महात्मा गांधी के विचारों का भारतीय संविधान पर असर

महात्मा गांधी का भारतीय संविधान पर असर

महात्मा गांधी, जिन्हें राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है, ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अद्वितीय भूमिका के साथ-साथ भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचार और सिद्धांतों ने भारतीय संविधान को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

▎गांधी जी का दृष्टिकोण

गाँधी जी ने अपने जीवन में हमेशा सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन किया। उनका मानना था कि लोकतंत्र केवल एक राजनीतिक प्रणाली नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक व्यवस्था भी है। उन्होंने कहा, "हमारे देश के पास राजशाही, एकतंत्र प्रजातंत्र और गणराज्य का अनुभव है। हमें पश्चिम और अन्य देशों का अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए।" उनके इस दृष्टिकोण ने भारतीय संविधान को एक विशेष दिशा दी, जिसमें केवल राजनीतिक अधिकारों की बात नहीं की गई, बल्कि सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों पर भी जोर दिया गया। 
  2 अप्रैल, 1947 को दिल्ली में आयोजित एशियन देशों के एक सम्मलेन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि " मैं आशावादी हूं यदि आप सभी अपने दिलों को एक साथ रखते हैं- केवल दिमाग नहीं- पूर्व के इन बुद्धिमान लोगों द्वारा हमारे लिए छोड़े गए संदेश के रहस्य को समझने के लिए और यदि हम वास्तव में उसे महान संदेश के योग्य बन जाते हैं तो पश्चिम पर विजय पूरी हो जाएगी यह विजय पश्चिम को स्वयं प्रिय होगी"

हरिजन सेवक संघ और गांधीवादी संविधान
गांधी जी यद्यपि संविधान सभा के सदस्य नहीं थे और न ही उन्होंने कभी किसी भी तरह की संविधान सभा के कार्यों में दखलंदाजी की लेकिन यह एक तर्कशे एक वकील थे और उन्होंने अपने हरिजन एवं नवजीवन अखबारों का संपादन किया और अपने लेख लिखें उनके संपूर्ण लिखे पत्रों में विचारों का गांधी वांग्मय  की संख्या 100 से अधिक है और लगभग 55000 पृष्ठों में समाहित है. परन्तु उन्होंने सन 1932 में हरिजन सेवक संघ का संविधान लिखा, जिसमें उन्होंने समाज के सबसे कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा की। 1945 में उनके साथी श्रीमन्न नारायण ने गांधीवादी संविधान लिखा, जिसमें कुल 60 पृष्ठ और 22 अध्याय थे। गांधी जी ने इस संविधान पर सहमति व्यक्त की, जो उनके विचारों को आगे बढ़ाने का एक प्रयास था।

गांधी जी की प्रार्थना और विचार

गाँधी जी की प्रार्थना थी:
 "हे नम्रता के सागर! 
दीन - हीन कुटिया के निवासी! 
गंगा,यमुना और ब्रह्मपुत्र के जलो से सिंचित इस सुन्दर देश में
तुझे सब जगह खोजने मे हमे मदद दे!।हमे ग्रहणशीलता और खुले दिल दे:
तेरी अपनी नम्रता देः
हिन्दुस्तान की जनता से 
एकरूप होने की शक्ति और उत्कण्ठा दे।
हे भगवन! तू तभी मदद के लिए आता है,
जब मनुष्य शून्य बनकर ,तेरी शरण लेता है।हमे वरदान दे,कि सेवक और मित्र के नाते 
जिस जन का सेवा करना चाहते हैं,
उनसे कभी अलग न पङ जायें।
हमे त्याग भक्ति और नम्रता के मुर्ति बना,ताकि इस देश को हम ज्यादा समझे और ज्यादा चाहे।"
 जो उनकी विनम्रता और मानवता के प्रति उनकी गहरी भावना को दर्शाती है।  उन्होंने सन 1942 में कहा था , "हमें आज़ादी इस लिए चाहिए ताकि हम दुनियाँ की सेवा कर सकें।" यह विचार उनके मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो आज भी प्रासंगिक है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह उल्लेख किया गया है कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की स्वतंत्रता तथा अवसर की समानता सुनिश्चित करेगा।

संविधान के अनुच्छेदों पर गांधी विचारों का प्रभाव. 

• अनुच्छेद 14: सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार प्रदान करता है। गांधी जी का मानना था कि सभी मनुष्य समान हैं और उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए।

  
• अनुच्छेद 15: किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव न करने का प्रावधान करता है। यह गांधी जी के सर्व धर्म समभाव के सिद्धांत से जुड़ता है।

• अनुच्छेद 17: अछूत प्रथा का उन्मूलन करता है। यह गांधी जी के हरिजन सेवा के सिद्धांत का प्रतिफल है।

• अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिसे गांधी जी ने हमेशा महत्वपूर्ण माना।

• अनुच्छेद 25-28: ये अनुच्छेद धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित हैं, जो गांधी जी के सर्व धर्म समभाव के सिद्धांत को दर्शाते हैं।

• अनुच्छेद 40: ग्राम स्वराज का प्रावधान करता है, जो गांधी जी की ग्राम आधारित शासन प्रणाली के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

• अनुच्छेद 47: स्वास्थ्य और कल्याण के लिए राज्य की जिम्मेदारी को स्पष्ट करता है, जो गांधी जी के मानवता के प्रति दृष्टिकोण से मेल खाता है।

• अनुच्छेद 51: अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए राज्य की नीति को निर्धारित करता है, जो गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष

महात्मा गांधी का भारतीय संविधान पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके सिद्धांतों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया बल्कि नए भारत के निर्माण में भी मार्गदर्शन किया। उनके विचार आज भी हमारे समाज में प्रासंगिक हैं और हमें एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र की ओर अग्रसर करने में मदद करते हैं। गांधी जी की दृष्टि ने भारतीय संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाया जो केवल कानून नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक अनुबंध भी है।
(गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति एवं गाँधी ग्लोबल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में  दिए गए व्याख्यान का सार)
Ram Mohan Rai. 
GSDS, Delhi. 

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