियों के साथ हम भी वहां पहुंचे । कार्यक्रम में वहां हमने चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया ।वहां विभिन्न सत्रों के साथ साथ भाग लेने वाले रचनाकारों द्वारा रचित पुस्तकों का भी एक स्टॉल लगाया गया था।स्टॉल पर पुस्तकें देखते हुए मैंने एक पुस्तक उठाई जिसके आमुख पर पुस्तक नाम लिखा था 'बाइटिगोंग'। अजीब सा नाम देख करके जिज्ञासावश मैंने पुस्तक खोली और बीच में जो पन्ना खुला उसमें आरंभ होने वाले लेख का शीर्षक था ' अंग्रेज राज से पहले का हरियाणा -जहाज कोठी ' । 'जहाज कोठी' नाम आते हैं मेरे दिमाग में मेरे बचपन के हिसार शहर की तस्वीर घूम गई जहां मेरा बचपन, स्कूल और कॉलेज तक का जीवन बीता है। बचपन से 'जहाज पुल /जहाज कोठी' नाम मेरे ज़हन में कहीं बंद पड़ा था । मैं जिस स्कूल प्रयाग गिरि सनातन धर्म हाई स्कूल हिसार में जहां पढ़ता था उसके पास में ही जहाजपुल और वहीं पर एक कोठी थी जिसके बारे में कहा जाता था कि अंग्रेज़ों के टाइम की कोठी है।इससे ज़्यादा उस रहस्यमय कोठी के बारे में कभी कुछ मालूम नहीं पड़ा। उस इमारत के बारे में जिज्ञासा मन में दबी की दबी रह रही।उस जिज्ञासा के शमन का फिर कभी मौका ही नहीं मिला। लेख का एक पैराग्राफ पढ़ते ही स्पष्ट हो गया कि यह लेख उसी कोठी के बारे में है। पुस्तक के कुछ और पन्ने पलटने के बाद ' पंचकूला से मेलबर्न ' वाला लेख भी उसी पुस्तक में मिल गया। स्पष्ट हो गया कि किताब उसी सुरेंद्र पाल सिंह की लिखी है जिससे मेरी कुछ महीने पहले फोन पर बात हो चुकी है। पुस्तक रोचक और लीक से हटकर लगी तो फुर्सत में पढ़ने के लिए मैंने तुरंत किताब खरीद ली। उसके बाद मालूम करने पर पता चला कि इसके लेखक सुरेंद्र पाल सिंह भी कार्यक्रम में मौजूद हैं ।लंच में उनसे मुलाकात की और उनसे फोन पर हुई उनकी बातों का जिक्र करते हुए हमने उन्हें जहाज कोठी के लेख वाली किताब खरीदने का कारण विशेष उन्हें बताया तो वे बहुत आनंदित हुए। उसे छोटी-सी मुलाकात में मैंने उनके खुशनुमा व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बहुत सी बातें जानी और हमने आगे सिलसिला जारी रखने का आपस में वादा किया।
इस मुलाकात के बाद आगे उनसे फोन पर कभी-कभी बात होती रही। विभिन्न व्हाट्सएप समूहों में साथ साथ होने के कारण मुझे उनके बहुआयामी चिंतन- मनन का गहरा एहसास हुआ । कुल मिलाकर मैंने उन्हें दुख सुख सांझा करने वाला एक मिलनसार जिंदा शदिल इंसान पाया जो अपने आसपास घटित स्थितियां पर गहरी निगाह रहता है और सामाजिक सरोकार के नाते विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक राय पेश करने से गुरेज़ नहीं करता।
कल अचानक उनके निधन की सूचना पाकर मैं सन्न रह गया। जैसे कोई अपना ही हिस्सा टूट कर गिरा हो और भीतर उमड़ती रह गयी एक बेआवाज़ छटपटाहट।
उनके साथ छोटे से वक़्फे तक कायम रही आपसी संवाद की अंतर्धारा इतनी जल्दी इस मोड़ पर आ कर रुक जाएगी इसका दूर दूर तक एहसास नहीं था। ये शब्द लिखते लिखते मानसपटल पर उनके साथ जुड़ी यादों का चलचित्र अविकल चल रहा है । दिलकश शख्स़ियत का मालिक सुरेंद्र कुछ और जिंदा रहता तो निश्चित रूप से उसकी दमदार कलम साहित्य के ख़ज़ाने में बहुत कुछ नया, बहुत कुछ उम्दा जोड़ जाती ।लेकिन शायद होनी को यह मंजू़र नहीं था। सोचा था जल्द ही उनसे मिलेंगे लेकिन मालूम न था कि उनसे दुबारा मुलाकात की चाहत इस तरह दम तोड़ देगी।अलविदा जहाज कोठी वाले दोस्त, बहुत याद आओगे तुम ।
- ओम बनमाली, अम्बाला छावनी
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#सुरेंद्र_पाल_सिंह साहब: एक यादगार शख्सियत
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
Surender Pal Singh साहब के अचानक चले जाने की खबर मेरे लिए किसी झटके से कम नहीं है। उनका शांत, सरल और सौम्य स्वभाव बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। वो सिर्फ अच्छे इंसान ही नहीं, बल्कि बेहतरीन श्रोता भी थे। आजकल लोग अपनी कहने में ज्यादा रुचि रखते हैं, लेकिन सर की खासियत थी कि वो हर किसी को ध्यान से सुनते थे।
सर से जुड़ी मेरी कई यादें हैं। मसूरी में भगत सिंह के शहीद दिवस के कार्यक्रम से लेकर आगाज़ दोस्ती यात्रा तक, मुझे उनके साथ वक्त बिताने और सीखने का मौका मिला। राजघाट से वाघा तक की बस की यात्रा में उनका अंदाज ऐसा था कि आप उनके साथ कभी छोटा या अजीब महसूस नहीं करते थे। वो हमेशा चाहते थे कि मैं उनके पास बैठूं और उनसे बातें करूं। अगर कभी किसी वजह से मैं दूसरी सीट पर बैठ जाता, तो वो आवाज देकर बुलाते और पूछते कि मैं आजकल घटनाक्रम के बारे में क्या सोचता हूं।
सर ने आगाज़ दोस्ती यात्रा को जिस तरह से समन्वय और समझदारी से संचालित किया, वो तारीफ के काबिल है। उनके साथ मेरा रिश्ता बिल्कुल पिता और बेटे जैसा था। देश में कहीं भी कोई घटना होती, तो सर की कॉल जरूर आती। वो लंबी-लंबी बातें करते और अपनी संवेदनशीलता और समझदारी से दिल को सुकून देते। अगर वो आज होते, तो कॉल करते और जरूर कहते, "कुछ शरारती लोग पूरे हिंदुस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं करते।"
उनकी इंसानियत और अपनापन सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था। इत्तेफाक से उनके मोरनी हिल वाले Mud House में मेरे गांव के पड़ोसी Mushahid Mirza ने इंटीरियर का काम किया था। मुशाहिद जब भी गांव आता, तो सर की तारीफें करता नहीं थकता था। कई बार सर ने मेरे गांव आने का इरादा भी किया, लेकिन आ नहीं पाए। काश, इस बहाने उनसे एक और मुलाकात हो जाती।
सर की पत्नी, Geeta Pal मैडम, जो खुद एक रिटायर्ड शिक्षाविद हैं, भी उतनी ही ज़िंदादिल और खुशमिजाज इंसान हैं। उनसे Ram Mohan Rai साहब के बेटे Utkarsh Rai की शादी में मुलाकात हुई। सर और मैडम की जोड़ी वाकई कमाल की थी—हंसमुख, जिंदादिल और हमेशा खुशमिजाज। जब मैंने सर से कहा कि सर आप घर आइए, तो मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपने मुझे तो invite ही नहीं किया।" उनकी यह बात आज भी याद आती है।
अब उनकी किताब #Baitagong और उनकी कुछ तस्वीरें ही यादें बनकर रह गई हैं। सर का जाना मेरे और उन सभी के लिए एक बड़ी कमी है, जिन्होंने उन्हें जाना और उनके साथ वक्त बिताया।
सर, आप हमेशा याद आएंगे। आपकी बातें, अपनापन और आपका अंदाज, सब कुछ बहुत मिस करेंगे।
हुमायूं खान
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बहुत याद आयेंगे एसपी सिंह.
आज हम एसपी सिंह के एक कार्यक्रम में हिसार जा रहे है, जिसमें हर कोई होगा पर वे नहीं होंगे. दो साल पहले भी हम यहाँ आए थे उनके पिता की स्मृति में एक शोक सभा में पर आज उनकी ही है. इस अर्से मे हालात इतने बदल जाएंगे कोई सोच भी नहीं सकता था.
हिसार आना मुझे हमेशा अच्छा लगता था. मेरे माँ यहीं की थी. मेरे पांच मामा यहां रहते थे. जब भी स्कूल की छुट्टियां होती तो हमारा दार्जिलिंग तो यहीं होता. पूरा पूरा महिना गुजारते. खुशी - ग़मी मे आना इससे अलग होता. माँ और मामा के जाने के बाद हिसार से तो नाता ही टूट गया था पर एसपी की बजह से फिर जुड़ने लगा था.
मेरा कोई एसपी से कोई बहुत लम्बा समबन्ध नहीं था. जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा के कारणों की जांच के लिए पूर्व पोलिस अधिकारी और जनवादी कार्यकर्ता वी एन राय की अध्यक्षता में एक जन आयोग का गठन किया गया था जिसमे मैं और एसपी सहित अनेक लोग थे. हम दोनों अग्रणी भूमिका में थे. इसी दौरान उनसे परिचय हुआ और उसके बाद तो यह निकट संबन्धों मे बदल गया.
अब तो आलम यह था कोई ही ऐसा दिन होता जब कि हम सुबह किसी न किसी टॉपिक को लेकर घण्टों मोबाइल पर बतियाते. कब टाइम बीत गया और मेरे सैर के छह हजार कदम पूरे हो गए इसका पता ही नहीं चलता. ऐसा कोई भी विषय नहीं था जिसकी उन्हें जानकारी नहीं होती. लोकसभा, विधानसभा के चुनाव की समीक्षा, राजनीतिक हालात पर चर्चा और साहित्य, इतिहास और धर्म - जाति के गम्भीर मसलों पर उनकी गहरी पकड़ थी. और इन सभी मे हम डूब जाते.
एसपी एक गम्भीर वक्ता ही नहीं अपितु वैसे ही एक श्रोता और दर्शक भी थे. हर बात को ध्यान दे कर सुनते और फिर अपनी प्रतिक्रिया देते. किसी भी लेख की एक एक लाइन के प्रत्येक शब्द को पूरी तरह से पढ़ते, उसमे सुधार करते और फिर प्रकाशित करते. मेरे जैसे लापरवाह के लिए वे बेहद जरूरी थे. जब भी मैं उन्हें लिख कर भेजता तो एक अध्यापक की तरह लेख सुधार कर वापिस करते हुए कहते कि लिख कर पढ़ भी लिया करें और मैं भी हँस कर कहता कि तभी तो प्रकाशित करने से पहले आप को भेजता हूँ. पर इन तमाम हिदायतों के बावजूद न तो मैं बदला और न ही वे.
आगाज ए दोस्ती यात्रा की तो वे जानो जान थे. उनके पास हर जानकारी रहती और किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान भी. यद्यपि यात्रा के सभी साथी उसके प्रति संजीदा और समर्पित है पर एसपी जैसा होने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी होगी.
हमारे तो हर कार्य मे वे सहयोगी थे और फिर चाहे वे पारिवारिक हो या सामाजिक. विगत वर्षों मे ऐसे अनेक दोस्त खोए है. यह सिलसिला डाॅ शंकर लाल से शुरू हुआ था और अब एसपी.
एसपी का जाना किसी आम आदमी का जाना नहीं है. एक ऐसा व्यक्ति जो खुद अध्ययन की एक बड़ी लाइब्रेरी, हर बात का encyclopedia और करुणा और प्रेम से भरा व्यक्तित्व था. आयु के लिये तो हम उन्हें 64 वर्षो में समेट सकते है परंतु मानवीय विचारों की उदात्त भावनाओं से समृद्ध वह व्यक्ति सहस्त्र वर्षों का होता है. ऐसे वट वृक्ष का गिरना मानों एक संस्था और उसके इतिहास की समाप्ति है.
कोई अवतार, महापुरूष अथवा फ़रिश्ता तो वे नहीं थे पर हाँ एक मुक्कमल इंसान जरूर थे. आज के हालात में जब हर कोई अपनी कमियों और गलतियों की जिम्मेवारी देने के लिए एक नेहरू की तलाश में हैं ऐसे मे एसपी को हम हमेशा याद करेंगे.
हाली पानीपती ने फरमाया है :
फरिश्तों से बेहतर है इंसान बनना,
मग़र इसमे पड़ती है मेहनत ज्यादा.
Ram Mohan Rai,
Panipat.
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